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Surya Grahan 2022, सूर्य ग्रहण

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Surya Grahan in April 2022: 15 मई तक इन राशि वालों को धन, जुबान और वाहन प्रयोग पर देना होगा ध्यान

सूर्य ग्रहण को ज्योतिष शास्त्र में शुभ खगोलीय घटना के तौर पर नहीं देखा जाता है. वर्ष 2022 का पहला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल 2022 की रात्रि 12 बजकर 15 मिनट पर लग रहा है जो 1 मई 2022 को सुबह 04 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। पंचांग के अनुसरा, 30 अप्रैल को वैशाख कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि और शनिवार का दिन है। इस दिन स्नानदान श्राद्ध आदि की अमावस्या है। साथ ही इस दिन शनिवार का दिन है और अमावस्या जब शनिवार को पड़ती है तो वह शनिश्चरी अमावस्या कहलाती है।

Surya Grahan 2022

कहां-कहां दिखाई देगा सूर्य ग्रहण?

यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा लेकिन यह अटलांटिक, अंटार्कटिका, दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी पश्चिमी हिस्से और प्रशांत महासागर में दिखाई देगा।

मेष राशि में सूर्य का गोचर (Sun transit in Aries 2022)
सूर्य बीते 14 अप्रैल 2022 से मेष राशि में ही विराजमान हैं। सूर्य इस राशि में 15 मई 2022 तक रहेंगे। ध्यान देने वाली बात ये है कि मेष राशि में ही राहु बैठा हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार राहु जब सूर्य पर हमला करता है तब सूर्य ग्रहण लगता है। सूर्य इस राशि में राहु के साथ 15 तक रहेंगे, जब तक राहु और सूर्य की युति बनी रहेगी तब तक इन राशि वालों को सावधान रहने की जरूरत है।

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सूर्य ग्रहण के प्रभाव

सूर्य ग्रहण और स्वास्थ्य

ज्योतिष में सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा और जीवन का कारक माना जाता है। ऐसे में सूर्य ग्रहण से जुड़े अलग-अलग तथ्य और मिथक मौजूद हैं। यूं तो इन सभी कथनों और तथ्यों का वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है लेकिन ग्रहण की गंभीरता और उसकी शक्ति के बारे में हर व्यक्ति को अवश्य ही जानना चाहिए।

ऐसे में नीचे हम आपको पांच ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि सूर्यग्रहण (Surya Grahan 2022) आपके शरीर और स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है।

थकान और सुस्ती महसूस करना
कई आध्यात्मिक सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि सूर्य ग्रहण के दौरान व्यक्ति थका हुआ और बीमार महसूस कर सकता है। ऐसे में सलाह दी जाती है कि ग्रहण के दौरान कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचें। क्योंकि इस दौरान मूड पर प्रभाव पड़ने की आशंका प्रबल होती है।

गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव
ग्रहण से जुड़े मिथकों के अनुसार कहा जाता है कि सूर्य ग्रहण का प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चों पर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में बच्चे बीमारियों या फिर मनोरोगों के साथ पैदा हो सकते हैं और यही वजह है कि गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान ज्यादा सावधानी बरतने के लिए कहा जाता है। यूं तो इस सिद्धांत का कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है लेकिन फिर भी लोग इस बात पर बहुत ज्यादा विश्वास करते हैं।

आंखों की परेशानियां
ग्रहण हो या फिर न हो लेकिन सूर्य को सीधे नग्न आँखों से देखना आंखों के लिए बेहद ही खतरनाक हो सकता है। हालांकि सूर्य ग्रहण देखना चाहते हैं तो आपको कुछ विशेष तरीकों का पालन अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा जानकारी के लिए बता दें कि, यह कोई मिथ्या नहीं है इस बात को वैज्ञानिकों ने भी प्रमाणित किया है। ऐसे में बहुत मुश्किल होता है कि लोग सूर्यग्रहण जैसी खूबसूरत घटना को ना देखें। हालांकि सूर्य का अपनी आंखों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जान कर भी यह गलती करना बेवकूफी साबित हो सकती है। ऐसे में यदि आप को ग्रहण देखना है तो इसके लिए आप फिल्टर का उपयोग करें या ग्रहण देखने वाले स्पेशल चश्मों का प्रयोग करें। ऐसा करने से आपकी आंखों पर सूरज की हानिकारक किरणों नहीं पहुंचेंगे जिसे आपका रेटिना सुरक्षित रहेगा। हालांकि यदि किसी ने ग्रहण को नंगी आंखों से देखने की गलती की तो इससे रेटिना को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है और कई मामलों में लोग अंधे भी हो जाते हैं।

पाचन संबंधित परेशानियां
ग्रहण से जुड़ी कई बातों की तरह एक बात ही भी मानी जाती है कि सूर्य ग्रहण के दौरान पाचन तंत्र में परेशानियां हो सकती हैं। यही वजह है कि बहुत से लोग ग्रहण से पहले और उसके दौरान हल्का भोजन करने या फिर पूर्ण रूप से उपवास करने की सलाह देते हैं।

मनोवैज्ञानिक प्रभाव
सूर्य ग्रहण (Surya Grahan 2022) के बारे में बहुत से जानकारों का ऐसा भी मत है कि सूर्य ग्रहण का मनुष्य पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। इससे संबंधित अध्ययनों से पता चलता है कि, कई मामलों में सूर्य ग्रहण के दौरान लोगों को अजीबोगरीब सपने दिखाई देते हैं, कई लोग किस तरह उत्तेजित महसूस करते हैं, और कई परिस्थितियों में लोगों को अपने रिश्तों में उतार-चढ़ाव या फिर कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है।

मेष राशि

मेष राशि (Aries)- धन की हानि हो सकती है. मानसिक तनाव में वृद्धि होगी। 15 मई तक अपनी वाणी और स्वभाव पर विशेष ध्यान देना होगा। वाणी दोष के कारण आपके अपने आपसे दूरी बना सकते हैं। अहंकार हो सकता है. जिससे मित्र भी शत्रु बन सकते हैं. विनम्र रहने का प्रयास करें। अनावश्यक विवादों से बचने का प्रयास करें।

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कर्क राशि (Cancer)- वाहन चलाते समय सावधानी बरतनी होगी। इस दौरान मन खिन्न रहेगा। काम में बाधा आ सकती है. जिस कारण क्रोध की स्थिति बन सकती है. ऑफिस में सहयोगियों का पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं होगा। जिस कारण लक्ष्य को पाने में मुश्किल आ सकता है। संतान की सेहत को लेकर चिंता रहेगी. अनावश्यक यात्रा करनी पड़ सकती है।

वृश्चिक राशि वालों को इस दौरान मान हानि का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए कम बोलना या बहुत सोच समझकर बोलना आपके लिए अच्छा रहेगा। वहीं विवादों से सावधान रहें। शत्रु नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

धनु राशि

धनु राशि (Sagittarius)- शत्रु सक्रिय हो सकते हैं। इस दौरान अपनी योजनाओं को लेकर विशेष सतर्कता बरतनी होगी। अनुशासित जीवन शैली को अपनाने की जरूरत है. आलस के कारण काम पेंडिंग हो सकते हैं। बॉस से संबंध खराब हो सकते हैं। प्रतिद्वंदी कार्यों में बाधा पहुंचाने का काम करेगें। इस समय सावधान रहने की आवश्यकता है। धन की बचत करें, कर्ज लेने की स्थिति से बचें।

भारतीय वैदिक काल और सूर्य ग्रहण
वैदिक काल से पूर्व भी खगोलीय संरचना पर आधारित कलैन्डर बनाने की आवश्कता अनुभव की गई। सूर्य ग्रहण चन्द्र ग्रहण तथा उनकी पुनरावृत्ति की पूर्व सूचना ईसा से चार हजार पूर्व ही उपलब्ध थी। ऋग्वेद के अनुसार अत्रिमुनि के परिवार के पास यह ज्ञान उपलब्ध था। वेदांग ज्योतिष का महत्त्व हमारे वैदिक पूर्वजों के इस महान ज्ञान को प्रतिविम्बित करता है।

ग्रह नक्षत्रों की दुनिया की यह घटना भारतीय मनीषियों को अत्यन्त प्राचीन काल से ज्ञात रही है। चिर प्राचीन काल में महर्षियों नें गणना कर दी थी। इस पर धार्मिक, वैदिक, वैचारिक, वैज्ञानिक विवेचन धार्मिक एवं ज्योतिषीय ग्रन्थों में होता चला आया है। महर्षि अत्रिमुनि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य थे। ऋग्वेदीय प्रकाश काल अर्थात वैदिक काल से ग्रहण पर अध्ययन, मनन और परीक्षण होते चले आए हैं।

सूर्य ग्रहण के समय हमारे ऋषि-मुनियों के कथन
हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य ग्रहण लगने के समय भोजन के लिए मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में कीटाणु बहुलता से फैल जाते हैं। खाद्य वस्तु, जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिए ऋषियों ने पात्रों के कुश डालने को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएँ और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है ताकि कीटाणु मर जाएँ। ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिए बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़े, भीतर-बाहर के कीटाणु नष्ट हो जाएं और धुल कर बह जाएं।

पुराणों की मान्यता के अनुसार राहु चन्द्रमा को तथा केतु सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों ही छाया की सन्तान हैं। चन्द्रमा और सूर्य की छाया के साथ-साथ चलते हैं। चन्द्र ग्रहण के समय कफ की प्रधानता बढ़ती है और मन की शक्ति क्षीण होती है, जबकि सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमज़ोर पड़ती है। गर्भवती स्त्री को सूर्य-चन्द्र ग्रहण नहीं देखने चाहिए, क्योंकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन सकता है, गर्भपात की सम्भावना बढ़ जाती है। इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहु-केतु उसका स्पर्श न करें। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिला को कुछ भी कैंची या चाकू से काटने को मना किया जाता है और किसी वस्त्रादि को सिलने से रोका जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं।

ग्रहण लगने के पूर्व नदी या घर में उपलब्ध जल से स्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए। भजन-कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग करें। ग्रहण के दौरान कोई कार्य न करें। ग्रहण के समय में मंत्रों का जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, केश विन्यास बनाना, रति-क्रीड़ा करना, मंजन करना वर्जित किए गए हैं। कुछ लोग ग्रहण के दौरान भी स्नान करते हैं। ग्रहण समाप्त हो जाने पर स्नान करके ब्राह्‌मण को दान देने का विधान है। कहीं-कहीं वस्त्र, बर्तन धोने का भी नियम है। पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है और ताजा भरकर पिया जाता है। ग्रहण के बाद डोम को दान देने का अधिक माहात्म्य बताया गया है, क्योंकि डोम को राहु-केतु का स्वरूप माना गया है।

सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये। बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना – ये सब कार्य वर्जित हैं। ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्देश्य करके जल में जल डाल देना चाहिए। ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेने वाले को उसका दोष भी नहीं लगता। ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमन्दों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। ‘देवी भागवत’ में आता है कि भूकम्प एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये।

ग्रहण काल में कौन से मंत्र जपें
मंत्र सिद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ समय ग्रहण को माना गया है। ग्रहण काल में किसी भी एक मंत्र को, जिसकी सिद्धि करना हो या किसी विशेष प्रयोजन हेतु सिद्धि करना हो, जप सकते है। ग्रहण काल में मंत्र जपने के लिए माला की आवश्यकता नहीं होती बल्कि समय का ही महत्व होता है।
आप अपनी मान्यता के अनुसार जप करें उसका पूरा लाभ होगा जैसे यदि आप वैष्णव है तो ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, या ॐ केलीं कृष्णाय नमः का जप करें। शिव को मानते हैं तो ॐ नमः शिवाय का जप करें और शाक्त है तो देवी का कोई भी मन्त्र जैसे ॐ दूं दुर्गाय नमः का जप करें। इसके आलावा आप गायत्री मंत्र का जाप करें ये सबसे अच्छा है। आप शाबर मंत्रो का प्रयोग भी कर सकते हैं।

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