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महामृत्युंजय मन्त्र (“मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र”) जिसे त्रयम्बकम मन्त्र भी कहा जाता है, यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान शिव की स्तुति हेतु की गयी एक वन्दना है। इस मन्त्र में शिव को ‘मृत्यु को जीतने वाला’ बताया गया है। यह गायत्री मन्त्र के बराबर माना जाता है । त्रि का मतलब तीन और अम्बक मतलब आँखे।
कुछ विद्वानों का मैंने है की यह शुक्राचार्य का मृत-संजीवनी मन्त्र है।

मृकण्ड ऋषि के कोई संतान नहीं थी उन्होंने भगवान शिव की तपस्या कर पुत्र रत्न का वरदान मांगा। भगवान शिव ने उन्हें बताया कि तुम्हारे भाग्य में संतान का सुख नहीं है परंतु फिर भी भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया। इस वरदान का के पीछे एक दुख भी था कि वह बच्चा 12 वर्ष की आयु के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।
मृकण्ड ऋषि जानते थे पर उनका मानना था की जो भगवन शिव उन्हें भाग्य में संतान सुख न होते हुए भी संतान दे सकते थे वह उनके पुत्र को दीर्घ आयु भी देंगे।
उनके पुत्र का नाम मार्कंडेय था। जब वह 12 वर्ष का हुए तो उसने भगवान शिव के मंदिर में बैठकर महामृत्युंजय मंत्र की रचना की व इसका जाप शुरू कर दिया। जब यमराज के दूत मार्कंडेय को लेने आए तो वह उन्हें छू सके उसके बाद स्वयं यमराज को लेने आना पड़ा। परंतु इस मंत्र के प्रभाव से उन्हें हाथ ना लगा पाए। तब भगवान शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने यमराज को मार्कंडेय को छोड़ देने का आदेश दिया। इस तरह महामृत्युंजय मन्त्र से पहली बार होनी को टाला गया। इसके बाद लाखों बार इस मंत्र ने लोगों की जान बचा उन्हें आकाल मृत्यु से बचाया है।
यह कहानी आप सब ने सुनी होगी परंतु यह मंत्र क्या है? उसका अर्थ क्या है? आइए जानते हैं और समझते हैं काम कैसे करता है।


ऋषि-मुनियों ने महा मृत्युंजय मन्त्र को वेद का ह्रदय कहा है।
इस मंत्र का अर्थ है :
हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं | जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं| उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्युके बंधनों से मुक्त कर दें | जिससे मोक्षकी प्राप्ति हो जाए | जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है | उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पानकरते हुए शरीर को त्यागकर आपही में लीन हो जाएं |
जैसे ककड़ी पकने के बाद स्वतः ही अपनी बेल से अलग हो जाती है इसी तरह मनुष्य पकने यानी अपना पूरा जीवन जीने के बाद शिव को प्राप्त हो उसे मोक्ष मिले।

महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है। यह मंत्र निम्न प्रकार से है-
एकाक्षरी (1) मंत्र- ‘हौं’। नियमित रूप से एकाक्षरी मंत्र का जाप करने से आपका स्वास्थ्य ठीक रहता है। सुबह उठते समय 27 बार यह मंत्र जपने से स्वास्थ्य ठीक रहता है
त्र्यक्षरी (3) मंत्र- ‘ॐ जूं सः’। रात को सोने से पहले 27 बार इस मंत्र का जाप करें तो छोटी मोटी बीमारी परेशान नहीं करती
चतुराक्षरी (4) मंत्र- ‘ॐ वं जूं सः’। यदि शल्य चिकित्सा दुर्घटना की संभावना हो तो इस मंत्र को सुबह शिवलिंग पर जल अर्पित कर 7 दिनों तक तीन माला जपे। एक्सीडेंट या सर्जरी के बाद रिकवर करने में यह मंत्र बहुत मदद करता है
दशाक्षरी (10) मंत्र- ‘ॐ जूं सः मां पालय पालय’। इस मंत्र को अमृत महामृत्युंजय मंत्र भी कहा जाता है।
यह मंत्र उन लोगों के लिए ज्यादा अच्छा माना जाता है जो असाध्य रोगों से पीड़ित हैं। इसको जपने का एक विधान है। तांबे के पात्र में जल भरकर अपने सामने रख लें तथा इस मंत्र का जाप करें एक माला जपने के बाद वह जल संबधित व्यक्ति को पीला दें। धीरे-धीरे वह व्यक्ति ठीक हो जाएगा।
इस मंत्र को जपते समय यह ध्यान रखना है कि जिस व्यक्ति जहां माम शब्द आया है वहां पर उस व्यक्ति का नाम लेना है उदाहरण के लिए जैसे किसी का नाम अमित हो तो अब आपने मंत्र जपना है ‘ॐ जूं सः “अमित” पालय पालय’। यहां पर मां की जगह अमित का नाम इस्तेमाल किया गया है।

महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या आवश्यकता के समय प्रयोग में लाएँ।

तांत्रिक बीजोक्त मंत्र-ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ ॥

संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या- ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ।

महामृत्युंजय का प्रभावशाली मंत्र-ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

वैदिक मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।
सबसे सरल और सबसे ज्यादा यही मंत्र बोला जाता है

महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है।

दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएं दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र से शिव पर अभिषेक करने से जीवन में कभी सेहत की समस्या नहीं आती।

हमने महामृत्युंजय मंत्र का वैदिक उच्चारण व दिमाग को स्वस्थ रखने वाली मस्तिष्क तरंगे यानि वाइब्रेशंस और सब्लिमिनल्स के प्रयोग द्वारा यह ऑडियो मंत्र तैयार किया है। जिसे सुनने से सबसे पहले दिमाग पर असर होता है। जिससे नींद अच्छी आती है स्वास्थ्य बेहतर होता है मानसिक शक्तियां बढ़ती है और शरीर स्वस्थ होता है। आप इसे रात को सोते समय या दिन में जब भी आप आराम से बैठे हो उस समय सुन सकते हैं इसका लाभ पहली बार से ही होने लगता है। जिन लोगों को नींद नहीं आती उनके लिए तो यह 40 मिनट का मंत्र अपने आप में रामबाण औषधि है धीरे-धीरे आपको मानसिक व शारीरिक दोनों रूपों सही है स्वस्थ करने में सहायक है।

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