नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है। इंग्लिश में भगवान को गॉड कहा गया है जी मतलब जेनरेटर यानि पैदा करने वाला। ओ मतलब ऑपरेटर यानी चलाने वाला। और डी यानी डिस्ट्रॉयर समाप्त करने वाला। इस तरह से विद्वानों द्वारा इसकी व्याख्या की जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों में त्रिदेव यानी तीन देवता ब्रह्मा विष्णु और महेश प्रमुख माने जाते हैं। जिसमें ब्रह्मा जी ने सृष्टि बनाई यानी कि वो जनरेटर हैं। भगवान विष्णु जो सभी जीवो की छोटी से छोटी गतिविधि उनके भुत भविष्य और वर्तमान उनके भाग्य, यहां तक कि उनकी हर एक सांस को चलने के लिए जिन नियमों की जरूरत पड़ती है। उन नियमों के अनुसार भगवान विष्णु पूरी दुनिया को चलाते हैं। जो ऑपरेटर कहे जाते हैं यानि सृष्टि के संचलक। और डिस्ट्रॉयर यानि महाकाल हिन्दू दर्शन में कहा जाता है की जो भी पैदा हुआ है उसका अंत होगा ही चाहे वह स्वाम ब्रम्हा ही क्यों न हो। यह अंत महाकाल के द्वारा होता है। जिन्हें हम महादेव शंकर व शिव के नाम से जानते हैं। कोई भी चीज पैदा होती है, फिर वह अपना जीवन काल जीती है और अंत में समाप्त हो जाती है ताकि वह दोबारा से जन्म ले सके। vishnu sahasranamam
भगवान विष्णु देवी भगवती के साथ मिलकर पूरी सृष्टि को चलाते हैं जिसमें इसीलिए विष्णु सहस्त्रनाम एक ऐसा स्त्रोत है जो हर तरह की समस्या या पीड़ा का समाधान है। आइए हम यह भी जानते हैं कि क्यों विष्णु सहस्त्रनाम यानी भगवान विष्णु के 1000 नाम बहुत ही प्रभावकारी हैं। इनका ज्योतिष से क्या सम्बन्ध है। जैसा कि आप जानते हैं कि भगवान विष्णु सृष्टि को चलाते हैं। सभी ग्रह भगवान विष्णु से ही किसी ना किसी तरह से जुड़े हुए हैं। सृष्टि को जीवन देने वाला ग्रह ग्रह सूर्य के नाम से जानते हैं वह भगवान विष्णु से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। दूसरा ग्रह जो स्वास्थ्य और संपन्नता का ग्रह है जिसे ज्ञानी जन बृहस्पति के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि यदि कुंडली में बृहस्पति की स्थिति मजबूत है तो वह कुंडली के एक लाख दोषों का शमन कर देता है। इसी तरह राहु और केतु भी जो पाप ग्रह कहे जाते हैं वह भी भगवान विष्णु के प्रति अगाध समर्पण रखते हैं। समुद्र मंथन की कथा जिसने न सुनी हो वह जाकर सुने तो उन्हें पता चलेगा कि भगवान विष्णु के कारण ही राहु और केतु की उत्पत्ति हुई थी। इसी तरह शुक्र ग्रह मां भगवती का ग्रह होता है जो भोग विलास का ग्रह है जो बिना भगवान विष्णु की अनुमति के शुक्र अधूरा है। शनि देव मंगल व बुध भगवान विष्णु के भक्त हैं।
विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत संस्कृत के विद्वान महर्षि वेदव्यास जी द्वारा लिखा गया है जिन्होंने महाभारत भागवत गीता पर 18 पुराण लिखें। यह पाठ अत्यंत लाभकारी बताया गया है और जितने भी बड़े संत महात्मा हुए हैं उन्होंने इसे बहुत ही उत्तम स्त्रोत कहा है।
आइए जानते हैं कि इसको पढ़ने से फायदे क्या होते हैं?
यदि कोई अनिद्रा रोग से कोई पीड़ित है तो उसे विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। सोते समय बुरे सपने आते हैं मन में डर रहता है तो भी विष्णु सहस्त्रनाम पढ़ना चाहिए। यह आंतरिक शक्ति देता है और किसी भी तरह की मुसीबत से लड़ने के लिए आपको तैयार रखता है। साथ ही उसको पढ़ने से मन शांत और प्रसन्न रहता है। यह संतानहीनता के लिए यह सबसे अच्छा माना जाता है। कहा जाता है कि विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जन्म जन्मांतर के पाप समाप्त कर देता है। यह पाठ करता को तेजस्वी बनता है तथा उसमे आंतरिक ऊर्जा का संचार करता है। यदि सूर्य या बृहस्पति की कुंडली में स्थिति कमजोर है तो ऐसी स्थिति में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जरूर करना चाहिए। सूर्य की स्तिथि कमजोर होने पर आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ भी किया जा सकता है। इस पाठ को करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है तथा बृहस्पति की पीड़ा दूर होती है यदि विवाह नहीं हो रहा है तो इसका नियमित पाठ करें। संतान पक्ष में कोई भी कठिनाई हो तो यह रामबाण औषधि है। दांपत्य जीवन में यदि दिक्कत आ रही है तो लक्ष्मी व विष्णु जी की मूर्ति स्थापित करें और उसके सामने बैठकर सहस्त्रनाम का जाप करें। इसका पाठ करने से भाग्योदय होता है। भगवान विष्णु सृष्टि के पालक हैं इसलिए विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करने से आपके व्यापार में धीरे-धीरे वृद्धि होती है। आपके परिवार में धीरे-धीरे वृद्धि होती है। आपके जीवन में खुशियों की धीरे-धीरे वृद्धि होती है। इसीलिए कई विद्वानों ने कहा है कि जैसे बृहस्पति कुंडली में बैठकर एक लाख दोषों को दूर करता है ऐसे ही विष्णुसहस्त्रनाम आपके लाख कष्टों को हरता है।
यह पाठ कब करना चाहिए और कैसे कएने चाहिए ?
एकादशी, अनंत चतुर्दशी, देव शयनी और देव उठानी एकादशी, दिवाली, खरमास, पुरुषोत्तम मास, तीर्थ क्षेत्र पर्व आदि के अवसरों पर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है। कुछ लोग इसे नियमित भी करते हैं। ब्राहारपतिवार का व्रत रखे तो विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ जरूर करें। इसे सूर्योदय के समय जब सूर्य की लालिमा आती हो तब पढ़ना चाहिए यानि तक़रीबन 5 बजे के आस पास। पाठ करते समय बीच में कोई अन्य कार्य ना करें। यदि आप पाठ न कर सके तो इसे सुनना भी लगभग उतना ही फल देता है। वैसे तो आप किसी भी रंग के कपड़े पहनकर विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं, लेकिन पीले रंग में वस्त्र पहनना सबसे अच्छा है। ऐसा माना जाता है कि पीला रंग भगवान विष्णु को प्रिय है। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करते समय ऊनी आसन पर बैठना सबसे अच्छा है। विद्वानों का मानना है कि विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करते समय, मंदिर या पूजा क्षेत्र में ‘जल कलश’ या एक गिलास पानी अवश्य रखना चाहिए। इसका पाठ करते समय भोग के रूप में फल, सूखे मेवे या पीले रंग की मिठाई भी चढ़ा सकते हैं। विष्णु सहस्त्रनाम पढ़ने के बाद, उन्हें पानी पीना चाहिए और प्रसाद के रूप में अपने परिवार के सदस्यों को भोजन वितरित करना चाहिए। इससे घर में सदा सम्पन्नता बानी रहती है।