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Method of worshiping Hindu God. देवी देवता की पूजा करने की विधि ( 5 स्टेप व 16 स्टेप) ऐसे करें पंचोपचार एवं षोडशोपचार, ये है पूजन विधि

Method of worshiping hindu God. 5 stap of worshiping, 16 stap of worshiping,

Method of worshiping Hindu God.

नमस्कार दोस्तों पायस एस्ट्रो में आपका स्वागत है। जब भी हम पूजा करते हैं तो मन में यही विचार आते हैं कि कहीं यह पूजा पद्धति गलत तो नहीं? कौन सा स्टेप पहले आएगा और कौन से स्टेप बाद में आएगा। मतलब हम पहले तिलक लगाएं या पहले प्रसाद चढ़ाएं, पहले जोत जलाये, क्या करें? इस लेख में हम आपको यही बताने जा रहे हैं वह विधि जो ऋषि-मुनियों द्वारा निर्धारित है। एक आम मनुष्य इन चरणों के अनुसार पूजा करनी चाहिए जो हर देवता के लिए मान्य है।

पंचोपचार एवं षोडशोपचार

दोस्तों हिंदू धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है जो लगभग 80% तक वैज्ञानिक है। यहां पर हर चीज को करने की विधि है। उसी श्रंखला में धार्मिक कृत्यों की भी एक विशिष्ट विधि होती है, समय और परिस्थिति के अनुसार छोटी पूजा और बड़ी पूजा दोनों तरह की पूजा की सुविधाएं बनाई गई है। या ऐसा कहिए कि दोनों तरह की पूजा के लिए व्यवस्था की गई है। यदि हम छोटी पूजा करना चाहते हैं तो पंचोपचार पूजन का पालन करना चाहिए यानी पूजा के 5 स्टेप फॉलो करनी चाहिए। और यदि वृहत पूजा करना चाहते हैं तो षोडशोपचार पूजन विधि का पालन करना चाहिए। यानी 16 चरण की पूजा करनी चाहिए।

पंचोपचार पूजन विधि

दोस्तों इस विधि के लिए आपको मूर्ति के समक्ष या फोटो के समक्ष बैठ जाना है और यदि मूर्ति या फोटो ना हो तो मन में अपने आराध्य की छवि बनानी है। और फिर स्वच्छ आसन पर बैठकर पहला स्टेप फॉलो करना है।

  1. देवता को गंध (चंदन) लगाना तथा हलदी-कुमकुम चढ़ाना

सबसे पहले अपने आराध्य को अनामिका से (कनिष्ठिका के समीप की उंगली से) चंदन लगाएं। फिर दाएं हाथ के अंगूठे और अनामिका के बीच चुटकीभर कर पहले हल्दी, फिर कुमकुम देवता के चरणों में अर्पित करें । इनमें से कोई भी एक गंध आप अपने आराध्य को चढ़ा सकते हैं।

  1. देवता को पत्र-पुष्प (पल्लव) चढ़ाना

देवता को कागज, प्लास्टिक आदि के कृत्रिम और सजावटी फूल न चढ़ाएं। ताजे और सात्विक पुष्प चढ़ाएं । देवता को चढ़ाए जानेवाले पत्र-पुष्प न सूंघें । देवता को पुष्प चढ़ाने से पूर्व पत्र चढ़ाएं । विशिष्ट देवता को उनका तत्त्व अधिक मात्रा में आकर्षित करनेवाले विशिष्ट पत्र-पुष्प चढ़ाएं, उदाहरण के लिए शिवजी को बिल्वपत्र तथा श्री गणेशजी को दूर्वा और लाल पुष्प । पुष्प देवता के सिर पर न चढ़ाकर उनके चरणों में अर्पित करें । डंठल देवता की ओर एवं पंखुड़ियां (पुष्पदल) अपनी ओर कर पुष्प अर्पित करें ।

  1. देवता को धूप दिखाना (अथवा अगरबत्ती दिखाना)

देवता को धूप दिखाते समय उसे हाथ से न फैलाएं। धूप दिखाने के बाद विशिष्ट देवता का तत्त्व अधिक मात्रा में आकर्षित करने हेतु विशिष्ट सुगंध की अगरबत्तियों से उनकी आरती उतारें, उदाहरण के लिए शिवजी को हीना से तथा श्री लक्ष्मीदेवी की गुलाब से। धूप दिखाते समय तथा अगरबत्ती घुमाते समय बाएं हाथ से घंटी बजाएं। एक बात का ध्यान रखिए कि प्रयास करके आप अगरबत्ती ना जलाएं। और यदि जलानी हो तो वही अगरबत्ती जलाएं जिसमें बांस का डंठल ना लगा हो। हिंदू धर्म में बस जलाना अशुभ माना गया है, इसलिए अगरबत्ती की जगह अगर धूप बत्ती होगी तो या ज्यादा उत्तम माना गया है।

  1. देवता की दीप-आरती करना

दीप-आरती तीन बार धीमी गति से उतारें। दीप-आरती उतारते समय बाएं हाथ से घंटी बजाएं। दीप जलाने के संदर्भ में ध्यान में रखने योग्य सूत्र

  • दीप प्रज्वलित करने हेतु एक दीप से दूसरा दीप न जलाएं ।
  • तेल के दीप से घी का दीप न जलाएं ।
  • पूजाघर में प्रतिदिन तेल के दीप की नई बाती जलाएं ।
  1. देवता को नैवेद्य निवेदित करना

नैवेद्य के पदार्थ बनाते समय मिर्च, नमक और तेल का प्रयोग अल्प मात्रा में करें और घी जैसे सात्विक पदार्थों का प्रयोग अधिक करें। नैवेद्य के लिए सिद्ध (तैयार) की गई थाली में नमक न परोसें। देवता को नैवेद्य निवेदित करने से पहले अन्ना ढंककर रखें । नैवेद्य समर्पण में सर्वप्रथम इष्टदेवता से प्रार्थना कर देवता के समक्ष भूमि पर जल से चौकोर मंडल बनाएं तथा उस पर नैवेद्य की थाली रखें । नैवेद्य समर्पण में थाली के चारों ओर घड़ी के कांटे की दिशा में एक ही बार जल का मंडल बनाएं। फिर विपरीत दिशा में जल का मंडल न बनाएं। नैवेद्य निवेदित करते समय ऐसा भाव रखें कि ‘हमारे द्वारा अर्पित नैवेद्य देवता तक पहुंच रहा है तथा देवता उसे ग्रहण कर रहे हैं।”

षोडशोपचार

षोडशोपचार का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व माना जाता है। षोडशोपचार अर्थात वे सोलह चरण, जिनसे देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है।

प्रथम उपचार : देवता का आवाहन करना (देवता को बुलाना)

देवता अपने अंग, परिवार, आयुध और शक्ति सहित पधारें तथा मूर्ति में प्रतिष्ठित होकर हमारी पूजा ग्रहण करें। इस हेतु संपूर्ण शरणागतभाव से देवता से प्रार्थना करना, अर्थात उनका आह्वान करना। आह्वान के समय हाथ में चंदन, अक्षत एवं तुलसीदल अथवा पुष्प लें। आह्वान के बाद देवता का नाम लेकर अंत में ‘नम:” बोलते हुए उन्हें चंदन, अक्षत, तुलसीदिल अथवा पुष्प अर्पित कर हाथ जोड़ें। देवता के रूप के अनुसार उनका नाम लें, उदाहरण के लिए श्री गणपति के लिए ‘श्री गणपतये नम:”, श्री भवानीदेवी के लिए ‘श्री भवानीदेव्यै नम:”आदि।

  1. दूसरा उपचार : देवता को आसन (विराजमान होने हेतु स्थान) देना

देवता के आगमन पर उन्हें विराजमान होने के लिए सुंदर आसन दिया है, ऐसी कल्पना कर विशिष्ट देवता को प्रिय पत्र-पुष्प आदि (उदाहरण के लिए श्रीगणेशजी को दूर्वा, शिवजी को बेल, श्रीविष्णु को तुलसी) अथवा अक्षत अर्पित करें ।

  1. तीसरा उपचार : पाद्य (देवता को चरण धोने के लिए जल देना;पाद-प्रक्षालन)

देवता को ताम्रपात्र में रखकर उनके चरणों पर आचमनी से जल चढ़ाएं।

  1. चौथा उपचार : अर्घ्य (देवता को हाथ धोने के लिए जल देना; हस्त-प्रक्षालन)

आचमनी में जल लेकर उसमें चंदन, अक्षत तथा पुष्प डालकर, उसे मूर्ति के हाथ पर चढ़ाएं ।

  1. पांचवां उपचार : आचमन (देवता को कुल्ला करने के लिए जल देना; मुख-प्रक्षालन)

आचमनी में कर्पूर-मिश्रित जल लेकर, उसे देवता को अर्पित करने के लिए ताम्रपात्र में छोड़ें।

  1. छठा उपचार : स्नान (देवता पर जल चढ़ाना)

धातु की मूर्ति, यंत्र, शालिग्राम इत्यादि हों, तो उन पर जल चढ़ाएं। मिट्टी की मूर्ति हो, तो पुष्प अथवा तुलसीदल से केवल जल छिड़कें। चित्र हो, तो पहले उसे सूखे वस्त्र से पोंछ लें। फिर गीले कपड़े से, पुन: सूखे कपड़े से पोंछें। देवताओं की प्रतिमाओं को पोंछने के लिए प्रयुक्त वस्त्र स्वच्छ हो । वस्त्र नया हो, तो एक-दो बार पानी में भिगोकर तथा सुखाकर प्रयोग करें। अपने कंधे के उपरने से अथवा धारण किए वस्त्र से देवताओं को न पोंछें।

अ. देवताओं को पहले पंचामृत से स्नान करवाएं। इसके अंतर्गत दूध, दही, घी, मधु तथा शक्कर से क्रमानुसार स्नान करवाएं। एक पदार्थ से स्नान करवाने के उपरांत तथा दूसरे पदार्थ से स्नान करवाने से पूर्व जल चढ़ाएं। उदाहरण के लिए दूध से स्नान करवाने के उपरांत तथा दही से स्नान करवाने से पूर्व जल चढ़ाएं।

आ. फिर देवता को चंदन तथा कर्पूर-मिश्रित जल से स्नान करवाएं ।

इ. आचमनी से जल चढ़ाकर सुगंधित द्रव्य-मिश्रित जल से स्नान करवाएं ।

ई. देवताओं को उष्णोदक से स्नान करवाएं । उष्णोदक अर्थात अत्यधिक गरम नहीं बल्कि गुनगुना पानी ।

उ. देवताओं को सुगंधित द्रव्य-मिश्रित जल से स्नान करवाने के उपरांत गुनगुना जल ड़ालकर महाभिषेक स्नान करवाएं। महाभिषेक करते समय देवताओं पर धीमी गति की निरंतर धारा पड़ती रहे इसका ध्यान रखें। इसके लिए अभिषेकपात्र का प्रयोग करें। संभव हो तो महाभिषेक के समय विविध सूक्तों का उच्चारण करें।

ऊ. महाभिषेक के उपरांत पुन: आचमन के लिए ताम्रपात्र में जल छोड़ें तथा देवताओं की प्रतिमाओं को पोंछकर रखें ।

  1. सातवां उपचार : देवता को वस्त्र देना

देवताओं को कपास के दो वस्त्र अर्पित करें। एक वस्त्र देवता के गले में अलंकार के समान पहनाएं तथा दूसरा देवता के चरणों में रखें।

  1. आठवां उपचार : देवता को उपवस्त्र अथवा यज्ञोपवीत (जनेऊ देना) अर्पित करना

पुरुष देवताओं को यज्ञोपवीत (उपवस्त्र) अर्पित करें।

  1. नौंवे उपचार से तेरहवें उपचार तक

पंचोपचार अर्थात देवता को गंध (चंदन) लगाना, पुष्प अर्पित करना, धूप दिखाना (अथवा अगरबत्ती से आरती उतारना), दीप-आरती करना तथा नैवेद्य निवेदित करना। नैवेद्य दिखाने के उपरांत दीप-आरती और फिर कर्पूर-आरती करें।

  1. चौदहवां उपचार : देवता को मन:पूर्वक नमस्कार करना।
  2. पंद्रहवां उपचार : परिक्रमा करना

नमस्कार के उपरांत देवता के चारों ओर परिक्रमा करें। परिक्रमा करने की सुविधा न हो, तो अपने स्थान पर ही खड़े होकर तीन बार घूम जाएं।

  1. सोलहवां उपचार : मंत्रपुष्पांजलि

परिक्रमा के उपरांत मंत्रपुष्प-उच्चारण कर, देवता को अक्षत अर्पित करें। फिर पूजा में हमसे हुई ज्ञात-अज्ञात चूकों तथा त्रुटियों के लिए अंत में देवता से क्षमा मांगें और पूजा का समापन करें। अंत में विभूति लगाएं, तीर्थ प्राशन करें और प्रसाद ग्रहण करें ।

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