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मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥ यह चौपाई केवल मशहूर ही नहीं, बल्कि लोगों की बहुत पसंदीदा भी है। जब भी राम चरित मानस का या सुंदरकांड का पाठ होता है तो लोग इस चौपाई का अक्सर सम्पुट लगते हैं। इसका अर्थ क्या है? ये जानकर आपका मन प्रसन्न हो जायेगा आइये जानते हैं।

जैसा की हमने बताया यह एक सम्पुट है। सम्पुट का अर्थ समापन आवरण, ढक्कन या कवर होता है। जब हम किसी को कुछ भेंट करते हैं तो उसे अच्छे से कवर कर के देते हैं। इसी तरह जब हम कोई मंत्र देव को समर्पित करते हैं उसे सम्पुट कर के देते हैं तो उसकी शक्ति और बढ़ जाती है।

तुलसीदास जी के रामचरितमानस में भगवान राम के जीवन का सुन्दर वर्णन किया गया है। इससे पहले वाली चौपाई इस प्रकार है।
“बंदउँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥”
मैं उन्हीं श्री रामचन्द्रजी के बाल रूप की वंदना करता हूँ, जिनका नाम जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।
अगली चौपाई में “मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥” आता है।
यह बालकांड के पहले अध्याय की 111 चौपाई है।
‘मंगल भवन’ मंगल यानि शुभ और भव मतलब होना और भवन यानि करना, भवन का एक अर्थ धाम या मकान भी होता है। ‘अमंगल हारी’ अमंगल यानि अशुभता हरि यानि हरण करने वाले। यहाँ राम जी का तुलसीदास जी नहीं ले रहे, क्योकि वह पहली चौपाई राम जी की वंदना कर चुके है। “द्रवउ सो दसरथ” इसी वाक्य की जायदातर लोग संशय में आ जाते हैं। अवधि भाषा में या सस्कृत में भी पिघलने की द्रवित कहा जाता है। जैसे माता का ह्रदय कोमल है जब उसमे भावना आती है तो उसे वात्सल्य कहा जाता है। पिता का ह्रदय थोड़ा कठोर होता है। जब उसमे भावना आती है तो वह द्रवित होता है। इस अर्थ है दशरथ जी का ह्रदय द्रवित हो रहा है। ‘अजिर बिहारी’ अजिर का अर्थ है आंगन और बिहारी मतलब विहार करना यानि घूमना है।
मंगल के धाम, अमंगल के हरनेवाले को अपने आंगन में विहार यानि खेलते हुए देखकर दशरथ जी का ह्रदय प्रेम से द्रवित हो रहा है।

ये चौपाई इतनी खास क्यों है?
मन्त्रों के बारे में मैंने कई बार बताया है। वैदिक मन्त्र, तांत्रिक मन्त्र, डामर मंत्र व शाबर मन्त्र इत्यादि मन्त्र होते हैं। इसमें डामर व शाबर मन्त्र बड़ी जल्दी असर करते हैं। यह लोकल भाषा में होते है। इसमें अपने इष्ट को अपने जैसा ही मनुष्य मानकर उसे अपना काम करेने के लिए देवता के किसी प्रिय या खुद देवता की कसम देता है। ऐसे ही यहाँ रामचरित या सुंदरकांड का पाठ करते समय प्रभु को उनके सुनहरे पल यद् दिलाये जाते है।

राम जी के सबसे सुनहरे पल वो थे जब वे अपने पिता दशरथ के साथ थे। या सीता माता के साथ थे। साधक उन्हें उन पलों को याद दिलाकर भगवान को प्रसन्न करते हैं। आप भी इसका नियमित जाप कर सकते हैं।

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