हिंदू धर्म में व्रत और तप का विशेष महत्व बताया गया है। व्रत और तप करने से सभी पापों का नाश तो होता ही है साथ ही ईश्वर की अनुकंपा भी प्राप्त होती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो मनुष्य कार्तिक मास में व्रत व तप करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मासानां कार्तिक: श्रेष्ठो देवानां मधुसूदन।
तीर्थं नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।।
(स्कंद पुराण, वै. खं. कां. मा. 1/14)
स्कंद पुराण में लिखे इस श्लोक के अनुसार, भगवान विष्णु एवं विष्णुतीर्थ के समान ही कार्तिक मास भी श्रेष्ठ और दुर्लभ है। एक अन्य श्लोक के अनुसार-
न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्।
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगा समम्।।
अर्थात- कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नही, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
कार्तिक मास में सात नियम बताये गए हैं Kartik snan
१. दीपदान – धर्म शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान करना बताया गया है। इस महीने में नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
२. तुलसी पूजा – इस महीने में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।
३. भूमि पर शयन – भूमि पर सोना कार्तिक मास का तीसरा प्रमुख काम माना गया है। भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं।
४. तेल लगाना वर्जित – कार्तिक महीने में केवल एक बार नरक चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) के दिन ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए। कार्तिक मास में अन्य दिनों में तेल लगाना वर्जित है।
५. दलहन (दालों) खाना निषेध – कार्तिक महीने में द्विदलन अर्थात उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई आदि नहीं खाना चाहिए।
६. ब्रह्मचर्य का पालन – कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। इसका पालन नहीं करने पर पति-पत्नी को दोष लगता है और इसके अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं।
७. संयम रखें – कार्तिक मास का व्रत करने वालों को चाहिए कि वह तपस्वियों के समान व्यवहार करें अर्थात कम बोले, किसी की निंदा या विवाद न करें, मन पर संयम रखें आदि।
कार्तिक स्नान
मान्यता है कि कार्तिक मास में ब्रह्म मुहूर्त में यमुना नदी में स्नान करना बेहद लाभकारी होता है। इस मास में महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं। कहते हैं कि स्नान कुंवारी और शादीशुदा दोनों महिलाएं कर सकती हैं। ग्रंथों के अनुसार, अगर आप किसी नदी के जल से स्नान करने में समर्थ नहीं हैं तो नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं।
कार्तिक स्नान में गृहस्थ को काले तिल और आंवले के चूर्ण को शरीर पर मलकर स्नान करना चाहिए। सन्यासी को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मिट्टी को शरीर पर मलकर स्नान की प्रक्रिया पूर्ण करना चाहिए। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर विधि विधान से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए और तुलसी, केला, पीपल के नीचे दीपक जलाकर पूजन करना चाहिए सप्तमी , द्वितीया , नवमी , दशमी , त्रयोदशी तथा अमावस्या को तिल और आंवला मलकर स्नान का निषेध है। कार्तिक स्नान का संकल्प लेने वाले को इस महीने तेल नहीं लगाना चाहिए। सिर्फ नरक चतुर्दशी के दिन तेल लगाया जा सकता है। इन सभी नियमों के पालन से इस कार्तिक मास में भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है और स्वास्थ्य के साथ जीवन में अन्य फायदे भी होता है।