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How to know the effect of Gandmool Nakshatra | Gand Mool Nakshatra Effects | गण्डमूल नक्षत्र का प्रभाव

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कहीं आपके जीवन में आने वाली परेशानियों का कारण मूल, गंड मूल नक्षत्र तो नहीं? कहीं आप गंड मूल नक्षत्र में तो पैदा नहीं हुए जिसके कारण आपके जीवन में परेशानी आ रही है।
जब बचा पैदा होता है तो लोग ज्योत्षी से पहले यही पूछते हैं। हमारा बच्चा मूलों में तो नहीं है। अनेक ज्योतिष ग्रंथों में गंडात अर्थात गंड मूल नक्षत्र का उल्लेख मिलता है। बृहत् पराशर होरा शास्त्र, जातक पारिजात, जातकाभरणं इत्यादि सभी प्राचीन ग्रंथों में गण्डमूल नक्षत्रों तथा उनके प्रभावों का वर्णन दिया गया है। उनमे बताया गया है की गण्डमूल नक्षत्रों के सभी चरणों का फल अलग-अलग होता है। आइये उसपर संछिप्त चर्चा करा लेते हैं।

कुंडली और नवग्रह से उत्पन्न होने वाली सम्पूर्ण समस्याओं का एकमात्र समाधान

ज्योतिषशास्त्र में अवधारणा है कि गण्डमूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक स्वयं व अपने माता-पिता या अन्य सगे सम्बन्धियों के लिए कष्ट प्रदान करने वाला होता है। जैसे हर ग्रह का शुभ अशुभ प्रभाव होता है जैसे अन्य ग्रहों का शुभ अशुभ प्रभाव होता है, ठीक उसी तरह से गंड मूल नक्षत्रों का भी शुभ अशुभ प्रभाव होता है, इसलिए मूल नक्षत्र या मूलों में पैदा हुआ बच्चा हर बार अशुभ हो यह जरूरी नहीं है।

मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाला बालक नक्षत्र के शुभ प्रभाव में है तो वह सामान्य बालक से कुछ अलग विचारों वाला होता है यदि उसे सामाजिक तथा पारिवारिक बंधन से मुक्त कर दिया जाए तो ऐसा बालक जिस भी क्षेत्र में जाएगा एक अलग मुकाम हासिल करेगा। ऐसे बालक तेजस्वी, यशस्वी, नित्य नव चेतन कला अन्वेषी होते है। यह इसके अच्छे प्रभाव हैं। (Gand Mool Nakshatra)

अगर वह अशुभ प्रभाव में है तो इसी नक्षत्रों में जन्मा बच्चा क्रोधी, रोगी, ईर्ष्यावान होगा इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। इस अशुभता की शुभता के लिए गण्डमूल दोष की विधिवत शांति करा लेना चाहिए।

कैसे बनता है मूल नक्षत्र?

राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर उदय और मिलन के आधार पर गण्डमूल नक्षत्रों का निर्माण होता है। इसके निर्माण में कुल छह 6 स्थितियां बनती हैं। इसमें से तीन नक्षत्र गण्ड के होते हैं और तीन मूल नक्षत्र के होते है। ये दो ग्रहों के नक्षत्र है पहला केतु दूसरा बुध। आपने तुलसीदास जी का नाम सुना होगा, जिन्होंने रामचरित्र मानस की रचना की थी। वह भी गंड मूल नक्षत्र में पैदा हुए थे और कहा जाता है कि अपने जीवन काल में उन्होंने बड़े कस्ट उठये। मुट्ठी भर अन्य के लिए भी उन्हें कई बार तरसना पड़ जाता था प्रत्येक व्यक्ति पर नक्षत्र के अनुसार अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। अश्विनी कुमार अश्लेषा बुध सर्प, मघा केतु पितृ, ज्येष्ठा बुध इंद्र, मूल केतु राक्षस,रेवती बुध सूर्य, कैसे बनता है गण्डमूल योग?

केतु के पहले गण्डमूल नक्षत्र को अश्विनी नक्षत्र कहा जाता है। अश्विनी नक्षत्र मेष राशि में शून्य अंश से प्रारम्भ होकर तेरह अंश बीस मिनट तक रहता है। जन्म के समय यदि चंद्रमा इन अंशों के मध्य स्थित हो तो यह गण्डमूल नक्षत्र में जन्म का समय माना जाता है।

अश्विनी नक्षत्र


अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर जीवन में अनेक कठिन परिस्थितियों एवं परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने पर बच्चा पिता के लिए थोड़ा कष्टकारी हो सकता है। लेकिन इस कष्ट को किसी भी नकारात्मकता के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। इसके लिए कुण्डली के अन्य बहुत से योगों का आंकलन भी किया जाना चाहिए। जब तक केतु की दशा है तब तक थोड़ी परेशानी रहेगी। यानि ज्यादा से ज्यादा 7 वर्ष। उसके बाद प्रभाव समाप्त हो जाता है।

अश्विनी नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म लेने वाले बच्चे को जीवन में सुख व आराम प्राप्त होता हैं।
अश्विनी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक को जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त होने के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। जातक मित्रों से लाभ प्राप्त करता है। घूमने-फिरने में उसकी रूचि अधिक हो सकती है या किसी एक स्थान पर टिके रहना उसे अच्छा नहीं लगेगा।
अश्विनी नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने पर जातक को राज सम्मान की प्राप्ति अथवा सरकार की ओर उपहार आदि की प्राप्ति हो सकती है। इसके साथ ही जातक को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड सकता है।

मघा नक्षत्र

यह केतु का नक्षत्र है। सिंह राशि के प्रारम्भ के साथ मघा नक्षत्र का उदय होता है। सिंह राशि में जब चंद्रमा शून्य से लेकर तेरह अंश और बीस मिनट तक रहता है।
मघा नक्षत्र के प्रथम चरण में यदि किसी बच्चे का जन्म होने से माता को कष्ट होने की संभावना बनती है।
इस नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म लेने से पिता को कोई कष्ट या हानि का सामना करना पड़ सकता है।
मघा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म लेने पर बच्चे को जीवन में सुखों की प्राप्ती होने की संभावना बनती है।
यदि बच्चे का जन्म मघा नक्षत्र के चौथे चरण में होता है तब उसे कार्य क्षेत्र में स्थायित्व प्राप्त होता है। इस नक्षत्र में जन्म होने के कारण बच्चा उच्च शिक्षा भी ग्रहण करते हैं।

मूल नक्षत्र

यह केतु का नक्षत्र है, जब चंद्रमा धनु राशि में शून्य से तेरह अंश और बीस मिनट के मध्य स्थित होता है तब इस नक्षत्र का उदय होता है। जब बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में होने से पिता के जीवन में कई प्रकार के अच्छे- बुरे परिवर्तन होने लगते हैं।
मूल नक्षत्र के द्वितीय चरण में बच्चे का जन्म वैदिक ज्योतिष में माता के लिए अशुभ माना गया है इस चरण में बच्चे का जन्म होने से माता का जीवन कष्टपूर्ण रहने की संभावना बनती है।
मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ हो तब उसकी संपत्ति के नष्ट होने की संभावना बनती है। इस चरण में जन्म लेने वाले जातक का संपत्ति से वंचित रहना देखा जा सकता है।
मूल नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने पर जातक सुखी तथा समृद्ध ही रहता है लेकिन यदि शांति कराई जाये तब ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस चरण में जन्म लेने पर बच्चे को अपने जीवन में एक बार हानि उठानी पड़ सकती है।

आश्लेषा नक्षत्र

यह बुध का नक्षत्र है जब चन्द्रमा कर्क राशि में 16 अंश और 40 मिनट से 30 अंश तक रहता है तो उस समय आश्लेषा नक्षत्र रहता है।

आश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म होने पर किसी तरह का कोई विशेष अशुभ नहीं परंतु धन की हानि उठानी पड़ सकती है यदि इसकी शांति पूजा हो तो यह शुभ फल प्रदान करता है।
आश्लेषा नक्षत्र के द्वितीय चरण में जन्म होने पर बच्चा अपने बहन-भाईयों के लिए कष्टकारी हो सकता है। या जातक अपनी संपत्ति को नष्ट कर सकता है।
आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म हुआ है तो माता तथा पिता दोनों को ही कष्ट सहना पड़ सकता है।
आश्लेषा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म हुआ है तो पिता को आर्थिक हानि तथा शारीरिक कष्ट सहना पड़ता है।

ज्येष्ठा नक्षत्र

वृश्चिक राशि में 16 अंश 40 मिनट से 30 अंश तक ज्येष्ठा नक्षत्र होता है। इसके स्वामी बुध हैं।
भारतीय वैदिक ज्योतिषानुसार ज्येष्ठा नक्षत्र को अशुभ नक्षत्रों की श्रेणी में रखा गया है. ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने से बच्चे के बड़े भाई-बहनों को कई प्रकार के कष्टों को सहना पड़ सकता है।
इसी तरह द्वितीय चरण में जन्म लेना छोटे भाई – बहनों के लिए अशुभ देखा गया है. उन्हें शारीरिक अथवा अन्य कई तरह के कष्ट हो सकते हैं।
इसके तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक की माता को स्वास्थ्य की दृष्टि से कष्ट बने रहने की संभावना बनती है।
इस नक्षत्र चरण में जन्म लेने से जातक स्वयं के लिए अच्छा नहीं रहता। उसे कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। ज्येष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को जीवन में कठिन परिस्थितियों व जटिलताओं का सामना करना पडता है। इस चरण में जन्म होने के कारण जीवनभर दु:ख और पीड़ा का सामना करना पड़ता है।

रेवती नक्षत्र

मीन राशि में 16 अंश 40 मिनट से 30 अंश तक रेवती नक्षत्र होता है। यह भी बुध का नक्षत्र है।
यदि जन्म रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ है तो जीवन सुख और आराम में व्यतीत होता है। जातक आर्थिक रूप से सम्पन्न और सुखी रहता है।
रेवती नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपनी मेहनत, बुद्धि एवं लगन से नौकरी में उच्च पद प्राप्त करते हैं तथा व्यवसायिक रूप से कामयाब हो जाते हैं। लेकिन फिर भी बच्चे को बड़े होकर कुछ भूमि की हानि हो सकती है।
रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म होने पर जातक को धन-संपत्ति का सुख तो प्राप्त होता है तथा साथ- साथ धन हानि की भी संभावना बनी रह सकती है।
रेवती नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म लेने वाला जातक स्वयं के लिए कष्टकारी साबित होता है। लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने माता-पिता दोनों के लिए ही कष्टकारी सिद्ध हो सकते हैं। उनका जीवन काफी संघर्ष से गुजर सकता है।

करें ये उपाय

यदि बच्चे का जन्म गंडमूल नक्षत्र में हुआ है तो उसके पिता को चाहिए कि अपने बच्चे का चेहरा
न देखे और तुरंत पिता कि जेब में फिटकरी का टुकड़ा रखवा दे। इसके बाद 27 दिन तक परोज 27 मूली पत्ते बच्चे के सिर कि तरफ रख दे और फिर उसे दुसरे दिन चलते पानी में बहा देना चाहिए। यह क्रिया 27 दिनों तक नियमित करना चाहिए। इसके बाद 28वें दिन विधिवत पूजा करके बच्चे को देखना चाहिए।

जिस बच्चे का जन्म इस नक्षत्र में जन्म हुआ है उससे सम्बन्धित देवता तथा ग्रह की पूजा करनी चाहिए। इससे नक्षत्रों के नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है। अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में जन्में जातकों को गणेशजी की पूजा अर्चना करने से लाभ मिलता है।
आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में जन्में जातकों के लिए बुध ग्रह की अराधना करना चाहिए तथा बुधवार के दिन हरी वस्तुओं का दान करना चाहिए।

गण्डमूल दोष निवारण पूजा
गण्डमूल दोष निवारण पूजा, शिशु के जन्म लेने के 27 दिन बाद उसी नक्षत्र में (जिस नक्षत्र में शिशु का जन्म होता है) करवाई जाती है। इस पूजा में संबंधित नक्षत्र से जुड़े मंत्र का 11,000 बार जप किया जाता है। पूजा में 27 अलग-अलग जगहों का पानी एकत्रित किया जाता है, 27 अलग-अलग पेड़ की लकड़ियों से हवन किया जाता है।
पूजा होने के बाद 27 पंडितो को दक्षिणा दी जाती है, जातक द्वारा पहने गए वस्त्रो का त्याग करना पड़ता है ,विधिवत बहुत सी सामग्री एकत्र कर हवन पूजन होता है । शास्त्रों में वृहत विवरण मूल शांति का उपलब्ध है | यह पूजा जीवन में एक बार अवश्य करानी चाहिए अन्यथा उस व्यक्ति का जीवन बहुत ही कष्टकारी होता है।

यदि आप 27 दिनों में यह पूजा नहीं करवा पाए है तो निराश होने की जरूरत नहीं है |इसकी पूजा 27 माह ,अथवा 27 वर्ष की आयु तक कभी भी करवाई जा सकती है |जिस नक्षत्र पर जन्म होता है उसी नक्षत्र पर ही यह पूजा होती है |इसे सत्तैसा भी कहते है |

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