विवाह में देरी के लिए मांगलिक दोष भी बहुत बड़ा कारण है। यदि मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें घर में बैठा हो तो मांगलिक दोष होता है। यदि जातक की कुंडली में मांगलिक दोष है तो उसको विवाह में विलंब होगा।
यदि जातक के सप्तम भाव का स्वामी दुष्ट ग्रहों से पीड़ित है अथवा अपनी नीच राशि में बैठा है या फिर छठे, आठवें या बारहवें भाव में है तो भी विवाह में विलंब होगा।
ज्योतिषों के अनुसार विवाह के लिए ब्रहस्पति और शुक्र ग्रह जिम्मेदार है। ज्योतिष में शुक्र और बृहस्पति का संबंध प्रेम और विवाह से माना गया है।
यदि कुंडली में बृहस्पति ग्रह दुष्ट ग्रहों से पीड़ित हो, सूर्य के प्रभाव में आकर अस्त हो अथवा अपनी नीच राशि मकर में स्थित हो तो वह बलहीन हो जाएगा और इससे जातक को शादी-विवाह में दिक़्क़त का सामना करना पड़ेगा।
शुक्र का नीच होना: यदि जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह कमज़ोर होता है तो उसके जीवन में कोई भी काम पूरा नहीं हो पाता है और इसलिए जातक को अपने विवाह में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
जन्म कुंडली के नौवें अंश को नवांश कुंडली कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस कुंडली से जातक के जीवन साथी के बारे में सटीक अनुमान लगाया जा सकता है इसलिए यदि जातक की इस नवांश कुंडली में दोष हो तो जातक के विवाह में बाधाएँ उत्पन्न होंगी
इसके अलावा शनि, मंगल और सूर्य के कारण भी शादी में कोई न कोई रुकावट आती रहती हैं। ऐसे में ये उपाय अपना सकते हैं। इससे विवाह में आ रही हर अड़चन को खत्म हो जाएगी।