kisi bhi puja ya anusthan ka sampurn fal prapt karn, संकल्प लेने की विधि
kisi bhi puja ya anusthan ka sampurn fal prapt karn, संकल्प लेने की विधि, Sankalp kaise le,
दोस्तों कहा जाता है कि हम अपनी इक्षा पूर्ति के लिए या ईश्वर की आराधना के लिए जो भी पूजा पाठ करते है। यदि उसका संकल्प न लिया जाये तो उसका सारा फल इन्द्र को मिलता हमें कोई लाभ नहीं मिलता। यहाँ हम पूजा, मंत्रजप या अनुष्ठान से पूर्व संकल्प लेने की सबसे सरल विधि बताने जा रहे हैं।
पहले एक बात समझ ले दैनिक पूजा जैसे जोत जलाना, आरती या चालीसा का पाठ करने के लिए संकल्प की आवस्यकता नहीं पड़ती पर यदि आप चाहें तो संकल्प रोज ले सकते हैं। पर ज्ञानी जन किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही संकल्प लेने का प्रावधान बताते हैं।
संकल्प कब लेना चाहिए। Sankalp kab lena cahiye
आप सत्यनारायण की पूजा करवा रहे हैं। यह ज्यादातर पूर्णिमा या बृहस्पतिवार को होती है। तो आपको संकल्प लेकर ही पूजा करवानी चाहिए। यदि आप कोई मंत्र जाप करना कहते हैं जैसे राम मंत्र का ही एक लाख बार जप करना चाहते हैं तो ऐसे स्तिथि में बिना संकल्प के जाप करने पर उसका फल इंद्र देव को मिलता है। आपकी मनोकामना पूर्ण नहीं होती फिर आप शिकायत करते हैं की पूजा का फल नहीं मिल रहा।
कभी–कभी हम जीवन की कठिनाइयों में इस कदर घिर जाते है की उनका समाधान कही नज़र नहीं आता। किसी समस्या का समाधान ही नहीं सूझ रहा होता तब उसे हल करने के लिए देव्यै शक्ति का सहारा लेना पड़ता है। उनके निवारण हेतु विशेष पूजा -पाठ का आयोजन करता है | जिसका प्रतिफल भी हमें शीघ्र ही मिलने लगता है | किन्तु किसी भी पूजा -पाठ का सम्पूर्ण फल पाने के लिए पूजा शुरू करने से पहले संकल्प लेना बहुत जरुरी होता है |
संकल्प का मतलब (अर्थ) क्या है।
सीधे शब्दों में कहें तो संकल्प का मतलब किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए द्रढ़ निश्चय कर लेना फिर चाहे परिस्तिथियाँ अनूकुल हो या प्रतिकूल , तब व्यक्ति के लिए उस कार्य की पूर्णता अंतिम लक्ष्य बन जाता है | यही संकल्प है | लेकिन पूजा – पाठ के समय संकल्प में द्रढ़ निश्चय के साथ -साथ एक प्राथना या गुहार भी लगाई जाती है | जिसमें इक्षित वर का प्रयोजन व समय तथा करने वाले व्यक्ति की सम्पूर्ण जानकारी होती है।
संकल्प कितने प्रकार के होते है।
संकल्प मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं, साधारण संकल्प और विशेष संकल्प
हम यहाँ साधारण संकल्प की जानकारी देंगे। कुछ ऐसे अनुष्ठान होते हैं की विशेषज्ञ पंडित ही करवाते है। इसलिए उनका संकल्प उन्हें की करें दें।
अनुष्ठान से पहले संकल्प लेने की विधि : –
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए की गयी कोई भी पूजा या अनुष्ठान के शुरू करने से पहले संकल्प लिया जाता है | दोस्तों वैसे तो सामान्यतः संकल्प पंडित जी संस्कृत में करते हैं। पर हम यहाँ आम जान के लिए हिंदी में बता रहे हैं ताकि पंडित जी के ना होने पर आपके अनुष्ठान में कोई बाधा न आये।
संकल्प लेने का नियम समझा ले तो आप अपनी भाषा में संकल्प ले सकते हैं। चाहे संस्कृत, इंग्लिश, तमिल पंजाबी या जापानी में ही क्यों न हो। जरुरी नहीं की आप संस्कृत में ही संकल्प लें। ईश्वर सभी भाषाओँ में आपकी प्रार्थना स्वीकार करता है।
संकल्प में टाइम एंड स्पेस का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता है। इसके 4 मुख्या घटक हैं।
पहला वह व्यक्ति/ स्त्री या पुरष
दूसरा वह स्थान जहाँ आप हैं।
तीसरा समय किस समय आप इसे शरू कर रहे हैं।
और चौथा प्रयोजन यानि किस लिए आप ये संकल्प कर रहें हैं।
संकल्प लेने के लिए सामने गणेश जी स्थापना की जाती है यदि मूर्ति न मिले तो आप जायफल में कलावा लपेट कर गणेश जी की स्थापना हैं। वह भी उपलब्ध न हो तो आप मट्टी के गणेश भी बना सकते हैं। कोई भी संकल्प गणेश भगवान को साक्षी मानकर लिया जाता है। फिर हाथ में दक्षिणा, फूल और थोडा जल तथा अक्षत यानि बिना टूटे हुए चावल लेकर इस प्रकार बोले : –
कि मैं अमुक (जिस देवता की पूजा कर रहे हैं ) देवता की पूजा करना चाहता हूं और मैं आपको साक्षी बना रहा हूं। आप मेरी पूजा को बिना किसी भी समस्या के सफल बनाएं।
संकल्प मंत्र इस प्रकार है
ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:। ॐ अध्य ब्रह्मणोह्रि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे ,वैवस्वतमन्वन्तरेष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौध्दावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे ….क्षेत्रे, नगरे, ग्रामे….नाम-संवत्सरे….मासे (शुक्ल-कृष्ण) पक्षे…., तिथौ…., गोत्र:…., गुप्तोहम् प्रात: (मध्य-सायं) सर्वकर्मसु शुध्दयर्थ श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं श्रीभगवत्प्रीत्यर्थ च अमुक कर्म करिष्ये।
जंहा खली स्थान आया है वहां आपको कुछ बदलाव अवश्य करने हैं। जैसे जहां पर क्षेत्र या फिर नगर आता है वहां पर आपको अपने शहर अथवा गांव का नाम लेना है। इसके अलावा आपको मास के स्थान पर कौन सा महीना चल रहा है उसका नाम लेना है।
पक्ष की जगह पर आपको शुक्ल पक्ष या फिर कृष्ण पक्ष जो भी पक्ष चल रहा हो, उसका नाम लेना है। तिथि के स्थान पर कौन सी तारीख है,गोत्र के स्थान पर अपना गोत्र का नाम आपको लेना है। इसके अलावा जिस देवी देवता कि आप पूजा या फिर साधना कर रहे हैं, उसका नाम आपको लेना है।
इसे थोड़ा और सरल करते हैं आपकी अपनी भाषा में सरल शब्दों में
” हे परमपिता परमेश्वर,(यहाँ पर आप भगवन विष्णु शिव या माता दुर्गा का नाम भी ले सकते हैं)
मैं ( अपना नाम और अपना गोत्र बोले ) यदि आपको अपना गोत्र नहीं पता तो कश्यप गोत्र बोले,
स्थान : यहाँ पर अपना पता बोले जैसे अँधेरी एस्ट मुंबई में रहते हुए
समय: साल महीना दिन (यदि तिथि और नक्षत्र का पता हो तो बहुत अच्छा है )
मैं ना आपकी पूजा -पाठ जानता हूं ,ना मंत्र जानता हूं , ना वेद -पाठ पढ़ना जानता हूं, ना क्रियाएं ना मुद्राएँ जानता हूं ,
मैं तो आप द्वारा दी गई बुद्धि से यथा समय, यथा शक्ति यह (यहाँ ‘यह’ के स्थान पर पूजा का नाम बोले ) जैसे ॐ नमः शिवाय का पाठ कर रहा हूं |
हे परमपिता परमेश्वर इसमें कोई गलती हो तो क्षमा करें , और मुझ पर और मेरे परिवार पर अपनी कृपा द्रष्टि बनाये रखे | मेरे और मेरे परिवार में सभी अरिष्ट, पीड़ा , बाधा , रोग व दोष , किसी भी प्रकार की कोई बाधाएं हो तो उनका निवारण करें | जिसके लिए मैं इस पूजा का (भगवान् श्री गणेश जी के साथ -साथ सभी देवी – देवताओं का ) संकल्प लेता हूं | ”
इस प्रकार से संकल्प लेने के पश्चात् यदि आपने हथेली पर जल लेकर संकल्प किया तो इस जल को नीचे जमीन पर छोड़ दे | यदि आपने हथेली में चावल रखकर संकल्प किया है तो चावल को गणेश जी पर छोड़ दे |
संकल्प करने के लाभ
किसी भी धार्मिक काम को करने से पहले या फिर पूजा-पाठ को स्टार्ट करने से पहले अगर आप संकल्प लेते हैं,तो आपको उसका फल जल्दी मिलता है और आपका काम जल्दी हो जाता है। आपको अपने जाप और व्रत का पूरा फल संकल्प लेने के बाद मिलता है, क्योंकि आप जिस किसी भी भगवान को साक्षी मानकर संकल्प लेते हैं, वह आपकी पूजा के साक्षी हो जाते हैं। संकल्प एक प्रकार के लाइसेंस की तरह होता है, इसलिए हर पूजा में संकल्प लेना आवश्यक है।
Good and in short .