puja ka diya, पूजा में दीप क्यों जलाया जाता है,
puja ka diya, पूजा में दीप क्यों जलाया जाता है,
पूजा में दीप क्यों जलाया जाता है? इसका धार्मिक और वैज्ञानिक कारण क्या है। अग्नि की खोज किसने की थी? किस देवता के आगे कौन सा दिया जलाएं? दीपक जलाते समय लौ द्वारा बनने वाली आकृति का मतलब क्या है? इस लेख में हम यही बताने जा रहे हैं।
अग्नि का हिन्दू धर्म में महत्व
वेदों में सर्वप्रथम ऋग्वेद का नाम आता है और उसमें प्रथम शब्द अग्नि ही प्राप्त होता है। अत: यह कहा जा सकता है कि विश्व-साहित्य का प्रथम शब्द अग्नि ही है। ऐतरेय ब्राह्मण आदि ब्राह्मण ग्रन्थों में यह बार-बार कहा गया है कि देवताओं में प्रथम स्थान अग्नि का है। अग्नि को जातवेद भी कहा जाता है।
किसी भी शुभ कार्य के लिए हवन कराना आवश्यक माना जाता है। हवन करने के लिए अग्नि की आवश्यकता होती है। जब बच्चा पैदा होता है तो हवन होता है। विवाह में अग्नि के ही सात फेरें लिए जाते हैं और जब कोई मरता है तो बिना दाह संस्कार के उसे मुक्ति नहीं मिलती। वेदों में अग्नि को देवतों का मुख कहा जाता है। इस लिए हर वस्तु जो देवताओं को समर्पित करनी होती हैं उसे अग्नि में स्वाहा किया जाता है। मनुष्य मृत्यु के बाद अग्नि मार्ग से होकर स्वर्ग जाता है।
अग्नि तीन तरह का है
पहली जो यज्ञ से सम्बन्धित है मतलब ईश्वर की पूजा के लिए है।
दूसरा: भोजन के लिए घर में जलाए जाने वाली
तीसरी: आकाशीय अग्नि कुछ लोग इसका सम्बन्ध चिता वाली अग्नि से भी जोड़ते हैं।
आपने सती माता की घटना सुनी होगी। जिसमें भगवान शिव के मना करने पर भी माता सती अपने पिता के यज्ञ में चली गई थी। जब वहां उनके पति यानी भगवान शिव का अपमान हुआ तो उन्होंने उस यज्ञ में ही कूदकर स्वयं को सती कर लिया। इससे उस यज्ञ की अग्नि का स्वरुप बदल गया पहले का देवी अग्नि थी लेकिन उसके बाद वह आकाशीय अग्नि बन गई यानी चिता वाली अग्नि बन गई और यज्ञ खराब हो गया।
आगे बढ़ने से पहले आपसे एक प्रश्न है।
क्या आप जानते हैं कि अग्नि का आविष्कार या अग्नि को खोजने वाले का नाम क्या था? हमें इतिहास के किताबों में पढ़ाया गया है कि जंगल में रहने वाले आदिमानवो ने आग की खोज की। क्योकि ये सभी किताबे अंग्रेजों द्वारा लिखी गई थी और 13हवीं शताब्दी तक उनका कोई खास इतिहास उन्हें पता नहीं है। उसके बाद उनका समय आया उन्होंने लगभग एक तिहाई भाग पर अपना अधिकार कर लिया था। और ये बात सत्य है की हारा हुआ देवता भी गुलाम होता है। उदाहरण रावण अपने यहाँ बंदी शनि से भी अपने अनुकूल कार्य करता था। तो कोई हिन्दू ग्रंथो की बात क्यों माने।
लेकिन हिंदू साहित्य इतना समृद्ध है कि उसमें यह भी लिखा है कि उस वनवासी का नाम क्या था? जिसने आग की खोज की थी उस वनवासी का नाम था भ्रुगू ऋषि वह पहले अग्निपूजा थे और उन्होंने ही अग्नि का आविष्कार किया था।
प्राचीन काल की बहुत से लोग यज्ञ नहीं कर सकते थे। परन्तु मुस्लिम आक्रमण के बाद यानि 12 वीं शताब्दी के बाद आम हिंदुओं को यज्ञ आदि की मनाई हो गई थी। हिन्दू धरम की यह विशेषता है कि वह समय के अनुसार खुद को ढाल लेता है। तो विद्वानों ने यह मत दिया कि यदि आप घी का दिया ईश्वर के समक्ष जलाएंगे तो वह दैनिक यज्ञ समान ही होगा। इसलिए दीपक को यज्ञ का छोटे स्वरूप माना गया। अपनी बात देवताओं तक पहुंचने के लिए दीपक को गेटवे की तरह इस्तमाल किया जाता है। इसीलिए कई लोग दीपक के अंदर फूल, लौंग या कपूर इत्यादि डाल देते हैं।
किस देवता के लिए कौन सा दिया जलाएं
आमतौर पर विषम संख्या में दीप प्रज्जवलित करने की परंपरा है। घी का दीपक लगाने से घर में सुख समृद्धि आती है। इससे घर में लक्ष्मी का स्थाई रूप से निवास होता है। कुछ दीये देवताओं के अनुसार जलाये जाते हैं।
यदि घर में पैसों की कमी है तो हर रोज शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।
आपको शत्रुओं से परेशानी हो रही है तो आप भैरव भगवान के सामने हर रोज सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं।
अगर आप पर राहु-केतु ग्रह को लेकर परेशानी हैं तो अलसी के तेल का प्रयोग करें।
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए आप सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
हनुमानजी के आगे तिल अथवा चमेली के तेल दीपक जलाना चाहिए।
मां दुर्गा, मां सरस्वती माता लक्ष्मी, गणेशजी, श्री हरी विष्णु जी के समक्ष घी का दीपक जलाना चाहिए।
दीपक जलाने के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
दीपक ज्ञान और रोशनी का प्रतीक है। यह सकारात्मकता का प्रतीक है। इसे दरिद्रता को दूर करने वाला माना जाता है। और कई धार्मिक कारण आपको अबतक पता चल गए होंगे।
वैज्ञानिक कारण –
गाय के घी में रोगाणुओं को भगाने की क्षमता होती है। यह घी जब दीपक में अग्नि के संपर्क में आता है तो वातावरण को पवित्र बना देता है। अग्नि में कोई भी चीज जलने पर खत्म नहीं होती बल्कि छोटे-छोटे अदृश्य टुकड़ों में बंटकर वातावरण में फैल जाती है। इसलिए अग्नि से घी का फैलना वातावरण को शुद्ध करता है।
पूजा में ध्यान रखें दीपक से जुड़ी ये बातें जो विद्वानों द्वारा बताई जाती हैं।
देवी-देवताओं को घी का दीपक अपने बाएं हाथ की ओर तथा तेल का दीपक दाएं हाथ की ओर लगाना चाहिए।
पूजा करते वक्त दीपक बुझना नहीं चाहिए।
घी के दीपक के लिए सफेद रुई की बत्ती उपयोग किया जाना चाहिए। जबकि तेल के दीपक के लिए लाल धागे की बत्ती श्रेष्ठ बताई गई है।
पूजा में कभी भी खंडित दीपक नहीं जलाना चाहिए। धार्मिक कार्यों में खंडित सामग्री शुभ नहीं मानी जाती है।
दिया जलाने के बाद जब बत्ती में लौ उठने लगती है तब दीपक की उस लौ में अनेकों प्रकार की आकृतियां उभर कर आती हैं। जिन्हे लोग भगवन का संकेत कहते हैं।
इस विषय में लोगों का क्या कहना है पहले ये जान लेते हैं फिर मैंने जो प्रयोगों में पाया वह बताता हूँ।
दीपक की लौ में फूल बनना
अगर आपके दीपक में फूल बनता है तो इसका अर्थ है कि आपकी पूजा भगवान तक पहुंच रही है और आपकी पूजा से भगवान संतुष्ट हैं। भगवान आपके साथ हैं और किसी न किसी रूप में आपकी सहायता कर रहे हैं।
दीपक की लौ में त्रिशूल बनना
अगर आपके दीपक में त्रिशूल की आकृति बनती है तो इसका अर्थ होता है कि भगवान शिव की आप पर असीम कृपा है। भगवान का आपकी हर परिस्थिति में रक्षा कर रहे हैं। बता दें कि, आप पूजा किसी भी करें पहुंचती वो सभी देवी देवताओं को समान रूप से है।
दीपक की लौ में चक्र बनना
अगर आपके दीपक में चक्र की आकृति बनती है तो इसका अर्थ है कि आपके जीवन में ढेर सारी खुशियों का आगमन होने वाला है। आपको न सिर्फ धन लाभ हो सकता है बल्कि आपको हर काम सफलता हासिल होने के आसार बढ़ सकते हैं।
दीपक की लौ में मोर पंख या बांसुरी बनना
दीपक में मोर पंख या बांसुरी बनने का अर्थ है श्री कृष्ण का आपके प्रति अपार प्रेम और आशीर्वाद। इसके अतिरिक्त, इन दोनों आकृतियों का ये भी मतलब होता है कि आपको जल्द अपने शत्रुओं से छुटकारा मिल जाएगा और आपके वैवाहिक जीवन में मधुरता घुलेगी।
अब मैं आपको अपना अनुभव बताता हूं। इसके पीछे कुछ फैक्टर काम करते हैं। पहला आपके द्वारा बनाई गई जोत बत्ती यानि रोई या कलावा।
दूसरा आप किस तेल या घी का दिया जलाते हैं।
तीसरा हवा का रुख किस दिशा में है।
फूल, चक्र, और चाँद और त्रिशूल के पैटर्न को मैंने बनते देखा है।
जैसे रुई की बाती और घी ज्यादातर फूल बनाते हैं।
रुई की बाती और तिल का तेल अर्ध चंद्र या चक्र बनाते हैं।
कलावा और घी त्रिशूल या फूल बनाते हैं।
रुई की बाती और चमेली का तेल अलग पैटर्न बनाते हैं।
इसलिए आप अपनी पूजा पर और अपने आराध्य पर ध्यान लगाएं न की जलने वाली लो की आकृति पर दीपक जलने का अर्थ है की ईश्वर आपकी बात सुन रहा है।