हमारे धर्म शास्त्रों में देवी से संबंधित कुछ ऐसे चमत्कारिक स्तोत्र और मंत्र बताए गए हैं जिनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है। उन्हीं में से एक है ललिता सहस्त्रनामावली। ललिता माता जिन्हे त्रिपुरासुन्दरी भी कहा जाता है। ऋषि दुर्वासा आपके परम आराधक थे। आदिगुरू शंकरचार्य ने भी अपने ग्रन्थ सौन्दर्यलहरी में त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या की स्तुति की है। कहा जाता है- भगवती त्रिपुर सुन्दरी के आशीर्वाद से साधक को भोग और मोक्ष दोनों सहज उपलब्ध हो जाते हैं। देवी दुर्गा के स्वरूप ललितादेवी के एक हजार नामों को ललिता सहस्त्रनामावली के नाम से जाना जाता है।
इन्हें ‘महात्रिपुरसुन्दरी’, षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, ललितागौरी तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं। वे दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी हैं। यह देवी पार्वती का तांत्रिक स्वरूप है। इनके चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित हैं। “देवीभागवत” में ये कहा गया है यह आसानी से वर देने वाली देवी हैं। चार दिशाओं में चार मुख और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्र शास्त्रों में ‘पंचवक्त्र’ अर्थात् पांच मुखों वाली कहा गया है।
देवी माँ सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है।
माँ काली के दो रूप कृष्णवर्णा और रक्तवर्णा हैं।ललिता देवी या त्रिपुरसुन्दरी, काली का रक्तवर्णा रूप हैं। त्रिपुर सुंदरी धन, ऐश्वर्य, भोग और मोक्ष की अधिष्ठात्री देवी हैं। इससे पहले की महाविद्याओं में कोई भोग तो कोई मोक्ष में विशेष प्रभावी हैं लेकिन यह देवी समान रूप से दोनों ही प्रदान करती हैं।
ब्रह्मांड पुराण में वर्णित इस स्तोत्र के अद्भुत और चमत्कारिक फायदे बताए गए हैं। इसके बारे में यहां तक कहा गया है कि भगवान शिव का एक बार नाम लेने से महाविष्णु के एक हजार नाम लेने का फल मिल जाता है। इसी प्रकार एक बार ललिता देवी का नाम लेने से भगवान शिव के एक हजार नाम लेने का फल मिलता है। इसका पाठ वैसे तो दिन में कभी भी किया जा सकता है, लेकिन सुबह 4 से 7 बजे के बीच और शाम के समय करना सबसे अच्छा माना जाता है।
ललिता सहस्त्रनामावली का नियमित पाठ करने से तीर्थ स्थल जाने, पवित्र नदियों में स्नान करने और दान करने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। जो लोग नियमित ये सब नहीं कर पाते उन्हें ललिता सहस्त्रनामावली का पाठ करना चाहिए। सामान्यतः पूजा-पाठ में किसी प्रकार की गलती हो जाए, दोष रह जाए तो उसका उल्टा असर हो सकता है। इसलिए ललिता सहस्त्रनामावली का पाठ करने से पूजा विधि के दोष समाप्त होते हैं। ललिता सहस्त्रनामावली के पाठ से आकस्मिक मृत्यु और दुर्घटना का खतरा नहीं रहता। नियमित पाठ से व्यक्ति स्वस्थ और लंबा जीवन जीता है।
किसी भी तरह के रोग में रोगी के सर पर हाथ रखकर ललिता सहस्त्रनामावली का पाठ करने से रोग में आराम मिलता है और इसका प्रयोग नियमित करने से धीरे-धीरे रोग असाध्य रोग भी ठीक हो जाता है।
ललिता सहस्त्रनामावली का पाठ करते समय अपने सामने एक गिलास में पानी भरकर रखें। पाठ समाप्त होने के बाद इस पानी को अपने मस्तक पर छिड़कने से ग्रहों की बुरी दशा के कारण आ रही परेशानियों से मुक्ति मिलती है। इससे हर प्रकार की नजर दोष और काले जादू का प्रभाव समाप्त होता है।
संतान की प्राप्ति के लिए ललिता सहस्त्रनामावली का पाठ करते समय अपने सामने थोड़ा सा शुद्ध घी रखें। पाठ समाप्त करने के बाद यह घी खा लें। इससे नपुंसकता दूर होती है और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। जिन्हें संतान होने में परेशानी आ रही है वे यह प्रयोग जरूर करें।
ललिता सहस्त्रनामावली का पाठ करने से शत्रुओं का भय नहीं रहता। कोई शत्रु पाठ करने वाले को नुकसान नहीं पहुंचा सकता।
ललिता सहस्त्रनामावली का पाठ करने से वाक सिद्धि प्राप्त हो जाती है। व्यक्ति को प्रसिद्धि हासिल कर लेता है और उसका नाम चारों ओर सितारों की तरह चमक उठता है।
शुक्रवार के दिन इसका पाठ करने से आर्थिक परेशानियां समाप्त हो जाती है। व्यक्ति को जीवन की मूलभूत जरूरतों के लिए परेशान नहीं होना पड़ता।
ललिता सहस्रनाम ‘ब्रह्माण्ड पुराण’ से लिया गया है। ललिता सहस्त्रनाम तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
पूर्व भाग – जिसमें सहस्रनाम के उत्पत्ति के बारे में बताया है।
स्तोत्र – इसमें देवी माँ के 1000 नाम आते हैं।
उत्तर भाग – इसमें फलश्रुति या सहस्रनाम पठन के लाभ बताये गए है।
इसे पढ़ने से ही नहीं बल्कि सुनने मात्र से भी बहुत सारे दुखों का नाश होता है। तथा इस लोक में भोग तथा उस लोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी मां पर श्रद्धा रखने वाले लोगों को संभव हो तो दिन में एक बार नहीं तो शुक्रवार के दिन तो अवश्य ही यह पाठ करना चाहिए यदि संभव न हो तो शुक्रवार एक बार अवश्य सुनना चाहिए।
श्री ललिता सहस्रनाम पाठ विधि
वैसे तो आप प्रतिदिन इस दिव्य स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं किन्तु ऐसा संभव न होने की स्थिति में दक्षिणायन, उत्तरायण, नवमी, चतुर्दशी, संक्रान्ति तथा पूर्णिमा को श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। सप्ताह में प्रत्येक शुक्रवार को इस स्तोत्र का पाठ करना लाभकारी होता है।
सर्वप्रथम स्नान करके श्वेत या लाल वस्त्र धारण कर एक आसन पर पद्मासन में बैठ जाएँ।
एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछा कर देवी ललिता की प्रतिमा या छायाचित्र स्थापित करें।
अब देवी का आवाहन कर उन्हें आसन ग्रहण करवाएं।
आसन ग्रहण करवाने के पश्चात देवी को स्नान व वस्त्र अर्पण करें।
तत्पश्चात देवी को धुप, दीप, सुगन्ध, पुष्प व नैवेद्य आदि अर्पित करें।
पूर्ण निष्ठा से श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करें।
पाठ सम्पूर्ण होने पर देवी ललिता की आरती करें व आशीर्वाद ग्रहण करें।
श्री ललिता सहस्रनाम विशेष उपाय :- इस स्तोत्र का पाठ करते समय अपने समक्ष एक पात्र में शुद्ध जल भरकर रखें तथा पाठ सम्पन्न होने के पश्चात उस जल को पूरे घर में तथा स्वयं पर छिड़कें। इस प्रयोग से घर से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।