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क्यों मंत्र सिध्द नहीं होते … क्यूँ हम निराश हो जाते हैं !


नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है कई बार लोग मंत्रों का जाप करते हैं जाप करते हुए समय बीत जाता है परंतु ना तो इसका कोई आध्यात्मिक और ना ही कोई भौतिक लाभ दिखाई देता है ऐसा क्यों दोस्तों अगर आप इसका उत्तर जानना चाहते हैं तो वीडियो को अंत तक देखिए व चैनल को सब्सक्राइब जरूर कीजिए और बैल आइकन दबा दीजिए ताकि हम इसी तरह की जानकारी लाते रहे।
दोस्तों साधकों मन में यही प्रश्न खटकता है कि इतनी मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है मंत्रों में असफल होने के पीछे कुछ कारण हैं परंतु यहां हम मुख्य कारणों की बात करते हैं
सातवीं शताब्दी के एक साधक जिनका नाम माधवाचार्य था जिन्होंने माधवनिदानम् आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की है
वह गायत्री के उपासक थे उन्होंने वृंदावन में रहकर 13 वर्ष तक गायत्री के समस्त अनुष्ठान विधि पूर्वक किए थे। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें आभास हुआ कि ना तो उन्हें कोई आध्यात्मिक लाभ दिख रहा है और ना ही कोई भौतिक लाभ। वह काफी निराश हुए और वहां से काशी चले गए जहां उन्हें एक अवधूत मिला उसने माधव को 1 वर्ष तक काल भैरव की उपासना करने के लिए कहा। वह लगातार 1 वर्ष तक काल भैरव की उपासना करते रहे।
एक दिन उन्होंने आवाज सुनी
” हे साधक मैं प्रस्ंन्न हूँ वरदान मांगो”
उन्हें लगा कि ये उनका भ्रम है।
क्योंकि सिर्फ आवाज सुनायी दे रही थी कोइ दिखाई नहीं दे रहा था।
इसलिए उन्होंने सुना अनसुना कर दिया, लेकिन वही आवाज फिर से उन्हें तीन बार सुनायी दी
तब माधवाचार्य जी ने पूछा
आप सामने आ कर अपना परिचय दे मै अभी काल भैरव की उपासना मे व्यस्त हूं
वह आवाज फिर आयी
“तू जिसकी उपासना कर रहा है वो मै ही काल भैरव हूँ।”
माधवाचार्य जी ने कहा
“तो फिर सामने क्यो नहीं आते?”
काल भैरव जी ने कहा
“माधव , तुमने तेरह साल तक जिन गायत्री मंत्रों का अखंड जाप किया है उसका तेज तुम्हारे सर्वत्र चारो ओर व्याप्त है, मैं उसे मैं सहन ही नहीं कर सकता, इसीलिए सामने नहीं आ सकता हूँ।
माधवाचार्य जी ने कहा
“जब आप उस तेज का सामना नहीं कर सकते है तब आप मेरे किसी काम के नहीं,आप वापस जा सकते है ।
काल भैरव जी ने कहा
“लेकिन मै तुम्हारा समाधान किये बिना नहीं जा सकता हूं”
माधवाचार्य जी ने कहा
तब फिर ये बताइये कि मेने पिछले तेरा वर्षों से किया गायत्री अनुष्ठान मुझे क्यों नहीं फला ?
वो अनुष्ठान निष्फल नहीं हुए है ,उससे तुम्हारे जन्म जन्मांतरो के पाप नष्ट हुए है
तो अब मै क्या करू ?
काल भैरव जी ने कहा
एक बार फिर गायत्री साधना करो तब तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप नष्ट पूर्णता नष्ट हो जाएंगे। जब तुम्हारी आत्मा पूर्णता निष्पाप हो जाएगी तब तुमको गायत्री का ब्रह्मतेज मिलेगा। वृंदावन जाकर फिर से 1 साल तक साधना करके तुमको इस बार सिद्धि मिलेगी। ऐसा कह कर भैरव अंतर्ध्यान हो गए। मानवाचार्य वृंदावन आए और उन्होंने 1 साल तक उसी स्थान पर फिर से साधना की। 1 वर्ष के बाद उनको गायत्री का साक्षात्कार हुआ और उनकी वाणी सिद्ध हुई संसार की भलाई हो और स्वयं का यश मिले ऐसे ग्रंथ की रचना करूं यह प्रार्थना उन्होंने भगवती से प्राथना थी। उनकी इच्छा पूर्ण हुई और सामान्य शिक्षा होते हुए भी उन्होंने माधव निदान जैसे ग्रंथ की रचना की

याद रखिये
आपके द्वारा शुरू किये गये मंत्र जाप पहले दिन से ही काम करना शुरू कर देतै है। लेकिन सबसे पहले प्रारब्ध के पापों को नष्ट करते है। देवताओं की शक्ति इन्हीं पापों को नष्ट करने मे खर्च हो जाती है और जैसे ही ये पाप नष्ट होते है
आपको एक आलौकिक तेज एक आध्यायात्मिक शक्ति सिध्दि प्राप्त होने लगती है।

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