Benefits of Rudrastkam, रुद्राष्टकम
Benefits of Rudrastkam, रुद्राष्टकम
सनातन धर्म में भगवान शिव को सभी देवों में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है। माना जाता है कि शिव जी आसानी से प्रसन्न हो जाने वाले देवता हैं। यदि कोई भक्त श्रद्धा पूर्वक उन्हें केवल एक लोटा जल भी अर्पित कर दे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। यदि आप शिव जी की विशेष कृपा पाना चाहते हैं ‘श्री शिव रूद्राष्टकम’ का पाठ करना चाहिए। ‘शिव रुद्राष्टकम’ अपने-आप में अद्भुत स्तुति है। यदि कोई शत्रु आपको परेशान कर रहा है तो किसी शिव मंदिर या घर में ही कुशा के आसन पर बैठकर लगातार 7 दिनों तक सुबह शाम ‘रुद्राष्टकम’ स्तुति का पाठ करने से शिव जी बड़े से बड़े शत्रुओं का नाश पल भर में करते हैं और सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। रामायण के अनुसार, मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने रावण जैसे भयंकर शत्रु पर विजय पाने के लिए रामेशवरम में शिवलिंग की स्थापना कर रूद्राष्टकम स्तुति का श्रद्धापूर्वक पाठ किया था और परिणाम स्वरूप शिव की कृपा से रावण का अंत भी हुआ था।
भगवान शिव का रुद्राष्टक स्तोत्र रामायण मे उत्तर काण्ड मे 107 वे दोहे के बाद लिखा है । यह स्तोत्र काकभुसुण्डी जी के पूर्व जन्म मे शिव मंदिर मे गुरू का अपमान करने से क्रोधित होकर शिव ने काकभुसुण्डी जी को श्राप देने पर गुरू जी ने शिव को प्रसन्न करने के लिए पढा था।
रुद्राष्टकम शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए किया जाता है परन्तु यह बहार के शत्रुओ की अपेक्षा अंदर के शत्रुओं को समाप्त करता है जैसे अहंकार, क्रोध, अविश्वास द्वेष की भावना और लोभ।
इस मन्त्र को जपने से आपके शत्रु भी आपके लिए सम्मान का भाव रखने लगते हैं।
जो लोग शिव की उपासक है उन्हें ये मन्त्र आंतरिक ख़ुशी देता है।
रुद्राष्टकम में रुद्र (शिव) की आठ यानि अष्टम तरह की स्तुति, तारीफ, की गई है और उनकी शक्ति के बारे में बताया है।
महाशिवरात्रि, श्रावण अथवा चतुर्दशी तिथि को इसका जप किया जाए तो विशेष फल मिलता है।
शिव रुद्राष्टक कथा
श्री रामचरित्र मानस के उत्तर काण्ड में वर्णित इस रूद्राष्टक की कथा कुछ इस प्रकार है।
कागभुशुण्डि परम शिव जी के परम भक्त थे। वो शिव को सर्वश्रेठ मानते थे वे किसी और देवता को नहीं मानते थे। उनके गुरू श्री लोमश शिव के साथ-साथ राम में भी असिम श्रद्धा रखते थे। इस वजह से कागभुशुण्डि का अपने गुरू के साथ मत-भेद था।
उनके गुरू ने उन्हें कहा कि; स्वयं शिव भी राम नाम से आनन्दित होते हैं। राम की महिमा को अस्विकार मत करो। कागभुशुण्डि अपने गुरू को शिवद्रोही मान उनसे रूष्ट हो गए। कुछ समय बाद कागभुशुण्डि एक महायज्ञ का आयोजन कर रहे थे। जिसकी सुचना उन्होंने अपने गुरु को नहीं दी, फिर भी सरल हृदय गुरू अपने भक्त के यज्ञ में समलित होने को पहुँच गए।
शिव पुजन में बैठे कागभुशुण्डि ने गुरू को आते देखा। पर वे अपने आसन से न उठे, न उनका कोई सत्कार ही किया। सरल हृदय गुरू ने एक बार फिर इसका बुरा नहीं माना। पर महादेव तो महादेव ही हैं। वो अनाचार क्यों सहन न कर सके। उन्होंने कागभुशुण्डि की शार्प दे दिया। की वह अजगर बन जाये।
लोमश ऋषि इस प्रचंण श्राप से दुःखी हो गए तथा अपने शिष्य के लिए क्षमा दान पाने की अपेक्षा से, शिव को प्रसन्न करने हेतु; गुरू ने प्रार्थना की तथा रूद्राष्टक की वाचना की तथा आशुतोष भगवान को प्रसन्न किया।
शिव रूद्राष्टक स्तोत्रं का संछिप्त अर्थ
तुलसीदास जी पहले श्लोक में शिव जी को प्रणाम करते हैं। जिसमे उन्हें ईशान का देवता वेदस्वरूप और दिगंबर कहा जाता है।
दूसरे श्लोक में शिव को ओंकार रूप व संसार से परे परमेश्वर कहा है। तीसरे चौथे व पांचवे श्लोक में में उनके स्वरुप का वर्णन किया गया है।
छठे व सातवे श्लोक में शिव को प्रसन्न होने की स्तुति की गई है।
आठवे श्लोक में भगवान शिव से क्षमा व दुखो को हरने का अनुरोध किया गया है।
नैव श्लोक में कहा गया है कि जो मनुष्य इसे भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर भगवान् शम्भु प्रसन्न होते हैं।
शिव की इस स्तुति से भी भक्त का मन भक्ति के भाव और आनंद में इस तरह उतर जाता है कि; हर रोज व्यावहारिक जीवन में मिली नकारात्मक ऊर्जा, तनाव, द्वेष, ईर्ष्या और अहं को दूर कर देता है।
रुद्र का अर्थ रोना, दुखी होता है। इस स्त्रोत के जप से व्यक्ति का दुख मिट जाते हैं
दुनिया से दुख मिटाने की बस एक ही दवा है। बस इतना ही कह सकते हैं
ॐ नमः शिवाय, भोले बाबा सरे दुःख हर लेते हैं।