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दोस्तों वेदों में भगवान शिव को ही रूद्र कहा गया है। क्योंकि वह दुखों को नष्ट करते हैं। जब आप बहुत परेशानियों से गिर जाते हैं तो किसी विद्वान द्वारा कहा जाता है कि रुद्राभिषेक करा लीजिए। आप अपने घर में रूद्रष्टाध्यायी का पाठ करा लीजिए अगर कोई समस्या होगी तो समाप्त हो जाएगी। आखिर यह तो रूद्रष्टाध्यायी या रुद्री पाठ क्या है।रुद्राभिषेक कराने से क्या लाभ होता है और किस-किस चीज से हमें रुद्राभिषेक कब करना चाहिए। इस लेख में हम आपको यही बताने जा रहे हैं।
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि रूद्र कौन है? ताकि आगे की बातों को समझने में आसानी हो जाए। ऋग्वेद में रूद्र की स्तुति बलवानों में सबसे ताकतवर यानी बलवानों का बलवान कहकर की गई है। यजुर्वेद का रुद्राध्याय रुद्र देवता को समर्पित है। इसके इसके अलावा शैव संप्रदाय में रूद्र को बहुत महत्व दिया जाता है। रूद्र को ही कल्याणकारी शिव भी कहा गया है।
वैदिक व्याख्यान के अनुसार रूद्र एक ही है। पर पुराणों में 11 रुद्र का वर्णन मिलता है।
रूद्र का अर्थ क्या होता है और रूद्र मतलब होता है? ऋग्वेद में व धर्म ग्रंथों में इसकी बहुत बड़ी व्याख्या है पर मैं यहां आपको सामान्य शब्दों में समझाने की कोशिश करता हूं।
रूद्र का सामान्य अर्थ है आवाज यानि साउंड। रूद्र एक तेज आवाज हैं। आपने देखा होगा कि जब लोग क्रोध में आते हैं तो तेज आवाज करते हैं। युद्ध के समय में सैनिक बहुत जोर जोर से आवाजें करते हैं। ब्रूसली का नाम आपने सुना होगा वह जब लड़ाई करता था तो तेज आवाज निकालता था क्योंकि यही तेज आवाज शरीर के अंदर एड्रिनल हार्मोन को बढ़ाती हैं। जिससे कुछ समय के लिए आपमें शक्ति का संचार हो जाता है। हम वो काम कर सकते हैं जो आप सामान्य अवस्था में नहीं कर सकते। शत्रु विजय के लिए आवाज का तेज होना बहुत जरूरी है। आप कभी डिप्रेशन में हों तो किसी एकांत जगह में जाकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दीजिए। आपका डिप्रेशन समाप्त हो जायेगा। संस्कृत में जोर से रोने को रुंदन कहते हैं। वह शत्रुओं को रुलाने वाला है।
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रुद्र देवता का वर्णन किया जाता है कि उन्होंने खाल पहनी हुई है उन्होंने बाघ की खाल पहनी है और उनका सहचर हिरन है। उन्होंने त्रिशूल लिया हुआ है। हिंदू धर्म में ज्यादातर चीजें प्रतीकात्मक होती है। आप देवता के चित्र से उसके चरित्र को समझ सकते हैं।
रूद्र देवता को 4 सर वाला बताया गया, यानी वह चारों दिशाओं का ज्ञान रखने वाला है, सचेत है।
उसका उसको बाघ की खाल पहने दिखाया गया है यानी कि वह इतना शक्तिशाली की कठिन परिस्थितियों में भी विजयी रहता है।
उसने बाघ को मारकर उसकी खाल पहन लिया और हिरण को उसका सहचर दिखाया गया है कि वह कमजोरों की मदद करने वाला है।
हाथ में त्रिशूल का मतलब होता है तीन तरह के दुःख जिन्हें दैहिक, भौतिक और दैविक दुख कहा जाता है उसका नाश करने वाला है।
शिवभक्त सावन मास में शिवलिंग पर रुद्राध्यायी के मन्त्रों से दूध, जल या गन्ने के रास का अभिषेक करते हैं। कहा जाता है कि रुद्राष्टाध्याय का पाठ करते हुए शिवाभिषेक किया जाय जो व्यक्ति के जन्मजन्मांतरों के पापों का नाश हो जाता हैं ।
यजुर्वेद की शुक्लयजुर्वेद संहिता में आठ अध्याय के माध्यम से भगवान रुद्र का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिसे ‘रुद्राष्टाध्यायी’ या रुद्री पाठ कहते हैं । इसका वर्णन विभिन्न ग्रंथों में है। जैसे रुद्रकल्प, पराशर कल्प, शिव पुराण, रुद्र कल्प द्रुम, नारदपुराण, लिंगपुराण, महारुद्र तंत्र, रुद्रमाला मंत्र। रुद्री का वर्णन महाभारत और रामायण में भी है। इन सभी अलग-अलग ग्रंथों में रुद्राभिषेक की पवित्रता का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा शुक्ल यजुर्वेदी रुद्राष्टाध्यायी को विभिन्न कर्मकांड पुस्तकों में अलग-अलग तरीकों से पवित्र किया गया है। इस शिव पूजा को भक्ति और विश्वास के साथ विभिन्न पुस्तकों में भजन और मंत्रों के माध्यम से भी सराहा गया है।जैसे मनुष्य का शरीर हृदय के बिना असंभव है, उसी प्रकार शिवजी की आराधना में रुद्राष्टाध्यायी अत्यंत ही मूल्यवान है।
रुद्राभिषेक Benefits of Rudrabhishek
रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रपाठ के साथ जल, दूध, पंचामृत, आमरस, गन्ने का रस, नारियल के जल व गंगाजल आदि से शिवलिंग का रुद्राष्टाध्यायी के मन्त्रों से अभिषेक करने से मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति हो जाती है और मृत्यु के बाद वह परम गति को प्राप्त होता है ।
विभिन फल प्राप्त करने के लिए विद्वानों द्वारा विभिन्न वस्तुओं से रुद्राभिषेक करने का विधान बताया गया है।
इनमें घर का वातावरण सुखद और पवित्र रखने के लिए दूध
अचानक नुकसान या परिवारिक कलर से बचने के लिए दही
ज्ञान प्राप्त करने के लिए शहद
खुशहाली के लिए शक्कर की आवश्यकता पड़ती है
साथ ही नारियल पानी जो शत्रुओं का प्रभाव और प्रेतों को दूर करता है।
इसके अलावा भस्म भी इसी काम में लाया जाता है।
वर्षा का जल जो नेगेटिव पॉवर को आप से दूर रखता है।
गन्ने का रस जो माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के काम में आता है।
गंगाजल जो तमाम ग्रहों द्वारा उत्पन्न दोष निवारण करता है।
सुखद स्वास्थ्य के लिए भांग और
कारोबार में अड़चनों के लिए घी का प्रयोग किया जाता है।
रुद्राष्टाध्यायी में कुल 8 अद्याय होते हैं। दो अद्याय पूजा शांति प्राथना इत्यादि के होते हैं।
प्रथम अध्याय को ‘शिव संकल्प सूक्त’ कहा जाता है।
यह साधक के मन को शुभ विचार देने वाला होता है। इस अध्याय में गणेशजी की स्तुति की गई है। इस अध्याय का पहला मन्त्र श्रीगणेश का प्रसिद्ध मन्त्र है—‘गणानां त्वा गणपति हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे निधिनां त्वा निधिपति हवामहे । वसो मम।।
द्वितीय अध्याय भगवान विष्णुजी को समर्पित हैं, इसमें 16 मन्त्र ‘पुरुष सूक्त’ कहते हैं। जिसके देवता विराट् पुरुष हैं । सभी देवताओं का षोडशोपचार पूजन पुरुष सूक्त के मन्त्रों से ही किया जाता है, और इसी अध्याय में महालक्ष्मीजी के मन्त्र भी दिए गए हैं।
तृतीय अध्याय के देवता इन्द्र हैं, इस अध्याय को ‘अप्रतिरथ सूक्त’ कहा जाता है । इसके मन्त्रों के द्वारा इन्द्र की उपासना करने से शत्रुओं और प्रतिद्वन्द्वियों का नाश होता है।
चौथा अध्याय ‘मैत्र सूक्त’ के नाम से जाना जाता है । इसके मन्त्रों में भगवान सूर्य नारायण का सुन्दर वर्णन व स्तुति की गयी है ।
रुद्राष्टाध्यायी का प्रधान अध्याय पांचवा है, इसमें 66 मन्त्र हैं । इसको ‘शतरुद्रिय’, ‘रुद्राध्याय’ या ‘रुद्रसूक्त’ कहते हैं। शतरुद्रिय यजुर्वेद का वह अंश है, जिसमें रुद्र के सौ या उससे अधिक नामों का उल्लेख हैं और उनके द्वारा रुद्रदेव की स्तुति की गयी है । भगवान रुद्र की शतरुद्रीय उपासना से दु:खों का सब प्रकार से नाश हो जाता है ।
छठे अध्याय को ‘महच्छिर’ कहा जाता है, इसी अध्याय में ‘महामृत्युंजय मन्त्र का उल्लेख है-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् । त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम् । उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुत: ।।
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सातवें अध्याय को ‘जटा’ कहा जाता है, इस अध्याय के कुछ मन्त्र अन्त्येष्टि-संस्कार में प्रयोग किए जाते हैं ।
आठवे अध्याय को ‘चमकाध्याय’ कहा जाता है, इसमें 29 मन्त्र हैं । भगवान रुद्र से अपनी मनचाही वस्तुओं की प्रार्थना ‘च मे च मे’ अर्थात् ‘यह भी मुझे, यह भी मुझे’ शब्दों की पुनरावृत्ति के साथ की गयी है इसलिए इसका नाम ‘चमकम्’ पड़ा ।
रुद्राष्टाध्यायी के अंत में शान्त्याध्याय के 24 मन्त्रों में विभिन्न देवताओं से शान्ति की प्रार्थना की गयी है तथा स्वस्ति-प्रार्थनामंत्राध्याय में 12 मन्त्रों में स्वस्ति (मंगल, कल्याण, सुख) प्रार्थना की गयी है ।
किस दिन कराएं ‘रुद्राभिषेक’? Benefits of Rudrabhishek
किसी भी तीथि को रुद्राभिषेक नहीं होता है, बल्कि इसके लिए विशेष तिथियां होती हैं। कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या इसके लिए निश्चित की गयी हैं, तो शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में ही रुद्राभिषेक किया जाता है।
केवल रुद्री कब कर सकते है?
प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी का कल्याण होता है। शिव पुराण में उनकी पूजा के लिए महीने, दिन और तिथि का विवरण दिया है। इसमें श्रावण मास को विशेष महत्व दिया है। इसे सोमवार शिवरात्रि विशेष माघ माह की महाशिवरात्रि व प्रदोष यानि त्रियोदशी को किया जा सकता है।
रुद्राभिषेक किसी योग्य ब्राह्मण से ही कराना चाहिए क्योंकि उसे मंत्रों का पर्याप्त ज्ञान होता है। उसे स्टेप यानी सिस्टम के बारे में पूरी जानकारी होती है। यह एक कर्मकांड पद्दति है इसलिए किसी ब्राह्मण द्वारा ही कराना उपयुक्त माना गया है।
रुद्राष्टाध्याई, रुद्री पाठ घर में कैसे करें
यदि आप रूद्रअध्याय या रुद्री पाठ घर में करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको घर में स्थित किसी शिवलिंग के पास बैठकर पंचोपचार विधि से भगवान शिव की पूजा करनी है। फिर रुद्री पाठ आरम्भ करना है।
आपको पहले भगवान शिव को चंदन का तिलक लगाना है।
उसके बाद उन पर पुष्प चढ़ाने हैं।
फिर अगरबत्ती दिखानी है।
उसके बाद घी का दिया जलाना है।
अंत में प्रसाद चढ़ाना है।
फिर आप रुद्री पाठ का आरंभ कर सकते हैं। पुस्तक में से पढ़कर आप रुद्री कर सकते हैं। एक बात का ध्यान रखिए कि रूद्रष्टाध्यायी के अंत में शांति अध्याय और मंगल अध्याय जिसे स्वस्ति कहा जाता है। उसके 24 और 12 मंत्रों का भी जाप करें।