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क्यों दसवे दिन ही उन्हें विसर्जित किया जाता है । murti visarjan,

नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है। गणेश चतुर्थी पर महाराष्ट्र के लोग, या यु कहें कि पूरे भारत के का लोग गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है। गणेश जी की मूर्ति स्थापित होती है। उनका पांडाल लगता है और लोग 9 दिन तक उनकी पूजा करते हैं तथा दसवे दिन उन्हें जाकर जल में विसर्जित कर देते हैं। इसी तरह दशहरा वाले नवरात्रों में 9 दिन तक देवी का पंडाल सजाया जाता है तथा लोग पूजा अर्चना करते हैं व दसवे दिन ले जाकर उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है। यह 10 दिन का क्या कांसेप्ट है? क्यों दसवे दिन ही उन्हें विसर्जित किया जाता है? murti visarjan,

दोस्तों यह सब यह बातें बताने से पहले मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि अगर आप इंटरनेट पर सर्च करते हैं तो गणेश चतुर्थी के बारे में पता चलता है कि गणेश जी ने 9 दिन तक लगातार महाभारत लिखी थी इसलिए वह लिखने के बाद स्थिर हो गए दसवे दिन उन्हें शीतल करने के लिए पानी में विसर्जित किया जाता है। अगर ऐसा होता तो उन्हें पानी में से वापस को नहीं लाया जाता या वो कोई मशीन थे जो काम करते करते गर्म हो गया और ठंडा करने के लिए पानी डाल रहा है। मैं माफी चाहूंगा मेरा अभिप्राय गणेश जी को अपमानित या ग्रन्थ पर ऊँगली उठाने का नहीं है। murti visarjan,

दुर्गा माता के लिए भी लिखा है कि भक्तजन उनकी 9 दिन तक उपासना करते हैं और दसवे दिन उन्हें विसर्जित कर देते हैं। उन्हें जल में विसर्जित इसलिए किया जाता है क्योंकि हिंदू धर्म का मानना यह है कि जल से ही जीवन आरंभ हर जल पर ही समाप्त हो जाएगा। यदि ऐसा होता तो हमारे यहां जलाने का कांसेप्ट नहीं होता सब को जल में बहा दिया जाता है। कुछ खास मामलों में ही मृतक को बहाया जाता है। जैसे अगर कोई सांप काट लेता है तो उस व्यक्ति को जल में बहा दिया जाता है इसके पीछे भी एक वैज्ञानिक कारण है। कहा जाता है कि मां जगदंबे जल में विसर्जित होने के बाद कैलाश चली जाती हैं। इसमें थोड़ा सा लॉजिक है। अगर हिंदू धर्म से जुड़े हो तो आप जानते हैं कि यह धर्म बहुत ही वैज्ञानिक धर्म है। यहाँ हर चीज के लिए कुछ ना कुछ लॉजिक होता है। किसी आसमानी किताब में लिखा है तो हमने मान लिया ऐसा नहीं है। एक हिंदू होने के नाते आपको पूरा अधिकार है कि आप प्रश्न कर सकते हैं। यदि गलत है तो उसे ठीक करें। दोस्तों में अपने पूर्वजों की परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए आप लोगों के संज्ञान में ये बात डालना कहता हूँ कि 10 दिन का क्या प्रयोजन है।

इसे समझने के लिए सबसे पहले काल गणना को समझना होगा। हिंदू काल गणना बहुत छोटी इकाई से लेकर बहुत बड़ी समय की गणना है आप ऐसे समझिए कि माइक्रोसेकंड से लेकर और ब्रह्मांड के अंत होने तक की समय की गणना है। काल गणना के साथ-साथ आयु की गणना भी की गई है और हर चीज की आयु की होती है।

सतयुग की आयु 17 लाख 28 हजार वर्ष है।
द्वापर युग की आयु 12 लाख 96 हज़ार वर्ष है।
त्रेता युग की आयु 8 लाख 64 हज़ार वर्ष है।
कलयुग की आयु 4 लाख 32 हज़ार वर्ष है।
इस तरह एक चतुर्युग में 43 लाख 20 हजार वर्ष होते हैं।
इंद्र- 72 चतुर्युग या 1 मन्वन्तर
शची- 1008 चतुर्युग या एक कल्प इतने समय मे 14 इन्द्रों का जीवन समाप्त हो जाता है
ब्रह्मा जी की आयु सात करोड़ बीस लाख चतुर्युग
और इससे भी ऊपर है
इसी तरह नाग की आयु हज़ार वर्ष है। मनुष्य की आयु सौ वर्ष है। और मट्टी की मूर्ति की आयु १ दिन से लेकर 10 दिन तक होती है। यह पूजा व स्थान के आधार पर तय किया जाता है। जैसे पार्थिव शिव लिंग को पूजा के बाद प्रवाहित किया जाता है। सरस्वती पूजा और विश्वकर्मा पूजा के बाद अगले दिन मूर्ति विसर्जित की जाती है। दीपावली में भी कई लोग पूजा के अगले दिन लक्मी गणेश की मूर्ति विसर्जित हैं।

मूर्तियों को पानी में ही क्यों बाहर जाता है। सभी मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है अगर वह धातु की हैं तो बहुत लंबे समय तक मूर्तियां रहती हैं। जैसे लड्डू गोपाल की मूर्ति, लेकिन अगर वह मिट्टी की बनी है और उसमे प्राण प्रतिष्ठा की गई है तो उसकी उम्र ज्यादा से ज्यादा 10 दिन की होगी। 10 दिन के बाद उसे विसर्जित करना ही पड़ेगा। उसे जलाया भी जा सकता था परंतु मिट्टी जलने के बाद और ज्यादा सख्त हो जाती हैं। किसी भी व्यक्ति के मरने के बाद उसको जलाया जाता है ताकि उसका शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाए। छोटे बच्चे को गाड़ दिया जाता है। क्योंकि उनकी हड्डियां और उनका शरीर बहुत छोटा होता है और कोमल होता है आसानी से धरती में मिल सकता है। इसी तरह मूर्तियों को पानी में विसर्जित किया जाता है ताकि वह पंचतत्व में से एक तत्व पानी में विलीन हो जाए क्योंकि मिट्टी की मूर्ति पानी में घुल जाती है। अगर उसे जमीन में गाड़ दिया जाये तो लोगों द्वारा उसका निरादर होगा।

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