DharmMantra

benefits of Bhagya suktam, भाग्य सूक्तम के लाभ

benefits of Bhagya suktam, भाग्य सूक्तम के लाभ, benefits of Bhagya suktam in hindi,

सनातन धर्म में ऋग्वेद की मान्यता सबसे अधिक है कहा जाता है की यह ब्रह्मवाक्य है।
वेदों से ही आरण्यक तथा उपनिषद् ब्राम्हण ग्रन्थ वेदांग स्मृतियाँ व पुराण निकले हैं। जैसा की आपलोग जानते हैं की वेदों की रचना सूक्तों और छंदों में हुई हैं। भाग्य सूक्तम भी ऋग्वेद से प्राप्त चमत्कारी सूक्त है। भाग्य सूक्तम भग सूक्तम के रूप में उच्चारित होता है, क्योंकि यह मुख्य रूप से भगवान, भग को संबोधित करता है । भग सूर्य के बारह रूपों में से एक है। भग शब्द का अर्थ सौभाग्य, भाग्य और समृद्धि भी है। इसलिए, भाग्य सूक्तम का जप अच्छे भाग्य और समृद्धि की प्रार्थना के रूप में किया जाता है। भग विवाह के अधिष्ठाता देवता भी हैं। इसलिए, भाग्य सूक्तम को सुखी विवाह के लिए प्रार्थना करने वाला एक मंत्र या स्वर भी माना जाता है।

Sarvarist Nivaran Strotr । सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र


इसके अलावा, भाग्य सूक्तम का जप यज्ञ या हवन के हिस्से के रूप में किया जाता है, ताकि समृद्धि और कल्याण के लिए भग देवता का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके। भगवान भग का उल्लेख वेदों में मिलता है, लेकिन पुराणों में नहीं। पुराणों में भगवान शब्द का प्रयोग किया जाता है, जो भग से लिया गया है। जिसके पास भग हैं उन्हें भगवान कहा गया। इसलिए परसुराम, राम, कृष्ण, वाल्मीकि, बुद्ध, महावीर चैतन्य महाप्रभु आदि महपुरुषों के आगे हम भगवान लगते हैं।
भाग्य सूक्तम को प्रातः सूक्तम यानि सुबह का भजन कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सुबह के समय इस स्तोत्र का जाप मन लगाकर करने से दिन की अच्छी शुरुआत होती है।
भाग्य सूक्तम ऋग्वेद के सातवें मंडल के 41वें सूक्त के रूप में आता है। भाग्य सूक्तम के मंत्रों से जुड़े ऋषि वशिष्ठ मैत्रावरुणि हैं। भाग्य सूक्तम के सात मंत्रों को अथर्ववेद में, कृष्ण यजुर्वेद के तैत्तिरीय ब्राह्मण में दोहराया गया है।
सुबह सुबह भाग्य सूक्तम जपने व सुनने से पूरी प्रकृति सहयोग में लग जाती है। इसे कही जाते समय या कोई भी शुभ कार्य करते समय जपा जाता है।
यह आपके पूर्वजन्म के घोर पाप कर्मों को नष्ट कर आपको सौभग्य देता है। आपके सोये हुए भाग्य को जगाने के लिए भाग्य सूक्त सर्वोत्तम है। इस सूक्त को सुबह उठकर नियमित सुनने से धन का लाभ मिलता है साथ ही वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। सूक्त को जपने से पहले जो संकल्प लिया जाता है वह अवश्य पूर्ण होता है।

ऊँ प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रा वरुणा प्रातरश्विना ।
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातस्सोममुत रुद्रँ हुवेम ॥१॥

हम प्रात: के समय पर अग्नि, वरुण, इन्द्र, मित्र, अश्विन कुमार, भग, पूष, ब्रह्मनास्पति, सोम और रूद्र का आवाहन करते हैं।
इसमें ऋषि गण सबसे पहले अग्नि जो देवताओं तक प्रार्थना व हवन सामग्री पहुंचने में मदद करते हैं उनका स्मरण किया है, फिर देवताओं के राजा इंद्र, सूर्य देवता जिन्हे मित्र कहते हैं, वर्षा के देवता वरुण, देवताओं के दो डॉक्टरों अश्विनी कुमारों का और भाग्य के देवता भग, मार्ग के देवता पूषा का आह्वान करते हैं।

प्रातर्जितं भगमुग्रँ हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता ।
आद्ध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यंभगं भक्षीत्याह॥२॥

हम शक्तिशाली, युद्ध में जीतने वाले भग का आवाहन करते हैं जिनके बारे में सोचकर राजा भी कहते हैं की हमें भग दीजिए।
भग यानि भाग्य ऐसे देवता है जो कभी युद्ध नहीं हारते, वे जिसकी तरफ खड़े होंगे वह विजेता होगा। इसलिए भग का आवाहन करते हैं।

भग प्रणेतर्भगसत्यराधो भगेमां धियमुदवददन्नः।
भगप्रणो जनय गोभि-रश्वैर्भगप्रनृभि-र्नृवन्तस्स्याम ॥३॥

हे भग हमारा मार्गदर्शन करें ,आपके उपहार अनुकूल हैं ,हमें ऐश्वर्य दीजिये हे भग! हमें घोडे {सवारी }, गाय और योद्धा वंशज दीजिए।

उतेदानीं भगवन्तस्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्।
उतोदिता मघवन् सूर्यस्य वयं देवानाँ सुमतौ स्याम ॥४॥

कृपा कीजिये कि अब हमें सुख-चैन मिले , और जैसे जैसे दिन बढ़ता जाये, जैसे -जैसे दोपहर हो , शाम हो हम देव कृपा से प्रसन्न रहे। जिसे हम आज की दुनिया में दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की होना कहते हैं ऐसा हो।

भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तस्स्याम।
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीमि सनो भग पुर एता भवेह॥५॥

हे भग आप परमानंद प्रदान करें और आपके द्वारा देव हमें प्रसन्नता से स्वीकार करें हे भग हम आपका आवाहन करते हैं ,आप यहाँ हमारे साथ आयें।

समध्वरायोषसोऽनमन्त दधिक्रावेव शुचये पदाय।
अर्वाचीनं वसुविदं भगन्नो रथमिवाश्वावाजिन आवहन्तु॥६॥

इस प्रकार प्रतिदिन भग यहाँ आयें {पवित्र स्थान जैसे दधिक्रावन }जैसे शक्तिशाली घोड़े रथ को खींचते हैं वैसे ही भग का यहाँ आवाहन किया जाये।

अश्वावतीर्गोमतीर्नउषासो वीरवतीस्सदमुच्छन्तु भद्राः।
घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीनायूयं पात स्वस्तिभिस्सदा नः॥७॥

इस प्रकार कृतार्थ सुबह हमें प्राप्त हो हमें हमें सुपुत्र, घोडे, पशु, दुग्ध और योधा रिश्तेदार प्राप्त हो हे देव हमें अपने आशीर्वाद दीजिये।

यो माऽग्नेभागिनँ सन्तमथाभागं चिकीर्षति।
अभागमग्ने तं कुरु मामग्ने भागिनं कुरु ॥८॥

हे अग्नि, सहभागी संतों ने वर्तमान भेंट अर्पित की है। हे अग्नि, वह भाग सहभागियों को दिया जाये।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *