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Is Rahu kal is scam. क्या राहु काल घोटाला है।

क्या राहु काल घोटाला है Is Rahu kal is scam

क्या राहु काल घोटाला है, Is Rahu kal is scam

राहु का नाम सुनते ही एक अनोखे से डर का सामना करना पड़ता है। यानी हमारे दिमाग में पिक्चर बनती है और वह होती है मुसीबत की पिक्चर। जब भी हम पंचांग पढ़ते हैं तो उसमें लिखा होता है राहु काल इतने बजे से लेकर इतने बजे तक। साथ ही लिखा होता है कि इस समय आप कोई जरूरी काम या शुभ कार्य न करें।
दोस्तों आखिर यह राहुकाल होता क्या है और क्या सचमुच यह हम पर इफेक्ट करता है इस लेख में हम इसी के बारे में जानकारी दे रहे हैं साथ ही हम यह भी बताएंगे कि सोमवार मंगलवार बुधवार इनका क्रम ऐसा क्यों है।

माना जाता है की ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर दिन 90 मिनट का समय राहुकाल होता है। मान्यता हैं कि इस काल में कोई भी शुभ कार्य करने पर उसका फल नहीं मिलता। राहु के अशुभ प्रभाव से देवी-देवता भी प्रभावित हो जाती है। इसमें कोई भी शुभ कार्य और मांगलिक कार्य करने की मनाही होती है।

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दोस्तों राहु कल समझने से पहले हमें पञ्चगं को समझना होगा। पंचांग शब्द का अर्थ है , पाँच अंगो वाला। पंचांग में समय गणना के पाँच अंग हैं : वार , तिथि , नक्षत्र , योग , और करण।
प्राचीन काल में दिन, माह और वर्ष की अवधियों की अधूरी जानकारी होने के कारण समय-समय पर उनमें ज्योतिषियों या शासकों या धर्माचार्यों द्वारा सुधार किए जाते रहे हैं।
ऋग्वेद के उल्लेखों से जानकारी मिलती है कि उस समय सौर-चाँद्र कैलेंडर का प्रचलन था और अधिमास जोड़ने की व्यवस्था थी। लेकिन 12 मासों के नामों का ऋग्वेद में नहीं मिलते, न ही यह पता चलता है कि अधिमास को किस तरह जोड़ा जाता था। दिनों को नक्षत्रों से व्यक्त किया जाता था, यानी रात्रि को चंद्र जिस नक्षत्र में दिखाई देता था उसी के नाम से वह दिन जाना जाता था। बाद में तिथियाँ भारतीय पंचांग की मूलाधार बन गईं, किंतु ऋग्वेद में ‘तिथि’ का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है। Is Rahu kal is scam
यजुर्वेद में १२ महीनों के और २७ नक्षत्रों तथा उनके देवताओं के नाम दिए गए हैं। साथ ही, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन गमन के भी उल्लेख है। यजुर्वेद में ही पहली बार ‘तिथि’ शब्द देखने को मिलता है।
हमारे देश में ज्योतिष का जो सबसे प्राचीन स्वतंत्र ग्रंथ उपलब्ध हुआ है वह है, महात्मा लगध का ‘वेदांग-ज्योतिष’ (लगभग ८०० ई. पू.)। उसे पढ़ने के बाद लगता है की धरती पर रहकर उस समय कैसे इतनी सटीक जानकारी दी जा सकती थी। वो सचमुच बहुत बुद्धिमान लोग थे।

ईसा पूर्व चौथी सताब्दी में बेबीलोन वासी और यूनानियों के साथ भारत के संबंध बढ़ते गए। तब से लेकर लगभग ४०० ई. तक भारत में बेबीलोनी और यूनानी ज्योतिष की कई बातों को अपनाया गया। जिसे ‘सिद्धांत युग’ कहा जाता है।
वेदांग-ज्योतिष के बाद सिद्धांत युग के आरंभ तक भारतीय कैलेंडर में क्या व्यवस्था थी इसका उल्लेख आसानी से नहीं मिलता। वेदांग-ज्योतिष में सात वारों का उल्लेख नहीं है, महाभारत और रामायण में भी नहीं है, जैसे राम नवमी और कृष्ण जन्मास्टमी।
पता चलता है कि सम्राट अशोक के समय (लगभग २५० ई पू.) में वेदांग-ज्योतिष का ही कैलेंडर प्रचलित था।

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भारतीय कैलेंडर को ‘पंचांग’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें मुख्यतया पाँच बातों की जानकारी रहती हैः (१) तिथि, जो दिनांक यानी तारीख का काम करती है, (२) वारः सोमवार, मंगलवार आदि सात वार, (३) नक्षत्र, जो बताता है कि चंद्रमा तारों के किस समूह में है, (४) योग, जो बताता है कि सूर्य और चंद्रमा के भोगांशों का योग क्या है, और (५) करण, जो तिथि का आधा होता है।

पंचांग की यह प्रणाली सिद्धांत युग में काफ़ी बाद में अस्तित्व में आई है। यह इसी से स्पष्ट है कि सात वार भारतीय मूल के नहीं हैं। वैदिक साहित्य, वेदांग ज्योतिष, रामायण और महाभारत में सात वारों का उल्लेख नहीं है। जिस भारतीय अभिलेख में पहली बार एक ‘वार’ का उल्लेख हुआ है वह बुधगुप्त के समय का एरण (मध्य प्रदेश) से प्राप्त ४८४ ई. का है वहाँ तिथि (आषाढ़ शुक्ल द्वादशी) और वार (सुरगुरु दिवस, यानी बृहस्पतिवार) दोनों का उल्लेख है। राशियों की तरह वार भी बेबीलोनी मूल के हैं। Is Rahu kal is scam

लेकिन भारतीयों की एक अच्छी आदत है कि यदि कहीं जानकारी मिलती है तो उसपर शोध प्रारम्भ कर देते हैं। उन्होंने दिन पद्धति की भी अपने यहाँ स्थान दिया और मजेदार बात ये है कि जिन्होंने सोमवार, मगलवार यानि सप्ताह के दिनों की खोज की उन्हें ही नहीं पता की सोमवार के बाद मंगल क्यों आता है। पर भारतीयों में इसका भी लॉजिक निकल दिया। इस पर यूट्यूब पर सैकड़ों वीडियो मिल जाएंगी। अब राहु काल की बात करते हैं।

हर दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक आठवें भाग का स्वामी राहु होता है। राहु को असुर और छाया ग्रह माना गया है। ज्योतिष के मुताबिक हर दिन 90 मिनट का समय राहुकाल का समय होता है। इस दौरान किसी भी शुभ काम की मनाही होती है. और मांगलिक कार्य भी आरंभ नहीं किए जाते।

राहूकाल की गणना के लिए हम सूर्योदय का समय को सुबह 06:00 बजे का मान लेते हैं और सूर्यास्त का समय शाम 06:00 बजे का।

इस प्रकार हमें 12 घंटे मिले। इन्हे बराबर आठ भागों में बांटें। इन बारह भागों में प्रत्येक भाग डेढ़ घंटे का होता है। यह काल सोमवार को दूसरे, मंगलवार को सातवें, बुधवार को पांचवें, गुरुवार को छठे, शुक्रवार को चौथे, शनिवार को तीसरे, और रविवार को आठवें भाग में होता है। यह हर सप्ताह के हर दिन एक निश्चित समय में ही होता है।
सोमवार को राहुकाल का समय- सुबह 07.30 से 9 बजे तक
मंगलवार को राहुकाल का समय- दोपहर 03.00 से 04.30 बजे तक
बुधवार को राहुकाल का समय- दोपहर 12.00 से 01.30 बजे तक
गुरुवार को राहुकाल का समय- दोपहर 01.30 से 3.00 बजे तक
शुक्रवार को राहुकाल का समय- सुबह 10.30 से 12.00 बजे तक
शनिवार को राहुकाल का समय- सुबह 9.00 से 10.30 बजे तक
रविवार को राहुकाल का समय- शाम 04.30 से 6.00 बजे तक

मुझे इंटरनेट पर 200 साल पुराना पंचांग मिला और पता चला की उसमे राहु काल है ही नहीं। अभी लोगों का डरने का चलन सा है। हमारे गुरु जी बताते है की 1992 से पहले उन्होंने किसी भी ज्योतिष की किताब में कालसर्प योग के बारे में नहीं सुना और अब 144 तरह का कालसर्प योग हैं। सचिन तेंदुलकर व जवाहर लाल नेहरू की कुंडली में कालसर्प दोष है। इसी तरह शनिश्चरी अमावस्या का भी भोकाल बना रखा है।
आप सभी से अनुरोध है की राहु काल के चक्कर में न पड़ें अपने आवश्यक कार्य निर्धारित समय पर करे राहु कल में पूजा वर्जित नहीं है। नहीं तो सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण में मन्त्र जप का विधान न होता।
यदि कुछ करना है तो नक्षत्र के अनुसर कार्यों को करें। क्योकि उनके प्रभाव प्रमाणित हैं।

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