हनुमान वडवानल स्तोत्र, Hanuman Vadvanal Stotra, बड़वानल का अर्थ क्या है, हनुमान वडवानल स्तोत्र में क्या है, हनुमान वडवानल स्तोत्र का इतिहास, हनुमान वडवानल स्तोत्र के पाठ के लाभ
“नमस्कार दोस्तों”
हनुमान जी की स्तुति में सबसे ज्यादा रचनाएँ तुलसीदास जी ने की हैं जैसे हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बाहुक आदि। परन्तु तुलसी दास से पहले भी कई ऋषि-मुनियों ने हनुमान प्रार्थना स्तोत्र लिखे हैं, उनमें से एक हैं विभीषण जी हैं। जिन्होंने हनुमान बड़वानल स्तोत्र की रचना की जो भगवान राम के अनन्य भक्त और हनुमान जी के मित्र थे।
यह स्त्रोत हनुमान जी की उपासना करने का एक महामंत्र है यदि इसके साथ हनुमान चालीसा का पाठ भी किया जाए तो अविश्वसनीय रूप से फलदायी होता है |
आगे बढ़ने से पहले हम बड़वानल का अर्थ जान ले तभी हनुमान बड़वानल स्तोत्र व उसकी महिमा समझने में सरलता होगी।
बड़वानल का अर्थ क्या है
बड़वानल का अर्थ है समुद्र में लगी आग या भीषण समुद्री आग। यह एक प्राचीन घटना है जिसका उल्लेख कई हिंदू ग्रंथों में मिलता है। बड़वानल एक विशालकाय ज्वाला है जो समुद्र के अंदर जलती रहती है। ग्रंथो के अनुसार यह एक दैवीय घटना है जिसे भगवान ने अपने क्रोध या बदले की भावना से उत्पन्न किया है। संभवत ये समुद्री ज्वालमुखी होगा जिसे उस समय के लोगों ने बड़वानल नाम दिया।
बड़वानल को अक्सर हिंदू पौराणिक कथाओं में एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत, या ज्ञान पर अज्ञानता की जीत का प्रतिनिधित्व करता है।
बड़वानल का उल्लेख रामायण, महाभारत व पुराणों में मिलता है। महाभारत के अनुसार, बड़वानल को द्रोणाचार्य ने अर्जुन को मारने के लिए बनाया था। हालांकि, हनुमान ने अपनी शक्ति का उपयोग करके बड़वानल को बुझा दिया। रामायण के अनुसार, रावण ने बड़वानल का उपयोग करके भगवान राम और उनकी सेना को मारने की कोशिश की थी। हालांकि, भगवान राम ने अपनी शक्ति का उपयोग करके बड़वानल को बुझा दिया।
हनुमान जी ने जब लंका को जलाया तो दूर से यह आग बड़वानल की तरह लग रही थी। जसपर कवि ने यानि विभीषण जी ने हनुमान बड़वानल की रचना की।
हनुमान वडवानल स्तोत्र का इतिहास
जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था। दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था। भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था। सबसे सुखद तो यह कि उनके घर के ऊपर ‘राम’ नाम अंकित था। यह देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया।
जब रावण ने विभीषण को लंका से निकल दिया तो वह राम जी की शरण में पहुंचे, सुग्रीव ने इसपर संदेह जताया और विभीषण को शत्रु का भाई कह उसे पकड़कर दंड देने का सुझाव दिया। तब हनुमानजी ने उन्हें दुष्ट की बजाय शिष्ट बताकर शरणागति देने की सहमति जताई। व अपनी शरण में आने पर विभीषण जी को अभयदान दिया।
इंद्रादि देवताओं के बाद धरती पर सर्वप्रथम विभीषण ने ही हनुमानजी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी। और विभीषण को भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। बाद में जब विभीषण जी लंका के राजा बने तब विभीषण ने हनुमानजी की स्तुति में एक बहुत ही अद्भुत और अचूक स्तोत्र की रचना की है। विभीषण द्वारा रचित इस स्तोत्र को ‘हनुमान वडवानल स्तोत्र’ कहते हैं।
हनुमान वडवानल स्तोत्र में क्या है?
विभीषण जी ने सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति एवं सुरक्षा के लिए इस ‘हनुमान वडवानल स्तोत्र’ की रचना की थी। इस दिव्य वडवानल स्तोत्र पर श्री राम, हनुमान जी के आशीर्वाद के साथ साथ विभीषण जी का तपोबल भी सम्मिलित है। अत: इस प्रभावशाली स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति सुरक्षित तथा भय से भी मुक्त महसूस करता है साथ ही उसकी इच्छा की भी पूर्ति होती है। इस स्तोत्र के प्रारंभ में हनुमान जी के गुणों तथा शक्तियों की जबरदस्त प्रशंसा की गयी है। फिर हनुमान जी से जीवन से सभी रोगों, खराब स्वास्थ्य और सभी प्रकार की परेशानियों को दूर करने का अनुरोध किया गया है। इसके अतिरिक्त हनुमान जी से सभी प्रकार के भय, परेशानी से रक्षा करने और सभी बुरी आदतों से मुक्त व शत्रु नाश करने का अनुरोध किया गया है। अंत में हनुमान जी से आशीर्वाद, तथा अपने जीवन में सफलता, स्वास्थ्य तथा हर इच्छित वर, देने का अनुरोध किया गया है।
हनुमान वडवानल स्तोत्र के पाठ के लाभ
- हनुमान वडवानल स्तोत्र के पाठ से साधक में एक शक्ति का संचार होता है, जिससे वह आपके हर कार्य को बिना किसी मुश्किल के आत्मविश्वास के साथ सिद्ध कर पाता है |
- यह स्तोत्र सभी प्रकार के रोगों का निवारण में तथा साधक को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करता है|
- इस स्त्रोत की साधना से आपके सभी शत्रुओं का नाश होता है, कहते है किसी भी तरह का शत्रु हो उसका बल क्षीण होता है व किसी के भी द्वारा किये गये मारन उच्चाटन अदि पीड़ा कारक कृत्य का भी निवारण करता है |
- श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र का नित्य प्रति पाठ करने से जीवन की सभी समस्याओं का हल निश्चित मिलता है।
- श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र का नित्य प्रति पाठ करने से जीवन की सभी समस्याओं का हल निश्चित मिलता है।
- हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करने वाले साधक पर हनुमान जी की कृपा तथा उनके साथ-साथ श्री राम जी का आशीर्वाद प्राप्त सदा बना रहता है |
- इस स्तोत्र के पाठ से साधक की सभी मनोकामनाएं हनुमान जी पूर्ण करते हैं तथा ऐसा भी माना गया है की इस स्त्रोत का पाठ करने वाले को हनुमान जी के दर्शनों का लाभ प्राप्त होता है |
- हनुमान वडवानल स्तोत्र एक अत्यंत ही शक्तिशाली हनुमान स्तोत्र है यह मुश्किल से भी मुश्किल परिस्थिति में साधक के आत्मविश्वास को कम नहीं होने देता और हनुमान जी की कृपा दिलाता है | शत्रु तथा नकारात्मक शक्तियां इस स्त्रोत का पाठ करने वाले साधक के निकट भी नहीं भटकती
- यह हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ मनुष्य को रोगों से मुक्ति देता है तथा हर परिस्थिति से निपटने का साहस भी प्रदान करता है, कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह स्त्रोत हर प्रकार के शारीरिक रोगों तथा कष्टों से मुक्ति प्रदान करने में मदद करता है |
हनुमान वडवानल स्तोत्र का कितने दिनों तक पाठ करना चाहिए तथा इसकी विधि क्या है ?
यदि आप किसी रोग, या शत्रु से परेशान हैं या आपको कोई भय सता रहा है अथवा आप बुरी चीजों से मुक्त होना चाहते हैं तो आपको पूर्ण श्रद्धा तथा निर्मल मन के साथ 21 या 41 दिनों तक श्री हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इससे आप पर हनुमान जी की कृपा अवश्य होगी तथा आपको लाभ प्राप्त होगा । हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ यदि आप नियमित रूप से घी अथवा सरसों के तेल से दिए जला कर 21 दिन के लिए करते हैं तो जीवन में आने वाली सभी बाधाओं एवं बुरी आदतों से छुटकारा मिलता है तथा बजरंगबली की असीम कृपा प्राप्त होती है |
सूर्योदय के समय उठकर नित्य क्रिया तथा स्नान से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब अपने पूजा स्थल को साफ़ करें । इसके उपरांत हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने लाल आसन पर बैठ जायें अगर पूर्वाभिमुख बैठें तो बहुत अच्छा होता है ।
अब सबसे पहले गणेश जी की पूजा-अर्चना करें तत्पश्चात श्रीराम तथा माता सीता की पूजा करें। अब हनुमान जी की पूजा विधि पूर्वक प्रारम्भ करें। इसके लिए सरसों के तेल या घी का दीपक जलाकर हनुमान जी के सम्मुख रखें तथा हनुमान जी के सामने धूप या अगरबत्ती जलाकर पुष्प अर्पण करें इसके बाद “हनुमान वडवानल स्तोत्र” का पाठ 11 बार करें। इसमें लगभग आधा घंटा लगता है। उसके बाद हनुमान चलीसा व हनुमान जी की आरती कर हाथ जोड़कर उनसे कार्य सिद्धि की विनती करनी चाहिए।
कुछ विशेष परिस्थितियों में इसे 108 बार प्रतिदिन किया जाता है। जिसमे लगभग ढाई घंटा लग जाता है।
सामान्य परिस्थितियों में इसे ऋण, रोग व शत्रु रक्षा के लिए एक बार पढ़ना ही पर्याप्त है।
यह पाठ लगातार 41 दिनों तक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इन 41 दिनों तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा सात्विक भोजन ही ग्रहण करें ।
हनुमान वडवानल स्तोत्र का जाप कैसे करना है
सबसे पहले आपको एक बार विनयोग करना है यहाँ यदि आप किसी और के लिए कर रहे है तो जहाँ विनयोग में मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, है वहां मम के जगह उस व्यक्ति का नाम लेना होगा। (…अमुक व्यक्ति… ) समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, ऐसा बोलना है।
विनियोग
ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः,
श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं,
मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे
सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम्
आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं
श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।
अर्थ : यह हनुमान वडवानल स्तोत्र भगवान गणेश को प्रणाम करने से शुरू होता है। इस स्तोत्र के ऋषि रामचंद्र हैं। स्तोत्र के देवता श्री वडवानल हनुमान हैं। मैं अपने सभी रोगों को दूर करने के लिए और श्री सीतारामचंद्र के लिए इस हनुमान वडवनल स्तोत्र का पाठ करता हूं।
इसके बाद ध्यान करना है बजरंगबली का
— ध्यान —
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।
अर्थ : मन-जैसी स्फूर्ति और वायु-जैसे वेग वाले, परम बुद्धिमान, इन्द्रियनिग्रही, वानरपति, वायुपुत्र हनुमान की शरण लेता हूं।
अब यहाँ से स्तोत्र बोलना है 11 बार
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम
सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय
वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र
उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र
अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार
सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद
सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन
अर्थ : वह सभी दिशाओं में विजयी है। वह तीनों लोकों (पाताल, पृथ्वी और स्वर्ग) में विजयी है। उनका शरीर बहुत मजबूत है ( वज्र देह)। वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होने लंका में आग लगा दी। 10 सिर वाले रावण का भय था। भगवान हनुमान उमा अमला मंत्र जानते हैं। वह एक बहुत बड़े और विशाल बादल की तरह दिखता है जिसमें पानी है। वह पवन का पुत्र है और अंजनी उसकी माता है। उन्होंने भगवान राम और लक्ष्मण को प्रसन्न किया। उन्होंने बंदर-सेना का नेता बनकर सुग्रीव की मदद की। रावण की सेना के साथ युद्ध के समय, वह दुश्मन सेना पर पहाड़ियों, पहाड़ों को फेंक रहे थे। वे ब्रह्मचारी हैं अर्थात अविवाहित। वह बहुत गंभीर है। वह ग्रह के बुरे प्रभावों को नष्ट कर सकते है, वह शरीर के उच्च तापमान के कारण होने वाले सभी प्रकार के रोगों को नष्ट कर सकते है। वह हमें हर तरह के संकटों से मुक्त करते है, चाहे वह कितना ही गंभीर क्यों न हो। वह राक्षसों का नाश कर सकते है।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय
ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन
भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर
चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर,
माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस
भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा।
अर्थ :– मैं भगवान हनुमान को नमन करता हूं जो बहुत शक्तिशाली और बलवान हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं और मेरे दुखों को दूर करते हैं। वह ग्रह मंडल, सभी जीवित प्राणियों को मंडल, सभी राक्षसों, भूतों आदि से मुक्त बनाता है। राक्षसों से परेशानी और किसी भी चीज से कोई भी खतरा उनके द्वारा दूर किया जाता है। इसलिए, मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि मुझे उपरोक्त सभी प्रकार के खतरों, परेशानियों से मुक्त करें। मैं उनसे भूतों, राक्षसों और बुरी फसलों को नष्ट करने का अनुरोध करता हूं।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां
ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं
ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां
शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर
आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय
शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय
प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।
अर्थ :- मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि वे राक्षसों, भूतों और अन्य बुरी चीजों से सभी प्रकार के जहर को हटा दें। वे कुरूप वस्तुएँ जो आकाश में हैं, हनुमानजी उन्हें हरा दें, मेरे लिए उन्हें नष्ट कर दें और मुझे उनके कष्टों से मुक्त कर दें।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन
परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु
शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय
नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान्
यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।
अर्थ :- मैं भगवान हनुमान को नमन करता हूं और उनसे अनुरोध करता हूं कि मुझे ग्रहों की परेशानी से मुक्त करें (जो मेरी कुंडली में मेरे अनुकूल नहीं हैं)। कृपया मुझे सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त करें कृपया मुझे सिर दर्द, शरीर के दर्द और सभी दुखों से मुक्त करें। कृपया मुझे अनंत, वासुकी, तक्षक, कलियां और कर्कोटक (नाग लोक के प्रसिद्ध बड़े नागों के नाम) के नागबंधन से मुक्त करें। यक्ष, जीव जल में चले जाते हैं, जीव मिट्टी के नीचे चले जाते हैं, जीव रात में चलते हैं, जीव दिन में चलते हैं, ये सभी मेरे लिए जहरीले और कष्टदायक हैं,इसलिए हे भगवान हनुमान कृपया जहर हटा दें। उन्हें कम जहरीला बनाओ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते
राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र
पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय
नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।
अर्थ :- कृपया राजा, चोर से भय को दूर करें और शत्रु के हथियार, मंत्र और तंत्र से भी भय को दूर करें और उन्हें नष्ट करें कृपया मुझे अपने आप में सभी अच्छे गुणों को विकसित करने का ज्ञान दें। कृपया मेरे सभी कष्टों और कठिनाइयों का नाश करें। कृपया मेरे सभी शत्रुओं का नाश करें। कृपया मुझे असंभव को संभव में बदलने के लिए ज्ञान, शक्ति और ऊर्जा प्रदान करें हूं फट स्वाहा।
फिर
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते से बोलना शरू करना है।