Shani ke saririk vamansik lakshan
Shani ke saririk vamansik lakshan,
शनि को सन्तुलन और न्याय का ग्रह माना गया है। यह तपकारक ग्रह है, अर्थात तप करने से शरीर परिपक्व होता है, शनि का रंग गहरा नीला होता है, शनि ग्रह से निरंतर गहरे नीले रंग की किरणें पृथ्वी पर गिरती रहती हैं। शरीर में इस ग्रह का स्थान उदर और जंघाओं में है। सूर्य पुत्र शनि दुख दायक, शूद्र वर्ण, तामस प्रकृति, वात प्रकृति प्रधान तथा भाग्य हीन नीरस वस्तुओं पर अधिकार रखता है। शनि सीमा ग्रह कहलाता है, क्योंकि जहां पर सूर्य की सीमा समाप्त होती है, वहीं से शनि की सीमा शुरु हो जाती है। जगत में सच्चे और झूठे का भेद समझना, शनि का विशेष गुण है। यह ग्रह कष्टकारक तथा दुर्दैव लाने वाला है। विपत्ति, कष्ट, निर्धनता, देने के साथ साथ बहुत बडा गुरु तथा शिक्षक भी है, जब व्यक्ति की राशि में शनि दोष लगता है तो उसे अपने जीवन में कई तरहे के संघर्षों से जूझना पड़ता है। आजीविका चलाने के लिए कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। जब व्यक्ति को समय-समय पर रोग घेरे रहें, आर्थिक संकट आ जाये, बुरी चीजों में लिप्त होने का मन करे, ये सभी शनि दोष के लक्षण हैं। शनि की मणि नीलम है। शनि मकर तथा कुम्भ राशि का स्वामी है। इसका उच्च तुला राशि में और नीच मेष राशि में अनुभव किया जाता है। इसकी धातु लोहा, अनाज चना, और दालों में उडद की दाल मानी जाती है।
शनि दोष के शारीरिक लक्षण
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि वात है, गुरु शुक्र चाँद, ( कफ ) सूर्य मंगल, केतु (पीत) राहु बुध और शनि वात हैं।
कुण्डली में शनि की स्थिति अनुकूल नहीं होने पर वात रोग का सामना करना पड़ता है। शनि के कुछ और शारीरिक लक्षण हैं, नाखूनों का टूटना। शनि सूखा है मतलब हाथ-पैर फटना होठ और त्वचा का फटना, शनि का प्रभाव पैरों पर है,त्वचा का पीला पन, पैरों में दर्द होना, पैरों पर नियंत्रण न हो पाना, एड़ी का जकड जाना, पैर की पिंडलियों में ऐंठन जैसा दर्द। पेट की गैस ऊपर की ओर आना, कूबड़ का होना, लंगड़ापन आना, दिल बैठने जैसा महसूस होना, छाती में सुई चुभने जैसी पीड़ा, भुजा से अंगुली तक मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन व जकडऩ। हाथ ऊपर न उठना। गर्दन का जकड़ जाना, दांतों में पीड़ा, दांतों का हिलना, ऊंचा सुनना, मुंह कड़वा होना, मुंह का सूखना, आंखों से धुंधला व कम दिखाई देना, नेत्रों का टेढ़ा होना, आंखों के ऊपर वाले हिस्से में पीड़ा, बालों की जड़ों में विकृति होना, हड्डी का खोखलापन। सर में अजीब सा दर्द बना रहता है। माथे का रंग बदलने लगता है। शरीर आलस्य से भरा रहता है। वात रोगों के कारण कम उम्र में बाल झड़ने लगते हैं।
शरीर में वात रोग हो जाने के कारण शरीर फ़ूल जाता है, और हाथ पैर काम नही करते हैं, गुदा में मल के जमने से और जो खाया जाता है उसके सही रूप से नही पचने के कारण कडा मल बन जाने से गुदा मार्ग में मुलायम भाग में जख्म हो जाते हैं, और भगन्दर जैसे रोग पैदा हो जाते हैं। एकान्त वास रहने के कारण से सीलन और नमी के कारण गठिया जैसे रोग हो जाते हैं, हाथ पैर के जोडों मे वात की ठण्डक भर जाने से गांठों के रोग पैदा हो जाते हैं, शरीर के जोडों में सूजन आने से दर्द के मारे जातक को पग पग पर कठिनाई होती है। दिमागी सोचों के कारण लगातार नशों के खिंचाव के कारण स्नायु में दुर्बलता आ जाती है। पेट के अन्दर मल जमा रहने के कारण आंतों के अन्दर मल चिपक जाता है, और आंतो मे छाले होने से अल्सर जैसे रोग हो जाते हैं।
प्राणी मात्र के शरीर में लोहे की मात्रा सब धातुओं से अधिक होती है, शरीर में लोहे की मात्रा कम होते ही उसका चलना फ़िरना दूभर हो जाता है। और शरीर में कितने ही रोग पैदा हो जाते हैं। इसलिये ही इसके लौह कम होने से पैदा हुए रोगों की औषधि खाने से भी फ़ायदा नही हो तो जातक को समझ लेना चाहिये कि शनि खराब चल रहा है।
शनि दोष के मानसिक लक्षण
शनि दोष लगते ही व्यक्ति की बुद्धि फिर जाती है। झुंझलाहट होना, दुखी रहना, कुछ नया न सोच पाना। नींद न आना, चित्त स्थिर न रहना। कुंडली में शनि की खराब स्थिति हो तो व्यक्ति हमेशा सोच में डूबा रहता है। ऐसे लोग खुद से ही बातें करते हैं। व्यक्ति का मांगलिक कार्यों में हिस्सा लेने का मन नहीं करता है। शनि के दुष्प्रभाव से इन लोगों के सिर हर हमेशा गुस्सा सवार रहता है। व्यक्ति सोचता कुछ और होता कुछ है। खान-पान की आदत बदलने लगती हैं। व्यक्ति की रुचि कड़वे, तैलीय और मांसहारी भोजन में बढ़ने लगती है। मांस-मदिरा से दूर रहने वाला व्यक्ति भी इनमें रुचि लेने लग जाता है। वह झूठ अधिक बोलने लगता है और क्रोध की भावना भी बढ़ने लगती है। छोटी-छोटी चीजों पर झूठ और क्रोध करना उसके स्वभाव में आ जाता है। धर्म-कर्म कार्यों में मन नहीं लगता।शनि के विरोध मे जाते ही जातक का विवेक समाप्त हो जाता है। निर्णय लेने की शक्ति कम हो जाती है, प्रयास करने पर भी सभी कार्यों मे असफ़लता ही हाथ लगती है। स्वभाव मे चिडचिडापन आ जाता है।
शनि दोष के सामाजिक लक्षण
नौकरी करने वालों का अधिकारियों और साथियों से झगडे, व्यापारियों को लम्बी आर्थिक हानि होने लगती है। विद्यार्थियों का पढने मे मन नही लगता है, बार बार अनुत्तीर्ण होने लगते हैं। जातक चाहने पर भी शुभ काम नही कर पाता है। दिमागी उन्माद के कारण उन कामों को कर बैठता है जिनसे करने के बाद केवल पछतावा ही हाथ लगता है। व्यक्ति के विचार नास्तिक होने लगते हैं वह भगवान का हर बात में मजाक बनाने लगता है। अपने से बड़े-बुजुर्गों का अपमान करना। चोरी करना, जुआ खेलना और सट्टे लगाना। जरूरत से ज्यादा आलसी और चालाक होना।
शनि जब तक जातक को पीडित करता है, तो चारों तरफ़ तबाही मचा देता है। जातक को कोई भी रास्ता चलने के लिये नही मिलता है। करोडपति को भी खाकपति बना देना इसकी विशेषता है। अच्छे और शुभ कर्मों बाले जातकों का उच्च होकर उनके भाग्य को बढाता है, जो भी धन या संपत्ति जातक कमाता है, उसे सदुपयोग मे लगाता है। गृहस्थ जीवन को सुचारु रूप से चलायेगा.साथ ही धर्म पर चलने की प्रेरणा देकर तपस्या और समाधि आदि की तरफ़ अग्रसर करता है। अगर कर्म निन्दनीय और क्रूर है, तो नीच का होकर भाग्य कितना ही जोडदार क्यों न हो हरण कर लेगा, महा कंगाली सामने लाकर खडी कर देगा, कंगाली देकर भी मरने भी नही देगा।
शनि की कुछ अन्य निशानियाँ
शनि कमजोर होने के कुछ और लक्षण भी हैं जो जीवन में कभी भी सामने आ जाते हैं, लेकिन पता न होने के कारण व्यक्ति कुछ कर नहीं पाता। उदाहरण के लिए घर की ट्यूबलाइट, बल्ब, टीवी, फ्रिज आदि बिजली के उपकरण जल्दी-जल्दी खराब होने लगते हैं। इसके लिए आप उस प्रोडक्ट को जिम्मेदार ठहराएंगे या फिर बिजली के वोल्टेज के उतार-चढ़ाव को। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि के कमजोर या रुष्ट होने पर ऐसी घटनाएं घटित होती हैं। ज्योतिषियों के मुताबिक गले में बलगम का जमना भी शनि कमजोर होना दर्शाता है।
कुछ लोग जब चलते हैं तो कदम पूरा उठाने की बजाय पांव को जमीन पर घसीट कर चलते हैं। ऐसे लोगों के चलने पर आवाज होती है। अगर आसपास कोई दूसरी आवाज नहीं है तो उसके चलने की आवाज से आप अनुमान लगा सकते हैं कि वह व्यक्ति आ रहा है। यह आवाज भी शनि कमजोर होने की निशानी है।
अगर जातक का शनि कमजोर है तो उसके बनते काम बिगड़ने लगते हैं। अगर कुंडली में शनि की स्थिति कमजोर है तो व्यक्ति को अपनी मेहनत का पूरा प्रतिफल नहीं मिलता, उसे बार-बार लगता है कि जिंदगी उसके हाथ से यूं ही निकलती जा रही है और दोस्तों व साझेदारों से झगड़े होते हैं। आपके अपने लोग आपसे बाते छुपायेंगे, व्यापर स्थिर नहीं होता, झूठा अपयश मिलता है। गन्दा कपडा पहनने की आदत पड़ है। पाव गंदे रहेंगे। गुप्त धन, गुप्त सम्बन्ध, गुप्त बातें पता चल जाती हैं। कारोबार के स्थान और घर में आग लगने का भय भी बना रहता है।
शनि देव के मंत्र
मंत्र व पूजा पाठ
इनमें शनिवार का व्रत, हनुमान जी की आराधना, शनि मंत्र, शनि यंत्र, छायापात्र दान करना प्रमुख उपाय हैं।
शनि दोष से छुटकारा पाने के लिए हर दिन सुबह उठ कर स्नान करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- शनि देव का महामंत्र
ओम निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
यह वैदिक मन्त्र है इसका सवा लाख जप शनि की साढ़ेसाती के दुस्प्र्भाव को भी काम कर देता है। - शनि गायत्री मंत्र
ओम भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्
यह उन साधकों के लिए सर्वोत्तम है जिनका अभी विवाह न हुआ हो। - शनि देव का बीज मंत्र
ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
यह शनि का बीज मंत्र है। शनि देव बीज मंत्र का जाप 23000 बार करना शुभ माना गया है
शनिवार के दिन करें इन चीजों का दान
काले वस्त्र और जूते
शनिवार के दिन काले रंग का विशेष महत्व है। इस दिन काले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। अगर आपको या परिवार के किसी अन्य स्दस्य को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तो इस दिन काले रंग के कपड़ों का दान करना उत्तम माना गया है। शनिवार की शाम काले रंग के कपड़े और जूते दान करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी लाभ मिलते हैं।
अनाज
अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में काफी परेशान हैं और शनि दोष से पीड़ित है, तो व्यक्ति को ऐसे में शनिवार के दिन अनाज का दान करना चाहिए। शनि दोष के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए शनिवार को 6 तरह के अनाजों का दान करें। इसके लिए गेंहू, चावल, मक्का, ज्वार और काली उड़द का दान करे।
काली तिल और काली उड़द
अगर आप धन संबंधी समस्याओं से परेशान हैं, तो उसके लिए काले तिल और उड़द की दाल का दान करना उत्तम माना गया है। शनिवार की शाम लगभग सवा किलो काली उड़द की दाल या काले तिल का दान किसी गरीब को करें। इससे शनि के कारण होने वाली धन संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है।
सरसो का तेल
शनिवार के दिन सरसों के तेल का दान बहुत चमत्कारी बताया गया है। इस दिन सरसों के तेल का दान करने से व्यक्ति के रुके हुए कार्य जल्द बनने लग जाते हैं। इसके लिए छाया दान सबसे उत्तम होता है। ये किसी गरीब को या फिर पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। इस उपाय को करने से शनि देव बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं.
रत्न
ज्योतिष शास्त्र कहता है कि अगर किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की महादशा, अंतर्दशा, साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रकोप हो तो उसे नीलम रत्न धारण करना चाहिए।
वृष मिथुन कन्या तुला कुंभ और मकर राशि के लोगों को नीलम धारण कर सकते हैं। ध्यान रखने के बात यह कि नीलम रत्न पहनने से पहले किसी अच्छे ज्योतिषी की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। इसका उपरत्न नीली, लाजवर्त कटहला व नीला हकीक हैं।
रुद्राक्ष
विद्वानों का मत है की प्रतिकूल शनि की दशा में सात मुखी रुद्राक्ष भी धारण किया जा सकता है।
शनि ग्रह शांति के लिए कई उपाय किये जाते हैं।
एक काजल की डिब्बी लीजिए और भोलेनाथ का नाम लेते हुए शनि दोष से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर से 21 बार इस डिब्बी को उतार लीजिए। अब एकांत में जाकर किसी पेड़ के नीचे एक छोटा गड्ढा खोद कर उसे दबा दीजिए। इससे शनि की कुद्रष्टि दूर होती है।
शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए मजदूरों की सेवा करना और उन्हें खाने-पीने का सामान देना उत्तम होता है। कुत्तों और कौओं की सेवा करने से शनि देव का दुष्प्रभाव कम होता है।
हर शनिवार के दिन एक लोहे के कटोरे में साबुत उड़द, काले चने और सरसों का तेल मिलाकर एक साथ डाल दें। अब इसे कपड़े में लपेटकर उस पर वह कटोरा रख दें और अपने माथे पर लगा कर इसे दान देना शुरू करें। इससे शनि दोष कम होता है।
थोड़े से जल में दूध और दो दाने चीनी के डालकर बड़ के पेड़ पर चढ़ाकर गीली मिट्टी का तिलक लगाएं। इससे शनि की कृपा मिलती है।
शनि कर्म भाव का स्वामी है इसलिए शनि के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए।
शनि राहु की युति में शनि कभी पीड़ित नहीं होता बल्कि बलवान होता है।