Eating meat is a virtue or a sin, मांस खाना पुण्य है या पाप?
हम मांस खायें या न खायें यह लोगों का निजी और व्यक्तिगत फैसला होता है। लेकिन यहां हिंदू धर्म में कुछ लोग मांसाहार को निषेध मानते हैं तो कुछ लोग मांसाहार को मान्यता देते हैं। आज के समय में शाकाहारी लोग मांसाहारी लोगों को निर्दयी और नर्कगामी मानते हैं। जबकि मांसाहारी लोग शाकाहारी लोगों को घास फूस खाने वाला कहते हैं। शाकाहार और मांसाहार की लड़ाई तब बाहर निकल कर आती है जब भगवत चर्चा होती है। यानी क्या भगवान की पूजा या अनुष्ठान के समय या उस दौरान मांसाहार करना चाहिए या नहीं? कहीं भगवान नाराज तो नहीं हो जाएंगे? या उनकी पूजा में किसी तरह का पाप तो नहीं लगेगा। इसी का उत्तर हम जानने का प्रयास कर रहे हैं।
हम इस विषय में ज्यादा बात नहीं करेंगे कि हमें घास खाना चाहिए या माँस, हमारा विषय यह है कि क्या पूजा या अनुष्ठान के काल में हमें माँसाहार करना चाहिए या नहीं।
दोस्तों दुनिया के किसी भी धर्म या सम्प्रदय में मोक्ष और वैराग्य की बात कही जाती है। मतलब मरने के बाद की दुनियाँ, स्वर्ग नर्क, हैवान हैल, ज़न्नत दोजख इत्यादि। आप स्वर्ग में जाना चाहते हैं मरने के बाद, इसलिए अच्छे कर्म करते हैं। और सबसे जरुरी अपने धरम के भगवान को पूजना जरुरी है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पूजा पाठ करने वाले शाकाहारी हो या मांसाहारी इसपर बहस हमेशा रहती है। मुझसे सैकड़ो बार यह पूछा गया की हम सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करते समय या शिव तांडव स्त्रोत का अनुष्ठान करते समय अंडे या मांस खा सकते हैं क्या?
शाकाहार और मांसाहार Veg and Non Veg Food दोनों प्रकार की चीजें इंसान के भोजन में सदियों से शामिल होती रही है। जीवित रहने और ताकत बनाये रखने के लिए हमें रोजाना भोजन की आवश्यकता पड़ती है। हमारी पाचन क्रिया शाकाहार और मांसाहार दोनों प्रकार के भोजन को पचाने में सक्षम है। भोजन से हमें प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट , विटामिन तथा खनिज लवण की आवश्यकता होती है। किसी भी तत्व की कमी होने पर कुछ अंग कमजोर पड़ सकते है या हम बीमार हो सकते है अतः भोजन का चयन सोच समझ कर करना जरुरी होता है।
कुछ लोग शाकाहार को श्रेष्ठ मानते है और कुछ लोग मांसाहार को ज्यादा ताकत देने वाला समझते है। वैसे तो इंसान मूल रूप से न तो शाकाहारी होता है न ही मांसाहारी वह सर्वहारी है। वह मांस और फल दोनों को पचा सकता है वह कच्ची घास नहीं पचा सकता पर कच्चा मांस पचा सकता है जैसे शेर भेड़िये इत्यादि। इस तरह से देखा जाये तो मनुष्य मांसाहारी हुआ पर वह उनसे एक कदम आगे है वह फल अनाज व कंद मूल भी पचा सकता है।
हम मनुष्य समाज में रहते हैं। हम विकसित है हमने जाना कि सही भोजन क्या है। हमरे लिए श्रेष्ठ क्या है। और शोधकर्ताओं ने पाया की हमें बैलेंस डाइट लेनी चाहिए। जो जंतु प्रोटीन और शाक दोनों से बनती है। उन्होंने देखा की हमारे लिए शाकाहार सबसे अच्छा है, लेकिन एक जंतु प्रोटीन जो किसी प्रकार की हिंसा से प्राप्त है हुआ हो वह भी जरुरी है। इसलिए दूध को अच्छा माना गया है।
एक प्रजाति है जो खुद को वीगन कहती है। ये लोग दूध भी नहीं पीते क्युकी यह जंतु द्वारा प्राप्त होता है। ये लोग अहिंसा के एक और स्तर ऊपर उठ जाते है। वे भी अपनी जगह ठीक है। अगर शाकाहारी लोग अपने को मांसाहारी से ऊपर मानते हैं तो मैं वीगन लोगों को शकाहारिओं से भी ऊपर मानता हूँ।
आप लोगों ने शिकारी चित्रभानु की कथा सुनी होगा जो महाशिवरात्रि की कथा है। जिसमे एक शिकारी रात भर हिरन का शिकार करने के लिए पेड़ पर बैठा रहता है और तीन हिरन का शिकार नहीं कर पता है क्युकी उसमे दया भाव आ गया था पर वह अनजाने में शिवलिंग पर बेलपत्र की पत्तियां चढ़ा रहा था। और उसे शिव धाम की प्राप्ति होती है। उड़ीसा में विमला मंदिर है इस मंदिर में देवी विमला की पूजा की जाती है और दुर्गा पूजा के दौरान उन्हें मांस और मछली चढ़ाया जाता है। दुर्गा पूजा के दौरान पवित्र मार्कंडा मंदिर के तालाब से मछली पकड़कर उसे पकाकर देवी को अर्पित किया जाता है। विमला मंदिर में प्रसाद को ‘बिमला परुसा’ के रूप में जाना जाता है।
असम के इस मंदिर में मां कामाख्या की पूजा की जाती है। कामाख्या मंदिर में दो भोग चढ़ाये जाते हैं, एक नॉर्मल शाकाहारी वहीं दूसरा मांसाहारी। नॉन-वेजिटेरियन भोग में मछली और बकरी का मांस बनाया जाता है। हालांकि, यहां तैयार होने वाले खाने में किसी भी प्याज या लहसुन का उपयोग नहीं किया जाता।
काशी में स्थित बटुक भैरव मंदिर जहाँ स्वं महादेव विराजमान है। सर्दी के विशेष दिन में बाबा का त्रिगुणात्मक श्रृंगार किया जाता। सुबह बाल बटुक के रूप में शिव को टॉफी, बिस्कुट फल का भोग दिया जाता है। दोपहर को राजसी रूप में महादेव को चावल दाल रोटी सब्जी का भोग दिया जाता है। शाम को बाबा की महाआरती के बाद उन्हें भैरव रूप में मटन करी, चिकन करी, मछली करी और आमलेट के साथ मदिरा का भोग लगाया जाता है।
और अगर भक्तो की कहानिया सुननेगे तो पाएंगे की कई मांसाहारी या ऐसा कहे की सर्वहारी भक्त जिन्हे देव दर्शन भी हुए और मोक्ष भी प्राप्त हुआ। भगवान विष्णु के भगत सदन नामक कसाई की कहानी भी आपने सुनी होगी। उसमे सन्देश है कि भगवान अपने भक्त से दूर नहीं रहा करते। भक्त को जैसे उनके बिना चैन नहीं, वैसे ही उन्हें भी भक्त के बिना चैन नहीं। वह सदन के पास शालिग्राम के रूप में सदा विराजमान रहे, जिससे वह मांस तोला करता था।
हमारी श्रद्धा और भक्ति मायने रखती है। हमारा समर्पण उनके प्रति मायने रखता है। आपकी खाने की आदत कुछ भी हो हमारी भक्ति में कमी नहीं होनी चाहिए। दैत्य दानव, राक्षस भी उनकी भक्ति के पात्र है।
अब आपको एक मज़ेदार बात बताता हूं कई लोग जो मांसाहारी थे और भगवान की भक्ति में लीन हो गए धीरे धीरे वो सब शाकाहारी बन गए।