नमस्कार दोस्तों
समुद्र धरती पर लगभग दो तिहाई भाग में फैला हुआ है। आज के समय में ही नहीं बल्कि प्राचीन समय के लिए समुद्र हमारे लिए उतनी ही महत्व रखता था यह किसी से छुपा नहीं है। वहां से हमें वह रतन मिलते हैं। तेल मिलता है और सबसे ज्यादा जरुरी ऑक्सीजन मिलती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि केवल 28% ही ऑक्सीजन हमें धरती के पेड़ों से मिलती है बाकी सारी ऑक्सीजन में समुद्र से प्राप्त होती है। समुद्र से बहुत सारे रत्न प्राप्त होते हैं जिनमें मोती भी है। मोती सफेद रंग का होता है और इस पर गुलाबी पीली या सफेद छाई होती है। काला व नीला मोती भी होता है। हम इस लेख में हम मोती के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे। (Pearl and its benefits)
सबसे पहले यह जानते हैं कि ये बनता कैसे हैं?
कहा जाता है कि स्वाति नक्षत्र में आसमान से जब कोई बूंद गिरती है तो वह ही मोती बनती है । अगर वह बूंद समुद्र में सीपी के मुंह में गिरती है तो वह मोती बन जाती है। अगर वही बूंद केले पर गिरती है तो कपूर बन जाती और वही बूंद सांप के मुंह पर पड़ जाए तो वह हलाहल विष बन जाती है। मोती देश विदेश समुद्र किनारे पर, नदियों तथा नहरों में बहुत सारे स्थानों पर मिलता है। यह मूलतः कैलशियम कार्बोनेट से बना होता है इसीलिए इसके बहुत सारे आयुर्वेदिक प्रयोग भी हैं। इसे मुक्ता भी कहते हैं। इसकी आजकल खेती होने लगी है सीपी के अंदर यह लोग दाना डाल देते हैं और उसके बाद कुछ समय बाद वह दाना मोती बन जाता है। उस दाने के ऊपर कैल्शियम की परत जमा होनी शुरू हो जाती है। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं, आपकी आंख में धूल का कोई कण गिर जाए तो आपकी आंख पानी छोड़ने लगती है और तब तक वह पानी छोड़ती रहती हैं जब तक वह बाहर न निकल आये। इसी तरह जब एक सीपी के अंदर कोई बीज या धूल कण चला जाता है तो वह भी एक तरह का रसायन छोड़ती है उस रसायन का बाहर निकलने का कोई रास्ता ना होने के कारण वह धूल के कण पर जमा होता जाता है। धीरे-धीरे यह बड़ा हो जाता है फिर गोताखोर लोग या इसकी खेती करने वाले मोती निकल लेते हैं।
जैसा कि कहा जाता है प्राकृतिक मोती सबसे अच्छा होता है और जो प्राकृतिक मोती जिसको पहनने से ज्योतिषीय लाभ मिलता है। वह केवल घोंघे के पेट में पाया जाता है और साथ ही दूसरी शर्त यह है कि वह खारे पानी का होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि जिस मोती की खेती होती है वह लाभकारी नहीं होता वह भी लाभकारी होता है लेकिन सबसे ज्यादा फायदा उसी मूर्ति का होता है जो प्राकृतिक हो और घोंघे के पेट से निकाला गया हो। जिसे आप स्नेल के नाम से जानते हैं।
मोती की पहचान
मोती को पहचानने के लिए आयुर्वेद प्रकाश के अध्याय 5 में एक श्लोक आता है मैं उसका हिंदी में मतलब बता देता हूं मोती तारों की सी प्रदीप्ति भी खेलता है. वह पूरा गोल होता है, स्वच्छ अत्यंत शुचि यानि पवित्र व मल रहित यानी किसी तरह का उस पर कोई निशान नहीं होता। बस चिकना होता है और सबसे अच्छी बात यह है कि उसमें देखने पर आपको अपनी छवि दिखाई देती है। साथ ही कहा जाता है कि उस पर किसी तरह की कोई रेखा नहीं होती। इस तरह का मोती श्रेष्ठ माना जाता है।
मोती में खास तौर पर तीन दोष बताए गए हैं सबसे पहला
१. ऊपरी तल पर दरार अर्थात गरज हो तो मोती फटा हो तो ऐसा मोती आपको नहीं लेना चाहिए
२. दूसरा सतह पर बारीक रेखाएं और लहरदार हो तो नहीं लेना चाहिए।
३. मोती के चारों ओर वलय का रेखा का होना ऐसा प्रतीत होता मनो दो टुकड़ों में हो तो ऐसा मोती उतना लाभ नहीं देता।
ऐसा मोती भी नहीं लेना चाहिए जिसके अंदर मिट्टी हो वह भी लाभकारी नहीं होता।
वराहमिहिर का नाम तो आपने सुना ही होगा यदि नहीं सुना तो वह छठी शताब्दी के एक खगोल शास्त्री थे। जिनके लिए कुतुब मीनार बनाई गई थी ताकि वह उस पर खड़े होकर नक्षत्रों की गणना कर सकें।
उन्होंने बसरा के मोती को प्रथम स्थान पर रक्खा उसके बाद श्रीलंका का मोती दूसरे स्थान पर बताया। वह आकार में थोड़ा सा छोटा होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से जिन की दवाइयां बनती हैं वह बंगाल का मोती है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से मोती बड़ा काम आता है। मोदी को साफ करने के लिए उसको चावल के पानी में डालकर गर्म किया जाता है जिससे वह साफ़ हो जाता है और उसमे चमक आ जाती है। प्राचीन चीन में महिलाएं चावल के पानी में मोती डालकर उसे उबाल दी थी और फिर उसके बाद उसके मांड को फेस पैक की तरह अपने चेहरे पर
लगाती थीं जिससे उनके चेहरे पर चमक बनी रहती थी आज की डेट में भी बहुत सारी महिलाएं यह प्रयोग करती हैं और इसका लाभ भी उन्हें मिलता है।
शरीर में अगर कैल्शियम की कमी हो जाए तो आपको मोती जरूर पहनना चाहिए नाखूनों के ऊपर अगर सफेद रंग के निशान देखने लगे तो फिर ऐसी स्थिति में मोती जरूर पहनना चाहिए। मोती की भस्म बनाई जाती है जिसे मोती पष्टि या मुक्ता पिष्टी के नाम से भी जाना जाता है। यह बार-बार पेशाब आने की समस्या में बहुत लाभकारी होती है। शरीर में कैल्शियम की समस्या में बड़ी लाभकारी होती है। एसिडिटी दूर करती है गैस्ट्रिक अल्सर हाथ पैरों में सूजन की प्रॉब्लम तथा यह नर्वस सिस्टम को मजबूती देती है। हार्ट अटैक के लिए भी बहुत अच्छी और कई पुरुषों में यह बहुत बढ़िया काम आती है। अनिद्रा अवसाद व तनाव को दूर करने वाली होती है।
ज्योतिष के अनुसार मोती
सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु इस तरह से यह नवग्रह कहलाते हैं। जन्म कुंडली चक्र में 12 स्थान होते हैं जिन्हें घर या भाव कहा जाता है। उन भागों में बैठे ग्रहों के अनुसार हमें रत्न धारण करने चाहिए। मोती चंद्र ग्रह का रत्न है इसलिए इसको धारण करने से भाग्य में परिवर्तन आता है। यदि चंद्र अनुकूल है तो यह आपको बहुत लाभकारी रहता होता है।
सामान्य तोर पर लोग मोती रत्न पहन लेते है , जब उनसे पूछा जाता है की यह रत्न आपने क्यों पहना तो 95 प्रतिशत लोगो का जबाब होता है की ” मुझे गुस्सा बहुत आता है , गुस्सा शांत रहे इसलिए पहना है” यह बिलकुल गलत है ! मोती रत्न चन्द्रमा ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है , और यह ग्रह आपकी जन्मकुंडली में शुभ भी हो सक्ता है और अशुभ भी ! यदि चंद्रमा शुभ ग्रहों के साथ शुभ ग्रहों की राशि में और शुभ भाव में बैठा होगा तो निश्चित ही मोती रत्न आपको फायदा पहुचाएगा ! इसके विपरीत अशुभ ग्रहों के साथ होने से शत्रु ग्रहों के साथ होने से मोती नुसकान भी पंहुचा सकता है |
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म राशी , जन्म दिन , जन्म मास , जन्म नक्षत्र को ध्यान में रखते हुए ही रत्न धरण किया जाना चाहिए। लग्नेश , पंचमेश , सप्तमेश , भाग्येश और कर्मेश के क्रम के अनुसार एवम महादशा , प्रत्यंतर दशा के अनुसार ही रत्न धारण करना चाहिए।
यह मेष, कर्क, तुला, वृश्चिक, व मकर लग्न वालों के लिए अच्छा माना जाता है।
मोती रत्न चन्द्रमा की शांति एवम चन्द्रमा को बलवान बनाने के लिए धारण किया जाता है।
मान सागरीय के मतानुसार चन्द्रमा को रानी भी कहा गया है। बलिष्ठ चन्द्रमा से व्यकि को राज कृपा मिलती है। उसके राजकीय कार्यो में सफलता मिलती है।
मोती रत्न आप की याददाश्त को बल देता है। आप के मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है।
यदि चंद्रमा कमज़ोर स्थिति में हो मनुष्य में बैचेनी, दिमागी अस्थिरता, आत्मविश्वास की कमी होती है और इसी कमी के चलते वह बार-बार अपना लक्ष्य बदलता रहता है. जिस के कारण सदैव असफलता ही हाथ लगती है। चंद्रमा यदि आपकी कुंडली के अनुसार शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति शारीरिक रूप से पुष्ट, सुंदर, विनोद प्रिय , सहनशील, भावनाओं की कद्र करने वाला, सच्चा होता है|
अमावस्या के दिन जन्में जातक मोती धारण करेंगे तो उन्हें शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
राहू के साथ ग्रहण योग निर्मित होने पर मोती अवश्य ग्रहण धारण करना चाहिए।
कुंडली में चंद्र छठे अथवा आठवें भाव में हो तो मोती पहनने से सकारात्मकता का संचार होता है।
कारक अथवा लग्नेश चंद्र नीच का हो तो मोती पहनें।
जब लग्न कुंडली में चंद्रमा शुभ स्थानों का स्वामी हो मगर, 6, 8, या 12 भाव में चंद्रमा हो तो मोती पहनें।
नीच राशि (वृश्चिक) में हो तो मोती पहनें।
चंद्रमा राहु या केतु की युति में हो तो मोती पहनें।
चंद्रमा पाप ग्रहों की दृष्टि में हो तो मोती पहनें।
चंद्रमा क्षीण हो या सूर्य के साथ हो तो भी मोती धारण करना चाहिए।
चंद्रमा की महादशा होने पर मोती अवश्य पहनना चाहिए।
चंद्रमा क्षीण हो, कृष्ण पक्ष का जन्म हो तो भी मोती पहनने से लाभ मिलता है।
यदि चंद्रमा लग्न कुंडली में अशुभ होकर शुभ स्थानों को प्रभावित कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में मोती धारण न करें। बल्कि सफेद वस्तु का दान करें, शिव की पूजा-अभिषेक करें
यदि आप चंद्र देव का रत्न मोती धारण करना चाहते है, तो 5 से 8 कैरेट के मोती को चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के प्रथम सोमवार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी को दूध, गंगा जल, शक्कर और शहद के घोल में डाल दे | उसके बाद पाच अगरबत्ती चंद्रदेव के नाम जलाये और प्रार्थना करे की हे चन्द्र देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न, मोती धारण कर रहा हूँ , कृपया करके मुझे आशीर्वाद प्रदान करे, तत्पश्चात अंगूठी को निकाल कर “ॐ सों सोमाय नम:” मंत्र का 108 बार जप करते हुए अंगूठी को शिवजी के चरणों से लगाकर कनिष्टिका ऊँगली में धारण करे | यथा संभव मोती धारण करने से पहले किसी ब्राह्मण ज्योतिषी से अपनी कुंडली में चंद्रमा की शुभता का अशुभता के बारे में पूरी जानकारी लेनी चाहिए।