Vastu anusar mandir
नमस्कार दोस्तों
पूजा घर से जुड़े हुए बहुत सारे प्रश्न लोगों के मन में आते हैं। पूजा किस दिशा में की जाए? मंदिर कहां होना चाहिए और क्यों होना चाहिए? अगर एक ही कमरे का घर है तो मंदिर कहां होना चाहिए? इन सभी प्रश्नों पर नजर डालने के लिए लेख पूरा लेख अवश्य पढ़े।
पूजा घर हमेशा ईशान कोण में रखा जाता है उसके पीछे का कारण जान लेते हैं। पूजा घर वास्तु का विषय है और मनुष्य ज्योतिष का। परंतु दोनों एक दूसरे के साथ जुड़े हैं। वास्तु ज्योतिष और कर्म के बारे में हमने एक लेख में बताया है कि कैसी है एक तीनों एक साथ जुड़े हुए हैं। ज्योतिष में कुंडली लग्न को पूर्व दिशा बताया गया है। पूजा घर के लिए सही स्थान ईशान कोण बताया गया है जो कुंडली में दूसरे व तीसरे भाव का मध्य है। दूसरा भाव कुटुंब, धन, संचित धन, बेसिक एजुकेशन और बेसिक स्किल तथा वाणी का है। तीसरे भाव से लेखन, कम दूरी की यात्रा, बुद्धि तथा पराक्रम व मेहनत कार्य कुशलता, और भाई बहनो का घर कहा जाता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण पूर्व और उत्तर के कोने को कहा जाता है। जिस पर गुरु का प्रभाव होता है। गुरु का मतलब होता है भारी, स्थिर, ज्ञान व सर्वोच्च और भी बहुत कुछ गुरु का अर्थ होता है। इसलिए ईशान में पूजा घर रखने को कहा जाता है या इसे साफ़ रखने को कहा जाता है।
अगर घर के अंदर आपका ईशान कोण स्वच्छ मजबूत है अच्छा है तो आपके परिवार में कोई दिक्कत नहीं होगी पैसा कमाने के मार्ग खुले रहेंगे। साथ ही जीवन में आने वाली परेशानियों से लड़ने की ताकत मिलेगी।
ईशान कोण अगर दूषित है तो सबसे पहले आप यह समझ ले कि आपकी कुंडली का दूसरा और तीसरा दोनों भाव दूषित हो जाते हैं। मतलब घर में धन आगमन नहीं होता परिवार के बीच में एकता नहीं रहती और आपसी कलह बना रहता है। आप खुद को चारों तरफ मुसीबत से घिरा हुआ पाते हैं। अवसाद व क्रोध आप पर हावी हो जाते हैं बहुत ज्यादा गुस्सा आना और हमेशा डिप्रेशन में रहना ईशान कोण के दूषित होने की निशानी है। कोई भी समस्या आने पर अंदर से डर लगना ईशान कोण के दूषित होने की निशानी है क्योंकि यह तीसरे भाव को भी प्रभावित करता है।
इसीलिए इस स्थान को पूजा घर के लिए सर्वोत्तम माना गया है। क्योंकि यदि यहां पूजा घर होगा तो आप इस स्थान की हमेशा साफ-सफाई रखेंगे। इस स्थान को पवित्र स्थान की तरह मानेंगे।
अब हम ईशान कोण को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने की देखते हैं इसमें ज्योतिष का कोई एंगल नहीं है। आज के समय में हम काफी घनी आबादी के अंदर रहते हैं। लोग पहले खुले घर में रहा करते थे। उनके पास रोशनी का माध्यम सूरज या दिया ही हुआ करता था। ऐसी स्थिति में क्योंकि सूरज खुद को सुरक्षित रखना एक बड़ा चैलेंज होता था। सूरज पूर्व से उगता है उस समय ऊष्मा और गर्मी घर के अंदर प्रवेश करती है जिससे व्यक्ति रियल बैक्टीरिया तथा वायरस का खात्मा होता है। बिल्कुल पूरब से सूरज नहीं निकलता है वह हल्का सा दक्षिण की तरफ से निकलता है। वह दक्षिण पूर्व से निकलता है और दक्षिण पश्चिम की तरफ डूब जाता है। इसीलिए दक्षिण पूर्व में रसोई रखी गई ताकि सुबह के समय सबसे ज्यादा रोशनी वहां पड़े और शाम तक रहे। ईशान में रोशनी लगभग 10 -11 बजे तक आती है। धीरे-धीरे सूरज पीछे की ओर जाना शुरू होता है दोपहर के समय आते-आते दक्षिण की दीवार तपने लगती है। इसीलिए कहा जाता है कि दक्षिण पश्चिम में बुजुर्ग लोगों का कमरा होना चाहिए। वहीं 2 बजे के बाद पश्चिम वाली दीवार पर रौशनी आने लगती है। पश्चिम दिशा या उत्तर पश्चिम में मेहमानों का कमरा बताया गया है। ताकि उसके कमरे में देर तक रोशनी रहे। ईशान कोण पर सबसे कम समय तक सूरज की रोशनी बढ़ती है। उत्तर की दीवार पर कोई रौशनी नहीं पड़ती है। इसलिए उत्तर तथा उत्तर पूर्व को सबसे ज्यादा साफ रखने को कहा जाता है।
उत्तर दिशा में या उत्तर पूर्व में भारी समान नहीं रखना चाहिए अगर वहां यह सामान रहेगा तो वहां पर बैक्टीरिया की संभावनाएं ज्यादा होगी। ईशान कोण पर पानी का भंडारण करने को भी कहा जाता है या ऐसी कोई चीज जिसका भौतिक महत्त्व न हो जैसे भगवान। भगवान हम जैसे बेवकूफ लोगों के लिए ही तो है। पढ़े लिखे लोग कहाँ भगवान् को मानते हैं।
कई बार परिस्थिति वश हमारे घर में ईशान कोण पर पूजा घर बनाने की व्यवस्था नहीं हो पाती। तो ऐसी स्थिति में हम क्या करें?
विकल्प के रूप में हमें पहले प्रयास में पूर्व दिशा को चयन करना चाहिए। परंतु इस बात का ध्यान रखें कि यह दक्षिण पूर्व की तरफ ना पहुंचे। अगर हम दक्षिण पूर्व की तरफ ले जाते हैं तो पूजा करते समय हमारा मुंह दक्षिण की तरफ हो जाता है। ऐसी स्थिति में हमें पूजा करते समय डर लगना और घबराहट होने लगती है। पूजा में मन नहीं लगता। दूसरी दिशा होती उत्तर की दिशा उत्तर की दिशा में हम कहीं तक भी ले जा ले जा सकते हैं। हम पूजा घर उत्तर पश्चिम तक भी हम ले जा सकते हैं।
3 दिशाओं का ध्यान रखिए उत्तर दिशा, पूर्व की दिशा उत्तर पूर्व, आप यहां पर पूजा कर बना सकते हैं।
एक और परिस्थिति है हमारा एक ही कमरे का मकान है ऐसी स्थिति में क्या करें?
ऐसी स्थिति में एक छोटा मंदिर बनवाएं उसे कमरे में लगाएं यह भले ही गत्ते का हो लेकिन भगवान को अलग से स्थान जरूर दें। जिसे उत्तर, उत्तर पूर्व, अथवा पूर्व दिशा में लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि यह बाहर से आने वाले व्यक्ति को सीधे ना दिखाई दे और अगर ऐसी स्थिति बनती है तो परदे से अपने मंदिर को ढक कर रखें। साथ ही जब भी आप सोने जाएं तो मंदिर को पर्दे से ढक दें।
तो जैसा मैंने बताया की ईशान दिशा में गुरु का वास होने के कारण इस दिशा को पवित्र देशा माना जाता है। इसकी साफ-सफाई रहे यहां पर मंदिर हो तो पूरे घर के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
अब हम बात करते हैं कि पूजा में करने वाले का मुंह किस तरफ होना चाहिए?
विभिन्न प्रकार की पूजाओं के लिए अलग-अलग दिशा में लोगों का मुंह करके पूजा की जाती है। लेकिन सामान्यतः पूजा करने वाले का मुंह उत्तर की तरफ या पूर्व की तरफ होना चाहिए। कुछ विशेष परिस्थितियों में पश्चिम की तरफ भी मुंह करके पूजा की जा सकती है। परंतु इस बात का ध्यान रखें कि दक्षिण पूर्व, दक्षिण तथा दक्षिण पश्चिम की तरफ मुंह करके पूजा नहीं करनी चाहिए। अगर हम उत्तर की तरफ मुख करके पूजा कर रहे हैं तो भगवान का मुंह दक्षिण की ओर होगा। इससे भगवान को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि भगवान है।
दक्षिण के कई मंदिरों में भगवान का मुंह पूर्व की ओर होता है और पूजा करने वाले का पश्चिम की ओर होता है। मंदिर वास्तु के लिए यह ठीक है परंतु अपने घर की तो प्रयास करके हमें पूर्व की तरफ मुंह करके या उत्तर की तरफ मुंह करके ही पूजा करनी चाहिए।
वैसे तो बाल की खाल निकालेंगे तो बहुत से नियम लागु होंगे। पर
कुछ और बातों का भी ध्यान रखें
सीढ़ियों या रसोई घर के नीचे, शौचालय के ऊपर या नीचे कभी भी पूजा का स्थान नहीं बनाना चाहिए । नैऋत्य कोण यानि दक्षिण पश्चिम में भूल कर भी पूजा घर नहीं होना चाहिए। यह उसी तरह का असर देता है जैसे कुंडली में गुरु चांडाल योग।
तंत्र शास्त्र और कर्मकांड में लक्ष्मी की विशिष्ट साधना के लिए पश्चिमाभिमुख होकर बैठना चाहिए ।
वास्तु में पश्चिम की तरफ पीठ करके यानी पूर्वाभिमुख होकर बैठना ज्ञान प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है ।
ईशान कोण देवताओं का स्थान माना जाता है, यहां स्वयं भगवान शिव का भी वास होता है । देव गुरु बृहस्पति और केतु की दिशा भी ईशान कोण ही मानी जाती है । पूजा स्थल पर बीच में श्री गणेश की तस्वीर या मूर्ति जरूर होनी चाहिए, मूर्तियां छोटी और कम वजनी अधिक शुभ मानी जाती है ।
भगवान जी का चेहरा कभी भी ढकना नहीं चाहिए, यहां तक कि फूल-माला से भी चेहरा नहीं ढकना चाहिए ।
अगर आप अपने घर में सही स्थान और सही दिशा में पूजा स्थल बनवाकर सही तरीके से पूजा करते हों तो निश्चित रूप से वहां से साकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा । जो आपको स्वास्थ तो रखेगा ही सुखी और सामर्थ्यवान भी बनाएगा ।
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