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दोस्तों दुनिया में बहुत सारे लोग हैं जो ध्यान करना चाहते हैं और ध्यान करते भी हैं। परंतु उन्हें ध्यान में ही सफलता नहीं मिलती या ध्यान करते समय उन्हें महसूस होता है कि उनका ध्यान लग ही नहीं रहा। इससे वह विचलित हो जाते हैं गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने उपदेश में ध्यान के विषय में कुछ बातें बताएं जो बड़ी सारगर्भित यानि मीनिंग फुल है। हम लोग एक श्लोक सुनते आए हैं कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन यानी कर्म करो और फल की चिंता मत करो। आप कहेंगे कि यह ध्यान से कैसे जुड़ा हुआ है तो यह जानने के लिए पूरी वीडियो देखेगा कि कैसे यह श्लोक ध्यान से जुड़ा हुआ है। ध्यान करने से पहले हमें क्या करना है। यह समझने के लिए यह वीडियो जरूर देखिए अन्यथा ध्यान को समझने में थोड़ी सी कठिनाई होगी।

स्वामी सर्वप्रियनंद जो वेद, उपनिषद, वेदांत व योग तथा मानव मनोविज्ञान पर बहुत अच्छी पकड़ रखते हैं। उनके भाषण बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में होते हैं। उन्होंने एक पुस्तक जिसका नाम है फ्लो उसके लेखक मिहाय चिकसेन्टमिहाय का जिक्र करते हुआ बताय कि वह कंसंट्रेशन यानी एकाग्रता को महत्व देते हैं लेखक कहता है कि आपकी जिंदगी की क्वालिटी आपके एक्सपीरियंस की क्वालिटी पर निर्भर करती है हमारे हर दिन हर मिनट के अनुभव हमारे जीवन की क्वालिटी को निर्धारित करते हैं और इस मिनट के अनुभव की क्वालिटी हमारे कंसंट्रेशन पर निर्भर करती है। वह कहते हैं कि हम अपनी कंसंट्रेशन केवल एग्जाम में पास या अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ही इस्तेमाल नहीं करते बल्कि इससे हमारी लाइफ की क्वालिटी इसपर निर्भर करती है। बल्कि पूरे जीवन का आनंद और अनुभव की गहराई हमारे दीप कंसंट्रेशन की जरुरत है।

वह कहते हैं कि निहाय ने कंसंट्रेशन के गहरे अनुभव को फ्लो का नाम क्यों दिया? वह एक छोटी सी कहानी सुनाते हैं कि एक बार निहाय ने म्यूजिक कंडक्टर से इंटरव्यू में पूछा कि आपको सबसे ज्यादा खुशी कब हुई थी। तो म्यूजिक कंडक्टर ने कहा कि जब मैं ऑर्केस्ट्रा के बीच होता हूँ। उस समय लगता है कि सब अपने आप हो रहा है हाथ पैर अपने आप चल रहे हैं जैसे अंदर से म्यूजिक बह रहा है।


स्वामी सर्वप्रियनंद आगे अपनी बात कहते हैं कि यह कोई अनोखा अनुभव नहीं है हम सब कई बार यह अनुभव महसूस कर चुके हैं। आप फ्लो को बोरियत का विपरीत समझ सकते हैं। मुझे मेरे दोस्त का उदाहरण याद आया वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। वह कई बार मुझसे ध्यान के विषय में बातें करते हैं। उन्होंने एक बात कही कि मुझे यह ध्यान करने में मजा नहीं आता। बल्कि जब मैं अपने सिस्टम पर बैठता हूं तो मैं घंटों काम करता रहता हूं। मुझे पता ही नहीं चलता कि समय कब निकल गया। दरअसल वही चीज फ्लो है। कुछ लोग पब जी खेलने में इतने मग्न हो जाते हैं की उन्हें पता ही नहीं चलता। यह फ्लो की स्थिति है। आपको काम में इतना मजा आये की आपको शरीर की भी सुध ना रहे। यहॉ शुद्ध है यही ध्यान से पहले का अनुभव है।

स्वामी सर्वप्रियनंद आगे कहते हैं। टेनिस खेलने वाला खिलाडी उसका सिर्फ एक ही काम होता है कि जब बॉल उसकी तरफ आये तो वह उसे दूसरों खिलाडी के पाले में पंहुचा दे। शुरू में उसको थोड़ी कठिनाई आती है लेकिन उसका दिमाग इस चेलेंज को स्वीकार करता है। उसके सामने पहला चैलेंज ही होता है कि उसे बॉल को दूसरे के पाले में भेज दे। कुछ समय बाद प्रैक्टिस करते करते वह इतना परफेक्ट हो जाता है कि सामने वाले को हरा देता है। अगर उसके सामने कमजोर कमजोर साथी बना रहेगा तो उसका इंटरेस्ट धीरे-धीरे खेल में खत्म हो जाएगा। उसको उसके उसकी एकाग्रता को बढ़ाने के लिए उसे चैलेंज चाहिए। उसे दूसरा कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए जो अच्छा खेलता है। धीरे-धीरे उसके कंसन्ट्रेशन लेवल में वृद्धि होगी यदि अच्छा खेलने वाला उसके सामने होगा। तभी वह इस खेल में ज्यादा समय देगा और ज्यादा प्रैक्टिस करेगा जिससे उसकी कंसंट्रेशन यानी एकाग्रता बढ़ जाएगी।

हम अपने दिमाग की तुलना कंप्यूटर से कर सकते हैं कंप्यूटर सूचनाओं को ले जाने वाली सबसे छोटी इकाई बिट होती है। आपने सुना होगा कितने बिट की रैम है ? मोबाइल फोन खरीदते समय आपने ये बाद धयान दी होगी।
हमारा दिमाग एक सेकेंड में 128 बिट डाटा ही ट्रांसफर कर पाता है। आप मेरी आवाज सुन रहे हैं तो समझिए कि आपका दिमाग तकरीबन 60 से 65 बिट इस्तेमाल कर रहा है। इसलिए जब दो लोग एक साथ बोलते हैं तो हमें समझने में दिक्कत होती है और तीन लोगों में हमारा दिमाग पूरी तरह कंफ्यूज हो जाता है। एक बार में हमारी इंफॉर्मेशन ग्रहण करने की क्षमता काफी सीमित है। कई बार लोग खुद को मल्टीटास्क बताते हैं कि मैं एक साथ दो काम कर लेता हूं। जैसे कि हम कहीं जा रहे हो और मोबाइल पर बात कर रहे हैं। उस स्थिति में हमारा दिमाग बहुत तेजी से शिफ्ट होता है यानी 1 सेकंड के 18 वे हिस्से में कभी सड़क पर और कभी मोबाइल पर धयान जाता है। एक उदाहरण देता हूं जब आपको सड़क पार करनी होती है तो आप या तो उस व्यक्ति की बात सुनने के लिए रुक जायेंगे या फिर उसे कहेंगे कि 1 मिनट रुक जाओ मैं सड़क पार कर लूं। इसका मतलब आपके दिमाग को हाई कंसंट्रेशन की जरूरत है वह सारी बिट एकसाथ इस्तमाल कर रहा है।

निहाय कहते हैं कि आप किसी एक वस्तु पर कितनी बिट्स खर्च कर सकते हैं उसी चीज को हम कंसंट्रेशन कहते हैं।
हम 128-bit एक ही वस्तु पर नहीं दे सकते क्योंकि कुछ बिट्स हमारे शरीर और आसपास के वातावरण के कारण खर्च होती हैं। जैसे हमारा सांस लेना हमारी धड़कनें चलना और हमारी आंखों द्वारा देखे गए दृश्य। अगर आप 100 बिट्स तक एक जगह लगा सकते हैं तो इसे हाई कंसंट्रेशन माना जाता है।

गीता का श्लोक आपने अक्सर सुना होगा जिसमें कहा जाता है कि कर्म करो और फल की चिंता ना करो। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि जब आप कर्म करते हैं और सोचते हैं कि मुझे रिजल्ट में ये मिलेगा तब आप एकाग्र नहीं हो पाते। सचिन तेंदुलकर एक बात कहते थे कि जब भी मुझे मैच के बीच में ध्यान देना होता है तो मैं स्कोरबोर्ड देखना बंद कर देता हूं। अपनी सीमाओं के परे जाकर कुछ कर पाएंगे रिजल्ट के बारे में बार-बार विचार आना आपको और काम को एक नहीं होने देता। इसलिए जब आप इन विचारों को छोड़ देते हैं तो ध्यान में जाने के चांसेस बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं।दिमाग को चैलेंज लेने की आदत है जब यदि आप उसको एकाग्र करना चाहते हैं तो आपको बार-बार उसे पकड़ कर लाना पड़ेगा कोई चेलेंज उसे देना होगा नहीं तो वह विचारों के साथ भागता रहेगा।

निहाल जिन्होंने क्यों बुक लिखी उन्होंने बहुत सारे लोगों का इंटरव्यू लिया डॉक्टर इंजीनियर साधु यहां तक की उन्होंने सड़क पर काम करने वाले लोगों के भी इंटरव्यू लिए और उन्हें पता चला कि जहां भी डीप कंसंट्रेशन है गहन एकाग्रता है वहां पर आनंद है।

दीप कंसंट्रेशन के लिए क्या करें तो आपने बच्चों को लाइब्रेरी में पढ़ते हुए देखा होगा वह बिल्कुल सर घुसा कर पढ़ते हैं। आपने घोडा गाड़ी देखि होगी जिसमे लगे घोड़े की आँखों पर पट्टी बंधी होती है जिससे बाह केवल आगे देखता है उसे लेफ्ट और राइट का दीखता ही नहीं। वास्तव में वह डिस्ट्रेक्शंस को काट रहा है। जब हम अपने आसपास से डिस्ट्रेक्शन कटाते हैं। तो 128-bit जो इधर-उधर लगे होते हैं उन्हें हम समेट कर एक जगह ला रहे होते हैं। ऐसे फोकस को एक 2 सेकंड के लिए हर कोई अनुभव कर लेता है कुछ लोग इसे घंटों अनुभव कर सकते हैं। स्वामी जी कहते हैं कि सफल और दूसरे इंसान में केवल कंसंट्रेशन का अंतर होता है कंसंट्रेशन बढ़ाने के लिए कुछ अभ्यास जिन्हे हम धयान कहते हैं की कुछ सरल विधियां हमारी अगली वीडियो में बताई गई है जिसे आप देखना ना भूलें

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