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Kalabhairavashtakam, कालभैरवाष्टकम्

Kalabhairavashtakam, कालभैरवाष्टकम्

नमस्कार दोस्तों
इस लेख में हम कालभैरवाष्टकम् को कौन करे, कैसे करें, इसके लाभ, इसका इतिहास तथा इसे करने की विधि यह बताने जा रहे हैं।
Kalabhairavashtakam, कालभैरवाष्टकम्

भगवान भैरव शिव के स्वरूप हैं। वे कलियुग की बाधाओं का शीघ्र निवारण करने वाले देवता माने जाते हैं। खासतौर से प्रेत व तांत्रिक बाधा के दोष उनके पूजन से दूर हो जाते हैं। संतान की दीर्घायु हो या गृहस्वामी का स्वास्थ्य, भगवान भैरव स्मरण और पूजन मात्र से उनके कष्टों को दूर कर देते हैं। भगवान भैरव के पूजन से राहु-केतु शांत हो जाते हैं। उनके पूजन में भैरव अष्टक और भैरव कवच का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे शीघ्र फल मिलता है। साथ ही तांत्रिक व प्रेत बाधा का संकट टल जाता है।

भैरव या महाभैरव कौन हैं

भैरव या भैरवनाथ का अर्थ है जो देखने में भयंकर हो, जो भय से रक्षा करता है। भीषण या डरावना। ये शिव के पांचवे अवतार माने जाते हैं।
शैव मत के अनुसार भैरव शिव जी से उत्पन्न विनाश से जुड़ा एक उग्र व क्रोधित अवतार हैं।
त्रिक प्रणाली यानि ब्रम्हा विष्णु महेश के एक रूप में भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची बताये गए हैं। मतलब ब्रम्हा ही हैं।
आमतौर पर हिंदू धर्म में, भैरव को ‘दंडपाणि’ यानि जिसके हाथ में दण्ड हो और ‘स्वस्वा’ यानि जिसका वाहन कुत्ता है कहा जाता है।
वज्रयान बौद्ध धर्म में, उन्हें बोधिसत्व मंजुश्री का एक उग्र वशीकरण माना जाता है और उन्हें हरुका, वज्रभैरव और यमंतक भी कहा जाता है।
जैन धर्म में भी भैरव की पूजा का प्रावधान है।
लगभग पूरे भारत, श्रीलंका और नेपाल के साथ-साथ तिब्बती बौद्ध धर्म में भी पूजे जाते हैं।

8 line Lord Ganesha mantra, सिर्फ 8 श्लोकों वाला स्तोत्र हर दुःख का नाश करता है,

भैरव की उत्पति कैसे हुई

जब भी शिव की क्रोध आया है तब तब भैरव की उत्पत्ति हुई, चाहे वह सती माता के सती होने की घटना हो जिन्हे वीर भद्र खा गया वह भी भैरव कहलाये। दक्ष के यज्ञ में जब सती ने आत्मदाह किया तब वीरभद्र ने यज्ञ का ध्वंस कर दिया। फिर वे सती का मृतशरीर उठा कर इधर-उधर घूमने लगे। तब ब्रह्माजी के सुझाव पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 खंड कर दिए। वे अंग जहाँ-जहाँ भी गिरे वो स्थान शक्तिपीठ कहलाया। हर शक्तिपीठ की रक्षा के लिए महादेव ने अपना ही एक रूप, जो भैरव कहलाया, नियुक्त किया। इस तरह 51 भैरव हैं।

‘शिवपुराण’ के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य ने एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।

स्कंध पुराण व कुछ और पुराणों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभकाल में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। जिससे शिव जी के शरीर से भैरव उत्पन्न हुए। और ब्रम्हा जी का पाँचवा सर काट दिया। शंकर द्वारा मध्यस्थता कर उन्हें बचाया। तब उन्हें महाभैरव का नाम मिला। तिथि को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।

भैरव उपासना की कितनी शाखाएं हैं

सामान्यतः भैरव-उपासना की दो शाखाएं टुक भैरव तथा काल भैरव।
बटुक का अर्थ है 5 वश से छोटा बच्चा, बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं। जबकि वहीं युवा रूप काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।

कालभैरवाष्टकम् का लाभ

हम यह कालभैरवाष्टकम् की बात कर रहे हैं जो युवा भैरव की स्तुति है। काल भैरव अष्टकम का पाठ उन लोगों को करना चाहिए जो शत्रुओं से पीड़ित हैं। जो लोग भयभीत रहते हैं उन्हें भी काल भैरव अष्टकम का नियमित पाठ करना चाहिए।

यदि आपको शत्रु भय लगा रहता है, मुक़दमे बजी का डर बना रहता है। प्रेत बाधा से परेशां हैं। राहु का प्रचंड प्रभाव है जिसे ज्योतिषीय उपायों जा सकता। आप अपने आत्मिक बल व आध्यात्मिक शक्तियों को बढ़ना चाहते हैं। भगवान काल भैरव उन सभी को अपनी दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद प्रदान करें जो उनकी शरण में हैं।

कालभैरवाष्टकम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित नौ श्लोकों का समूह है। इस के आठ श्लोकों में कालभैरव के गुणों का वर्णन एवं स्तुति की गयी है। नवा श्लोक उसकी महिमा बताता है,
कालभैरव एक उग्र किन्तु न्यायप्रिय देवता है इन्हें क्षेत्रपाल भी कहा जाता है।

काल भैरव की पूजा विधि (अनुष्ठान)

भगवान काल भैरव की भक्ति और ईमानदारी से पूजा करने से देवता के साथ संबंध गहरा हो सकता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है। यहां काल भैरव की पूजा के लिए एक सरल पूजा विधि दी गई है।

पूजा करने के लिए उचित दिन और समय चुनें।
स्वयं को और पूजा क्षेत्र को शुद्ध करें।
एक साफ कपड़े पर भगवान काल भैरव की मूर्ति या तस्वीर रखें।
देवता को फूल, धूप और दीप अर्पित करें।
काल भैरव अष्टकम का पूरी श्रद्धा से पाठ करें।
प्रसाद के रूप में नारियल, सिन्दूर और मिठाई चढ़ाएं।
भगवान काल भैरव का आशीर्वाद लेकर पूजा समाप्त करें।

ॐ देवराज सेव्यमान पावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्याल यज्ञसूत्र मिन्दुशेखरं कृपाकरम्
नारदादि योगिवृन्द वन्दितं दिगंबरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥१॥

अनुवाद: देवराज इंद्र जिनके पवित्र चरणों की सदैव सेवा करते है, जिन्होंने चंद्रमा को अपने शिरोभूषण के रूप में धारण किया है, जिन्होंने सर्पो का यज्ञोपवीत अपने शरीर पर धारण किया है, नारद सहित बड़े बड़े योगीवृन्द जिनको वंदन करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

भानु कोटि भास्वरं भवाब्धि तारकं परं
नीलकण्ठ मीप्सितार्थ दायकं त्रिलोचनम् ।
काल काल मंबुजा क्षमक्ष शूलमक्षरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥२॥

अनुवाद: जो करोड़ो सूर्यो के समान तेजस्वी है,संसार रूपी समुद्र को तारने में जो सहायक हैं, जिनका कंठ नीला है, जिनके तीन लोचन है, और जो सभी ईप्सित अपने भक्तों को प्रदान करते है, जो काल के भी काल (महाकाल) है, जिनके नयन कमल की तरह सुंदर है,
तथा त्रिशूल और रुद्राक्ष को जिन्होंने धारण किया है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.


शूल टङ्क पाश दण्ड पाणिमा दिकारणं
श्याम काय मादिदेव मक्षरं निरामयम् ।
भीम विक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डव प्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥

अनुवाद: जिनकी कांति श्याम रूपी है, तथा जिन्होंने शूल, टंक, पाश, दंड आदि को जिन्होंने धारण किया है, जो आदिदेव, अविनाशी तथा आदिकारण है, जो महापराक्रमी है तथा अद्भुत तांडव नृत्य करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

भुक्ति मुक्ति दायकं प्रशस्त चारु विग्रहं
भक्त वत्सलं स्थितं समस्त लोक विग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञ हेम किङ्किणील सत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥

अनुवाद: जो भुक्ति तथा मुक्ति प्रदान करते है, जिनका स्वरूप प्रशस्त तथा सुंदर है, जो भक्तों को प्रिय है, चारों लोकों में स्थिर है, जिनकी कमर पे करधनी रुनझुन करती है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

धर्म सेतु पालकं त्वधर्म मार्ग नाशकं
कर्म पाश मोचकं सुशर्म दायकं विभुम् ।
स्वर्ण वर्ण शेषपाश शोभिताङ्ग मण्डलं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥५॥

अनुवाद: जो धर्म मार्ग के पालक तथा अधर्ममार्ग के नाशक है, जो कर्मपाश का नाश करने वाले तथा कल्याणप्रद दायक है, जिन्होंने स्वर्णरूपी शेषनाग का पाश धारण किया है, जिस कारण सारा अंग मंडित हो गया है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

रत्न पादुका प्रभाभि रामपाद युग्मकं
नित्यम द्वितीय मिष्ट दैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्यु दर्प नाशनं कराळ दंष्ट्र मोक्षणं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥

अनुवाद: जिन्होंने रत्नयुक्त पादुका (खड़ाऊ) धारण किये हैं, और जिनकी कांति अब सुशोभित है, जो नित्य निर्मल, अविनाशी, अद्वितीय है तथा सब के प्रिय देवता है, जो मृत्यु का अभियान दूर करने वाले हैं, तथा काल के भयानक दाँतों से मुक्ति प्रदान करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.


अट्टहास भिन्न पद्म जाण्ड कोश सन्ततिं
दृष्टि पात नष्ट पाप जाल मुग्र शासनम् ।
अष्ट सिद्धि दायकं कपाल मालि कन्धरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥

अनुवाद: जिनके अट्टहास से समुचित ब्रह्मांड विदीर्ण होता है, और जिनके दृष्टिपात से समुचित पापों का समूह नष्ट होता है, तथा जिनका शासन कठोर है, जिन्होंने कपालमाला धारण की है और जो आठ प्रकार की सिद्धियों के प्रदाता है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

भूत सङ्घनायकं विशाल कीर्ति दायकं
काशि वास लोक पुण्य पाप शोधकं विभुम् ।
नीति मार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥

अनुवाद: जो समस्त भूतसंघ के नायक है, तथा विशाल कीर्तिदायक है, जो काशीपुरी में रहनेवाले सभी भक्तों के पाप-पुण्यों का शोधन करते है तथा सर्वव्यापी है, जो नीतिमार्ग के वेत्ता है, पुरातन से भी पुरातन है, तथा समस्त संसार के स्वामी है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.

काल भैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञान मुक्ति साधनं विचित्र पुण्य वर्धनम् ।
शोक मोह दैन्य लोभ कोप ताप नाशनं
ते प्रयान्ति काल भैरवाङ्घ्रि सन्निधिं ध्रुवम् ॥९॥

अनुवाद: ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने हेतु, भक्तों के विचित्र पुण्य का वर्धन करनेवाले, शोक, मोह, दैन्य, लोभ, कोप-ताप आदि का नाश करने हेतु, जो इस कालभैरवाष्टक का पाठ करते है, वो निश्चित ही कालभैरव के चरणों की प्राप्ति करते हैं.


॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥

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