किसी पर शनि की साढ़ेसाती होती है तो विद्वानों द्वारा कहा जाता है कि आप पीपल के वृक्ष की पूजा करें। आखिर इसके पीछे का कारण क्या है आइए इस रहस्य को जानते हैं। पिप्पलाद ऋषि का नाम आप सब ने सुना होगा वह महाऋषि दधीचि के पुत्र थे महर्षि दधीचि जिन्होंने अपनी हड्डियां दान कर दी थी जिससे इंद्र का वज्र बना और वृत्तासुर का संघार संभव हो पाया। यह घटना ब्रह्मा पुराण की है, श्मशान में जो महर्षि दधीचि के मांस पिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन न कर पायी और पास में स्थित पीपल के वृक्ष की कोटर जो जड़ों के कारण एक गहरा गड्ढा बन जाता है उसमें अपने 3 वर्ष के बालक को रखकर स्वयं चिता पर सती हो गई। इस प्रकार महर्षि दधीच और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किंतु पीपल की कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़पने लगा और चिल्लाने लगा। जब कोई वस्तु से नहीं मिली तो कोटर में गिरे हुए पीपल के फल खाकर वह बड़ा होने लगा। एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजरे नारद ने पीपल की कोटर में बालक को देखकर उससे उसका परिचय पूछा बालक ने अपना परिचय दिया और बताया कि मैं नहीं जानता कि वह कौन है नारद ने पूछा कि तुम्हारे जनक कौन है तब बालक भी उसी तरह का उत्तर दिया कि वह नहीं जानता कि उसके जनक कौन है। तब नारद जी ने अपना ध्यान धरकर उस बच्चे के बारे में पूरी जानकारी निकाली और उसे बताया कि तुम महान दधीचि के पुत्र हो तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की उम्र में ही हो गई थी बालक ने अपने पिता की अकाल मृत्यु के बारे में जानना चाहा तब नारद जी ने बताया कि उन पर आई इस विपत्ति का कारण शनिदेव की महादशा थी। नारद जी ने उस बालक को पिप्पलाद नाम दिया क्योंकि वह पीपल के पत्ते और उसका गूदा खाकर बढ़े हुए थे। उसके बाद नारद जी ने उसे दीक्षित किया। नारद जी की जाने के बाद उस बालक ने जिसका नाम पिप्लाद था ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की।
ब्रह्मा जी ने जब बालक से वर मांगने के लिए कहा तो पिप्लाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी को भी जलाने की शक्ति मांगी ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी के वरदान के बाद पिप्पलाद ने सबसे पहले शनिदेव का आवाहन किया और उन्हें अपने सामने प्रस्तुत किया। सामने पाकर उन्होंने शनिदेव को भस्म करना शुरू कर दिया शनिदेव शरीर जलने लगे ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्य पुत्र शनि की रक्षा के लिए सारे देवता विफल से प्रतीत होते थे सूर्य ने अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देख ब्रह्मा जी से उसे बचाने के लिए विनय निवेदन किया ब्रह्मा जी ने स्वयं पिप्पलाद के सम्मुख प्रकट होकर शनिदेव को छोड़ने के लिए कहा किंतु वह तैयार ना हुए ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वरदान मांगने की बात कही तब पिप्लाद ने खुश होकर दो वरदान मांगे
पहला जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि उसको कारक नहीं होगा जैसे मैं अनाथ हुआ शनि के कारण कोई और अनाथ नहीं होगा
दूसरा उन्होंने कहा मुझे अनाथ को पीपल में शरण दी थी अतः जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएं गा उस पर शनि की बुरी महादशा का असर नहीं होगा ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया। तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रम्हदण्ड से उसके पैरों पर आघात करके मुक्त किया। जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वह पहले जैसी तेजी लायक नहीं रहे।
अतः तभी से शनि को शनैश्चराय जिसे हम आम भाषा में शनिचर कहते हैं कहा जाता है कि रतिया शनिश्चरा जो धीरे चलता है वह शनिश्चराय आग से जलने के कारण शनि की काया काली पड़ गई आप अक्सर किसी भी पीपल के पेड़ के नीचे शनि की काली मूर्ति जरूर देखते होंगे उसके पीछे यही पौराणिक कारण है। जब शनि की महादशा या साढ़ेसाती चलती है जो आपके लिए अच्छी नहीं है तो ज्ञानी जनों के पास बहुत सारे उपाय होते हैं परंतु आम जनों को करने का एक साधारण सा उपाय मैं आपको बताता हूं जिसका लाभ 100% मिलता है आपको सुबह सुबह उठना है सूर्योदय से पूर्व नहा धोकर पीपल के वृक्ष को जल देना है उसके साथ चक्कर लगाने हैं और 7 चक्कर लगाने के बाद इस मंत्र को हिंदी में बोलना है। आपको कहना है कि जिस तरह से आपने पिप्पलाद ऋषि की रक्षा की थी ठीक उसी तरह मेरी भी रक्षा करें और आप पाएंगे कि कुछ ही दिनों में आपकी जिंदगी में शनि के बुरे प्रभाव कम होते जा रहे हैं यह जानकारी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें