नमस्कार दोस्तों बाय एस्ट्रोलॉजी में आपका स्वागत है त्रंबकेश्वर 12 ज्योतिर्लिंगों में आठवें स्थान पर है। यह महाराष्ट्र के नासिक में स्थित है दुनिया भर से लोग यहाँ कालसर्प दोष की पूजा कराने के लिए जाते हैं। हम इसी ज्योतिर्लिंग के बारे में, उसकी कथा उसका इतिहास और वहां कैसे पहुंचा जाए व अन्य रमणीक स्थल के बारे में जानकारी देंगे।
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है-
एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाली महिलाओं का झगड़ा उनकी पत्नी से हो गया। उन्होंने अपने-अपने पतियों के कान भर दिए ब्राह्मणों ने गौतम ऋषि से अपनी-अपनी पत्नियों के अपमान का बदला लेने के लिए गणेश जी की आराधना की। गणेश जी प्रसन्न हुए। गणेश जी ने उन ब्राह्मणों से इक्षा पूछी। तो उन्होंने कहा कि आप किसी भी तरह से गौतम ऋषि को हमारे आश्रम से निकाल दिए हालांकि गणेश जी ने इसके लिए मना किया परंतु फिर अपने भक्तों की बातों माननी पड़ी। उन्होंने गाय का रूप धारण किया और गौतम ऋषि के खेत में जाकर गे बनकर चरने लगे। गाय को खेत चरता देख गौतम ऋषि एक एक पतला सा डंडा लेकर उन्हें हाकने के लिए पहुंच गए। हालांकि पुस्तक में लिखा है तृण लिखा है। त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाली महिलाओं का झगड़ा उनकी पत्नी से हो गया। उन्होंने अपने-अपने पतियों के कान भर दिए ब्राह्मणों ने गौतम ऋषि से अपनी-अपनी पत्नियों के अपमान का बदला लेने के लिए गणेश जी की आराधना की। गणेश जी प्रसन्न हुए। गणेश जी ने उन ब्राह्मणों से इक्षा पूछी। तो उन्होंने कहा कि आप किसी भी तरह से गौतम ऋषि को हमारे आश्रम से निकाल दिए हालांकि गणेश जी ने इसके लिए मना किया परंतु फिर अपने भक्तों की बातों माननी पड़ी। उन्होंने गाय का रूप धारण किया और गौतम ऋषि के खेत में जाकर गे बनकर चरने लगे। गाय को खेत चरता देख गौतम ऋषि एक एक पतला सा डंडा लेकर उन्हें हाकने के लिए पहुंच गए। हालांकि पुस्तक में लिखा है तृण लिखा है। आप सामान्य शब्दों में गेहू की डंडी समझ सकते हैं। उस तृण के स्पर्श से गाय की मृत्यु हो गई और जितने भी ब्राह्मण थे उन्होंने महर्षि गौतम पर गौ हत्या का पाप लगा दिया।
उपाय स्वरुप वहां के ब्राह्मणो ने कहा कि तुम पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करो और वहां से लौटने के बाद 1 महीने तक व्रत करो। इसके बाद ब्रम्हगिरी की एक सौ एक बार परिक्रमा करो तो या गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग बनाओ और शिवजी की आराधना करो। उसके बाद पुनः गंगा जी से स्नान करके इस ब्रह्मागिरी पर्वत के 11 परिक्रमा करो फिर 100 घड़ों से पवित्र जल लेकर पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराएं तब तुम्हारा उद्धार होगा।
ब्राह्मणों की कथन अनुसार गौतम ऋषि वहां बैठकर तपस्या करने लगा भगवन शिव प्रसन्न हुए तब उन्होंने खुद को गौ हत्या के पाप से मुक्त करने का आशीर्वाद मांगा भगवान। शिव ने उन्हें बताया कि उन पर कोई गौ हत्या का पाप नहीं है बल्कि उनको छल स्वरुप यहां भेजा गया है। यह सुनकर महर्षि गौतम बोले ” उन ब्राह्मणों के कारण आज मुझे आपके दर्शन प्राप्त हुए हैं” आप इस इस स्थान को गंगाजी के पवित्र जल से पवित्र कीजिए। तब गंगा जी वहां पर गोदावरी के नाम से बहने लगी। गंगा जी ने शिव जी से आग्रह किया कि आप तथा अन्य देवता यहां ज्योति स्वरूप विराजमान हों। तब से यह स्थान त्रंबकेश्वर के रूप से के नाम से जाना जाने लगा। यहां पर तीन गड्ढों में तीन छोटे शिवलिंग है जिन्हें त्रियम्बकअर्थात तीन आंखें कहा गया इन्ही को ब्रम्हा विष्णु महेश भी कहते हैं इसीलिए इस स्थान का नाम त्रियंबकेश्वर पड़ा। त्र्यंबकेश्वरज्योर्तिलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।
गाँव के अंदर कुछ दूर पैदल चलने के बाद मंदिर का मुख्य द्वार नजर आने लगता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत बहुत सूंदर नक्काशी है । मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का स्वरुप माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।
त्रंबकेश्वर मंदिर के पास तीन पर्वत स्थित हैं जिन्हें ब्रह्मागिरी नीलगिरी और गंगाद्वार के नाम से जाना जाता है ब्रम्हगिरी को शिव का स्वरूप माना जाता है नीलगिरी पर्वत पर नीलअंबिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है गंगाद्वार पर्वत पर देवी गोदावरी या गंगा का मंदिर है यहाँ मूर्ति के चरणों से बूंद बूंद करके जल टपकता रहता है जो पास के कुंड में जमा भी होता है।
इस गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्रंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों की बनी हुई बहुत शानदार नक्काशी है इस मंदिर पर। इस मंदिर में के पंचकोशी में कालसर्प शांति त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबली की पूजा संपन्न होती है
इस मंदिर का निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी जिन्हें नाना साहब पेशवा भी कहा जाता है उन्होंने कराया था और तकरीबन 1600000 रुपए खर्च किए थे उस टाइम में बहुत बड़ी रकम मानी जाती थी 31 साल तक लगातार इस पर काम चलता रहा तब जाकर यह तैयार हुआ।
यहां पर पहुंचने के लिए आपको पहले नासिक जाना होगा। आप रेल, वायु य सड़क मार्ग सब जगह से नासिक पहुंच सकते हैं उसके बाद वहां से आपको या तो बस या ऑटो या टैक्सी कर सकते हैं। वहां से त्रिंबक गांव जाना होता है गाड़ियां वहां से खूब मिलती है।
धन्यवाद दोस्तों हम इसी तरह काम की जानकारी लाते रहेंगे