Basant Pancmi ।। बसंत पंचमी
बसंत पंचमी (Basant Pancmi) हिंदुओं के त्यौहार में ऐसा त्यौहार है जिसे आजकल के लोग ठीक से सेलिब्रेट नहीं करते। यह हिन्दुओं का बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। विद्यार्थी, शोधकर्ता, अध्यापक, कलाकार, माधयम व उच्च वर्ग के मैनेजर, विश्लेषक व मानसिक परिश्रम करने वाले सभी लोगों को इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। बसंत पंचमी क्यों मनाते हैं, इस पर मां सरस्वती की पूजा क्यों और कैसे करनी चाहिए। हम यहाँ कुछ सरस्वती मंत्र साधनए बता रहे हैं जिनसे आप ज्ञान धन व सुख समृद्धि प्राप्त कर सके।
हिन्दू पंचांग के अनुसार में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बांटा गया है। ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत यह भारत के छः प्रमुख ऋतुएँ हैं। माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ वसंत में ही होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है, मौसम सुहावना हो जाता है, पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं, आम के पेड़ बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं I
उत्तर भारत में दो ऋतुएँ बड़ी विशेष होती पहली शरद ऋतु जब नवरात्रि दशहरा और दिवाली आती है। दूसरी बसंत ऋतु जब बसंत पंचमी, होली, नववर्ष प्रतिपदा तथा नवरात्रि आते हैं। यह दोनों ही संधि काल होते हैं।
आयुर्वेद की दृष्टि से दोनों ही समय बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। जब दिवाली आती है तो कहा जाता है कि घर की सफाई करनी चाहिए दिए जलाने चाहिए। क्योंकि गर्मी के मौसम में शरीर में पित्त कम बनता है। आपने नोटिस किया होगा कि गर्मियों में भूख कम लगती है और सर्दियों में ज्यादा। यही कारण है कि दिवाली के त्यौहार पर साफ सफाई इत्यादि के लिए कहा जाता है। सर्दियों में वायरल इनफेक्शन और गर्मियों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन आसानी से फैलता है। जब होली आती है तो एक दूसरे के ऊपर पानी फेंकने को कहा जाता है रंग फेंकने को कहा जाता है। मौज मस्ती और नृत्य आदि करने को कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर से कफ और वात दोनों बाहर निकल जाए।
‘पौराणिक कथाओं के अनुसार वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है। कवियों ने वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है। पेड़ उसके लिए नव पल्लव का पालना डालते है, फूल वस्त्र पहनाते हैं पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है ऋतुओं में मैं वसंत हूँ।
Basant Pancmi, बसंत पंचमी
जैसे की हमने शरू में कहा की बसंत माह की शुरआत वसन्त पंचमी से होती है इसलिए इसका पौराणिक महत्त्व भी बहुत है इस विषय में कुछ घटनाये है जिन्हे हम संछिप्त में जानते हैं।
उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य की रचना की। लेकिन अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए भगवान श्री विष्णु की स्तुति की। स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही प्रकट हो गए। उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आव्हान किया। ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग का तेज उत्पन्न हुआ जो जिसका दिव्य नारी के रूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था। जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ में वर मुद्रा थे । अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी “सरस्वती” कहा।
सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं।
वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
बसंत पंचमी का रामायण से सम्बन्ध
रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दण्डकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया।
दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
कहा जाता है पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई आज ही के दिन बलिदान हुआ था।
सिखों के लिए में बसंत पंचमी के दिन का बहुत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था।
वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत का बलिदान दिवस भी कहा जाता है।
वसंत पंचमी को गुरू रामसिंह कूका का जन्म 1816 ई. में लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था।
राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही आता हैं।
वसन्त पंचमी हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिवस (28.02.1899) भी है।
ज्योतिषीय आधार
बसंत पंचमी के दिन को बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के आरंभ के लिए शुभ मानते हैं। इस दिन बच्चे की जीभ पर शहद से ॐ बनाना चाहिए। माना जाता है कि इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है ।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार पंचम भाव
कुंडली में पांचवा घर रचनात्मकता, रोमांस और बच्चों से जुड़ा हुआ बताया गया है। यह सब खुशी के बारे में है जो आपको अच्छा महसूस कराता है और आनंद अक्सर रचनात्मक कृत्यों का एक परिणाम होता है जिसमें आप लिप्त हैं। इसे भाग्य का घर भी माना जाता है। तो, पंचम भाव में ग्रहों को देखने से पता चलेगा कि लॉटरी के अवसर यह आपका कितना साथ देगा। आप विजयी होंगे या आपका सब कुछ लुट जाएगा।
यह भाव आपके दिल के मामलों से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए, 5 वें घर में आपके ग्रहों की स्थिति और संकेतों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि आप इन मामलों से कैसे निपटते हैं। बच्चों को दुनिया में लाना भी एक रचनात्मक प्रक्रिया है। पांचवां घर पहली गर्भाधान या गर्भावस्था का प्रतीक है। इसका अर्थ पत्नी के माध्यम से प्राप्त की गई कलात्मक प्रतिभाओं, कल्पनाओं, स्वादों और संपत्ति या व्यवसायिक साझेदार के भाग्य से भी है। पंचम भाव मनोरंजन, मनोरंजन, खेल, रोमांस, मनोरंजन और इसी तरह के अन्य हितों को भी दर्शाता है। कुंडली में पंचवां भाव शुद्ध पुण्य क्षेत्र को इंगित करता है जो योग्यता के कर्मों को इंगित करता है जो उनके पिछले जीवन में हो सकता है।
आपको पहले बताई बातो में कुछ समानता दिख रही होंगी जैसे कामदेव के पुत्र का जन्म, प्रकृति का नया सृजन, कला व नृत्य और हृदय का प्रसन्न होना। इसी लिए बसंत पंचमी विशेष त्यौहार है। क्योकि यह आपकी कुंडली के बिगड़े पंचम भाव को सुधरने का त्यौहार है। सरस्वती पूजा इस दिन क्यों की जाती है ये भी समझ में आया होगा।
सरस्वती मंत्र के नियमित जाप से पढ़ाई में एकाग्रता, वाणी और याददाश्त में सुधार होता है। सरस्वती मंत्र के समर्पित पाठ से छात्र को अपनी परीक्षा पास करने में मदद मिल सकती है। यहां तक कि उच्च अध्ययन और शोध कार्य के लिए इच्छुक लोगों को सरस्वती मंत्र से काफी लाभ हो सकता है। कलाकार, कवि, लेखक और सार्वजनिक वक्ता सरस्वती मंत्र की मदद से नई ऊँचाइयों तक पहुँच सकते हैं।
- सरस्वती बीज मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं सरस्वत्यै नमः।
अर्थ: देवी सरस्वती को प्रणाम।
लाभ: सरस्वती के इस मंत्र का जाप करने से बुद्धि और वाणी की शक्ति बढ़ती है।
इस मंत्र का नियमित जप करने वाला कुशग्र बुद्धि हो जाता है। याददास्त में वृद्धि होती है परीक्षा व प्रतियोगिता कम्पटीशन में सफलता मिलती है। इस मंत्र का जाप
12 साल से काम उम्र के बच्चों को नहीं करना चाहिए।
शेयर मार्केट वाले लोगों को इस मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए क्योंकि इससे भविष्य में होने वाली घटनाओं की आपको जानकारी मिल सकती है यानी आपका सिक्स सेंस काफी अच्छा काम करने लगता है।
2. बुद्धि बढ़ाने के लिए सरस्वती मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वाग्देव्यै सरस्वत्यै नमः।
इस सरस्वती मंत्र का एक लाख बार पाठ करें। इस सरस्वती मंत्र का पाठ करने से बुद्धि, रचनात्मकता और ज्ञान में वृद्धि होती है। इस मंत्र का जाप उन्हें ही करना चाहिए जो सही उच्चारण कर सकें। क्योंकि इस मंत्र में डामर मंत्र भी इस्तेमाल किया गया है।
- सरस्वती गायत्री मंत्र
ॐ ऐं वाग्देव्यै विद्महे कामराजाय धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।।
अर्थ : मुझे वाणी की देवी का ध्यान करने दो। हे भगवान ब्रह्मा की पत्नी, मुझे उच्च बुद्धि प्रदान करें, और देवी वाणी मेरे मन को प्रकाशित करें।
लाभ: इस मंत्र का जाप करने से छात्रों की क्षमताओं को तेज किया जा सकता है और परीक्षा और अन्य कार्यक्रमों से पहले घबराहट महसूस करने वालों के होश को शांत किया जा सकता है। इस मंत्र को नियमित रूप से भक्ति के साथ जप करने से पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। जिन्हें सीखने में कठिनाई होती है वे इस मंत्र का सहारा ले सकते हैं।
- सरस्वती मंत्र शक्तिशाली वाणी के लिए
वद वद वाग्वादिनी स्वाहा।।
अर्थ : वाग देवी, मुझ पर वाणी की शक्ति को श्रेष्ठ करो।
लाभ: ठीक से ना बोल पाने वाले बच्चों के लिए, इस मंत्र का नियमित रूप से जाप करने से उचित वाणी प्राप्त करने में मदद मिलती है और भविष्य में उनके संचार कौशल में भी सुधार होता है।
इस सरस्वती मंत्र का एक लाख बार पाठ करें। इस सरस्वती मंत्र का पाठ करने से व्यक्ति बहुत सारा ज्ञान प्राप्त कर प्रसिद्ध हो जाता है।
सरस्वती पूजा करते समय सबसे पहले सरस्वती माता की तस्वीर अथवा प्रतिमा को सामने रखना चाहिए। इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत् पूजा करने के बाद माता सरस्वती की पूजा करें।
सरस्वती माता की पूजा करते समय उन्हें सबसे पहले आचमन और स्ना कराएं।
इसके बाद माता को फूल, माला और फल चढ़ाएं। सिन्दूर, अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित किया जाना चाहिए।