kis pahar me kya kam krna cahiye,
kis pahar me kya kam krna cahiye,
ज्यादातर लोगों को हिन्दू कल गणना को मान्यता नहीं देते। क्योकि उन्हें पता ही नहीं यहाँ हम दिन प्रहार और मुहर्त के बारे में बताने जा रहे हैं।
मैं यहां जो जनकारी दे रहा हूँ, यह सूर्य सिंद्धांत पुस्तक से ली गई है।
जब समय की बात हो तो अहोरात्रि पहले आता है आपकी जानकारी लिए बता दें की दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक होता है। रात सूर्यास्त से सूर्योदय तक होती है। आज के सूर्योदय से कल के सूर्योदय के बीच के काल को अहोरात्र कहा जाता है।
वैसे पारंपरिक रूप से इसको अनवरत कार्य के लिए भी प्रयोग करते हैं जैसे कोई व्यक्ति अगर किसी काम में लगातार जुटा हुआ है तो हम कहेंगे वह तो अहोरात्र काम कर रहा है । अभी बोलते है दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करना।
प्रश्न यह है कि
एक दिन में कितने प्रहर होते हैं और एक प्रहर में कितने घंटे होते हैं?
प्रहर – ‘पहर’ हिन्दी-प्रहर का शब्द है जो ‘पहरा देने’ और ‘पहरेदारी’ के सम्बंध में भी प्रयोग होता है जो संस्कृत के प्रहरी शब्द का ही एक रूपांतर है। एक प्रहर राजाओं के समय में प्रहरियों के लिए एक बार का कार्य-काल होता था (यानि हर प्रहर में द्वारपाल बदला जाता था)।
आमतौर पर वर्तमान में सेकंड, मिनट, घंटे, दिन-रात, तक की ही प्रचलित धारणा है।
हिन्दू धर्म में एक अणु यानि सेकेण्ड के लगभग 16 हजारवें हिस्से से लेकर और ब्रम्हांड के अंत तक की कल गणना निर्धारित है। साथ ही सभी लोकों का समय अलग अलग है।
हम लोग केवल एक ही प्रहर के बारे में ही जानते हैं वो है दो पहर। लेकिन हिन्दू धर्मशास्त्र में एक दिन में कुल आठ प्रहरों की बात की गयी है। जिनमें से दिन में चार और रात में चार प्रहर होते हैं। एक प्रहर करीबन तीन घंटे का होता है। अहोरात्र में आठ प्रहर होते हैं।
दिन में 30 मुहूर्त होते हैं। उनके बारे में बाद में बात करेंगे।
पौने चार मुहूर्त = 1 प्रहर = साढ़े सात घटी,
1 घटी = 24 मिनट।
24घंटे = 8 पहर= 64 घड़ी।
1 पहर =3 घंटे;
1 पहर=8 घड़ी
आठ प्रहर के नाम :
दिन के चार प्रहर- 1.पूर्वान्ह, 2.मध्यान्ह, 3.अपरान्ह और 4.सायंकाल।
रात के चार प्रहर- 5.प्रदोष, 6.निशिथ, 7.त्रियामा एवं 8.उषा।
हम यहाँ दिन की शरुआत सुबह 06:00 बजे से मानते हैं।
सूर्योदय के समय दिन का पहला प्रहर प्रारंभ होता है जिसे पूर्वान्ह कहा जाता है।इसका समय सुबह के 6 बजे से 9 बजे के बीच का होता है। यह प्रहर आंशिक रूप से सात्विक और राजसिक होता है, लेकिन नकारात्मक नहीं। इस प्रहर में सोना या संभोग करना वर्जित है। इस प्रहर में क्रोध को कदापि नहीं करना चाहिए अन्यथा इसका मन और मस्तिष्क पर तो बुरा असर पड़ता ही है साथ ही भविष्य भी खराब होता है। इस प्रहर में कटु वचन कहना या गृहकलह करना वर्जित है। इस प्रहर में घर में गंदगी बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इस प्रहर में घर में चंदन और गुलाब वाली सुगंध फैलाई जाए तो सुख और शांति बनी रहती है।
दिन के दूसरे प्रहर को मध्याह्न भी कहते हैं। यह प्रहर सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक का रहता है। इस प्रहर में हमारा मस्तिष्क ज्यादा सक्रिय होता है इसलिए कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है। इस प्रहर में अगर हनुमानजी को लाल फूल चढ़ाया जाए तो संपत्ति का लाभ मिलता है और कर्ज से मुक्ति या राहत मिलती है। हालांकि इस प्रहर में मांगलिक कार्य करने और पेड़ पौधे लगाने से बचने की सलाह दी जाती है।
दिन के तीसरे प्रहर को अपरान्ह (दोपहर बाद) या सप्तम प्रहर कहते हैं। यह समय दोपहर 12 बजे से 3 बजे के बीच तक का रहता है। यह तमोगुणी समय होता है। इस प्रहर में भोजन करना उत्तम है लेकिन सोना और स्नान करना उचित नहीं। इस प्रहर में नए काम की शुरुआत कर सकते हैं। इस प्रहर में भगवान श्रीकृष्ण की उपासना की जाए तो संतान उत्पत्ति की समस्या दूर होती है।
दिन के चौथे और अंतिम प्रहर को सायंकाल कहते हैं। दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे के बीच का समय सायंकाल का होता है। इसमें तमोगुण की प्रधानता रहती है। इस प्रहर में विश्राम कर सकते हैं लेकिन भोजन से बचना चाहिए और कोई भी नया काम शुरू नहीं करना चाहिए। इस समय में अगर नियमित रूप से पौधों में जल डाला जाए तो माता और पिता का बच्चों के साथ उनका संबंध मथुर रहता है।
रात के प्रथम प्रहर को प्रदोष काल और प्रथम प्रहर कहते हैं। शाम को 6 बजे से रात को 9 बजे तक का समय रात का प्रथम प्रहर होता है। इस प्रहर में सतोगुण की प्रधानता रहती है। इस प्रहर में किसी भी प्रकार के तामसिक कार्य करना वर्जित है। क्रोध, कलह और बहस करना वर्जित है। इस प्रहर में भोजन करना और सोना वर्जित होता है। इस प्रहर में पूजा, प्रार्थना, संध्यावंदन, ध्यानआदि करने से बहुत लाभ मिलता है। इस समय में घर के पूजा के स्थान पर घी का या तिल के तेल का दीपक जलाना अच्छा रहता है।
रात के दूसरे प्रहर को निशिथ कहते हैं। यह प्रहर रात की 9 बजे से रात की 12 बजे के बीच का होता है। इस प्रहर में तामसिक और राजसिक अर्थात दोनों ही गुणों की प्रधानता होती है लेकिन यह पूर्णत: नकारात्मक नहीं होता। इस प्रहर में भूलकर भी फूल या पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए और ना ही किसी वृक्ष को छोड़ना चाहिए। ऐसा करने से पाप लगता है। इस प्रहर में किसी भी प्रकार की खरीददारी भी नहीं करना चाहिए। इस प्रहर में बने भोजन का कुछ हिस्सा पशु को खिलाएंगे तो आर्थिक रूप से हमेशा मजबूत बने रहेंगे।
रात के तीसरे प्रहर को त्रियामा कहते हैं जो 12 बजे से रात के 3 बजे के बीच का होता है। इस मध्यरात्रि भी कहते हैं। यह समय शुद्ध रूप से तामिसक माना गया है। यह समय पूर्ण विश्राम का ही होता है। इस प्रहर में भोजन, स्नान या ध्यान करना वर्जित है। ऐसा करने से भारी नुकसान उठाना होता है। इस प्रहर में प्रार्थना करने से वह तुरंत फलदायी होती है।
इस प्रहर को उषा काल कहते हैं। रात के 3 बजे से सुबह के 6 बजे के बीच के समय को रात का अंतिम प्रहर भी कहते हैं। यह प्रहर शुद्ध रूप से सात्विक होता है। इस प्रहर में भी अन्न जल ग्रहण करने से बचें। इस प्रहर में उठकर नित्यकर्मों से निपटकर पूजा, अर्चना या ध्यान करने से लाभ मिलता है। अगर इस प्रहर में शिवलिंग पर नियमित रूप से जल चढ़ाया जाए तो जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाती है।