Apna Isht deva kaise jane, राशि के अनुसार इष्टदेव (Ishta Devta) कैसे पता करें
Apna Isht deva kaise jane, ist dev kaun hai, राशि के अनुसार इष्टदेव (Ishta Devta) कैसे पता करें, ist dev kya hota hai,
इष्टदेव (Ishta Devta)
दोस्त अगर आप यह लेख पढ़ रहे हैं तो इसका मतलब है कि इष्ट देव के बारे में आपको जानकारी है। परंतु फिर भी मैं एक लाइन में यह बता दो कि ईस्ट का अर्थ होता है प्यारा या करीबी, जैसे आपके इष्ट मित्र ठीक उसी तरह इष्ट देव का मतलब होता है आपका करीबी देवता, आपका आराध्य या आपका प्यारा देव।
लोग इस बात को लेकर हमेशा संशय (confusion) में रहते हैं कि उन्हें किस देवता की पूजा करनी चाहिए। कही वह गलत देवता की पूजा तो नहीं कर रहे। जब इसका जवाब इंटरनेट पर पूछते हैं तो ज्यादातर लोग राशि के अनुसार बताते हैं, कि आपका इष्ट देव ये होना चाहिए।
एक बार पहले जान लेते हैं। ज्योतिष इस बारे में क्या कहता है। आइये देखते है।
ज्योतिष में जन्म कुंडली के पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित धर्म, कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, भक्ति और इष्टदेव का बोध होता है। यही कारण है अधिकांश विद्वान इस भाव के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करते है। इस भाव में जो राशि हो या जो ग्रह हो उससे ईस्ट देव का निर्धारण करते हैं।
कुछ लोग राशि के अनुसार भी ईस्ट देवता का चुनाव करते हैं। जैसे………
मेष राशि वाले लोग सूर्य देव की पूजा करें।
वृष राशि वालों के लिए विष्णु जी की पूजा करना शुभ रहेगा।
मिथुन राशि वाले लोग माता लक्ष्मी की पूजा करें।
कर्क राशि वाले लोग हनुमान जी का पूजन करें।
सिंह राशि वाले लोग गणेश जी को अपना इष्ट मानकर पूजा करें।
कन्या राशि वाले लोग मां काली का पूजन करना लाभकारी रहेगा।
तुला राशि के लोग कालभैरव या शनि देव की पूजा करें।
वृश्चिक राशि के जातक कार्तिकेय जी की पूजा करें।
धनु राशि के जातक हनुमान जी की पूजा करें।
मकर राशि के लोगों के लिए दुर्गा जी की पूजा करना लाभकारी रहेगा।
कुम्भ राशि के जातक विष्णु जी या सरस्वती जी की पूजा करें।
मीन राशि वाले लोग शिव जी की पूजा करें तथा पूर्णिमा के चाँद को अध्र्य देकर दर्शन करें।
कुछ लोग हस्त रेखा द्वारा अपने इष्ट देव पता करते हैं। जैसे
हाथ में अगर हृदयरेखा के अंत के स्थान से एक शाखा निकल कर गुरु पर्वत पर जाकर रुके तो हनुमानजी की पूजा करनी चाहिए।
किसी व्यक्ति की हथेली में अगर हृदय रेखा पर त्रिशूल के आकार का चिह्न बनता है तो ऐसे व्यक्ति को भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
किसी व्यक्ति की हथेली में अगर सूर्य पर्वत दबा हुआ है तो सूर्यदेव की पूजा करने से लाभ मिलता है।
किसी जातक की हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा मिलती हुई हो या फिर मस्तिष्क रेखा हथेली में स्थित मंगल क्षेत्र तक जाए, तो भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
हृदय रेखा अगर टूटी हुई हो और साथ में हृदय रेखा से बहुत सारी शाखाएं निकलकर मस्तिष्क रेखा पर आती हो तो ऐसे लोगों को मां भगवती की पूज करनी चाहिए।
किसी व्यक्ति की भाग्य रेखा को अगर कई मोटी रेखाएं काट दें या फिर भाग्य रेखा खंडित हो या भाग्य रेखा में किसी भी तरह को कोई दोष हो तो जातक को देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
इसी तरह अंक ज्योतिष से भी हम देवताओं का पता कर सकते हैं जैसे
यदि आपका 1 है, तो भग्यांक 1 के स्वामी सूर्य ग्रह हैं। आपको सूर्य अथवा गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।
यदि आपका 2 है, तो भग्यांक 2 के स्वामी चंद्र ग्रह हैं। आपको हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।
यदि आपका 3 है, तो भग्यांक 3 के स्वामी बृहस्पति ग्रह हैं। आपको विष्णु जी अथवा अपने गुरु जी की पूजा करनी चाहिए।
यदि आपका 4 है, तो भग्यांक 4 के स्वामी राहु हैं। आपको माँ दुर्गा जी अथवा शिव जी की पूजा करनी चाहिए।
यदि आपका 5 है, तो भग्यांक 5 के स्वामी बुध ग्रह हैं। आपको विष्णु जी अथवा सरस्वती माँ की पूजा करनी चाहिए।
यदि आपका 6 है, तो भग्यांक 6 के स्वामी शुक्र ग्रह हैं। आपको माँ लक्मी की पूजा करनी चाहिए।
यदि आपका 7 है, तो भग्यांक 7 के स्वामी केतु हैं। आपको गणेश जी अथवा अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए।
यदि आपका 8 है, तो भग्यांक 8 के स्वामी शनि ग्रह हैं। आपको शनि देव अथवा हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।
यदि आपका 9 है, तो भग्यांक 9 के स्वामी मंगल ग्रह हैं। आपको हनुमान जी अथवा कार्तिकेय जी की पूजा करनी चाहिए।
दोस्तों ये तो हुई ज्योतिष की बात। पर क्या केवल इतने ही देवता है और मुझे तो मोहन राम बाबा, मुसलमानो के अल्लाह, या प्रभु यशु पसंद है। अब क्या मैं ज्योतषियों की बात मानकर अपना इष्ट बदल लू?
अब यहाँ बेसिक समझते हैं। हम इष्ट कैसे चुनते है।
इसके 3 फेक्टर है।
1 ) हमारा परिवारिक माहौल (ज्यादातर हमारा इष्ट हमें अपने परिवार से ही मिलता है। अगर मैं वैष्णव हूँ तो भगवान विष्णु की पूजा करूँगा)
2 ) हमारी संगती (मेरे कुछ दोस्त है जो हर हफ्ते खाटू श्याम जाते हैं और वे लोग उनका गुणगान करते हैं अब मेरी रूचि स्वाभविक ही उस तरफ चली जाएगी। )
3 ) हमारी रूचि ( यानि हमारी अंदर की आवाज़ भक्त प्रह्लाद दैत्यों के घर में रहे पर विष्णु के भक्त थे। रसखान मुस्लिम पैदा हुए पर कृष्ण भक्त कहलाये।) यही हमारा सिक्स्थ सेन्स है। इसमें भगवान भक्त को अपनी तरफ स्वाम बुलाते हैं।
मैंने एक वीडियो बनाई है जिसमे ये बताया है की हिन्दुओं के इतने भगवान क्यों है। और सबसे बड़ा तथा शक्तिशाली भगवान कौन है। उसमे बताया है की हर कोई अपनी रूचि के अनुसार भगवान चुन सकता है।
किसी भक्त के प्रिय शिव जी हैं तो किसी के विष्णु तो कोई राधा कृष्ण का भक्त है तो कोई हनुमानजी का। और कोई कोई तो सभी देवी देवताओ का एक बाद स्मरण करता है। परन्तु एक उक्ति है कि “एक साधै सब सधै, सब साधै सब जाय”। जैसा की आपको पता है कि अपने अभीष्ट देवता की साधना तथा पूजा अर्चना करने से हमें शीघ्र ही मन चाहे फल की प्राप्ति होती है।
इष्टदेव कैसे दिलाते हैं सफलता
अब प्रश्न होता है कि देवी देवता हमें कैसे लाभ अथवा सफलता दिलाते हैं|
जब हम किसी भी देवी-देवता की पूजा करते है तो हम अपने अभीष्ट देवी देवता को मंत्र के माध्यम से अपने पास बुलाते है| आह्वाहन करने पर देवी देवता उस स्थान विशेष तथा हमारे शरीर में आकर विराजमान होते है। वास्तव में सभी दैवीय शक्तियां अलग-अलग निश्चित चक्र में हमारे शरीर में पहले से ही विराजमान होती है | आप हम पूजा अर्चना के माध्यम से ब्रह्माण्ड सेउपस्थित दैवीय शक्ति को अपने शरीर में धारण कर शरीर में पहले से विद्यमान शक्तियों को सक्रिय कर देते है और इस प्रकार से शरीर में पहले से स्थित ऊर्जा जाग्रत होकर अधिक क्रियाशील हो जाती है। इसके बाद हमें सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है।
आप अपने इष्ट को ढूँढना चाहते हैं और रास्ता नहीं मिल रहा तो जो भक्ति के देवता है उनका स्मरण करें। प्रकृति की ओर से विशेष कार्यों के लिए देवता निर्धारित है। जैसे हमारे शरीर में भगवान चित्रगुप्त गुप्त रूप से रहते हैं। जो हमारे कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं। भगवान विश्वकर्मा हमारे शरीर में तकनिकी ज्ञान डालते हैं। माँ सरस्वती कला और विद्या की शक्ति देती हैं।
यदि आपको गुरु नहीं मिल रहा है तो दत्तात्रेय की पूजा करे गुरु अवश्य मिल जायेंगे। ऐसे ही हमें हनुमान जी की पूजा करने से आपको आपका इष्ट मिल जायेगा। तुलसीदास जी को भी हनुमान जी ने ही राम से मिलाया था। वही सबसे बड़े भक्त है। उन्हें एक भक्त की पीड़ा का ज्ञान है। आपको भी यदि अपना ईस्ट कहते तो 21 दिन का संकल्प लेकर 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। संकल्प पूरा होने के बाद आपको आपके इष्ट अपने पास स्वाम बुला लेंगे या अपना कोई भक्त आपके पास भेज देंगे। यह बात है।