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GAYATRI SAHASRANAM, गायत्री सहस्रनाम

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गायत्री सहस्रनाम के बारे में

भारतीय संस्कृति में वेदों का बड़ा महत्व हैं। चारों वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद की उत्पत्ति वेदमाता से मानी जाती है। वेदों और श्रुतियों की जननी वेद माता कहलाती हैं। गायत्री माता को ही वेदमाता कहा जाता है। हम कह सकते हैं कि गायत्री सभी वेदों का सार है। सभी शक्तियों का आधार माता गायत्री पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु, महेश की आराध्य देवी भी गायत्री को ही माना जाता है। सभी देवता भी गायत्री को अपनी माता मानते हैं। गायत्री माता को त्रिदेवी लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती का अवतार माना जाता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, माता गायत्री के 5 मुख और 10 हाथ हैं।

आपने गायत्री मन्त्र की महिमा तो सुनी होगी। गायत्री मंत्र को देवी गायत्री के रूप में दर्शाया गया है। विभिन्न देवी-देवताओं के लिए ऐसी कई गायत्री हैं। परन्तु साधकों के लिए गायत्री सहस्रनाम एक और साधन है शांति सम्रद्धि व मोक्ष के लिए जिसे हम गायत्री सहस्रनाम कहते हैं। इस स्त्रोत या मंत्र में देवी गायत्री के एक हजार नाम या स्तुतियाँ शामिल हैं। गायत्री सहस्रनाम तमिल, संस्कृत आदि कई भाषाओं में उपलब्ध है।

गायत्री सहस्रनाम एक स्तोत्र है जो देवी गायत्री के हजारों अलग-अलग नामों से बना है। ये नाम गायत्री देवी के विभिन्न पहलुओं या उनके अद्वितीय गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इन नामों का जाप करता है या सुनता है, उसे ये नाम धीरे-धीरे अपना अर्थ प्रकट करते हैं। एक बार जब इन नामों के अर्थ जपकर्ता को समझ में आने लगते हैं, तो जपकर्ता की चेतना उन्नत होने लगती है और उसकी आध्यात्मिकता बढ़ने लगती है। जपकर्ता इन नामों की दिव्यता के इतना करीब हो जाता है कि वह खुद को ब्रह्मांड की सर्वोच्च चेतना के करीब पाता है। वह इस भौतिकवादी संसार की चंचलता और अस्थायी प्रकृति को समझने लगता है। ये हजारों नाम और उनके अर्थ अंततः जपकर्ता को मोक्ष के मार्ग की ओर ले जाते हैं।

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गायत्री सहस्रनाम के लाभ

जब देवी गायत्री या गायत्री माता सहस्रनाम पूजा की जाती है, तो व्यक्ति को बुद्धि, समृद्धि, उच्च शिक्षा, व्यावसायिक सफलता, अच्छी याददाश्त और दुश्मनों पर जीत का आशीर्वाद मिलता है। यह पूजा स्वस्थ संतान, दिव्यता और जीवन में सकारात्मकता प्राप्त करने में मदद करती है और आध्यात्मिक जागृति लाती है।
यह पूजा भक्त को बुद्धि और योग्यता का आशीर्वाद देती है।
यह जातक की चेतना के स्तर को बढ़ाता है और मोक्ष प्रदान करता है।
यह पूजा परिवार में एकता, प्रेम और समझ सुनिश्चित करती है।
यदि बच्चे की उम्मीद कर रहे दंपत्ति इसे करते हैं तो यह स्वस्थ संतान प्राप्त करने में सहायक होता है।
यह पूजा जातक के शत्रुओं को खत्म करने में भी मदद करती है और अदालती मामलों में जीत और अन्य कानूनी मामलों में जीत दिलाने में भी मदद करती है।

जो लोग भौतिक उद्देश्यों के लिए गायत्री सहस्रनाम का जाप करते हैं, उनके लिए गायत्री देवी के ये हजार नाम गरीबी और दुख जैसी सभी परेशानियों को दूर कर देते हैं। उन्हें सुख-समृद्धि और व्यावसायिक सफलता मिलती है। इन नामों का जाप करके भक्त अपने शत्रुओं से छुटकारा पा सकते हैं। परिवार और दोस्तों में एकता, प्यार और समझ मिलती है। कोर्ट-कचहरी और अन्य कानूनी मामले सुलझ जाते हैं और जीत सुनिश्चित होती है। संतान चाहने वाले दंपत्तियों को गायत्री के सहस्रनाम का जाप करने से स्वस्थ संतान की प्राप्ति होगी।

गायत्री के हजार नामों का जाप करके विद्यार्थियों को बहुत लाभ मिल सकता है क्योंकि उन्हें देवी सरस्वती का रूप भी माना जाता है। जप करने से उनकी याददाश्त और सीखने की क्षमता बढ़ सकती है।
देवी गायत्री के इन हजारों नामों का जाप करने से जापकर्ता के चारों ओर दिव्यता और पवित्रता की आभा उत्पन्न होती है। इन नामों के जाप से उत्पन्न सकारात्मक तरंगें आसपास के वातावरण को दिव्यता से भर देती हैं, जिससे वातावरण पवित्र हो जाता है और चेतना और आध्यात्मिकता के विकास के लिए अनुकूल हो जाता है। इन नामों का जाप निश्चित रूप से आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ने और अन्य सांसारिक सुखों और विलासिता के अलावा चेतना को बढ़ाने में मदद करता है। जो लोग यह पूजा नहीं कर सकते वे केवल गायत्री सहस्त्रनाम को सुन सकते हैं।

ललिता सहस्त्रनामावली

यह पाठ कब करना चाहिए और कैसे कएने चाहिए ?

शुक्ल पक्ष की पंचमी या एकादशी तिथि से इसकी शरुआत करना उत्तम माना जाता है।
यह किसी शुक्रवार से भी शरू किया जा सकता है। इसे सूर्योदय के समय जब सूर्य की लालिमा आती हो तब पढ़ना चाहिए यानि तक़रीबन 5 बजे के आस पास। पाठ करते समय बीच में कोई अन्य कार्य ना करें। यदि आप पाठ न कर सके तो इसे सुनना भी लगभग उतना ही फल देता है।

वैसे तो आप किसी भी रंग के कपड़े पहनकर गायत्री सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं, लेकिन पीले रंग में वस्त्र पहनना सबसे अच्छा है। ऐसा माना जाता है कि पीला रंग भगवान विष्णु को प्रिय है। गायत्री सहस्त्रनाम का पाठ करते समय ऊनी आसन या कुश के आसान पर बैठना सबसे अच्छा है। विद्वानों का मानना है कि गायत्री सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करते समय, मंदिर या पूजा क्षेत्र में ‘जल कलश’ या एक गिलास पानी अवश्य रखना चाहिए। गायत्री सहस्त्रनाम पढ़ने के बाद, यह पानी प्रसाद के रूप में अपने परिवार के सदस्यों को भोजन वितरित करना चाहिए। इससे घर में सदा सम्पन्नता बानी रहती है।

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