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नारायण बलि नारायण नाग बलि और त्रिपिंडी पूजा क्या होती है। इसे कब करना चाहिए।

नारायण बलि
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि जिस परिवार के किसी सदस्य का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी पीढि़यों में पितृदोष माना जाता है।
कहते हैं कि ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है। यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है, इस दोष के निवारण के लिए लोग नारायणबलि की पूजा करते हैं।
नारायण बलि पुजा:
गरुड़ पुराण के अनुसार, यह पूजा तब की जाती है जब कोई व्यक्ति की असामान्य मृत्यु जैसे बीमारी से मौत, आत्महत्या, जानवरों द्वारा, शाप द्वारा, सांप के काटने से मौत, आदी से होती हैं।

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आप इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि
नारायण बलि ऐसा विधान है, जिसमें लापता व्यक्ति को मृत मानकर उसका उसी ढंग से क्रियाकर्म किया जाता है, जैसे किसी की मौत होने पर। इस प्रक्रिया में कुश घास से प्रतीकात्मक शव बनाते हैं और उसका वास्तविक शव की तरह ही दाह-संस्कार किया जाता है। इसी दिन से आगे की क्रियाएं शुरू होती हैं, जैसे बाल उतारना, तेरहवीं, ब्रह्मभोज इत्यादि।

नागबली पूजा

जब कोई व्यक्ति गलती से सांप को मारता है तब उसे शाप लगता है जिसके निमित कुंडली में कालसर्प दोष जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। कुछ लोगों का मानना है की जब कुंडली में राहु परेशान करते हैं तो आप नागबलि पूजा भी करा सकते हैं।

नारायणबलि और नागबलि में अंतर

नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। कई लोगों का ये मानना है कि इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।
इसलिए लोग नारायण नागबलि की पूजा करते हैं।

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नारायणबलि-नागबलि बलि क्यों करते है

जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है।

प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।

परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है। इससे बचने के लिए ये पूजा कराइ जाती है।

अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग यह पूजा करते हैं।
नारायण नागबलि किन लोगों को करनी चाहिए

जिन्हे स्वप्न में नाग दिखाई देते हों या नाग पीछे पड़ जाता हो।
परिवार में आपसी झगड़े होना। खास कर जब भी कोई अनुष्ठान या धार्मिक कार्य हो तब घर में जरूर झगड़ा होना।
घर की दक्षिण दीवार पर दरार आना।
संतानसुख का लाभ न होना अन्यथा गर्भपात होना। मतलब कासीव तो हुआ पर बच्चा 3 माह से पहले ही गिर जाये तो यह भी पितृ दोष के लक्षण हो सकते हैं।
पैतृक व्यापार में नुकसान एवं पैसे की बर्बादी होती है।
परिवार में बार-बार स्वास्थ्य की समस्याएं उत्पन्न होना। ऐसा लगना जैसे किसी ने कुछ करा दिया हो। एक ठीक होना तो दूसरा बीमार होना।
पैतृक मामलों में कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं।

कैसे और कब तथा कौन कर सकता है यह पूजा

संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।

यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।

कब नहीं की जा सकती है नारायणबलि-नागबलि

नारायणबलि कर्म पौष तथा माघा महीने में तथा गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।

पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए।

त्रिपिंडी पूजा

त्रिपिंडी पूजा एक तरह का श्राद्ध होता है। इसका अर्थ है पिछली तीन पीढ़ियों के हमारे पूर्वजों का पिंड दान करना। पिछली तीन पीढ़ियों से परिवार में किसी का भी बहुत कम उम्र या दुर्घटना में निधन हो गया हो तो उनका श्राद्ध करना बहुत जरुरी माना जाता है। उन लोगों को मुक्त अथवा उनकी आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है।

अधिकांश लोगों का विचार है कि त्रिपिंडी का अर्थ है 3 पीढ़ी के पूर्वजों पिता दादाजी और परदादा जी को संतुष्ट करना। लेकिन यह 3 पीढ़ियों के साथ उनके देव अपनी अर्धांगिनी की तीन पीढ़ी और उनके गुरु जो अब नहीं है उनकी भी पूजा कर उन्हें संतुस्ट करना होता है। ‘त्रिपिंडी श्राद्ध’ की सहायता से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति करवाई जाती है।

त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रह्मा, विष्णु और महेश इनकी प्रतिमाए उनका प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक पूजन किया जाता है| हमे सताने वाला, परेशान करने वाला पिशाच्च योनिप्राप्त जीवात्मा रहता है उसका नाम एवं गोत्र हमे द्न्यात नहीं होने से उसके लिए “अनादिष्ट गोत्र” का शब्दप्रयोग किया जाता है। अंत : इसके प्रेतयोनि प्राप्त उस जीव आत्मा को संबोधित करते हुए यह श्राद्ध किया जाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध जीवनभर दरिद्रता अनेक प्रकार से परेशानियां श्राद्ध कर्म, और्ध्ववैदिक क्रिया शास्त्र के विधी के अनुसार न किए जाने के कारण भूत , प्रेत , गंधर्व , राक्षस , शाकिणी – डाकिणी , रेवती , जंबूस आदि द्वारा बाधा उत्पन्न होती है ।

त्रिपिंडी और पंच पिंडी श्राद्ध एक ही होता है परंतु त्रिपिंडी में तीन स्थानों पर पिंड स्थापित होते हैं पहला होता है भगवान का , दूसरा पितृ का , तीसरा स्थान प्रेत का। इसलिए ही इसको त्रिपिंडी श्राद्ध कहते हैं क्योंकि इसमें तीन पिंड स्थापित होते हैं और पिंडों की पूजा होती है।

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