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Ganesh Ji ki sund। गणेश जी की सूंड किस दिशा में होनी चाहिए?

नमस्कार दोस्तों गणेश जी की सूंड किस दिशा में होनी चाहिए यह बड़ा शोध का विषय है। आमजन के बीच यह चर्चा में रहता है की दाईं तरफ सूंड वाले गणेश जी कहां होने चाहिए और बाई सूंड वाले कहां होने चाहिए?
गणेश जी की मूर्ति व फोटो कहाँ होनी चाहिए व क्यों। हम यहां पर इसी विषय पर चर्चा करेंगे।
दोस्तों जैसा कि आप जानते कि भगवान गणेश की पूजा सभी देवो में प्रथम की जाती है। हमने एक और लेख में यह बात बताई है कि कैसे गणेश जी की उत्पत्ति हुई और किस तरह से उनको भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त है जिसके कारण वह सर्व प्रथम पूज्य हैं। जब पूजा प्रारम्भ होती है तो सबसे पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है। गणेश जी की मूर्ति लोग अपने घरों में अक्सर लगाते हैं। (Ganesh Ji ki sund)


जिन गणेश जी की सूंड मुड़ी होती है उन्हें वक्रतुंड कहते हैं। वक्रतुंड गणेश के दो रूप हैं एक दाहिनी तरफ सूंड वाले और दूसरे बाई तरफ सूंड वाले। जो दाहिनी तरफ सूंड वाले हैं वह सूर्य के प्रभाव वाले, और जो बाई तरफ सूंड वाले हैं वह चंद्र के प्रभाव वाले होते हैं।
हमारे पूर्वज स्वास को साध कर अपने स्वस्थ के साथ साथ अपने भाग्य को भी साध लेते थे। यह एक तरह की विज्ञान है जिसे स्वर विज्ञान के नाम से जाना जाता है। जब हम सांस लेते हैं तो हमारी कोई एक नाक ज्यादा चल रही होती है। दाहिनी नाक को सूर्य स्वर व् बाई नाक को चंद्र स्वर कहते हैं। अभी आप प्रयोग करके देखिए अपनी एक नाक को बंद करके दूसरे नाक से सांस लीजिए फिर दूसरी नाक को बंद करके पहली वाली नाक से सांस लीजिए। तो आपको पता चलेगा कि दोनों में से कोई एक आसानी से चल रही है और दूसरी में थोड़ी मुश्किल हो रही है। जो आसानी से चल रही है इस समय आपका वही स्वर चल रहा है यदि दाहिनी नाक चल रही है तो इसका मतलब है कि आपका सूर्य स्वर चल रहा है और यदि बाई नाक चल रही है तो इसका मतलब है कि आपका चंद्र स्वर चल रहा है। जब सूर्य स्वर चले तो आपको शारीरिक श्रम करने चाहिए व भोजन करना चाहिए। जबकि यदि आपका बाया स्वर चले तो ऐसी स्थिति में आप को पेय पदार्थ लेनी चाहिए तथा मानसिक श्रम करना चाहिए मतलब पढ़ाई वगैरह करनी चाहिए। आपको ध्यान होगा खाना खाने के बाद कहा जाता है कि आप बाई करवट लेट जाइए। बाई तरफ लेटने से दाहिनी नाक यानि सूर्य स्वर चलता है जिससे खाना आसानी से पचता है व आपको गैस इत्यादि नहीं बनती फिर खाने के आधे से एक घंटे बाद दाहिनी करवट लेट चंद्र स्वर चला के पानी पीना चाहिए।

गणेश जी की सूंड किस दिशा में होनी चाहिए?

इसी विज्ञानं के आधार पर गणेश जी की सूंड की दिशा निर्धारित की जाती है।
दाहिनी ओर घूमी हुई सूंड (Right Trunk Ganesha At home)
दाईं ओर घूमी हुई सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमा को घर में या ऑफिस में नहीं रखा जाता। ऐसी प्रतिमा को केवल मंदिरों में स्थापित करके उनकी पूजा की जाती है और अगर कभी इस तरह की प्रतिमा को कहीं स्थापित करना पड़े तो उसे विशेष विधि-विधान से ही स्थापित किया जाता है। इस तरह की प्रतिमा का प्रयोग दुश्मन पर विजय प्राप्त करने के लिए और अपने शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए जैसे कार्यों में किया जाता है।

बाईं ओर घूमी हुई सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमा (Left Trunk Ganesha At home)
भगवान श्री गणेश की जिस भी प्रतिमा में उनकी सूंड बाईं और घूमी हुई हो वह प्रतिमा घर में स्थापित करने के लिए सबसे शुभ मानी जाती है। ऐसी प्रतिमा को अपने घर के मंदिर में स्थापित करके उसकी रोज पूजा-अर्चना करनी चाहिए। बाईं ओर घूमी हुई सूंड वाली प्रतिमा घर में स्थापित करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है साथ ही सभी प्रकार की आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं। ऐसी प्रतिमा को स्थापित करने पर व्यापार में बढ़ोतरी मिलती है, संतान का सुख मिलता है, विवाह की सारी रुकावटें दूर होती हैं और परिवार में खुशहाली का माहौल बना रहता है।

सीधी सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमा (Straight Trunk Ganesha Idol)
सीधी सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमा बहुत दुर्लभ होती है यह आपको जल्दी देखने को नहीं मिलती है। सीधी सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमा की पूजा रिद्धि-सिद्धि, कुंडलिनी जागरण, और इस मोह माया से विरक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है। सीधी सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमा हमेशा वैरागी या साधु-संत ही स्थापित करते हैं।

कुछ विद्वानों का मानना है कि दाई ओर घुमी सूंड के गणेशजी शुभ होते हैं तो कुछ का मानना है कि बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ फल प्रदान करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान दोनों ही प्रकार की सूंड वाले गणेशजी का अलग-अलग महत्व बताते हैं। यदि गणेशजी की स्थापना घर में करनी हो तो दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है। शुभ फल प्रदान करता है। इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी रहती है व वास्तु दोषों का नाश होता है।

घर के मुख्य द्वार पर भी गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर लगाना शुभ होता है। यहां बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। बाई ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रूक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती।कुछ विद्वानों का मत है कि गणेश जी की पीठ के पीछे दरिद्रता रहती है तो ऐसी स्थिति में घर की अंदर की तरफ भी आप गणेश जी की फोटो लगा सकते हैं।

अब दोस्तों में आपको अपने विचार बताता हूं। मेरा मानना है कि दोनों तरह की मूर्ति की पूजा की जा सकती है और दोनों ही अच्छी है। हमें इस बात से क्या मतलब है कि भगवान की मूर्ति का हाथ ऊपर है या नीचे। गणेश जी की सूंड दये है या बाएं। वो मूर्ति या फोटो कलाकार ने बनाई है जिसकी कल्पना में भगवान जैसे है उसने वैसे ही बनायें हैं।
मुझे इसपर स्वामी विवेकानंद जी की एक घटना याद आती है।
स्वामी विवेकानंद की ख्याति सुनकर अलवर राज्य के दीवान ने उन्हें अपने घर बुलाया। बातों ही बातों में दिवान जी ने कहा ‘देखिये स्वामी जी, मूर्तिपूजा में मेरा रत्ती भर भी विश्वास नहीं है । और वह लोग निरे मुर्ख हैं जो मूर्ति पूजा करते हैं।
इतने में स्वामी जी की दृष्टि उस कक्ष में टंगे महाराज की एक फोटो पर पड़ी । स्वामी जी ने उस चित्र को उतरवाया और हाथ में लेकर दीवान साहब से पूछा, ‘क्या यह महाराज की ही फोटो है ?’ दीवान जी ने स्वीकृति सूचक सिर हिला दिया ।

स्वामी जी ने दीवान महोदय से कहा, ‘जरा इस चित्र पर थूक दीजिए ।’ दीवान जी अवाक् होकर स्वामी जी की ओर देखने लगे । स्वामी जी ने सभी उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ‘आपमें से कोई इस पर थूक दीजिए । यह एकमात्र कागज का टूकड़ा ही तो है ।’ कोई कुछ नहीं बोला, किसी ने नहीं थूका । अंत में दीवान जी बोले, ‘स्वामी जी, आप क्या कह रहे हैं ! हम महाराज के चित्र पर कैसे थूक सकते हैं !’
तब विवेकानंद जी बोले
‘महाराज का चित्र होने से इसमें महाराज का कौन सा गुण कर्म स्वभाव आ गया है। यह तो कागज का टुकड़ा भर है । इसमें प्राण तो नहीं हैं । फिर भी इस पर आप सबको थूकने में संकोच क्यों हो रहा है ?’ फिर हंसते हुए बोले, ‘मैं जानता हूं, आप इस पर थूक नहीं सकेंगे, क्योंकि आप लोग समझ रहे हैं कि इस पर थूकने से महाराज के प्रति असम्मान प्रकट होगा । है न यहीं बात ?’ अब स्वामी जी ने कहा, ‘देखिये महाराज, एक दृष्टि से विचार करने पर यह कागज का टुकड़ा आप नहीं है पर दूसरी दृष्टि से विचार करने पर यह कागज का टुकड़ा आप नहीं हैं। पर दूसरी दृष्टि से देखा जाएं तो इस कागज के टुकड़े पर आपका अस्तित्व है। यहीं कारण है कि सब लोग आपको तथा आपके चित्र को आप ही मान रहे हैं। ठीक इसी प्रकार पत्थर या धातु की बनी प्रतिमाएं भी भगवान की विशेष गुणवाचक मूर्तियां हैं। उनके दर्शन से ही भक्त के मन में भगवान की स्मृति जाग उठती है।

दोस्तों मूर्ति केवल भगवान का स्वरुप है जिससे हमें यह ज्ञान होता है की भगवान का डाई ग्राम कैसा होगा। भगवान की मूर्ति उस भगवान का नक्शा है जिससे उसके मूल रूप व गुण का पता चलता है की वह कैसे हैं। मूर्ति भगवान के गुणों को बताती है ना कि उसके रूप को। चलिए अगले लेख में मैं आपको यह बताने वाला हूं कि गणेश जी के गुण क्या है। जिसके कारण उन्हें गणेश का जाता और कैसे आप उनके गुणों को समझ कर अपने काम धंधे, नौकरी व परिवार में तरक्की ला सकते हैं।

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