किसी भी मंत्र का सही उच्चारण कैसे पता करें, how to find right mantra
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दोस्तों कई लोगों ने ये प्रश्न किया है कि मंत्रों का सही उच्चारण कैसे करें, या उक्त मंत्र के इस शब्द या अक्षर को कैसे पढ़ा जाये?
इस लेख में हम यही बताने जा रहे है। आपसे विनती है की इसे पूरा पढ़े तभी आपको समझ में आएगा।
संस्कृत में कहा जाता है ‘मननात् त्रायते इति मंत्रः’ अर्थात मन को त्राय (पार कराने वाला) मंत्र ही है। मंत्र का सम्बन्ध मन से होता है, मन को इस प्रकार परिभाषित किया है- मनन इति मनः। जो मनन, चिन्तन करता है वही मन है। मन की चंचलता का निरोध मंत्र के द्वारा करना मंत्र योग कहलाता है।
मंत्र योग के बारे में योगतत्वोपनिषद में वर्णन इस प्रकार है- योग सेवन्ते साधकाधमाः। ( अल्पबुद्धि साधक मंत्रयोग से सेवा करता है अर्थात मंत्रयोग अनसाधकों के लिए है जो अल्पबुद्धि है।) मंत्र से ध्वनि तरंगें पैदा होती है मंत्र शरीर और मन दोनों पर प्रभाव डालता है।
सही संख्या अनुपात मंत्र शक्ति को बढ़ा देता है। मंत्रजप मुख्यरूप से तीन प्रकार से किया जाता है। (1) वाचिक (2) उपांशु (3) अजपाजप या मानसिक।
एक प्रश्न पूछा जाता है
क्लीं का उच्चारण क्या है क्लिम या क्लीन् या कलिंग्
ऐं का उच्चारण ऐम् है कि ऐन् या ऐग (ऐग् )
ह्रीं का उच्चारण ह्रीम् है कि ह्रीग्
गं को गङ्ग कहा जाये या गम्?
संस्कृत के श्लोक हमने बड़े-बड़े मनीषियों के मुख से सुना होगा कि शब्द के अन्त में यदि अनुस्वार अर्थात् बिन्दु आये तो उच्चारण आधा म (म्) होता है
रामरक्षास्तोत्र में आये एक श्लोक पर नज़र डालते हैं
मनोजवं मारुतुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये।।
इस श्लोक में आये निम्नलिखित शब्दों का उच्चारण देखें
इससे सिद्ध होता है कि किसी भी शब्द के अन्त में अनुस्वार का अर्थ आधा म (म्) होता है। इसी प्रकार किसी भी शास्त्र के श्लोक पढ़ते समय यही नियम लागू होते हैं।
कुछ लोगों का मत यह भी है।
ऐंग् तंत्रोक्त है और ऐम् वैदिक है।
साधना अगर उग्र है और तमसिक है तो ऐंग् का उच्चारण करो।
जैसे दुर्गा के नर्वांण मंत्र की तंत्र साधना कर रहे हो और तंत्र मे भी अगर सात्विक की जगह उग्र या वाममार्ग पद्धति से साधना कर रहे हो तो ऐंग् का उच्चारण करो या गुरु ने जो बताया है वो।
एक और प्रश्न उठता है।
आपने कहा कि गं को गम बोला जाता है। लेकिन गं को गंग पढ़ा जाता है। जैसे भजन गायक बोलते हैं या मन्त्रो के कैसेट्स में ॐ गंग गणपतये नमः बजता है। हमने किसी से भी ॐ गम गणपतये नमः पढ़ते नहीं सुना है।
ये क्या पन्गा है।
अब आप शनि देव के मंत्र को देखें
शनि देव के मंत्र की भी यही स्थिति है कोई ॐ शंग शनैश्चराय नमः पढ़ते हैं तो कुछ लोग ॐ शम शनैश्चराय नमः पढ़ते हैं। कोई भी भ्रमित हो सकता है। परन्तु दोनों ही सही हैं।
दोस्तों क्या आप जानते हैं की अंग्रेजी में साइलेंट वर्ड्स क्यों होते हैं।
दोस्तों यह सारा खेल उच्चारण का है, 15 वीं शताब्दी से पहले अंग्रेजी में कोई भी साइलेंट वर्ड नहीं होता था। पर अंग्रेज लोगों ने दूसरे देशों पर अपना आधिपत्य जमाया जिसे आप उपनिवेश यानी डोमिनियन स्टेट कहते हैं। अंग्रेजो ने वहां के लोकल शब्दों को अंग्रेजी डिक्शनरी में लिखा। एक छोटा सा एग्जांपल बताता हूं जैसे सुनामी इसे अंग्रेजी में टी-सुनामी लिखा जाता है। लेकिन यह मूल रूप से जैपनीज भाषा का शब्द है। दिल्ली के पास गाजियाबाद है जहाँ एक नदी बहती है जिसका नाम है हिंडन नदी। वास्तव में इस नदी का नाम हरि नंदी नदी था लेकिन अंग्रेज लोग हरि नंदी नहीं बोल सकते थे। इसलिए भाग हिंडोन बोलने लगे और आज भी लोग उसे हिंडोन ही बोलते हैं। इसी तरह बहुत सारी ऐसी भाषाएं थी जिन के उच्चारण भिन्नता के कारन अंग्रेज लोगों से बोल नहीं पाते थे। इसीलिए उन्होंने स्पेलिंग्स को तो वही रखा लेकिन उनके बोलने के तरीके को अलग कर दिया और तभी साइलेंट वर्ड का जन्म हुआ।
हम हम लोग जिस स्थान पर रहते हैं, जैसा जल ग्रहण करते हैं अथवा भोजन ग्रहण करते हैं उसी के अनुसार हमारी भाषा का बोलने का एक तरीका हो जाता है जिसे अंग्रेजी स्लैंग या एक्सेंट कहते हैं।
भारत के बारे में कहा जाता है “कोस कोस पर बाले पानी चार कोस पे बानी” यानि हर चार कोस मतलब तक़रीबन १२ -१३ किलोमीटर पर भाषा बदल जाती है। उसके साथ बोलने का तरीका भी बदल जाता है।
आप जिस भी राज्य में रहते हों पर्व से पच्छिम की और बढ़ेंगे तो भाषा तथा बोलने के तरीके में अंतर साफ पता चल जायेगा।
इसे कुछ उदाहरण से समझते हैं।
धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा,
इसे पंजाबी में बोला जायेगा “तन तन सतगुरु तेरा ही आसरा” अब आप कहेंगे ऐसा क्यों क्युकी पंजाबी में शब्दों में खिचाव नहीं है इसलिए वे लोग ध के त और ढ को ट बोलते हैं।
ज्ञ इसे आप पढ़ेंगे ज्ञ से ज्ञान
बाबा रामदेव इसी को ज्याँ बोलते हैं। आपने सुना होगा ज्यां विज्यान
मराठी लोग इसे न्य पढ़ते हैं। जैसे संत न्यनेश्वर मतलब ज्ञानेश्वर
ष इसे क्या पढ़ेंगे षट्कोण वाला ष
पर बिहार के कई इलाकों में इसे ख बोला जाता है। इसे खट्कोण बोलते हैं।
भारत में ही आपको कई जगह पर शब्दों में अंतर नज़र आ जाता है। ऐसे सैकड़ो उदाहरण है।
इसा करके लेख को लम्बा नहीं खींचने वाला,
मूल बात आप समझ गए होंगे।
संस्कृत कोई आम बोलचाल वाली भाषा नहीं है वह खोजी हुई भाषा है। कई वैज्ञानिक क्यों कहते हैं की संस्कृत कंप्यूटर के लिए बेस्ट लेंगुएज है क्युकी इसकी व्याकरण सबसे परफेक्ट है। कही कोई गलती नहीं। इसकी व्याकरण को किसी भी भाषा में फिट कर सकते हैं मतलब आप इंग्लिश बोल रहे हैं पर संस्कृत में आप जर्मन बोल रहे हैं पर संस्कृत में, धातु, प्रतिपद, लिंग, वचन, स्वर, उपसर्ग, विभक्ति अदि को कहाँ फिट करना है सब पूर्व निर्धारित है
उदाहरण से समझते हैं।
दसरथ का पुत्र “दशरथस्य पुत्रः”
son of tom
इसे अंग्रेजी शब्दों साथ संस्कृत व्याकरण में पढ़ेंगे
टॉमस्य सन:
बस हर भाषा में फिट होने वाली व्याकरण संस्कृत है।
देवनागरी, पाली, तमिल या पंजाबी कोई भी भाषा हो व्याकरण संस्कृत से ही है।
फिर उसी तरह देवनागरी को भी लिखा गया
जैसे
कंठ से निकलने वाले वयंजनो को कण्ठ्य कहते हैं जैसे क ख ग घ ङ
तालु से निकलने वाले वयंजनो को तालव्य कहते हैं। च छ ज झ ञ
तालु पर जीभ लगा कर दातों पर टकराने से निकलने वाले वयंजनो को मूर्धन्य कहते हैं। ट ठ ड ढ ण
जीभ को दातों पर दबाने से निकलने वाले वयंजनो को दन्त्यत कहते हैं। त थ द ध न
होठो को गोल करके निकलने वाले वयंजनो को ओष्ठ्य कहते हैं। प फ ब भ म
उसके बाद अन्य व्यंजन मिले होते हैं।
फिर से वही बात कह रहा हूँ। क्षेत्र के अनुसार आपका बोलने और पढ़ने का तरीका अलग हो सकता है।
एक और बात
मंत्र जप, आप किसके लिए कर रहे हैं ? ईश्वर के लिए ना, तो जान लीजिए ईश्वर आपके हिर्दय में प्रेम से ही प्रसन्न हो जाता हैं।
बहुत ही प्रसिद्ध एक घटना है। रत्नाकर नाम का एक डाकू था। वह जंगल के रास्ते से गुजरने वाले लोगों को लूटा करता था। एक बार नारद मुनि जंगल से गुजर रहे थे। तभी डाकू रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया और बंदी बना लिया। इस पर नारद जी ने उनसे पूछा कि तुम ये अपराध क्यों करते हो? तो रत्नाकर ने कहा कि अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए मैं ऐसा करता हूं। इस पर नारद मुनि ने कहा, कि जिस परिवार के लिए तुम यह अपराध करते हो, क्या वे तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार है ? नारद जी की ये बात सुनकर रत्नाकर ने नारद मुनि को एक पेड़ से बांधा और इस प्रश्न का उत्तर लेने के लिए अपने घर गए।
उन्होंने जब ये सवाल अपने परिवार के लोगों से किया तो उनको यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कोई भी उनके इस पाप में भागीदार नहीं बनना चाहता था। उन्होंने वापस आकर नारद जी को स्वतंत्र कर दिया और अपने पापों के लिए क्षमा प्रार्थना की। इस पर नारद जी ने उनको राम नाम का जप करने का उपदेश दिया। लेकिन रत्नाकर के मुंह से राम-राम की जगह ‘मरा-मरा’ शब्द निकल रहा था। तब नारद मुनि ने कहा तुम मरा-मरा ही बोलो इसी से तुम्हें राम मिल जायेंगे।
इसी शब्द का जाप करते हुए रत्नाकर तपस्या में लीन हो गए। तपस्या में लीन हुए रत्नाकर के शरीर पर कब दीमकों ने बांबी बना ली इसका पता उन्हें नहीं चला। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें दर्शन दिए और उनके शरीर पर बनी बांबी को देखकर रत्नाकर को वाल्मीकि का नाम दिया। तब से उन्हें वाल्मीकि के नाम से जाना जाता है। साथ ही ब्रह्माजी ने उनको रामायण की रचना करने की प्रेरणा भी दी।
ईश्वर केवल प्रेम का भूखा हैं उसे मंत्रों से क्या लेना।
अगर आपके ह्रदय में प्रेम हैं और आप मंत्रोचार भी कर रहे हैं तो ठीक हैं और अगर आप अपने ह्रदय में प्रेम का दीया जला नहीं पाए और मंत्रोचार किए जा रहे हैं जिसका अर्थ भी आप नहीं जानते तो भला इससे क्या फायदा होगा?
अगर आप परमात्मा पर प्रेम के दो फूल भी चढ़ा आते हैं तो परमात्मा आपसे प्रसन्न होगा।
इसलिए इस संशय में मत फसों की सही उच्चारण क्या होगा? सबसे ज्यादा संशय ां की बिंदी को लेकर होता है।
हनुमान जी का बड़ा प्रसिद्ध मंत्र है “हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट”
यह रूद्र मन्त्र है, “हन हनुमते यहाँ अंग की बिंदी में न का प्रयोग हुआ है, रुद्रात्मकाय हुम् फट” यहाँ अंग की बिंदी में म का प्रयोग हुआ है।
किसी भी मन्त्र जाप के क्या लाभ होंगे वह आपकी श्रद्धा, भक्ति, और निष्ठा पर निर्भर है। लाभ के उद्देश्य मन में लेकर मन्त्र जाप न करें, केवल भक्ति और समर्पण के लिए कीजिये, लाभ स्वयमेव ही इष्ट देंगे।
फिर भी आपको संस्कृत में श्लोकों तथा बीज मंत्रों का सही उच्चारण को लेकर कोई भी संशय हो तो यूट्यूब या इंटरनेट पर उस मंत्र को कई बार सुनिये, अभ्यास करिये और रिकार्ड कर अपने आप को सुनिये, अशुद्धि होने पर पुनः प्रयास करिये, जब तक कि उच्चारण शुद्ध नहीं हो जाए।