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शनि देव, Shani dev
शनि ग्रह के के बारे में पुराणों में बहुत सी बातें लिखी हैं। शनिदेव को सूर्यदेव का सबसे बड़ा पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। ज्योतषि शनि को पितृ शत्रु भी, मारक, अशुभ फल दाता और दुख कारक मानते हैं। और पाश्चात्य ज्योतिषी में तो इन्हे सैतान कहा जाता है। लेकिन शनि देव उतने अशुभ नही है, जितना उसे माना जाता है। शनि देव का मानव जीवन पर असर बहुत ही गहरा होता है। शनि देव को कर्म फलों के न्याय के देवता माना जाता है और इसलिए वे अपने उपासकों को कठिनाइयों और परिश्रम के माध्यम से सीखते हुए सफलता देने में मदद करते हैं। शनि सच्चे गुरु की तरह आपको अनुभवों के माध्यम से सिखाते हैं। इसके अलावा, शनि देव शत्रु नही मित्र है। वे मोक्ष को देने वाले हैं। शनि देव प्रकृति में संतुलन पैदा करते हैं, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करते हैं।
हिन्दू मान्यता है कि शनि देव की प्रसन्नता आपके दुखों को कम कर सकती है। इससे ढैया और साढ़ेसाती कम तकलीफ देते हैं। विद्वानों ने इसके लिए एक खास दिन पर पूजा बहुत जरूरी बताई है। शनि जन्मोत्सव ऐसे ही दिनों में से एक है तो आइये जानते हैं कब है शनि जन्मोत्सव, शनि जन्मोत्सव पर कैसे करें शनि देव की पूजा (Shani Dev Ki Puja)।
मान्यता है कि शनि पूजा से शनि दोष की पीड़ा कम होती है। ऐसे व्यक्ति जिन पर शनि की साढ़े साती और ढैया का प्रभाव रहता है, उन्हें इस दिन विशेष लाभ होता है।
शनि जयंती ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाई जाती है। यह तिथि 19 मई 2023 को पड़ रही है। शनि जन्मोत्सव के दिन तमाम साधक शनि देव की पूजा कर शनि की कृपा पाने का प्रयास करते हैं। शनि जयंती 2023: ज्येष्ठ अमावस्या तिथि की शुरुआत 18 मई रात 9.43 बजे से हो रही है, यह तिथि 19 मई रात 9.21 बजे संपन्न हो रही है। उदया तिथि में 19 मई को शनि जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
ज्योतिष और शनि देव।
फ़लित ज्योतिष के शास्त्रो में शनि को अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है, जैसे मन्दगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर और छायापुत्र आदि। शनि के तीन नक्षत्र हैं, पुष्य, अनुराधा, और उत्तराभाद्रपद। इनकी दो राशियाँ हैं मकर, और कुम्भ। तुला राशि में २० अंश पर शनि परमोच्च है और मेष राशि के २० अंश प परमनीच है। नीलम शनि का रत्न है।शनि की तीसरी, सातवीं, और दसवीं द्रिष्टि मानी जाती है। ये 29.5 वर्ष में सूर्य का एक चक्कर लगते हैं। शनि सूर्य,चन्द्र,मंगल का शत्रु,बुध,शुक्र को मित्र तथा गुरु को सम मानता है। शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार,कंप, हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है।
भगवान शनिदेव की जन्म कथा हमें पुरणों में अलग अलग वर्णन के साथ मिलती है। शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था। जो अभी 19 मई को आने वाली है। हालांकि कुछेक ग्रंथों में शनिदेव का जन्म भाद्रपद मास की शनि अमावस्या को माना गया है। एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शनिदेव का जन्म ऋषि कश्यप के अभिभावकत्व यज्ञ से हुआ माना जाता है।
शनि देव की उत्पत्ति की कथा।
स्कंदपुराण के काशीखंड अनुसार शनि भगवान के पिता सूर्य और माता का नाम छाया है। उनकी माता को संवर्णा भी कहते हैं लेकिन इसके पीछे एक कहानी है। राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ। संज्ञा सूर्यदेव के तेज से परेशान रहती थी तो वह सूर्य देव की अग्नि को कम करने का सोचने लगी। उसने अपना छाया रूप संवर्णा को सूर्यदेव की सेवा में छोड़कर अपने पिता के घर जाने का निर्णय लिया। जब वह पिता के घर पंहुची तो पिता ने कहा कि ये तुमने अच्छा नहीं किया तुम पुन: अपने पति के पास जाओ।
जब पिता ने शरण नहीं दी तो संज्ञा वन में चली गई और घोड़ी का रूप धारण करके तपस्या में लीन हो गई। उधर सूर्यदेव को जरा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं संवर्णा है। संवर्णा अपने नारीधर्म का पालन करती रही और छाया रूप होने के कारण उन्हें सूर्यदेव के तेज से कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के संयोग से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।
कहते हैं कि जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव का कठोर तपस्या किया था। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान यानि शनिदेव पर भी पड़ा। फिर जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला निकला। यह रंग देखकर सूर्यदेव को लगा कि यह तो मेरा पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।
मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव उनकी शक्ति से काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी तब कहीं उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन इस घटना के चलते पिता और पुत्र का संबंध हमेशा के लिए खराब हो गया।
शनिदेव केवल उन्हीं लोगों को परेशान करते हैं, जिनके कर्म अच्छे नहीं होते। शनिदेव न्याय के देवता हैं। यही वजह है कि भगवान शिव ने शनिदेव को नवग्रहों में न्यायाधीश का काम सौंपा है। मगर ये कुछ देवता हैं जिनकी पूजा करने पर शनि देव प्रसन्न होते है आइये जानते हैं।
एक बार हनुमान जी श्री राम के किसी कार्य में व्यस्त थे। शनिदेव शरारत स्वरुप उस रामकार्य में विघ्न डालने हनुमान जी के पास पंहुच गए। हनुमानजी ने शनि देव को चेतावनी दी और उन्हें ऐसा करने से रोका पर शनिदेव नहीं माने। हनुमानजी ने तब शनिदेव जी को अपनी पूंछ से जकड लिया और पुरे समय उन्हें घसीटते रहे जिससे उन्हें काफी चोटें लगी। जब राम कार्य समाप्त हुआ तब उन्हें शनिदेवजी का ख्याल आया और तब उन्होंने शनिदेव को आजाद किया। शनिदेव जी को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने हनुमानजी से माफ़ी मांगी कि वे कभी भी राम और हनुमान जी के कार्यों में कोई विघ्न नहीं डालेंगे और श्री राम और हनुमान जी के भक्तों को उनका विशेष आशीष प्राप्त होगा।
एक कथा के अनुसार अहंकारी लंकापति रावण ने शनिदेव जो को कैद कर लिया और उन्हें लंका में एक जेल में डाल दिया। जब तक हनुमानजी लंका नहीं पंहुचे तब तक शनिदेव उसी जेल में कैद रहे।
जब हनुमान सीता मैया की खोज में लंका में आए तब मां जानकी को खोजते-खोजते उन्हें भगवान शनि देव जेल में कैद मिले। हनुमानजी ने तब शनि भगवान को आजाद करवाया। आजादी के बाद उन्होंने हनुमानजी को धन्यवाद दिया और उनके भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखने का वचन दिया।
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि शनि महाराज भगवान सूर्य और उनकी दूसरी पत्नी छाया के पुत्र हैं। बताया जाता है कि एक बार गुस्से में सूर्यदेव ने अपने ही पुत्र शनि को शाप देकर उनके घर को जला दिया था। इसके बाद सूर्य को मनाने के लिए शनि ने काले तिल से अपने पिता सूर्य की पूजा की तो वह प्रसन्न हुए। इस घटना के बाद से तिल से शनिदेव और उनके पिता की पूजा होने लगी।
भगवान श्रीकृष्ण को शनिदेव का इष्ट माना जाता है। मान्यता है कि अपने इष्ट का एक दर्शन पाने को शनिदेव ने कोकिला न में तपस्या की थी। शनिदेव के कठोर तप से प्रसन्न होकर श्रीकृष्णजी ने कोयल के रूप में दर्शन दिए। तब शनिदेव ने कहा था कि वह अब से कृष्णजी के भक्तों को परेशान नहीं करेंगे।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पिप्लाद मुनि महृषि दधीचि के पुत्र थे। उनकी माता अपने 3 वर्ष के बालक को विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा। जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा।
एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा परन्तु बालक को कुछ पता नहीं था। तब नारद जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर बताया की वह महर्षि दधीचि के पुत्र है। उनके पूछने पर पता चला की जब महर्षि दधीचि का बलिदान हुआ तब उनपर शनि की महादशा थी।
देवर्षि नारद ने पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया। बालक ने ब्रह्मा जी से वर लेकर शनि को भसम करना चाहा। तब ब्रह्मा जी के कहने पर उन्होंने शनि देव को भस्म तो नहीं किया पर पैर में दंड मारकर छोड़ दिया। और वर माँगा कि जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।
हनुमान चालीसा का पाठ
शनि देव की कूर दृष्टि से बचने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना अचूक उपाय
है। अगर आपकी कुंडली में ढैया या साढ़े साती चल रही है या फिर आप शनि के प्रकोप से पीड़ित हैं, तो हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करें। श्री हनुमान चालीसा का पाठ शनि के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
शनि मंत्र का जाप
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः!
उपरोक्त मंत्र शनि बीज मंत्र है शनि देव की क्रूर दृष्टि से बचने के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
ॐ शं शनैश्चरायै नमः!
शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
तेल और छायापात्र का दान
शनि देव को तिल, तेल और छायापात्र दान अत्यन्त प्रिय हैं। माना जाता है कि इन चीजों का दान करने से शनि ग्रह शांत होता है और शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। शास्त्रों के अनुसार इनका दान करने से शनि देव द्वारा दिए गए कष्ट दूर होते हैं। छायापात्र दान करने की एक अन्य विधि है। मिट्टी के किसी बर्तन में सरसों का तेल लें और उसमें अपनी परछाई देखकर उसे दान कर दें।
धतूरे की जड़ का उपाय
शनि ग्रह की कृपा दृष्टि पाने के लिए शास्त्रों में धतूरे की जड़ को धारण करने की सलाह दी गई है। धतूरे की जड़ को गले या हाथ में बांधकर इसको धारण करें। इस जड़ को धारण करने से शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। धतूरे की जड़ को शनिवार के दिन शनि होरा अथवा शनि के नक्षत्र में धारण करना शुभ माना जाता है।
सात मुखी रुद्राक्ष धारण करें
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सात मुखी रुद्राक्ष शनि ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। रुद्राक्ष धारण करने से शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और शनि ग्रह से संबंधित दोष दूर होता है। इस रुद्राक्ष को सोमवार या शनिवार के दिन गंगा जल से धोकर धारण करने से शनि के कष्टों से राहत मिलती है।