नमस्कार दोस्तों बहुत सारे लोग इस प्रश्न को करते हैं कि क्या पूजा करते समय या किसी संकल्प के करते समय ब्रह्मचर्य का पालन होना चाहिए? हां तो पूजा अनुष्ठान में ब्रह्मचर्य कितना जरूरी है या फिर कहीं यह बकवास तो नहीं? इसकी क्या जरुरत है? पूजा के समय ब्रम्हचर्य का पालन करें या नहीं ? प्रश्न यह है कि अनुष्ठान के दौरान क्या ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। या अगर सोते समय घड़ा भर के छलक जाए तो अनुष्ठान टूटता तो नहीं है। अनुष्ठान या संकल्प या फिर किसी यज्ञ के दौरान यदि गलती से पति-पत्नी साथ सो लें तो पूजा अनुष्ठान या व्रत खराब तो नहीं होता?
दोस्तों सबसे पहले यह समझ लेते हैं कि ब्रह्मचर्य क्या है ब्रम्हचर्य योग से जुड़ा हुआ एक शब्द है। जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता है। इसमें पहला शब्द है ब्रह्म और दूसरा शब्द है चर्य। ब्रह्म का मतलब है क्या है यह बहुत लंबा विषय है जिसपर चर्चा नहीं की जा सकती। लेकिन आप सामान्य शब्दों में समझो तो ब्रह्म का मतलब है ज्ञान और चर्या का मतलब है उसकी चर्चा करना उस में विचरण करना। ज्ञान की लगातार प्राप्ति को ब्रम्हचर्य कहा गया है। लेकिन कई जगह पर इसको वीर्य रक्षण के साथ भी जोड़ा गया है। खास तौर पर जैन संप्रदाय में। ज्ञान की प्राप्ति के लिए जीवन बिताना ब्रम्हचर्य है। (Can we follow celibacy during worship)
समाज में ब्रह्मचर्य को लेकर अवधारणा बनी हुई है कि ब्रम्हचर्य का मतलब है सेक्स ना करना और अपने वीर्य का रक्षण करना। कहीं-कहीं तो ऐसा वर्णन किया है कि यदि वीर्य नाश हो गया तो सब कुछ खत्म हो गया। पुरुषों के लिए कहा गया नारी नरक का द्वार है यानी नारी आपके और ब्रम्हचर्य के बीच में आ जाएगी और वह आपको नर्क ले जाएगी।
मैं आपको अपने जीवन का एक अनुभव बताता हूं तरुणाई के दिनों में आशाराम बापू की पुस्तक पढ़ता था जिसका नाम था यौवन सुरक्षा। उस पुस्तक में बताया गया कि अभिमन्यु से लेकर और पृथ्वीराज चौहान तक जितने भी योद्धा हारे है उसका कारन ब्रम्हचर्य का पालन न करना था। रणनीति, युद्ध कौशल या छल ये तो कोई मायने ही नहीं रखता। बस हार की एक वजह थी उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन नहीं किया। उन्होंने पुरुष तत्व का नाश कर दिया। उस प्रस्तक में लिखा था कि 32 दिन के भोजन से 1 बून्द पुरुष तत्त्व (वीर्य ) बनता है। उन दिनों उस पुस्तक प्रभाव मुझपर बहुत ज्यादा था। उस समय आयुर्वेद का ज्ञान तो बिलकुल नहीं था। बरसात के महीने में घड़े का जल रात को सपने में बहार गिर गया। सुबह जब हमें पता चला तो हमारी दुनिया ही लूट चुकी थी। अनजाने में सालों की तपस्या भांग हो गई थी। तक़रीबन 1 महीने तक मैं नार्मल नहीं हो पाया। खैर वो समय बीत गया। उसके कुछ सालों बाद आयुर्वेद का अध्यन किया तब इस विषय का ज्ञान हुआ। अभी कुछ दिन पहले ही यूट्यूब पर देखा की यदि आप एक साल तक पुरुष तत्व की रक्षा करते हैं तो वह आपके खून में मिल जाता है और आपके दिमाग तक पहुंच आपके दिमाग की ताकत को सौ गुना बढ़ा देता है। अजीब लेवल की डैश पंति है। कोई इन्हे समझये कि मेडिकल साइंस नाम की भी कोई चीज होती है। इन लोगों ने सेक्स को ब्रम्हचर्य और ब्रम्हचर्य को सेक्स बना दिया है मतलब अगर आप ब्रम्हचर्य का नाम लेते हैं तो लोगों के दिमाग में सेक्स आता है क्या, क्या चल क्या रहा है यह।
एक बात समझे जैसे शरीर में लाल, पसीना, खून इत्यादि बनता है उसी तरह शरीर में पुरुष तत्व भी बनता है उसका उसकी भी अपनी ग्रंथियां होती हैं। आपका अच्छा खानपान अच्छा पुरुष तत्व बनाएगा खराब खानपान खराब पुरुष तत्व बनाएगा इसलिए भोजन का खास ध्यान रखना चाहिये। अति तो हर जगह बुरी होती है दिन में चार पांच बार होगा तो दिक्कत तो होगी, शरीर में कमजोरी महसूस होगी। मैं ब्रम्हचर्य का विरोधी नहीं हूं वास्तव में ब्रम्हचर्य बहुत बड़ा बहुत विषय है। इस पर एक लेख में कुछ नहीं बताया जा सकता लेकिन इससे जुड़ी हुई भ्रांतियां दूर करना मेरा काम है। मेरे बहुत से मित्र जो ब्रम्हचर्य के अपराध बोध में दबे है उन्हें सही रास्ता दिखन मेरा काम है।
1972 में सैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में एक प्रयोग किया गया। उस प्रयोग का नाम था मार्शमैलो टेस्ट जो आज के समय मार्शमैलो सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। इस टेस्ट में एक टीचर एक बच्चे को खाली रूम में छोड़ देता था और उसके सामने टेबल पर एक मार्शमैलो रखी होती थी और उस बच्चे से टीचर कहता था कि जब मैं लौट के आऊंगा तो तुम्हें दो मार्शमैलो मिलेगी। लेकिन तुम चाहो तो इसे खा सकते हो। कुछ बच्चे टीचर के जाते ही मार्शमैलो खा लेते थे। कुछ थोड़े समय तक इंतजार करते थे और कुछ टीचर के आने तक संयम बरतते थे उन्हें दो मार्शमैलो दी जाती थी। प्रयोग बड़ा छोटा सा था इस प्रयोग का 40 साल तक अध्ययन करने के बाद पता चला कि जिन बच्चों ने संयम रखा वह बच्चे अपनी जिंदगी में ज्यादा कामयाब हुए और जिन्होंने जल्दी उठा कर मार्शमैलो खा ली थी वह कम कामयाब हुए।
यह टेस्ट किस चीज का था जुबान पर कंट्रोल का। मामूली सी जुबान को कंट्रोल करने से कामयाबी की उचाई का पैमाना तय हो गया। यानि जिन बच्चों ने कंट्रोल किया वह लोग अपनी लाइफ में ज्यादा कामयाब हुए। अब आप सोचिए हमारे पूर्वजों ने कितने प्रयोग किए होंगे और पाया होगा कि कामइक्षा जैसी डिजायर को यदि कंट्रोल कर लिया जाए। तो आदमी कितना ज्यादा कामयाब हो सकता है वह अपने लक्ष्य पर अडिग रह सकता है। इसीलिए उन्होंने इस विषय पर जोर दिया परंतु समय के साथ इसे टैबू बना दिया गया।
ब्रह्मचर्य का मतलब रतिक्रिया ना करना नहीं है और नहीं पुरुष तत्वों का रक्षण करना है। बल्कि इंद्रिय निग्रह उसका एक छोटा हिस्सा है। यह ब्रह्म की तरह ही बहुत विस्तृत विषय है जिस पर मेरे जैसे सामान्य बुद्धि का व्यक्ति चर्चा नहीं कर सकता। रही बात आपके चहरे के तेज की तो यह आपके ज्ञान तप और खान पान पर निर्भर करता है। हनुमान, भीष्म या महावीर ऐसा ब्रम्हचर्य बहुत उच्च स्तर का ब्रम्हचर्य है जो हम जैसे लोगों के लिए असंभव तो नहीं पर उसके आसपास जरूर है।
पुराने लोगों ने कहा है कि आप एक व्यक्ति के साथ पूरा जीवन बताइए यह भी ब्रह्मचर्य की श्रेणी में आता है। उन्होंने चार आश्रम बनाए पहला आश्रम है ब्रह्मचर्य आश्रम यानी व्यक्ति अपने जीवन में 25 साल तक केवल और केवल विद्या अध्ययन ही करेगा। इंद्री सयम तप व ब्रह्मचर्य करेगा। उसके बाद 25 साल तक वह गृहस्थ आश्रम में अपना जीवन पारिवारिक कार्यों में विवाह संतान उतपत्ति व धन अर्जन आदि के लिए देगा। और उसके बाद वानप्रस्थ आश्रम में 25 साल तक वह सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहेगा जिससे समाज बना रहे। अंत के समय में सन्यास आश्रम में वह अपने मोक्ष के लिए जप तप करेगा। इस तरह हिंदू धर्म में चार मुख्य स्तंभ है जिन्हें कहा गया है धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। सबसे पहले व्यक्ति को धर्म अर्थात अपने कर्तव्यों का पालन करना है। फिर उसे अर्थ यानि अपने आदर्शों का पालन करते हुए पैसे जमीन जायदाद कमाना है। फिर काम के बारे में कहा गया है की मर्यादित उपभोग हर तरह का भोग विलास करना परन्तु जिससे किसी का दिल न दुखे। अंत में मोक्ष है मतलब अपने संप्रदाय के अनुसार ऐसे कर्म करना जो आपको मोक्ष ( स्वर्ग ) की तरफ ले जाता हो।
प्रश्न यह है कि अनुष्ठान के दौरान क्या ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। या अगर सोते समय घड़ा भर के छलक जाए तो अनुष्ठान टूटता तो नहीं है। अनुष्ठान या संकल्प या फिर किसी यज्ञ के दौरान यदि गलती से पति-पत्नी साथ सो लें तो पूजा अनुष्ठान या व्रत खराब तो नहीं होता?
अगर आपको अगर आपकी गाड़ी खराब हो जाए तो क्या आप उसे डॉक्टर को दिखाने जाते हैं। अगर आपकी तबीयत खराब हो जाए तो क्या आप सीए के पास जाकर अपना इलाज कराएंगे नहीं क्योंकि आप जानते हैं कि उसका स्पेशलिस्ट नहीं है। आज की डेट में जितने सत्संग या प्रवचन होते हैं वह वह बाबा लोग होते हैं जिन्होंने विवाह नहीं किया। वो अपने अनुभव के आधार पर आपको ज्ञान देंगे। उनके अनुभवों में पुरुष के लिए स्त्री और स्त्री साधिका के लिए पुरुष अछूत है। आप उनसे ग्रहस्त के सवाल करोगे तो वो दूसरों के अनुभव को अपने अनुभवों के साथ बताएँगे। बहुत ही कम ऐसे हिंदू देवी देवता देखेंगे जिन्होंने विवाह नहीं किया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवी के अवतार, गणेश जी, कार्तिकेय और यहां तक कि एक बार तो हनुमान जी ने विवाह किया था। शंकराचार्य ने भी दूसरे शरीर में जाकर गृहस्थ को जाना था। हिन्दू दर्शन कहता है की धर्म अर्थ और काम के बिना आप मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते। अगर आप सन्यासी हैं तो वह मार्ग अलग है।
यदि कोई विशेष साधना है जिसे आप घर पर नहीं कर सकते। या किसी ऐसे देवता का अनुष्ठान किया है जो विवाहित नहीं है। यानी पति पत्नी को दूर रहना पड़ता है तो आप रति क्रिया ना करे।
पत्नी ने पति के स्वस्थ के लिए कोई पूजा की और रात को पति को दुदकार दिया तो तुम्हारी पूजा व्यर्थ है क्युकी तुमने अपने पत्नी धर्म का ही पालन नहीं किया। धर्म ग्रंथो में एक जीवन साथी के साथ पूरा जीवन बिताना व स्वाध्याय में लगे रहना ब्रम्हचर्य की श्रेणी में आता है।
तो यदि आप कोई पाठ कर रहे है कोई अनुष्ठान कर रहे है तो ये जरुरी नहीं है की आप ब्रम्हचर्य का पालन करें। जिसकी आप पूजा कर रहे है उस देवी देवता को आपकी पर्सनल लाइफ में कोई इंट्रेस्ट नहीं। आप साधक हो, उसके अनुष्ठान में कोई त्रुटि नहीं होनी चाहिए। मतलब निर्धारित समय पर पूजा करें, निर्धारित मात्रा में जाप करें। और अपने संकल्प के अनुसार कार्य करें।