Sarvarist Nivaran Strotr । सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र
सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र Sarvarist Nivaran Strotr,
कुंडली और नवग्रह से उत्पन्न होने वाली सम्पूर्ण समस्याओं का एकमात्र समाधान. Sarvarist Nivaran Strotr,
आज हम आपके लिए एक ऐसा विषय ले कर आए हैं जिसे जान ने कि जिज्ञासा कई लोगों की थी कि ऐसा कोनसा मंत्र या ऐसा कोनसा उपाय है जिस से कुंडली के सभी ग्रह नक्षत्रों के बुरे प्रभाव को ख़तम किया जा सके तो आज हम आपको इस पेज के माध्यम से बताते हैं कि ‘श्री भृगु ऋषि ‘ द्वारा रचित सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र जो कि ‘भृगु ऋषि’ द्वारा अपनी पुस्तक ‘भृगु सहिता’ में दिया गया है जो प्राय: सभी स्त्रोत में सर्वोत्तम है। इस स्त्रोत के पठन मात्र से व्यक्ति अपनी कुंडली में उपस्थित किसी भी प्रकार का ग्रह दोष या फिर भूत-प्रेत और शत्रुओ का डर ही क्यों न हो सम्पूर्ण विजय प्रदान करने वाला है।
‘श्री भृगु ऋषि’ जी ने अपनी पुस्तक ‘भृगु सहिंता’ में ज्योतिष के उपायों के वर्णन के साथ बताया था कि इन सभी समस्याओं को ख़तम करने के लिए कोनसा मंत्र या कोनसा उपाय उपयुक्त है इसी लिए ‘श्री महर्षि भृगु’ ने उसका नाम सर्वारिष्ट निवारण रखा था अर्थात सर्व प्रकार के रिष्ट को ख़तम करने के लिए एक मंत्र (स्तोत्र) आज हम आपको वह स्तोत्र और उसे करने की विधि बताने जा रहे हैं।
सर्वारिष्ट निवारण पाठ का लाभ Benefits of Sarvarist Nivaran Strotr
‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है। इस पाठ के फल-स्वरुप पुत्र-हीन को पुत्र-प्राप्ति होती है और जिसका विवाह नहीं हो रहा हो, उसका विवाह हो जाता है । इसके अतिरिक्त इस स्तोत्र के पाठ के प्रभाव से सभी प्रकार के दोषों – ज्वर, क्षय, कुष्ठ, वात-पित्त-कफ की पीड़ाओं और भुतादिक सभी बाधाओं का निवारण होता है । किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये । विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं । ऐसा करने से अभीष्ट कामना की पूर्ति शीघ्र और अवश्य होती है । इसके पाठ से निर्धन को धन और बेकार को जीविका का साधन – नौकरी, व्यापार आदि की सुविधा प्राप्त होती है ।
भृगु ऋषि कौन है ?
सर्वप्रथम यह जान लेते हैं कि भृगु ऋषि है कौन ताकि इस स्त्रोत की महत्ता आपको समझ में आए। भृगु ने ही भृगु संहिता की रचना की। स्वायंभुव मनु उनके भाई थे जिन्होंने पहली कानून की किताब लिखी जिसे मनु स्मृति के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने ही अग्नि का अविष्कार किया था। ऋग्वेद में भृगुवंशी ऋषियों द्वारा रचित अनेक मंत्रों का वर्णन मिलता है जिसमें वेन, सोमाहुति, स्यूमरश्मि, भार्गव, आर्वि आदि का नाम आता है। ज्योतिष ग्रन्थ भृगु संहिता उन्होंने ही लिखा था।
देवी भागवत के चतुर्थ स्कंध विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद् भागवत में खंडों में बिखरे वर्ण के अनुसार महर्षि भृगु प्रचेता-ब्रह्मा के पुत्र हैं, इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री ख्याति से हुआ था जिनसे इनके दो पुत्र काव्य शुक्र और त्वष्टा तथा एक पुत्री श्रीलक्ष्मी का जन्म हुआ। इनकी पुत्री श्रीलक्ष्मी का विवाह श्रीहरि विष्णु से हुआ। आज भी पारसी लोग ऋषि भृगु की अथवन् के रूप में पूजा करते हैं। पारसी धर्म के लोग भी अग्निपूजक हैं।
भृगु ने संजीवनी विद्या की भी खोज की थी। परम्परागत रूप से यह विद्या उनके पुत्र शुक्राचार्य को प्राप्त हुई। महर्षि भृगु का आयुर्वेद से भी घनिष्ठ संबंध था। अथर्ववेद एवं आयुर्वेद संबंधी प्राचीन ग्रंथों में स्थल-स्थल पर इनको प्रामाणिक आचार्य की भांति उल्लेखित किया गया है। आयुर्वेद में प्राकृतिक चिकित्सा का भी महत्व है। भृगु ऋषि ने सूर्य की किरणों द्वारा रोगों के उपशमन की चर्चा की है। वर्षा रूपी जल सूर्य की किरणों से प्रेरित होकर आता है। वह शल्य के समान पीड़ा देने वाले रोगों को दूर करने में समर्थ है।
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पूजा विधि
आवश्यक सामग्री :
लाल या भगवा रंग का स्वा मीटर कपड़ा, नवग्रह यंत्र, गणपति की तस्वीर या मूर्ति (शिव परिवार की भी ले सकते हैं), तांबे की गड़वी पानी के लिए, धूप, दीप, मिष्ठान, सिंदूर,
तो आपको उसके उपरांत एक थाली लेनी है और उस में नवग्रह यंत्र को रख लेना है और पंचोपचार से गणपति पूजन करें और उसके उपरांत अपने गुरु देव के लिए गुरु मंत्र का जाप कर में में उनसे आज्ञा लें।
।। श्री भृगु संहिता सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र ।।
ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना प्रकार धन वाहन भूमि प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षा कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐगुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयंतोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि ॐ नमो मणिभद्रे जय-विजय-पराजिते भद्रे लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शान्तं कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा)
सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्ति कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व- मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान्रांगान्, अष्टादश कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय आकर्षय.
मम शत्रु मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय विद्वेषय, स्तम्भय स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय छेदय, चौरासी-चेटकान्विस्फोटान् नाशय नाशय, वात शुष्क दृष्टि सर्प सिंह व्याघ्र द्विपद चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः
भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य व्यापि केचिद्देश काल स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षा कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः।
ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।। शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।। शारिका भेदा महामाया पूर्ण आयुः कुरू हेमवती मूलं रक्षा कुरू।
चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विनं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू।
सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।। सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः।
हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्ण कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।
एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं।
शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।।
य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना।
तस्य सर्वान्हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।।
अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्।
संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।।
सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः।
द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।।
किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा।
लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।।
ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि।
शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।।
नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया।
भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।।
इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे।
पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।।
विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः।
सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।
।। श्रीभृगु संहिता सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र सम्पूर्ण ।।
फिर इस मंत्र (स्तोत्र) का 40 दिन तक लगातार शुद्ध और सात्विक रहते हुए नित्य ग्यारह बार जाप करें। और उसके उपरांत नवग्रह आरती करें। आरती के पश्चात आप क्षमा याचना मंत्र का जाप करें। (सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र Sarvarist Nivaran Strotr, )
नवग्रह आरती :
आरती श्री नवग्रहों की कीजै । बाध, कष्ट, रोग, हर लीजै ।।
सूर्य तेज़ व्यापे जीवन भर । जाकी कृपा कबहुत नहिं छीजै ।।
रुप चंद्र शीतलता लायें । शांति स्नेह सरस रसु भीजै ।।
मंगल हरे अमंगल सारा । सौम्य सुधा रस अमृत पीजै ।।
बुद्ध सदा वैभव यश लीये । सुख सम्पति लक्ष्मी पसीजै ।।
विद्या बुद्धि ज्ञान गुरु से ले लो । प्रगति सदा मानव पै रीझे।।
शुक्र तर्क विज्ञान बढावै । देश धर्म सेवा यश लीजे ।।
न्यायधीश शनि अति ज्यारे । जप तप श्रद्धा शनि को दीजै ।।
राहु मन का भरम हरावे । साथ न कबहु कुकर्म न दीजै ।।
स्वास्थ्य उत्तम केतु राखै । पराधीनता मनहित खीजै ।।
क्षमा प्रार्थना मन्त्र :
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
यदि आपके जीवन में भी कुंडली या नवग्रह के कारण किसी भी प्रकार की विकट समस्या आ रही है तो आप इस उपाय का प्रयोग अवश्य करें जिस से आपका जीवन सुखमय और हर्ष पूर्ण व्यतीत हो सके. धन्यवाद
सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र Sarvarist Nivaran Strotr,
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Bahut Accha gyan diya Guru Ji.
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