how to find real guru, सच्चा गुरु कैसे खोजें,
दोस्तों इस लेख में हम सच्चा गुरु ढूंढने के लिए किसकी पूजा करनी चाहिए इस विषय पर चर्चा करेंगे।
इस दुनिया में हमें कुछ बह सीखने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। चाहे वह साँस लेना ही क्यों न हो जब बचा पैदा होता है तो उसके पहले गुरु श्री हरी विष्णु होते हैं जिसकी कृपा से बच्चा साँस लेना सीखता है। इसलिए उन्हें पालन हर कहा जाता है। फिर दूसरी गुरु माँ होती है और फिर पिता बुआ मामा मौसी व अन्य रिश्तेदार हमारे गुरु होते है जो हमें जीवन के कुछ मूल पाठ पढ़ते हैं। आध्यात्मिक ज्ञान ही नहीं बल्कि भौतिक जगत में भी कुछ सीखने के लिए गुरु की आवश्यकता पड़ती है। आप किसी मकैनिक के पास चले जाओ और उससे पूछा कि तुम्हारा गुरु कौन है। वह तुरंत किसी का नाम बताएंगा जिसने उसको मकैनिक गिरी सिखाई है। मतलब हर किसी का गुरु होता है।
आपने कबीर जी का ये दोहा तो अवश्य सुना होगा।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काको लागूं पायं।
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो बताय।।
गुरु और गोविन्द दोनों खड़े हैं, पहले किसके पाँव छुए जाएँ ? जटिल प्रश्न है क्योंकि कबीर ने स्थान स्थान पर गुरु को ही ईश्वर तुल्य माना है। दोनों यदि एक साथ आ जाए तो ? इस पर कबीर साहेब की वाणी है की वे गुरु के ही पाँव पहले छुएंग क्योंकि उन्होंने ही गोविन्द का ज्ञान करवाया है /गोविन्द के विषय में जानकारी दी है। यदि किसी के पास हीरा है और उसे ज्ञान नहीं है तो वह पत्थर के सामान ही है, लेकिन यदि कोई हीरे की जानकारी दे तो वह हीरे से भी बढ़कर महत्त्व रखता है।
दुसरे अर्थों में इस दोहे का भाव है की गुरु और गोविन्द दोनों खड़े हैं, लेकिन गोविन्द के बारे में पता नहीं है। इस पर गुरु इशारा करके गोविन्द के बारे में जानकारी देते हैं, इसलिए गुरु बहुत महान हैं।
दोस्तों गुरु के समकक्ष कुछ शब्द है जैसे उस्ताद, शिक्षक या मास्टर।
उस्ताद वह जो किसी विषय में बहुत अधिक दक्ष या निपुण हो उसे कहते हैं। यह फ़ारसी और उर्दू में गुरु के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द है।
शिक्षक जो आपको किसी विषय की शिक्षा दे जैसे विज्ञानं हिंदी या गणित।
मास्टर वो जो आपको किसी विषय में दक्ष बनाये क्युकी सर्कस के शेर को सीखने वाले को रिंग मास्टर कहते हैं।
पर गुरु शब्द व उसका अर्थ व्याख्या से परे है।
श्रीमद्भागवत गीता में सच्चे गुरु को तत्वदर्शी संत कहकर व्याख्या की गई है। गीता अध्याय 15 में श्लोक 1 में श्री कृष्ण जी कहते हैं।
ऊर्धव मूलम् अधः शाखम् अश्वत्थम् प्राहुः अव्ययम्।
छन्दासि यस्य प्रणानि, यः तम् वेद सः वेदवित् ।।
अर्थात ऊपर को मूल (जड़) वाला, नीचे को तीनों गुण रुपी शाखा वाला उल्टा लटका हुआ संसार रुपी पीपल का वृक्ष जानो, इसे अविनाशी कहते हैं क्योंकि उत्पत्ति-प्रलय चक्र सदा चलता रहता है जिस कारण से इसे अविनाशी कहा है। इस संसार रुपी वृक्ष के पत्ते आदि छन्द हैं अर्थात् भाग (च्ंतजे) हैं। (य तम् वेद) जो इस संसार रुपी वृक्ष के सर्वभागों को तत्व से जानता है, (सः) वह (वेदवित्) वेद के तात्पर्य को जानने वाला है अर्थात् वह तत्वदर्शी सन्त है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है कि परम अक्षर ब्रह्म स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होकर अपने मुख कमल से तत्वज्ञान विस्तार से बोलते हैं।[8]
सच्चा गुरु कैसे खोजें, how to find real guru
सबसे पहली बात जो हमें भ्र्म है की हम गुरु खोजते हैं। वास्तव में गुरु हमें खोजता है। जैसे विष्णु जी विवाह के लिए जीवन साथी ढूंढने का काम करते हैं। लोग कहते पाए जाते हैं की जोड़ियां तो ऊपर से बनकर आती हैं।
जैसे सृष्टि की ओर से सूर्य प्रकाश देने के लिए नियुक्त मतलब अपॉइंट है। भोजन देने के लिए धरती कर्म के लिए शनि महाराज व मृत्यु के लिए स्वं महाकाल नियुक्त हैं। ऐसे ही आपके गुरु को खोजने के लिए दत्तात्रेय नियुक्त हैं।
भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र हैं। इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक है,और माता अनुसूया जो सतीत्व का प्रमाण है।
‘दत्त’ अर्थात वह जिसे (निर्गुण की अनुभूति) प्रदान की गई हो कि ‘वह स्वयं ब्रह्म ही है। और जो अत्रि का पुत्र है। उनके 24 गुरु है।
अगर आप चाहते हैं की आपको सच्चा गुरु जिसे सद्गुरु कहते है मिले तो सिर्फ एक माला भगवान दत्तात्रेय के नाम पर करें। उनका जप करें।
वह इस प्रकार है
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम:
जब भी आप पूजा करते है। बस ३ मिनिट इस मंत्र को जपें यानि एक माला आपकी सालों से चली आ रही गुरु की खोज कुछ महीनो में ही समाप्त हो जाएगी। हमारे एक मित्र हैं अनिल जी उन्होंने अपना अनुभव मुझसे साझा किया। उन्होंने बताया कि उन्हें सालों से सच्चे गुरु की तलाश थी। वह आध्यात्मिक व्यक्ति हैं हालांकि बीजेपी में उनके पास प्रदेश स्तर का पद भी है। उनकी रुचि आध्यात्म में ज्यादा है। उन्होंने एक संत से पूछा की उन्हें सतगुरु कब मिलेंगे तो वह बोले की शृष्टि ने भगवान दत्तात्रेय जी को इस काम के लिए अपॉइंट किया है उनका जप करो आपको गुरु मिल जायेंगे। फिर क्या था रोज एक माला शरू कर दी लगभग डेढ़ महीने बाद एक सपना देखा।
उन्होंने देखा कि वह परिवार समेत हरिद्वार गए हुए हैं। वहां पर एक शिला पर कोई संत बैठे हुए है। लोग उनके के सामने बैठे थे उस भीड़ में संत ने उन्हें इशारा करके बुलाया। वह संत कुछ उचाई पर बैठे थे उनके पास जाने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था पर संत ने इशारा करके उन्हें ऊपर अपने पास बुलाया और बताया की पीछे से एक रास्ता मुझतक पहुँचता है। वह उस रस्ते से संत महाराज के पास पहुंचे। जब वह ऊपर पहुंचे तो संत महाराज ने उन्हें अपने पास बैठा लिया।
अनिल जी आगे बताते है की उन्होंने अपने परिवार व अन्य जानो को देखा और उनके मन में भाव आया देखा इतने लोगों में संत महाराज ने मुझे ही बुलाया। बस ये सोचना था की सपना टूट गया।
ये उठे बिस्तर पर बैठे और सोचने लगे तेरे थोड़े से घमंड के कारण संत का सानिध्य छूट गया फिर उन्होंने काफी सोने का प्रयास किया पर आत्म ग्लानि के कारण नींद नहीं आयी।
ये बात आई गई हो गई कुछ समय बाद पार्टी के काम से पूरी जाना हुआ। जहाँ शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी आये हुए थे। ये भी उनके जिज्ञासा समाधान में पहुंचे और कुछ प्रश्न किये जिनका उन्होंने समाधान भी किया। कुछ समय बाद शंकराचार्य जी ने इन्हे आगे बुला कर बैठा लिया। जिज्ञासा समाधान चल रहा था। अचानक उन्हें याद आया की यही तो सपने में देखा था। वह संत भी इसी तरह एक पैर लटकाकर उचाई पर बैठे थे।
भगवान दत्तात्रेय की कृपा से उन्हें अपना गुरु मिल चुका था।
कहा जाता है कि जिसका कोई गुरु नहीं हो वह भगवान शिव को अपना गुरु बना सकता है बिल्कुल सत्य है। एकलव्य ने द्रोणाचार्य को अपना गुरु बना लिया था। जब तक एकलव्य ने द्रोणाचार्य को गुरु माना तब तक एकलव्य को कोई नहीं जानता था। परंतु जब द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपना शिष्य बनाया तो सारी दुनिया उसे जान गई के एकलव्य द्रोणाचार्य का शिष्य है।
हमारे वामपंथी मित्र हमेशा हिंदुओं में जहर घोलते हैं की द्रोणाचार्य ने एकलव्य के साथ गलत किया था। उन्होंने अंगूठा मांग कर उसकी सारी जिंदगी बर्बाद कर दी क्योकि वह भील जाती से था।
टेक्निकली देखा जाए तो एकलव्य गलत काम कर रहा था। एकलव्य मगध राज्य के सेनापति का बेटा था। वह दूसरे राज्य में आकर छुप कर उनकी युद्ध नीति सीख रहा था। आप पाकिस्तान चले जाओ और उनके हथियार बनाने की फेक्टरी में काम करना शरू कर दो जिस दिन उन्हें पता चला की आप भारतीय है। उसी दिन टपका देंगे।
पर द्रोण ने ऐसा नहीं किया उसे अपना शिष्य माना। उन्होंने अंगूठा क्यों माँगा हमें नहीं पता क्योकि लोगों का सीधा हाथ काट जाते है तो कुछ समय बाद वो उलटे हाथ से सारे काम उसी तरह से करते हैं जैसे सीधे से करते आ रहे थे।
दोस्तों मैं यही कहना चाहूंगा कि आप किसी को भी अपना गुरु मान ले उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्या वह गुरु आपको अपना शिष्य मानता है? यदि उसने आपको अपना शिक्षा मान लिया तभी आप का कल्याण हो सकता है अन्यथा नहीं। अगर आपको गुरु नहीं मिल रहा है। तथा गुरु को प्राप्त करने की प्रबल इक्षा मन में है तो बस दत्तात्रेय भगवान की एक माला का जाप करें। अपना गुरु ढूंढने का काम होने दे दे। जैसे हनुमान जी ने माता सीता का पता लगाया ऐसे ही दत्तात्रेय भगवान आपके गुरु खोज लाएंगे।