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Ram naam Arth, kaise karen tatha kab karen

दोस्तों अपनी सुना होगा राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट। इसका मतलब क्या है किसी तरह की लूटपाट के बारे में बात हो रही है? नहीं दरअसल यह भगवान राम के नाम की महिमा यानी जितनी बार उसका जब करेंगे उसके परिणाम की बात हो रही है। इस लेख में हम आपको राम नाम का अर्थ क्या है, राम नाम को कैसे जमा जाए तथा यह कब किया जाए व एक खास विधि जो चलते फिरते आप कर सकते है उसके बारे में बताएंगे।

सबसे पहले राम नाम का अर्थ समझ लेते हैं।
यह हम बात करते है की मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म से पहले राम नाम के क्या मायने थे। ताकि आपको भी समझ आये कि क्यों महृषि वशिष्ट ने महाराज दशरथ के पुत्र को देख उसका नाम राम रखा।
राम शब्द का अर्थ है – रमंति इति रामः जो हृदय में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है वह राम हैं।
इसी तरह ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है –
राम शब्दो विश्ववचनों, मश्वापीश्वर वाचकः
अर्थात् ‘रा’ शब्द परिपूर्णता का बोधक है और ‘म’ परमेश्वर वाचक है। यानि परिपूर्ण परमेश्वर।

‘रम्’ धातु का अर्थ रमण यानि निवास या विहार करने से सम्बंधित है। ज्ञानी जान कहते हैं की ह्रदय में निवास करने वाले प्रकाश को राम कहा जाता है। ‘विष्णुसहस्रनाम’ पर लिखित अपने भाष्य में आदि शंकराचार्य ने पद्मपुराण का हवाला देते हुए कहते हैं कि जो नित्यानन्दस्वरूप हैं और जिन भगवान् में योगिजन रमण करते हैं, इसलिए वे ‘राम’ हैं। वैदिक साहित्य में आम तौर पर राम शब्द का उल्लेख काम मिलता है। राम शब्द का अर्थ इंद्र व आदिपुरुष भी बताया गया है।

शब्द विज्ञान के अनुसार बात करें तो यही एक ऐसा शब्द है जिसके एक बार कहने पर यह नाम होता है। दो बार कहने पर प्रणाम होता है। और तीन अथवा उससे ज्यादा बार कहने पर क्षमा होता है। जैसे किसी का नाम राम है तो हम बुलाते हैं राम इधर आओ। किसी से मिलते हैं तो बोलते हैं राम-राम भाई और यदि कुछ त्रुटि हो जाए तो कहते हैं राम-राम राम-राम। इसी तरह असंख्य लोग रोज इसे जपते हैं। यानी यह शब्द इस तरह से हमारे जीवन में बस चुका है कि हम मृत्यु से लेकर और अंत तक इस शब्द के साथ जुड़े हुए हैं। जब बच्चा पैदा होता है तो दाईया उसके कान में राम शब्द का उद्घोष करती हैं। जब कोई व्यक्ति मरता है तो राम नाम सत्य है कहा जाता है।

हमारे प्राचीन ऋषि मुनि और पूर्वज हमेशा इस बात के चिंतन में रहते थे कि कैसे लोगों का भला हो। उसके लिए उन्होंने तरह-तरह के विधान बनाएं। जिनमे मंत्र, यन्त्र तंत्र पाठ व विभन्न प्रकार की साधनए शामिल है। उन्होंने बहुत सारे मंत्रों पर रिसर्च की और उन्हें पता चला कि कई लोग ऐसे है जो शुद्ध उच्चारण कर सकते हैं। जो बताई गई विधि का पालन कर सकते हैं। वो भी कैसे भगवत कृपा प्राप्त करे इसके लिए एक ऐसा नाम निकल कर आया जो आज तक चला रहे हैं और जिसे हम लोग राम के नाम से जानते हैं। जिसके जप मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

चाहे आप कितने भी विद्वान हो और या फिर मेरी तरह निरे मूर्ख हो। यदि राम नाम का जाप करते हैं तो दोनों की गति एक ही जैसी होगी। अर्थात भगवत कृपा दोनों पर बराबर ही होगी इसीलिए इस नाम को इतना महत्वपूर्ण माना गया है। यह नाम केवल भगवान राम का ही नहीं है बल्कि यह नाम आध्यात्मिक दृष्टि से हृदय का प्रकाश का है।
जब भगवान राम उत्पन्न हुए उसके बाद से इस नाम की महिमा लाखों गुना बढ़ गई। आप इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं जब पहले कोई मोदी नाम लेता था तो हमारे दिमाग में एक बिजनेसमैन की छवि आती थी। लेकिन आज की डेट में कुछ और ही छवि आती है। यानी उस नाम की महिमा बढ़ चुकी है। इसी तरह कृष्ण का मतलब केवल काला होता है पर भगवान श्री कृष्ण के पैदा होने के बाद इस नाम की महिमा लाखों गुना बढ़ गई।
जब हम राम नाम का जप करते हैं तो हृदय में प्रकाश प्रज्वलित होता है। आपने सुना होगा कि जब ज्ञान का प्रकाश फैलता है तो अज्ञान का अंधेरा स्वतः ही चला जाता है।

महापुरुषों ने इस नाम की महिमा इतनी बताई है कि यदि मैं याद करने लगे तो यह लेख 100 पेज तक भी ख़तम न हो। मतलब आप सोच सकते कि मेरे जैसा सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी राम नाम के बारे में इतना जानता है। विद्वान लोग तो पता नहीं कितनी बातें जानते हैं। हरि अनंत हरि कथा अनंता कहहि सुनहि बहु बिधि सब संता। सबसे पहले रामायण के अंदर ही राम के नाम की बहुत ज्यादा चर्चा हुई है मैं सिर्फ याद दिला दूं। वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम की बात नहीं कर रहा हूं मैं उनके नाम की बात कर रहा हूं। सबसे पहला उदाहरण तो अहल्या का ही देख लीजिए कि राम नाम लेते लेते उतर गई। राम नाम के पत्थर पानी पर तैरने लगे। राजा ययाति की कहानी आप सबने सुनी होगी।

आपने अक्सर सुना होगा राम से बड़ा राम का नाम इसके पीछे एक घटना है। राजा सुकान्त की घटना
एक बार सुमेरु पर्वत पर ऋषिओं का एक आयोजन हुआ। जिसमें बहुत से संत महात्मा व राजा लोग आए। उसमें सुकंत नाम का एक राजा भी पंहुचा। नारद जी के भड़काने पर उसने ऋषि विश्वामित्र को प्रणाम नहीं किया। इसे विश्वामित्र ने अपना अपमान माना। वह भगवान राम के पास पहुंच गए और उनको आदेश दिया कि राम सुकंत का वध कर दे। भगवन राम ने अगले दिन ही सुकान्त को मरने का प्रण ले लिया। भगवान राम की इस प्रतिज्ञा का पता लगने पर सुकंत दौड़ा हुआ नारद मुनि के पास पहुंचा। नारद मुनि ने उसे माता अंजना के पास भेजा और माता अंजना ने हनुमान जी से उसकी रक्षा का वचन ले लिया। इस तरह से जब भगवान राम अगले दिन सुकंत को मारने पहुंचे।
हनुमान जी ने माता अंजना को वचन दे दिया था इसलिए वह सुकंत की हर तरह से रक्षा करेंगे परंतु मैं अपने आराध्य से लड़ भी नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने उसे सरयू नदी के तट पर बैठने को कहा और राम नाम जपने को कहा। जैसे ही भगवान राम पहुंचे सुकंत उन्हें देखकर डरने लगा। तब सूक्ष्म रूप में उसके पास बैठे हनुमान जी ने कहा तुम राम नाम का जप बंद मत करो। इसे लगातार जपते रहो। वह जितना डरता था इतनी जोर से राम नाम का जप करता था। भगवान राम के तीर उस पर बेकार हो गए तब भगवान राम को यह पता चला कि इसके पीछे हनुमान का हाथ है। यह बात विश्वामित्र को जब पता चली तो उन्होंने सुकांत को क्षमा कर दिया और राम से अपना वचन वापस ले लिया।

आप लोगों ने यह घटना तो सुनी होगी लेकिन मैं आपको 18वीं शताब्दी के घटना बताता हूं जिसके उल्लेख आज भी मौजूद हैं। चौकी घाट, पानी टंकी, वरुणा नदी के पास मूछ वाले हनुमान जी का मंदिर है। 18वीं शताब्दी में मंदिर के स्थान पर रामलीला हुआ करती थी। रामलीला का आयोजन आज भी होता है। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के बाद अंग्रेज लोगों ने किसी भी तरह के आयोजनों पर रोक लगाई हुई थी। यहाँ रामलीला का आयोजन हो रहा था। उस समय के डीएम हेनरी वहां पहुंच गया। उसने रामलीला को नाटक समझ बंद करने का आदेश दिया। तब वहां पर उपस्थित लोगों ने बताया कि यह नाटक नहीं बल्कि रामायण है। उसने पूरी कथा को सुनने का मन बनाया। किसी विद्वान ने उसे रामायण सुनना आरम्भ किया। वह जगह जगह पर टोकता रहा, पर जब हनुमान जी का एक छलांग में लंका पार करने का वर्णन आया तो वह रुक गया और उसने तुरंत कहा कि यह असंभव है। तब उसने चुनौतीपूर्ण तरीके से कहा कि अगर आप की रामलीला में हनुमान का किरदार करने वाला केवल यह वरुणा नदी ही पार कर गया। तो मैं मान लूंगा कि ऐसा सचमुच हुआ था। उसके बाद आप लोग रामलीला चला सकते हैं।

उसकी बात सुनने के बाद लोगों के बीच में सन्नाटा पसर गया। पर अब यह बात भक्त और भगवान तथा उनकी श्रद्धा की थी।उस समय हनुमान का किरदार राम कटोरा गांव के जग्गू ब्राह्मण निभाया करते थे। वह बहुत बड़ी बड़ी मूछें रखा करते थे तो उन्होंने कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए हम प्रयास जरूर करेंगे। ऐसे समय में कथा सुनाने वालों ने डी एम से कहा कि हनुमान जी ने पहाड़ पर चढ़ लंका के लिए छलांग लगाई थी इसीलिए आप एक ऊंची मचान बना दे। तिथि निर्धारित कर दी गई डीएम ने कुछ ही दिनों में 3 से 4 मंजिला ऊंचा मचान खड़ा कर दिया। पूरे बनारस में और रामनगर में घर घर में भगवान राम के नाम का जाप शुर हो गया।

निर्धारित दिन हनुमान उस मचान पर चढ़े। लोग नीचे खड़े बस राम का नाम लिए जा रहे थे। जय श्री राम की उद्घोष से पूरा मैदान भर गया था और उस हनुमान का किरदार निभाने वाले व्यक्ति ने उस मचान से छलांग लगा दी। वहां उपस्थित सभी लोग ऐसे हाथ जोड़े खड़े थे। उन्हें ऐसे लगा जैसे स्वयं हनुमान जी उसमे प्रवेश कर गए थे। आश्चर्य की बात यह थी कि वह वरुणा नदी के उस पार पहुंच गए थे। वह खड़े हुए उन्होंने पीछे मुड़कर देखा कि मैंने नदी पार कर ली है। और तत्काल ही उन्होंने प्राण त्याग दिए। परंतु यह देख कर डीएम के होश उड़ गए और उसने वहां पर रामलीला करने के आदेश दिए। वह आदेश आज भी बनारस संग्रहालय में रखे हुए हैं।

दोस्तों अगला सवाल है राम नाम कैसे जपे?
तो आपको बता दें कि आप तीन तरह से इसका जाप कर सकते हैं।
वाचक यानी बोलकर
उपांशु यानी केवल होंठ हिलाकर
और अजपा यानी मन ही मन में राम मंत्र का जाप किया जा सकता है।
यही दो अक्षर का जाप आपके सारे दुखों को दूर कर सकता है। इसके अलावा आप लिखकर भी इसका जाप कर सकते हैं। इसका जाप करने के लिए कोई ऐसी विशेष विधि नहीं बताई गई। जहां आप बैठे हैं जिस स्थिति में आप बैठे हैं उस स्थिति में आप राम के नाम का जाप कर सकते हैं।

इस विषय में एक घटना बताई जाती है। तुलसीदास जी और कबीर समकालीन थे। एक बार कबीर जी ने सोचा कि वह तुलसीदास जी से मिलने जाए। वह जब पहुंचे तो उन्हें पता चला कि तुलसीदास जी शौच करने के लिए गए हुए हैं। कबीर जी वहां पहुंच गए और उन्होंने तुलसीदास जी को राम-राम किया पर तुलसीदास ने कोई जवाब नहीं दिया। थोड़ी देर बाद जब निवृत्त होकर आए तो तुलसीदास जी ने कहा कि तुम्हें पता नहीं है मैं शौच कर रहा था और ऐसे समय में तुम राम-राम बोल रहे हो। कबीर दास जी ने कहा “कहां लिखा है कि शौच करते समय राम का नाम नहीं लिया जा सकता”।तब तुलसीदास जी को अपनी भूल का अहसास हुआ। उन्होंने कहा कि राम का नाम ही तो ऐसा नाम है जो हर स्थिति में लिया जा सकता है। व्यक्ति मृत्यु शैया पर पड़ा है तब भी वह राम का नाम ले सकता है। राम के नाम में कोई सूतक पातक नहीं लगता इसीलिए तो यह श्रेष्ठ है।

इसे विधान से करने पर थोड़ा ज्यादा लाभ मिलता है और वे विधान से करने पर थोड़ा कम परंतु दोनों ही स्थितियों में लाभ प्राप्त होता है।
विधि विधान से करना चाहते हैं तो पहले संकल्प लें, संकल्प लेने के बाद प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर अपनी माला से निर्धारित मात्रा में जप करें।
उदाहरण के स्वरूप समझते हैं किसी व्यक्ति ने सवा लाख जप करने हैं। मतलब उसे 1250 मालाएं करनी होगी। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा वाले स्थान पर बैठ जाएँ, प्रति दिन 25 माला करें इस तरह से 50 दिनों में उसके सवा लाख जप पूरे हो जाएंगे।

यदि आप नियमित जपना चाहते हैं तो नियमित भी कम से कम पांच माला जप सकते हैं।

लिखना चाहते हैं तो नियमित थोड़ा सा समय निकालिए और राम नाम किसी भी एक कॉपी पर लिखना शुरू कर दीजिए। उसके लिए अलग से भी बाजार में राम नाम लिखने वाली कॉपियां मिलती हैं। जिन पर आप राम का नाम लिख सकते हैं। यह भी मन को बहुत शांति देने वाला तथा जीवन में समृद्धि के मार्ग खोलने वाला रास्ता है।

एक विशेष ध्यान विधि है जिसे जरुरत पड़ने पर मैं भी इस्तमाल करता हु।
इसमें आप अपनी सांसों में राम नाम जपते हैं।
जब आप सांस लेते हैं तो मन में रा बोलते हैं। रा का ध्यान करते हैं और जब सांस छोड़ते हैं तो म का ध्यान करते हैं। यह बहुत ही प्रभावी है। इसे अजपा जप कहते हैं।
आपको मुंह से नहीं बोलना है। मैंने सांस ली तो मेरे मन में भाव आया रा और जब सांस छोड़ी तो मेरे मन में भाव आया म, इस तरह से आप राम के नाम का जब अपनी सांसों के साथ जोड़ सकते हैं। यह सरल परंतु अत्यंत प्रभावी ध्यान विधि है जिसका अपने जिसका अभ्यास करने के 15 दिन बाद ही आप परिणाम देख सकते हैं। मैं आपको अपनी जीवन की घटना बताता हूं हमारे मित्र हैं उनकी माता जी को टीवी हो गया था। दवाइयां तो चल ही रही थी लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि क्या करूं मुझे
कोई उपाय बताओ।
कुछ लैंग्वेज प्रॉब्लम होने के कारण मैं उन्हें कोई मंत्र नहीं बता पा रहा था। उनके उच्चारण में गलती हुई जा रही थी। फिर मैंने उनको यह तरीका बताया और उन्होंने श्रद्धा से इसे किया। वह जब भी खाली बैठी थी इसी तरह से किया करती थी। आप यकीन नहीं मानेंगे डॉक्टरों ने यह कहा कि जितनी तेजी से आप ठीक हो रही हैं हमें विश्वास नहीं होता कि इस उम्र में भी इतनी जल्दी ठीक हो सकता है। उसके बाद वह ठीक हो गई। वह हमेशा मुझे आशीर्वाद दिया करती थी। अपनी मृत्यु के समय तक इस मंत्र को करती रही और उनका मानना था कि जब वह मारेंगी तो उन्हें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी।

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