Mahishasura Mardini Stotra, अयिगिरि नन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते, महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत,
हम मनुष्यों के जीवन सुख दुःख लाभ हानि ये सब लगा रहता है। मनुष्य चाहता है कि उसके जीवन में हमेशा सुख बना रहे और परेशानियां ना आए परंतु यह संभव नहीं है। दुख और परेशानियां जीवन का हिस्सा होती ही है। लेकिन मां भगवती पर विश्वास रखने वाले जीवन की प्रत्येक समस्याओं से उभर जाते हैं। यदि आप बहुत बड़ी समस्या से जूझ रहे हैं तो आपको महिषासुरमर्दिनि का स्त्रोत करना चाहिए।
नवरात्रों में मां के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है इस बार में तो सभी जानते ही हैं। इसी के साथ इस दौरान मां को मनाने व प्रसन्न करने के लिए और भी कई तरह के प्रयास किए जाते हैं। जिसमें ज्योतिष उपायो से लेकर मंत्र आदि सब शामिल हैं।
इस स्त्रोत के रचियता कौन हैं।
ये स्तोत्र स्वयं श्री आदि शंकराचार्य श्री मुख से उद्गृत हुई मां भगवती की अत्यन्त कर्ण प्रिय स्तुति है।
इसके उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है,जो कि आदि गुरु के जीवन की एक घटना से ली गयी है।
एक बार आदि गुरु शंकराचाय जी अपने शिष्यों के साथ एक अति सँकरी गली से स्नान हेतु मणिकर्णिका घाट जा रहे थे, मणिकर्णिका घाट एक श्मशान घाट भी हैं।
वहाँ मार्ग में एक युवती अपने मृत पति का सिर गोद में लिए विलाप करती हुई बैठी थी, गली के संकरी होने के कारण मर्ग से आगे जाने के लिए शव का हटाना आवश्यक था, शव को न हटाने और उसको लांघना पड़ता जो कि हमारे धर्म किसी भी व्यकित का लंघन स्वयं ईश्वर का लंघन करने के समान है अतः ये सर्वथा वर्जित है।
उनके शिष्यों ने उस स्त्री से अपने पति के शव को हटाकर रास्ता देने की प्रार्थना की, परन्तु वह स्त्री उसे अनसुना कर रुदन करती रही। तब स्वयं आचार्य ने उससे वह शव हटाने का अनुरोध किया।
उनका आग्रह सुनकर वह स्त्री कहने लगी- ‘हे संन्यासी! आप मुझसे बार-बार यह शव हटाने के लिए कह रहे हैं। आप इस शव को ही हट जाने के लिए क्यों नहीं कहते?’
यह सुनकर आचार्य बोले- ‘हे देवी! आप शोक में कदाचित यह भी भूल गई कि शव में स्वयं हटने की शक्ति ही नहीं है।’
स्त्री ने तुरंत उत्तर दिया- ‘महात्मन् आपकी दृष्टि में तो शक्ति निरपेक्ष ब्रह्म ही जगत का कर्ता है। फिर शक्ति के बिना यह शव क्यों नहीं हट सकता?’
उस स्त्री का ऐसा गंभीर, ज्ञानमय, रहस्यपूर्ण वाक्य सुनकर आचार्य वहीं बैठ गए,उन्हें समाधि लग गई और समाधि में अंत:चक्षु से उन्होंने देखा,
सर्वत्र आद्या शक्ति महामाया लीला विलाप कर रही हैं। उनका हृदय अनिवर्चनीय आनंद से भर गया और मुख से मातृ वंदना की शब्दमयी धारा स्तोत्र बनकर फूट पड़ी।
महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत के पाठ को करने का महत्व
ये स्त्रोत बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है, मान्यताओं के अनुसार इस स्तोत्र का पाठ करने से किसी के जीवन में आ रही बाधाये दूर हो जाती हैं।
इस स्त्रोत का पाठ करने वालों के अनुसार, मां भगवती के इस स्तोत्र का पाठ करने से जातक के जीवन में आ रही परेशानियां दूर हो जाती हैं। कहा जाता है जो व्यक्ति जीवन में शक्ति की कामना करता है, उसे महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत से मां भगवती की आराधना करनी चाहिए। इनकी आराधना से बड़े से बड़ा कष्ट तुरंत दूर हो जाता है। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति दिन में एक बार भी मां महिषासुरमर्दिनी स्रोत का पाठ कर लेता है, उसके जीवन से परेशानी कम हो जाती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति दिन में एक बार भी मां महिषासुरमर्दिनी स्रोत का पाठ कर लेता है, उसके जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता और न ही वह कभी नरक में जाता है।
इस स्तोत्र का पाठ नियमति रूप करने से मनुष्य के सभी संकट का विनाश होता हैं।
जो व्यक्ति शक्ति की कामना रखता हैं। उन्हें रोजाना महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने चाहिए। इससे व्यक्ति को शक्ति, साहस और बल की प्राप्ति होती हैं।
महिषासुर कौन था ?
आपने दुर्गा सप्तशती पढ़ी होगी उसमे महिसासुर का वर्णन है। महिषासुर एक असुर था जो एक दानव था। दोस्तों रावण राक्षस था। बलि दैत्य थे। और महिसासुर एक दानव था। वह ऋषि कश्यप और दनु का पोता और रम्भ का पुत्र था। एक धोखेबाज दानव के रूप में जाना जाता है, जो आकार बदलकर बुरे कार्य किया करता था। अंततः उसका माता पार्वती ने उसका वध कर दिया, जिसके बाद उन्हें महिषासुरमर्दिनी (“महिषासुर का वध करने वाली”) की उपाधि प्राप्त हुई।
महिषासुर ब्रम्हा जी का महान भक्त था और ब्रम्हा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने देवताओं को हरा स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया।
कोई उपाय न मिलने पर देवताओं ने उसके विनाश के लिए “दुर्गा” का सृजन किया जिन्हे शक्ति और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसी उपलक्ष्य में हिंदू भक्तगण दस दिनों का त्यौहार दुर्गा पूजा मनाते हैं और दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।
सुबह के समय स्नान कर स्वच्छ, धुले हुए कपड़े पहन कर एक आसन पर विराजमान हो जाएं। इसके बाद मां की तस्वीर अथवा प्रतिमा पर पुष्प, माला आदि अर्पित उनकी धूप, दीप आदि से पूजा कर प्रसाद समर्पित करें। इसके बाद शांत चित्त होकर एकाग्र मन से महिषासुरमर्दिनी स्रोत का पाठ करें। पूरे पाठ में केवल 10 से 15 मिनट लगते हैं। इसके बाद अपने आपको मां के चरणों में अर्पित कर उनसे समस्त कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करें। मां महिषासुरमर्दिनी स्रोत निम्न प्रकार हैं।