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Bheemashankar

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग भारत में स्थित यह सभी 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है सभी ज्योतिर्लिंग का अपना अलग ही महत्व है। इन सभी ज्योतिर्लिंगों में शिवभक्त पूरी आस्था के साथ दर्शन के लिए जाते हैं।
हालांकि सभी 12 ज्योतिर्लिंग की अपनी अलग अलग विशेषताएं हैं, ठीक इसी तरह यह ज्योतिर्लिंग भी बाकी की तरह ही विशेष है। इस ज्योतिर्लिंग तक जाने का सफर काफी रोमांचक है, जो कि रोमांच प्रेमी को काफी आकर्षित करती है। इस ज्योतिर्लिंग में स्थित शिवलिंग काफी मोटा है, जिसके कारण इस शिवलिंग को मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा
श्री शिव महापुराण के कोटि रुद्र संहिता में श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है
पूर्व काल भी भीमा नाम का एक पराक्रमी राक्षस रहा करता था वह अपनी माता के साथ शहदरी पर्वत पर अकेले रहता था एक बार उसने अपनी माता से पूछा कि वह अकेले क्यों रहती है तब उसकी माता ने बताया कि उसके पिता कुंभकरण थे कुंभकरण और रावण के वध की पूरी घटना जाने के बाद उसने प्रण लिया कि वह श्रीहरि को परास्त कर देगा।
उसने भगवान ब्रह्मा की आराधना की और उनसे अतुलनीय बल प्राप्त किया और विश्वविजय को निकल गया सबसे पहले उसने देवताओं पर आक्रमण किया और उन्हें परास्त कर दिया उसके बाद सुदक्षिण नाम के राजा पर आक्रमण किया वह राजा बहुत बड़े शिव भक्त थे भीम ने उन्हें हरा दिया उनका राज्य छीन लिया वह उन्हें एकांत में भेज दिया परंतु राजा सुदक्षिण बहुत बड़े शिव भक्त थे वह पार्थिव शिवलिंग बनाकर पत्नी सहित भगवान शिव की पूजा किया करते थे।
अभिमान में मोहित होकर राक्षस भीम अब यज्ञ को भी प्रभावित करने लगा, यज्ञ का विध्वंस करना और तमाम बातें तमाम धार्मिक कृत्यों में भी बाधा डालने लगा। वह विशाल सेना लेकर संपूर्ण पृथ्वी पर अधिकार के लिए निकल लिया। राक्षस भीम के अत्याचारों से पीड़ित होकर देवता और ऋषिगण महाकोशी नदी के किनारे जाकर भगवान शिव की आराधना करने लगे उनकी सामूहिक स्तुति से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्होंने देवताओं और ऋषियों को दर्शन दिए
तब ऋषि-मुनियों ने भगवान शिव से अपनी व्यथा कह डाली, भगवान शिव ने उन्हें सुदक्षिण के पास जाकर अपनी बात कहने को कहा रखने को कहा। ऋषि मुनि इकट्ठे होकर महाराजा सुदक्षिण के पास पहुंचे। सुदक्षिण ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी तब किसी सैनिक ने जाकर राक्षस भीम को बताया की सुदक्षिण आपको मारने के लिए भगवान शिव की आराधना कर रहा है राक्षस भीम क्रोधित हुआ और वह सुदक्षिण के पास पहुंचकर उसे प्रताड़ित करने लगा। उसने तलवार निकालकर पार्थिव शिवलिंग पर वार किया। परंतु इससे पहले कि वह तलवार और शिवलिंग को छु पाती भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने राक्षस भीम से युद्ध किया और अपनी हुँकार मात्र से भीम सहित समस्त राक्षसों को भस्म कर डाला।
ऋषियों ने देवाधिदेव भगवान शिव की विशेष स्तुति और प्रार्थना की। उन्होंने कहा–‘भूतभावन शिव! यह क्षेत्र बहुत ही निन्दित माना जाता है, इसलिए लोक कल्याण की भावना से आप सदा के लिए यहीं निवास करें। प्राय: ऐसा देखा गया है कि जो व्यक्ति यहाँ आता है, उसे कष्ट ही मिलता है, किन्तु आपके दर्शन करने से प्रत्येक आने वाले का कल्याण होगा। भगवान! आपका यह ज्योतिर्लिंग सर्वथा पूजनीय तथा सभी प्रकार के संकटों को टालने वाला है। इस प्रकार देवताओं तथा ऋषियों की प्रार्थना पर प्रसन्न भक्तवत्सल शिव ने उनका आग्रह स्वीकार कर लिया और प्रसन्नतापूर्वक वहीं स्थित हो गये।

उसी स्थान को आज भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है यहां से एक नदी भी निकलती है जिसका नाम है भीमा नदी। यह नदी पश्चिम दिशा में बहती हुई कृष्णा नदी में जा कर मिल जाती है।भीमाशंकर मंदिर के पास कमलजा मंदिर है। कमलजा पार्वती जी का अवतार हैं। इस मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है।
भीमशंकर में हनुमान झील एक सुंदर पर्यटन स्थल है जो अपने परिवार के साथ एक सुंदर शाम बिताने के लिए पिकनिक की एक आदर्श जगह है। भीमाशंकर के प्रसिद्द पर्यटन स्थलों में से एक हनुमान लेक विभिन्न प्रजाति के पक्षियों और गिलहरियों का घर है जो अक्सर वहाँ आते हैं।
भीमाशंकर वन्य जीवन अभ्यारण्य 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में और और भीमाशंकर गाँव में 2100 फुट से 3800 फुट की ऊँचाई तक फैला हुआ है। यह हरी भरी सह्यादी श्रेणियों में बसा हुआ है और सभी ओर से हरियाली से ढँका हुआ है।
लगभग एक हज़ार मीटर की ऊँचाई पर स्थित मनमोद पहाड़ियों में अनेक चट्टानें हैं जिन पर प्राचीन शानदार नक्काशी की गई है और शिलालेख हैं। यह भीमशंकर क्षेत्र में स्थित है।
भीमशंकर मंदिर जाने का समय

यहां आने वाले श्रद्धालु कम से कम तीन दिन जरूर रुकते हैं। यहां श्रद्धालुओं के लिए रुकने के लिए हर तरह की व्यवस्था की गई है। भीमशंकर से कुछ ही दूरी पर शिनोली और घोड़गांव है जहां आपको हर तरह की सुविधा मिलेगी। यदि आपको भीमशंकर मंदिर की यात्रा करनी है तो अगस्त और फरवरी महीने की बीच जाएं। वैसे आप ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर किसी भी समय यहां आ-जा सकते हैं। वैसे जिन्हें ट्रैकिंग पसंद है उन्हें मानसून के दौरान बचने की सलाह दी जाती है।
अगर आप हवाई जहाज से जाना चाहते हैं तो आपको पुणे उतरना होगा पुणे एयरपोर्ट पर उतरने के बाद वहां से बस या टैक्सी की जा सकती है तकरीबन 110 किलोमीटर के आसपास पड़ता है और ट्रेन से जाना चाहते हैं तो कर्जत रेलवे स्टेशन या पुणे आप दोनों ही स्थानों पर कहीं भी उतर सकते हैं उसके बाद आपको बस पकड़नी होगी वहां पर पर्याप्त सड़कों का जाल है आप अपने वाहन से जाना चाहते हैं तो पहुंच सकते हैं कोई परेशानी नहीं होती है

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