नमस्कार दोस्तों
Every Hindu should know these,
इस लेख के माधयम से हम यह कहना चाहते हैं कि श्लोक व् मंत्र हिन्दू धर्म की पहचान है। मन्त्रों के माध्यम से हम अपने देवताओं की पूजा ही नहीं करते बल्कि अपनी सस्कृति व अपना इतिहास भी सजोकर रखते हैं।
कुछ मंत्र जो हर हिंदू को पता होना चाहिए भले ही उसे आता हो या ना आता हो लेकिन मेरा आग्रह है कि आप खुद भी याद करें और अपने बच्चों को भी याद करायें।
यह वह मंत्र है जो हर हिंदू को पता होनी ही चाहिए। इन मंत्रों में आपके आराध्या के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। आप अपने आराध्य की पूजा उसी तरह से कीजिए जैसे आप करते हैं लेकिन यह वह सामान्य मंत्र है जो हर हिंदू को आने चाहिए।
चलिए शुरू करते हैं
मनोवैज्ञानिक रूप से पूरी दुनिया के अंदर की बात मानी जाती है कि सुबह उठने के बाद हम जो भी जीवित वास्तु देखते हैं उसका प्रभाव हमारे पुरे दिन पर पड़ता है।
भारतीय मनीषियों ने यह देखा कि सुबह उठकर यदि अपना हाथ देखें तो यह सबसे उत्तम होता है क्योंकि आपकी आपका हाथ आपका कर्म है। और उसमे बानी रेखाएं भाग्य से समबन्धित हैं। इसीलिए सुबह उठकर अपने हाथ देखने के बारे में कहा गया है। साथ ही एक मंत्र बोलै जाता है।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम॥
हमारी हथेलियों में ही लक्ष्मी, सरस्वती और विष्णु का वास माना गया है। इसलिए सुबह जागते ही अपनी हथेलियों को देखें और इस मंत्र का जाप करें। यह बेहद फलदायक होता है।
भूमिवंदन
भूमि अर्थात् पृथ्वी अथवा भूमाता जिसपर हम रहते है सनातन धर्म में पृथ्वी को माता कहा जाता है। क्युकी जीवन के लिए आवश्यक वस्तुए हमें पृथ्वी से ही मिलती है इसलिए प्रति को देवी भी कहा जाता है। और हम देवता की तरफ पैर कर कर भी नहीं सोते तो हम पृथ्वी माता या पृथ्वी देवी पर जब पैर रखते हैं तो उसके लिए उनसे क्षमा मांगते हैं क्योंकि इसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता।
इसलिए प्रात: उठनेपर भूमिपर पैर रखने से पूर्व निम्नलिखित श्लोक बोलें ।
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ।।
अर्थ : समुद्ररूपी वस्त्र धारण करनेवाली, पर्वतरूपी स्तनोंवाली एवं भगवान श्रीविष्णु की पत्नी हे भूमिदेवी, मैं आपको नमस्कार करता हूं । मैरे पैरों का आपको स्पर्श होगा । इसके लिए आप मुझे क्षमा करें ।
उसके बाद हिंदू धर्म शास्त्रों में नदी में नहाने का प्रावधान बताया गया है परंतु परिस्थिति वश हम नदी में नहीं नहा सकते, इसलिए स्नान से पूर्व यह मंत्र बोलै जाता है।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु
स्नान करते समय सभी पवित्र तीर्थों और नदियों का ध्यान करें और इस मंत्र का जाप करें। इस मंत्र से गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी जैसी सभी पवित्र नदियों का स्मरण किया जाता है।
स्नान के उपरांत यदि आप पूजा करते हैं तो ठीक है लेकिन अगर आप नहीं करते हैं तो भी आपको कुछ श्लोक जरूर बोलना चाहिए।
जैसे कुछ लोग सूर्य को जल देते हैं तो उन्हें सूर्य का कोई ना कोई मंत्र जरूर आना चाहिए। चाहे वह ओम सूर्याय नमः ही क्यों ना हो।
उसके साथ ही एक मंत्र अपने गुरु के लिए बोलना चाहिए और अपने गुरु का स्मरण करना चाहिए। आज के समय में बच्चों के गुरु नहीं होते वह टीचर या ट्यूटर यानी शिक्षक होते हैं। वह केवल स्कूली शिक्षा देते हैं। गुरु की महत्ता हमारे ग्रंथों में भरी पड़ी है उसके लिए यह मन्त्र आना जरुरी है।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः
गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं। गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं। गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं। सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है। उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूँ।
उसके बाद स्वयं की रक्षा के लिए एक दोहा बोलना चाहिए ताकि आपके शरीर की रक्षा हो सके।
सदा भवानी दाहिने सन्मुख रहे गणेश। पांच देव रक्षा करें ब्रह्मा विष्णु महेश॥
इस दोहे का अर्थ है कि शक्ति रूपा माता दुर्गा हमेशा दाहिने रहे,सामने गणेश जी रहे और इन दोनो के अलावा तीनो देव ब्रह्मा (शरीर के बीच में) विष्णु (शरीर के बायें) और महेश यानी शिवजी (शरीर के दाहिने) विराजकर रक्षा करते रहे।
आप चाहते हैं कि आपके जीवन में नवग्रहों के कारण किसी तरह की परेशानी ना हो या यदि परेशानी आए तो उसका समाधान आसानी से हो जाए। तो इसके लिए ऋषि-मुनियों ने एक मंत्र दिया जिसके अंदर सभी ग्रहों की वंदना की गई है जिसके जाप करने से नवग्रह आपके अनुकूल हो जाते हैं।
इस नवग्रह मंत्र का हर रोज 108 बार लगातार 40 दिनों तक करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और जपकर्ता की सभी कामनाएं पूरी कर देता है।
नवग्रह मंत्र
ऊँ ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।।
अर्थ- ब्रह्मा, विष्णु और शिव भगवान, सूर्य, चंद्रमा, भूमि सुत यानी मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी ग्रहों की शांति करें।
इन मंत्रों के बाद आप अपने काम पर जा सकते हैं साथ ही एक भोजन मंत्र है जो आपको आना ही चाहिए। यह मंत्र गुरुकुल में आज भी बोला जाता है भोजन से पूर्व आज भी बोला जाता है।
भोजन मंत्र:
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।। ऊं शान्ति: शान्ति: शान्ति:।।
हे परमेश्वर! हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम शिष्य और आचार्य दोनों का एक साथ पोषण करें। हम दोनों साथ मिलकर बड़ी ऊर्जा और शक्ति के साथ कार्य करें एवं विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हमारी बुद्धि तेज हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। ओम! शांति, शांति, शांति ।
और अंत में इसी तरह शयन मंत्र यानी सोने से पहले कौन सा मंत्र बोलना चाहिए वह भी जान लीजिए।
ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करके सोने से श्री हरि विष्णु आपकी रक्षा करते हैं। तथा यह भी मानते हैं कि इस मंत्र का जाप करके सोने से आपके घर में चोरी आदि का भय नहीं रहता है। यदि चोर आते भी हैं तो बिना कुछ चुराए चले जाते हैं।
जले रक्षतु वाराहः स्थले रक्षतु वामनः।
अटव्यां नारसिंहश्च सर्वतः पातु केशवः।।
श्री हरि अपने अलग-अलग रुपों में इस ब्रह्मांड में मेरी रक्षा करें। पाताल में वाराह देव रक्षा करें। पृथ्वी पर वामन रुप में रहते हुए रक्षा करें। आकाश मे नरसिंह रक्षा करें। और श्री केशव सभी दिशाओं से रक्षा करें।