नमस्कार दोस्तों पायस एस्ट्रो में आपका स्वागत है। भगवान श्री कृष्ण का एक मंत्र है जो बहुत ही प्रसिद्ध है। श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा इस लेख में हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि इस मंत्र का जाप करने से क्या लाभ होता है, इसे कब जपना चाहिए, किन लोगों को जपना चाहिए, कैसे इसको जपा जाए जिससे सबसे ज्यादा लाभ लिया जा सके।
दोस्तों इस विषय में कोई पक्की खबर नहीं है कि यह मंत्र किस महापुरुष द्वारा बनाया गया है। ऐसा मानते हैं कि इसे चैतन्य महाप्रभु ने बनाया है। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि मीरा इस गीत को गाती थी। चाहे किसी ने भी बनाया हो परंतु यह बात पूरी तरह से सत्य है कि यह मंत्र कारगर है और काम करता है। क्योंकि कुछ लोगों ने इस मंत्र पर विशेष रूप से लिखने को मुझे कहा है। जिसमे माहि यादव, मनोज वर्मा और हमारे यूजर बॉक्स गेमिंग शामिल है।
दोस्तों सबसे पहले हम इसकी व्याख्या क्या है। इसका अर्थ बताने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि यह अपने आप में अर्थपूर्ण मंत्र है। हाँ इसकी व्याख्या की जा सकती है। Shri krishn govind
इस मंत्र के 9 शब्दों में भगवान के 5 नामों का वर्णन किया गया है। इन 5 नामों को हम जितनी बार जपेंगे, उतने ही हमारे पाप काटेंगे।
यह मन्त्र श्री कृष्ण जी का महामंत्र है जिसके माध्यम से कृष्ण का आशीर्वाद सुगमता से प्राप्त होता है।
इस मन्त्र का अर्थ है की ये प्रभु आप सभी को आकर्षित करने वाले हैं। आप मुझे भी भक्ति की तरफ आकर्षित कीजिए।
आप गोविन्द हैं और आप ही मुरारी हैं। श्री कृष्ण गायों के रखवाले हैं, कृष्ण को गोविन्द नाम इंद्र भगवान ने पवित्र जल के छिड़काव के उपरांत प्रदान किया है। श्री कृष्ण स्वंय से भी अधिक ध्यान गाय का रखते थे। मुरारी से आशय है की श्री कृष्ण जी ने मुरा नाम के राक्षश का वध किया था।
हे नाथ आप भगवान हैं, स्वामी हैं और मैं आपका बालक हूँ। आप मेरे प्राणों के रक्षक (वासुदेव) हैं। समस्त दुखों से मेरी रक्षा कीजिए
श्री कृष्ण – हे ईश्वर (समस्त जगत को अपनी और आकर्षित करने वाले)
गोविन्द- श्री कृष्ण को गोविन्द कहा जाता है क्योंकि कृष्ण गायों के परम रक्षक हैं।
हरे – हे दुखों को हर लेने वाले, दुःख भजन।
मुरारी- मेरे अवगुणों को हर लीजिए, जैसे आपने मुरा नाम के राक्षश का वध किया था।
हे नाथ – हे स्वामी, हे ईश्वर।
नारायण – आप ईश्वर हैं। मैं आपका बालक (नर ) वहीँ आप नारायण हैं, मुझे भक्ति दीजिए।
वासुदेवा- वसु से आशय प्राण से है, आप मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए।
हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने ज्ञानी जन के कल्याण के लिए मंत्र जप तप आदि का विधान बताया। पर आमजन जिन्हें कुछ भी नहीं पता है उनके लिए ऐसा क्या हो सकता है कि उन्हें भी स्वर्ग की प्राप्ति हो। तो इसके लिए उन्होंने सरल से मंत्र बनाएं जिनमें हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे जैसे मंत्र व राम नाम जैसे सरल मंत्र शामिल है। इसी तरह श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी ये भगवान श्री कृष्ण के 5 नामों का एक गुच्छा बनाया जिसका जाप करने से समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और अंत में वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि जो जिस देवता को पूछता है वह उसे ही प्राप्त होता है इसलिए यदि आप भगवान श्री हरि विष्णु को पूजेंगे तो वैकुंठधाम की प्राप्ति होगी।
भगवान श्री हरि विष्णु के नाम की क्या महिमा है इसको जानने के लिए एक कथा आती है। जिसे अजामिल की कथा कहा जाता है।
भगवान की शरण में रहने वाले विरले भक्तों के पाप श्री भगवान के नामोच्चारण से ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे सूर्य उदय होने पर कोहरा नष्ट हो जाता है। जिन्होंने अपने हृदय में
श्री कृष्ण के चरण कमल का स्मरण रख लिया तो समझो उन्होंने सारे प्रायश्चित कर लिए। वे स्वप्न में भी यमराज और उनके पाशधारी दूतों को नहीं देखते।Shri krishn govind
अजामिल बड़ा ही शास्त्रज्ञ शीलवान, सदाचारी व सदगुणों वाला व्यक्ति था। वह गुरु, अग्नि, अतिथि और वृद्ध पुरुषों की सेवा करता था। वह समस्त प्राणियों का हित चाहता, उपकार करता, आवश्यकता के अनुसार ही बोलता और किसी के गुणों में दोष नहीं ढूँढ़ता था।
एक दिन वन से फल-फूल, समिधा व कुश लाते समय अजामिल ने एक युवक को शराब पीकर एक वेश्या के साथ विहार करते हुए देखा। वेश्या भी शराब पीकर अर्द्धनग्न अवस्था में मतवाली हो रही थी। अजामिल उन्हें इस अवस्था में देखकर सहसा मोहित व काम के वश हो गया। उस वेश्या को अजामिल पाना चाहता था। वह उसे प्रसन्न करने के लिए अपने धर्म से विमुख हो नीच कर्म करके धन कमाने लगा था। उस वेश्या से अजामिल में विवाह कर लिया।
वह वेश्या की प्रत्येक कामना की तुष्टि के लिए तरह-तरह के दुष्कर्मों में लिप्त होता गया। उसने चोरी, डकैती और लूट-पाट शुरू कर दिए। हत्याएँ करने लगा तथा किसी भी प्रकार से धन प्राप्ति हेतु अन्यायपूर्ण कर्म करके उसे सन्तुष्टि प्राप्त होने लगी। स्थिति यह हुई कि वेश्या से अजामिल को नौ पुत्र प्राप्त हुए तथा दसवीं सन्तान उसकी पत्नी के गर्भ में थी।
एक दिन कुछ सन्तों का समूह उस ओर से गुजर रहा था। रात्रि अधिक होने पर उन्होंने उसी गांव में रहना उपयुक्त समझा, जिसमें अजामिल रहता था। गाँव वालों से आवास और भोजन के विषय में चर्चा करने पर गाँव वालों ने मजाक बनाते हुए साधुओं को अजामिल के घर का पता बता दिया। सन्त समूह अजामिल के घर पहुँच गया। उस समय अजामिल घर पर नहीं था। गाँव वालों ने सोचा था कि आज ये साधु निश्चित रूप से अजामिल के द्वार पर अपमानित होंगे तथा इन्हें पिटना भी पड़ेगा। आगे से ये स्वयं ही कभी इस गाँव की ओर कदम नहीं रखेंगे। सन्त मण्डली ने उसके द्वार पर जाकर नारायण नाम का उच्चारण किया। घर में से उसकी वही वेश्या पत्नी बाहर आई और साधुओं से बोली- “आप शीघ्र भोजन सामग्री लेकर यहाँ से निकल जायें अन्यथा कुछ ही क्षणों में अजामिल आ जायेगा और आप लोगों को परेशानी हो जायेगी।” उसकी बात सुनकर समस्त साधुगण भोजन की सूखी सामग्री लेकर उसके घर से थोड़ी ही दूरी पर एक वृक्ष के नीचे भोजन बनाने का उपक्रम करने लगे। भोजन बना, भोग लगा और सन्तों ने जब पा लिया, तब विचार किया कि यह भोजन किसी संस्कारी ब्राह्मण कुलोत्पन्न के घर का है। किन्तु समय के प्रभाव से यह कुसंस्कारी हो गया है।
सभी सन्त पुन: फिर से अजामिल के घर पहुँचे। उन्होंने बाहर से आवाज़ लगाई। अजामिल की स्त्री बाहर आई। सन्तों ने कहा- “बहन हम तुमसे एक बात कहने आये हैं।” स्त्री ने बताने के लिए कहा। सन्तों ने कहा- “तुम्हारे यहाँ जन्म लेने वाले शिशु का नाम ‘नारायण’ रखना।” संतगणों के ऐसा कहने पर अजामिल की स्त्री ने उन्हें ऐसा ही करने का वचन दिया। अजामिल की स्त्री ने दसवीं सन्तान के रूप में एक पुत्र को ही जन्म दिया, और उसका नाम ‘नारायण’ रख दिया। नारायण सभी का प्रिय था।
अब अजामिल स्त्री और अपने पुत्र के मोह जाल में लिपट गया। कुछ समय बाद उसका अंत समय भी नजदीक आ गया। अति भयानक यमदूत उसे दिखलाई पड़े। भय और मोहवश अजामिल अत्यंत व्याकुल हुआ। अजामिल ने दु:खी होकर नारायण! नारायण! पुकारा। भगवान का नाम सुनते ही विष्णु पार्षद उसी समय उसी स्थान पर दौड़कर आ गए। यमदूतों ने जिस फाँसी से अजामिल को बांधा था, पार्षदों ने उसे तोड़ डाला। यमदूतों के पूछने पर पार्षदों ने धर्म का रहस्य समझाया। यमदूत नहीं माने। वे अजामिल को पापी समझकर अपने साथ ले जाना चाहते थे। तब पार्षदों ने यमदूतों को डांटकर वहाँ से भगा दिया। हारकर सब यमदूतों ने यमराज के पास जाकर पुकार की। तब धर्मराज ने कहा कि “तुम लोगों ने बड़ा नीच काम किया है। तुमने बड़ा अपराध किया है। अब सावधान रहना और जहाँ कहीं भी, कोई भी किसी भी प्रकार से भगवान के नाम का उच्चारण करे, वहाँ मत जाना।” यमराज ने यमदूतों से कहा “अपने कल्याण के लिए तुम लोग स्वयं भी ‘हरी’ का नाम और यश का गान करो।”
आइए जानते हैं ” इस के लाभ:
इस मंत्र के जाप से सम्मोहक आभा प्राप्त होती है अर्थात यह मंत्र व्यक्ति की आकर्षण शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। यह मंत्र मानसिक शांति प्रदान करने वाला है। इसको जाप करने वाले लोग हमेशा खुश रहते हैं और उनके मन में एक प्रकार की विशेष शांति बनी रहती है। जीवन के कष्ट उन्हें परेशान तो करते हैं पर दुखी नहीं कर पाते।
यह आय के स्रोत खोलने और व्यक्ति को समृद्ध बनाने में मदद करता है।
अगर किसी को आध्यात्मिक विकास चाहिए तो भी यह मंत्र बहुत मदद करेगा।
“श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा” मंत्र व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं से भी बचाता है, काले जादू से भी बचाता है ।
इसके जप से जीवन में खुशियों का प्रवेश होता है।
व्यक्ति को रिश्तों में सफलता मिलती है। इस मंत्र का जाप सफल करियर, सफल सामाजिक जीवन, सफल प्रेम जीवन आदि बनाने में मदद करता है।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा मंत्र के दुष्प्रभाव क्या हैं?
इस मंत्र का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। इसमें किसी भी तरह के तांत्रिक, डामर या बीज मन्त्रों का प्रयोग नहीं हुआ है। इसमें कोमल मंत्र और हरेक मानते को अलग महत्व है इसमें एक एक मंत्र को अलग भी बोलेंगे तो वह उतना ही प्रभावी होगा। जीवन में सफलता व समृद्धि के लिए इसे नियमित जपें।
इसे कब जपना चाहिए ?
हिन्दू पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त से जप प्रारंभ कर सकते हैं। इसे किसी भी बुधवार, बृहस्पतिवार एकादशी व अष्टमी तिथि से आरम्भ किया जा सकता है।
इस मंत्र को सुनने से भी उतना ही लाभ मिलता है यदि अब इसका जाप नहीं कर सकते तो आप इसे घर में पूरे दिन बजने दीजिए किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में जैसे मोबाइल या कंप्यूटर या होम थिएटर में लगा कर बजा कर छोड़ दीजिए। और सुनते रहिए अपना काम करते रहिए। इस मंत्र का प्रभाव से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर चली जाती है।
अगर आप इसे जपना चाहते हैं तो उसके लिए ऊनी आसन या कंबल का प्रयोग करें।सर्वोत्तम परिणामों के लिए इस मंत्र का जाप एक निश्चित समय पर करें।
भगवान कृष्ण या श्री हरी विष्णु जी की एक तस्वीर स्थापित करें,
एक दीपक, गुगल की धूप दे और फिर इस “श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा” मंत्र का जाप करना शुरू करें।
सर्वोत्तम परिणाम के लिए सुबह ब्रम्ह मुहरत में इसका जाप करें।
इसके जाप की कोई निश्चित सीमा नहीं है इसलिए रोजाना कम से कम एक माला जरूर करें।