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Shri Yantra

श्री यंत्र क्या होता है? इसका धार्मिक, आध्यात्मिक पर वैज्ञानिक क्या महत्व है? इसका कैसे चयन करें? तथा इसे कैसे स्थापित करें? जिससे आपके घर में स्वास्थ्य धनधान्य तथा ऐश्वर्या बना रहे। Shri Yantra,

ज्योतिष शास्त्र में तंत्र, मंत्र और यंत्र का अपना एक अलग स्थान है। यंत्र शास्त्र में मनचाही इच्छा पूरी करने के लिए उपाय के रूप में कुछ विशेष उपकरणों को बनाया जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार श्री यंत्र की विधिवत तरीके से पूजा पाठ करने पर आपके घर में सुख समृद्धि आती है और आपकी सभी आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती हैं।
श्री यंत्र जिसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली यंत्र माना जाता है। इसे यन्त्र राज भी कहा जाता है। इसे अपने घर या ऑफिस में सही तरीके से स्थापित करने पर आप हर तरह की समस्याओं से खुद को बचा सकते हैं। श्री यंत्र को संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक भी माना जाता है। इस यंत्र को माता लक्ष्मी का यंत्र कहा जाता है। मुख्य रूप से इस यंत्र की पूजा आर्थिक समस्याओं को दूर करने के लिए होता है। माता लक्ष्मी का यह यंत्र आपको धनवान बना सकता है। पर यह यन्त्र आपकी मानसिक शक्ति को बढ़ने में भी काम आता है। वह प्रयोग बाद में बताएँगे।

समाज में अनेक लोग अपने लिए धन, संपत्ति, नौकरी, व्यवसाय व विवाह के लिए यंत्र शक्ति का उपयोग करते हैं।
देवी लक्ष्मी की कृपा दृष्टि पाने के लिए श्रीयंत्र की स्थापना व पूजा करी जाती है।
श्रीयंत्र का अर्थ

श्री शब्द का अर्थ होता है लक्ष्मी, सरस्वती, कांति व तेज इसलिए जब हम किसी को श्रीमान कहते हैं तो इसका मतलब होता है वह व्यक्ति लक्ष्मी वान बुद्धिमान व तेजवान होता है। इसीलिए व्यक्ति को सम्मान में श्रीमान कहा जाता है। विष्णु जी को श्री हरि विष्णु कहते हैं इसलिए क्योंकि वह मां लक्ष्मी के स्वामी कहे जाते हैं। और यंत्र मतलब उपकरण होता है मतलब मां लक्ष्मी का उपकरण जिससे मां लक्ष्मी सदैव आपके घर में विराजमान रहेंगी। उस यंत्र के रूप में प्रयोग किया जाता है जिसकी साधना से धन-संपत्ति और विद्या आदि की प्राप्ति होती है। इस यंत्र को असाधारण शक्तियों और चमत्कारों से भरी हुई विभिन्न गुप्त शक्तियों का उदगम बिन्दु भी माना जाता है। इस यंत्र को महात्रिपुरी सुंदरी देवी का पूजा स्थल भी माना जाता है। कहते हैं कि यह एक अकेला ऐसा यंत्र है जिसकी पूजा करने से समस्त देवी-देवताओं की पूजा एक साथ हो जाती है।

श्री यंत्र की स्थापना करने से आपके व्यापार में वृद्धि होती है नौकरी में तरक्की मिलती है।
इस यंत्र की स्थापना से आपका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है।
मात्र इस यंत्र की स्थापना से ही घर के सभी वास्तु दोष दूर होते हैं।
बच्चों की शिक्षा के स्थान पर श्री यंत्र रखने से उनमें एकाग्रता बढ़ती है।
तांबे का श्री यंत्र रखने से आपकी सभी इच्छाएं पूरी होती है।
दीपावली या किसी भी शुभ अवसर या त्यौहार के दिन इस यंत्र की विधिवत तरीके से पूजा अर्चना करने को साल भर आर्थिक समस्याएं नहीं होती हैं।
चांदी का श्री यंत्र किसी को गिफ्ट करना सबसे उत्तम माना जाता है।

श्रीयंत्र की उत्पति में एक पौराणिक कथा है जो इस प्रकार है। कथा के अनुसार एक बार कैलाश मानसरोवर के पास आदि शंकराचार्य ने कठोर तप करके शिवजी को प्रसन्न किया। जब शिवजी ने वर मांगने को कहा, तो शंकराचार्य ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा। शिवजी ने शंकराचार्य को साक्षात लक्ष्मी स्वरूप श्रीयंत्र व श्रीसूक्त के मंत्र दिए।
एक अन्य कथा के अनुसार लक्ष्मी जी अप्रसन्न होकर वैकुंठ चली गई। तब महृषि वशिष्ठ ने भगवान नारायण की आराधना की। भगवान विष्णु ने विशिष्ट जी के साथ लक्ष्मी जी के पास जाकर उन्हें मनाने की कोशिश की। परंतु माता लक्ष्मी ने धरती पर आने से इंकार कर दिया। वह देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास गए और बृहस्पति ने श्री यंत्र की विधि पूर्वक स्थापना कर माता लक्ष्मी को धरती पर पुनः बुला लिया। लक्ष्मी जी ने कहा कि मेरी आत्मा श्री यंत्र है जिस स्थान पर श्री यंत्र होगा मैं वही विराजमान रहूंगी।

भारद्वाज मुनि व कणाद ऋषि ने भी श्री यन्त्र का वर्णन किया है। श्रीयंत्र परम ब्रह्मा स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महात्रिपुर सुंदरी का आराधना स्थल है, क्योंकि यह चक्र ही उनका निवास और रथ है। उनका सूक्ष्म शरीर व प्रतीक रूप है। श्रीयंत्र के बिना की गई राजराजेश्वरी, कामेश्वरी त्रिपुरसुंदरी की साधना पूरी सफल नहीं होती। त्रिपुरी सुंदरी के अधीन समस्त देवी-देवता इसी श्रीयंत्र में आसीन रहते हैं। त्रिपुर सुंदरी को शास्त्रों में विद्या, महाविद्या, परम विद्या के नाम से जाना जाता है। वामकेश्वर तंत्र में कहा गया है- सर्वदेवमयी विद्या। दुर्गा सप्तशती में भी कहा गया है- विद्यासी सा भगवती परमा हि देवी। जिनका मतलब है कि हे देवि तुम ही परम विद्या हो।

श्री यंत्र कौन सी दिशा में लगाना चाहिए?
शास्त्रों के अनुसार, भगवान कुबेर धन के स्वामी देव हैं। कुबेरजी का पूजन जब देवी लक्ष्मीजी के साथ किया जाता है तो वह शीघ्र प्रसन्न होते है। इनकी कृपा से धन वैभव और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, कुबेर जी उत्तर दिशा के स्वामी हैं इसीलिए घर की उत्तर दिशा में ही स्थापित करें।

श्री यंत्र कितने प्रकार का कितना बड़ा, व किस धातु का होना चाहिए?
तंत्र राजतंत्र नाम का एक ग्रंथ है उसमें कहा गया है कि श्री यंत्र सोने, चांदी अथवा तांबे का ही बना होना चाहिए।
सोने का श्री यंत्र राज्य सुख दिलाने वाला
चांदी का श्री यंत्र परिवार में स्वास्थ्य दिलाने वाला
व तांबे का श्री यंत्र ऐश्वर्या दिलाने वाला होता है।
आप तीनों की मिश्रित धातु का भी श्रीयंत्र बनवा सकते हैं ज्यादातर लोग ऐसा ही करते हैं। इसका वजन कम से कम 200 ग्राम का होना चाहिए। यह चार प्रकार का होता है पहला भूपृष्ठ यानि जमीं में हल्का सा उभरा होता है।
दूसरा कूर्मपृष्ठ यानि कछुए की पीठ पर पिरामिड की तरह बना होता है।
तीसरा मेरुपृष्ठ यानि पिरामिड की तरह बना होता है।
चौथा जो बाजार में सबसे सस्ता और सुलभ होता है। इसे तांबे के पत्र पर उकेरा भी गया होता है। ध्यान दीजिए कि कभी भी ऐसा श्रीयंत्र नहीं लेना चाहिए जो तांबे के पत्र पर अंदर की ओर बनाया गया हो। जी उभरा हुआ हो वही लें।

उत्तराखंड के श्रीनगर में अलकनंदा नदी के किनारे एक उल्टा श्रीयंत्र पड़ा हुआ है। यह विनाशकारी श्री यंत्र कहा जाता है जब यह सीधा था तो जो भी इसके करीब जाता था उसे उसकी मृत्यु हो जाती थी। वहां के राजा ने कोलासुर नाम के एक राक्षस के विनाश के लिए इसे बनाया था। राक्षस का तो विनाश हो गया लेकिन उसके बाद इस श्री यंत्र के प्रभाव से अन्य लोग भी मारे जाने लगे। एक बार शंकराचार्य जी वहां पहुंचे उन्होंने अपने तपोबल से इसे उल्टा कर दिया। इसके द्वारा मचाए जाने वाला उत्पाद थम गया। तब से लोगों द्वारा कहा जाता है कि श्री यंत्र नुकसान भी कर सकता है। क्योंकि इसमें तंत्र की चौसठ योगिनीया विराजमान होती हैं।

इसे घर में कब लाना चाहिए?
गुरु पुष्य नक्षत्र, रवि पुष्य नक्षत्र, अक्षय तृतीया, धनत्रयोदशी, दीपावली, नववर्ष प्रतिपदा, पूर्णिमा, एकादशी, त्रयोदशी या शुक्रवार के दिन ही इसे घर में लेकर आना चाहिए। तथा स्थापित भी करना चाहिए। इसकी प्राण प्रतिष्ठा जरूर कराएं। इसकी प्राण प्रतिष्ठा किसी पंडित को बुलाकर करा लें तो ज्यादा अच्छा है। आप अगर तांबे का भी कम से कम 200 से 500 ग्राम का श्री यंत्र लाते हैं तो उसकी कीमत भी हजारों रुपए होगी तो किसी पंडित को बुलाकर प्राण प्रतिष्ठा करा लें तो ज्यादा बेहतर रहेगा।

श्री यंत्र का वैज्ञानिक विश्लेषण।
अब मैं आपको बताता हूं कि श्री यंत्र कैसे शक्तिशाली यंत्र है। अगर आप मेरुपृष्ठ यानी पिरामिड जैसा दिखने वाला श्री यंत्र अपने घर में स्थापित करते हैं तो उसके औरा से आपके घर की सारी नेगेटिव एनर्जी समाप्त हो जाएगी। आपको पता होगा कि पिरामिड वास्तु नाम का एक पूरा एक सब्जेक्ट ही होता है। जिसमें छोटे-छोटे पिरामिड्स आपके घर में लगाकर वास्तु को दूर किया जाता है। श्री यंत्र भी उसी टेक्नॉलजी का हिस्सा है जो ऊर्जा के प्रवाह को व्यवस्थित कर देता है। जिससे आपके घर में ढेरों लाभ आते हैं।

अब हम बात करते हैं कि कैसे यह एक ध्यान का यंत्र है जो आपकी सारी दिमाग की शक्ति को कई गुना तक बढ़ा सकता है। आप में विवेकानंद जी की तरह फोटोग्राफिक मेमोरी डिवेलप कर सकता है। इसके नियमित अभ्यास से आपकी एकाग्रता कई गुना बढ़ जाती है।

आप बिना मंत्रों लिखे हुए कागज पर श्री यंत्र को डाउनलोड कर लीजिए। इसे दीवार पर अपने चेहरे जितनी उचाई पर चिपका दें। और उससे लगभग 3 से 4 फूट की दुरी पर बैठ जाएँ। उसके बीच में एक बिंदु होता है उसे एक तक बिना पलके झपकाए देखते रहें। इसमें 9 ट्रायंगल बने हुए हैं चार ऊपर की तरफ व पांच नीचे की तरफ।
10 सेकंड बाद ही आपको नीचे के ट्रैंगल और ऊपर के त्रिकोण बदलते नज़र आएंगे। आप कह कर भी इसे रोक नहीं पाएंगे। यह आपके लेफ्ट ब्रेन और राइट ब्रेन दोनों की एक्सरसाइज करता है।

आपको कभी ऊपर वाले त्रिकोण दिखाई देंगे और कभी नीचे वाले। क्योंकि कभी आपका लेफ्ट ब्रेन इसपर फोकस करता है तो कभी राइट ब्रेन इस पर फोकस करता है। इन दोनों के बीच समन्वय बैठें मुश्किल हो जाता है। अगर आप केवल आधा मिनट नीचे वाले ट्रायंगल पर फोकस कर पाए या ऊपर वाले ट्रायंगल पर फोकस कर पाए तो आपका फोकस यानी एकाग्रता की शक्ति कई गुना बढ़ जाएगी। अगर यह आप करके देख सकते हैं।

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