Satyanarayan, Satynarayan ki katha ke labh,
Satyanarayan, Satynarayan ki katha ke labh, सत्य नारायण का इतिहास
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। खासतौर पर जब आप किसी विशेष अवसर पर विष्णु जी का पूजन पूरी श्रद्धा भाव से करते हैं तब विष्णु भगवान की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है। इसलिए मुख्य रूप से महीने की एकादशी, बृहस्पतिवार और पूर्णिमा तिथि को विष्णु जी का पूजन किया जाता है। इसी पूजन के दौरान लोग सत्यनारायण की कथा भी पढ़ते और सुनते हैं। पुराणों में सत्यनारायण व्रत कथा को सुनने का बहुत ज्यादा महत्व बताया गया है। कुछ लोग मनौती पूरी होने पर, कुछ अन्य नियमित रूप से इस कथा का आयोजन करते हैं। सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग हैं, व्रत-पूजा एवं कथा। सत्यनारायण व्रतकथा स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड से संकलित की गई है।
सत्य नारायण का इतिहास
सत्य को नारायण के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है। सत्य में ही सारा जगत समाया हुआ है। विष्णु भगवान का सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इसके मूल पाठ में पाठान्तर से लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध है जो पाँच अध्यायों में बँटे हुए हैं।
व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस प्रकार की समस्या आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं अपितु दण्ड स्वरूप सम्पत्ति और बन्धु बान्धवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। प्रायः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में पढ़ा जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से करने का निर्देश दिया गया है।
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। खासतौर पर जब आप किसी विशेष अवसर पर विष्णु जी का पूजन पूरी श्रद्धा भाव से करते हैं तब विष्णु भगवान की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है। इसलिए मुख्य रूप से महीने की एकादशी, बृहस्पतिवार और पूर्णिमा तिथि को विष्णु जी का पूजन किया जाता है। इसी पूजन के दौरान लोग सत्यनारायण की कथा भी पढ़ते और सुनते हैं। पुराणों में सत्यनारायण व्रत कथा को सुनने का बहुत ज्यादा महत्व बताया गया है। कुछ लोग मनौती पूरी होने पर, कुछ अन्य नियमित रूप से इस कथा का आयोजन करते हैं। सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग हैं, व्रत-पूजा एवं कथा। सत्यनारायण व्रतकथा स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड से संकलित की गई है।
सत्य नारायण का इतिहास
सत्य को नारायण के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है। सत्य में ही सारा जगत समाया हुआ है। विष्णु भगवान का सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इसके मूल पाठ में पाठान्तर से लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध है जो पाँच अध्यायों में बँटे हुए हैं।
व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस प्रकार की समस्या आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं अपितु दण्ड स्वरूप सम्पत्ति और बन्धु बान्धवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। प्रायः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में पढ़ा जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से करने का निर्देश दिया गया है।
सत्यनारायण कथा का महत्व और लाभ
ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस कथा को सुनते हैं उनकी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले जैसे शादी, व्यापर आरम्भ, या जन्मदिन पर या मनोकामनाएं पूरी होने के बाद सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। भगवान सत्यनारायण का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। स्कन्द पुराण में भगवान विष्णु ने नारद को इस व्रत का महत्व बताया है।
यदि आप घर मन सत्यनारायण जी की कथा करते हैं तो यह आपके लिए कई तरह से फायदेमंद हो सकता है।
सत्यनारायण कथा का पाठ और वाचन मन में शांति जगाता है और श्रद्धा का भाव जगाता है।
इनकी पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
ऐसा माना जाता है कि व्रत करने से भगवान विष्णु हमारे सारे कष्टों को हर लेते है।
घर की शांति और सुख- समृद्धि के लिए भगवान सत्यनारायण की पूजा विशेष लाभकारी होती है।
यह पूजा विवाह के लिए और वैवाहिक जीवन (सुखी दांपत्य जीवन के उपाय)को सफल बनाने के लिए भी लाभकारी है।
विवाह के पहले और बाद में सत्यनारायण की पूजा करना काफी शुभ होता है।
लंबी आयु एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी सत्यनारायण जी की कथा और पूजा करना विशेष लाभकारी होता है।
सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने के लिए परिवार के साथ- साथ अन्य भक्तों को भी शामिल करें। इससे जीवन में सुख -समृद्धि आती है। इसके साथ ही आप जितने ज्यादा लोगों में कथा का प्रसाद वितरण करती हैं ये उतना ही ज्यादा लाभकारी होता है।
कैसे करें पूजा
सत्यनारायण भगवान का पूजन करने के लिए केले के पत्तों का मंडप बनाएं एक चौकी ले लें। उसमे लाल कपड़ा बिछा लें। यदि लाल रंग का कपड़ा नहीं है तो उसके स्थान पर आप केले का पत्ता भी बिछा सकते हैं। उस पत्ते पर सत्य नारायण भगवान की तस्वीर, गणेश जी की प्रतिमा एवं कलश रखें।
कलश की करें पूजा
दोस्तों अक्सर आपने देखा होगा कि पूजा के समय पर कलश रखा जाता है। यह कलश क्यों रखा जाता है? हिंदू दर्शन के अनुसार देवी देवता उसे स्थान पर निवास करते हैं जहां तीर्थ होता है। तीर मतलब किनारे रथ यानि पार करने वाला वाहन,
तीर्थ का मतलब है, ‘इस जग से पार करने वाला’ इस दुनिया के दूसरे किनारे पर ले जाने वाला। तीर्थ शब्द का एक मतलब ‘जल या जल का श्रोत’ भी होता है। तीर्थ उसे स्थान को कहते हैं जहां पर जल होता है। यहाँ समस्त देवी देवता विराजमान हैं। हम कलश को तीर्थ का प्रतीक मानते हैं। और मानते हैं की इस कलश के जल के कारण वहां सभी देवी-देवता वहां उपस्थित होंगे।
सत्यनारायण कथा में कलश का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन कलश स्थापना करके उसकी पूजा की जाती है। सत्यनारायण कथा में सबसे पहले कलश की करें, फिर गणेश जी की, उसके बाद सत्य नारायण देव की पूजा कर कथा की शुरुआत करनी चाहिए। इस पूजन में कलश एवं एक नारियल जरूर रखें। ऐसा माना जाता है कि नारियल का फल श्री फल होता है इसलिए यह लक्ष्मी जी का फल माना जाता है जो विष्णु जी को अत्यंत पसंद होता है।
पंचामृत और पंजीरी का प्रसाद
भगवान के भोग के लिए पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी अवश्य रखें। सत्यनारायण की पूजा(सत्यनारायण पूजा में इस तरह करें मंदिर का डेकोरेशन) में केले का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन पंचामृत के रूप में दही में मेवे मिलाकर भोग तैयार करें और उसी से विष्णु विष्णु जी को स्नान कराएं और भोग लगाएं। केले को इस कथा में मुख्य माना जाता है क्योंकि इस पर गुरु ग्रह का प्रभाव होता है जो विष्णु स्वरूप ही है। इसलिए केले का फल भगवान सत्यनारायण को पसंद है। इस पूजा में केले का फल अवश्य चढ़ाया जाना चाहिए।
शालिग्राम की पूजा करें
सत्यनारायण की पूजा में शालिग्राम की पूजा भी अवश्य होती है उन्हें दूध से नहलाया जाता है। दूध और केले से प्रसाद बनाया जाता है। व्यावहारिक दृष्टि से दूध शुद्ध और सात्विक होता है। इस दिन चावल का प्रयोग नहीं होता है और इस दिन गेहूं का दान करना अच्छा होता है।
पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इन्द्रादि दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण की, राधा कृष्ण की। इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करें। इसके बाद लक्ष्मी माता की और अन्त में महादेव और ब्रह्मा जी की पूजा करें।
पूजा के बाद सभी देवों की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करे।