नमस्कार दोस्तों दुनिया की सारी धनसंपदा के एकमात्र देवता कुबेर कहे जाते हैं। कुबेर भगवान शिव के परम प्रिय सेवक हैं इन्हें मंत्र साधना द्वारा प्रसन्न करने का विधान है। बहुत सारे लोग दिवाली या धनतेरस के दिन कुबेर की पूजा करते हैं। और उनका मानना है कि कुबेर की पूजा करने से घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती। ज्यादातर कुबेर मंत्रों को दक्षिण की तरफ मुंह करके सिद्ध करने की परंपरा है।
आप में से ज्यादातर लोग जानते होंगे कि कुबेर कौन है। जो नहीं जानते उन्हें बता दें की रावण के पिता विश्वसर्वा की दो पत्नियां थी। पहली पत्नी से कुबेर उत्पन्न हुए और दूसरी से रावण, कुंभकरण तथा विभीषण उत्पन्न हुए। दरअसल कुबेर एक यक्ष थे और रावण राक्षस थे। अब आप लोग कहेंगे कि यक्ष और राक्षसों में क्या अंतर होता है? यक्ष और राक्षस शक्ति सामर्थ तथा ज्ञान में एक जैसे ही होते हैं परंतु राक्षस मायावी होते हैं वह छल व माया से लोगों को नुकसान पहुंचते हैं। ज्यादातर यक्ष अच्छे होते हैं और मनुष्य के भले के लिए कार्य करते हैं। परंतु कुछ बुरे हो जाए तो वह बुरा काम करते हैं जैसे आपने सुना होगा यक्षिणी जिन्हें लोग सिद्ध करते हैं।
यह दोनों एक ही कैटेगरी होती है परंतु इनमे थोड़ा अंतर होता है। राक्षस ज्यादातर इंसानों का बुरा करते हैं जबकि यदा-कदा ही यक्ष इंसानों का बुरा करते हैं। माना जाता है कि प्रारम्भ में दो प्रकार के राक्षस होते थे; एक जो रक्षा करते थे वे यक्ष कहलाये तथा दूसरे यज्ञों में बाधा उपस्थित करने वाले राक्षस कहलाये।
यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है ‘जादू की शक्ति’।
इतिहास में कई यक्षों का वर्णन मिलता है जैसे महाभारत के अंदर युधिष्ठिर से एक यक्ष ने प्रश्न किए थे। जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब एक यक्ष से उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से विख्यात यक्ष प्रश्न किए थे। जिसे आज भी लोग मुहावरे के रूप में इस्तेमाल करते हैं कि यह एक यक्ष प्रश्न है। इसी तरह से एक और यक्ष का वर्णन मिलता है जिन्हें हम कुबेर के नाम से जानते हैं। कुबेर यक्षों के राजा कहलाते हैं। वह उत्तर दिशा के दिगपाल हैं और लोकपाल यानी संसार के रक्षक भी है।
रामायण में कुबेर के बारे में बहुत जानकारी मिलती है। एक बार भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने हिमालय पर्वत पर जाकर तप प्रारम्भ किया। तप के अंतराल में शिव तथा पार्वती दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बायें नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य तेज से वह नेत्र भस्म होकर पीला पड़ गया। कुबेर वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चले गए। उन्होंने घोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। कुबेर से प्रसन्न होकर शिव ने कहा-‘तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, अत: तुम एकाक्षीपिंगल कहलाओंगे। इस तरह कुबेर को एकाक्षीपिंगल के नाम से भी जाना जाता है।
दोस्तों आइये जानते हैं कि कुबेर कैसे धनपति बने।
इसके पीछे भी भगवान शिव का आशीर्वाद ही है। घटना कुछ इस प्रकार की है कि कुबेर जो रावण का भाई था उसने जब रावण के अत्याचारों के बारे में सुना तो वह बड़ा दुखी हुआ। कुछ समय पहले ही रावण ने स्वर्ग का नंदनवन उजाड़ दिया था। जिसके कारण देवता भी उसके शत्रु बन गए थे। कुबेर रावण का हित चाहते थे और वह चाहते थे कि रावण बुरे मार्ग को छोड़कर अच्छे मार्ग की ओर अग्रसर हो। कुबेर ने अपने एक दूत के हाथों संदेश भेजा और कहा कि वह अधर्म का मार्ग छोड़ दे। रावण इस बात से बहुत क्रोधित हुआ और उसने उस दूत के टुकड़े-टुकड़े करके राक्षसों को भक्षण के लिए दे दिया। कुबेर को यह जानकर बुरा लगा और रावण तथा कुबेर का युद्ध हुआ। रावण की तरफ राक्षस थे और कुबेर की तरफ यक्ष थे। यक्ष अपने बल से लड़े परंतु राक्षस अपनी माया से, माया के कारण राक्षस जीत गए। तब रावण ने कुबेर का सर घायल कर दिया व कुबेर का पुष्पक विमान ले लिया और लंका भी छीन ली।
युद्ध के बाद कुबेर अपने पितामह के पास गए उनकी प्रेरणा से कुबेर ने भगवान शिव की आराधना की तथा इस तप के प्रभाव से उन्होंने धनपाल की पदवी प्राप्त की और जिस स्थान पर यानी गोमती तट पर इन्होंने तपस्या की थी। यह स्थली धनदतीर्थ के नाम से विख्यात है।भगवान शिव के आशीर्वाद के कारण जो भी उनकी पूजा करता है वह भी संपन्न और धन-धान्य से संपूर्ण होता है।
वैसे तो कई कुबेर मंत्र हैं परंतु दो कुबेर मंत्र मुख्य हैं जिनके बारे में हम यहां बात करेंगे पहला मंत्र धन धान्य और समृद्धि के स्वामी श्री कुबेर जी का यह 35 अक्षरी मंत्र है। यह छंद बृहती में लिखा गया है। इस मंत्र को उनका अमोघ मंत्र कहा जाता है। माना जाता है कि तीन महीने तक इस मंत्र का 108 बार जाप करने से घर में किसी भी प्रकार धन धान्य की कमी नहीं होती। यह मंत्र सब प्रकार की सिद्धियां देने पाने के लिये कारगर है। इस मंत्र में देवता कुबेर के अलग-अलग नामों एवं उनकी विशेषताओं का जिक्र करते हुए उनसे धन-धान्य एवं समृद्धि देने की प्रार्थना की गई है। यदि बेल के वृक्ष के नीचे दक्षिण मुखी बैठ कर इस मन्त्र का एक लाख बार जप किया जाये तो धन-धान्य रुप समृद्धि प्राप्त होती है।
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
कुबेर शीघ्र धन प्राप्ति मंत्र
जो लोग लाटरी सत्ता या घुड़दौड़ का काम करते हैं या अचानक धन प्राप्ति की इक्षा रखते है उन्हें कुबेर जी का यह मंत्र तीन महीने तक जपना चाहिये। इसके नियमित जप से साधक को अचानक धन की प्राप्ति होती है।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
कुबेर और मां लक्ष्मी का संयुक्त यह मंत्र है जो जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता देने वाला है। यह ऐश्वर्य, लक्षमी, दिव्यता, पद प्राप्ति, सुख सौभाग्य, व्यवसाय वृद्धि, अष्ट सिद्धि, नव निधि, आर्थिक विकास, सन्तान सुख उत्तम स्वास्थ्य, आयु वृद्धि, और समस्त भौतिक और परासुख देने में समर्थ है। शुक्ल पक्ष के किसी भी शुक्रवार को रात्रि में इस मंत्र की साधना शुरू करनी चाहिये। काम से काम इसे दस हजार बार जपना चाहिए।
कुबेर अष्टलक्ष्मी मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥