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Shivling par jal kaise cadhayen, shivling jal offering

नमस्कार दोस्तों
शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका क्या है। Shivling par jal kaise cadhayen

दोस्तों हमारी एक सब्सक्राइब ठाकुर जेठवानी जी ने प्रश्न किया है कि शिव जी के मंदिर में शिवलिंग पर जल कैसे चढ़ाएं तो सबसे पहले यह जान ले की मंदिर और देवालय में क्या अंतर होता है?
मंदिर किसी एक विशेष देवता का होता है जैसे शिव जी का मंदिर, विष्णु जी का मंदिर, माता का मंदिर या हनुमान जी का मंदिर।
जबकि देवालय एक ऐसा स्थान होता है जहां पर बहुत सारे देवी देवता होते हैं। जहां आप रहते हैं कॉलोनी में मोहल्ले में या गली के अंदर जो मंदिर होता है वह देवालय होता है। मतलब वहां कम से कम चार देवता तो होते ही हैं। आप मंदिर में जल चढ़ाएं या देवालय में जल चढ़ाएं यह विधि दोनों जगह उतनी ही प्रासंगिक है।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका क्या है। या शिवलिंग पर जल चढ़ाएं आइये इसपर एक बार चर्चा कर लेते हैं।
जैसे हर देवता की पूजा करने का एक विधान होता है। जैसे ब्रह्म मुहूर्त में ही विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए साथ ही उनको कमल पुष्प चढ़ाना अच्छा माना गया है। मां लक्ष्मी की पूजा यदि आप रात को 9:00 से 11:00 के बीच में करते हैं तो यह अत्यंत फलदाई मानी गई है। शनि देव की पूजा शाम को सूर्य ढलने के बाद की जाती है।
वैसे ही भगवान शिव की पूजा करने का सबसे सही समय प्रदोष काल माना जाता है।
प्रदोष काल क्या होता है?
यह भी एक प्रश्न बनता है क्योंकि बहुत से लोगों को इसके बारे में नहीं पता होता। प्रदोष काल दिन सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 48 मिनट बाद तक रहता है। प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करना सबसे उत्तम माना जाता है यह तकरीबन डेढ़ घंटे रहने वाला काल है।

शास्त्रों में पूजा-पाठ के कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं जैसे- पूजा के दौरान यदि आप कुश या ऊन के आसान पर न बैठे हों तो हमेशा सिर ढककर खड़े हों, सुहागिन स्त्रियां श्रृंगार करें, कभी भी खंडित अक्षत भगवान् को न चढ़ाएं, गणेश जी को भूलकर भी तुलसी दल न चढ़ाएं। ऐसे ही कुछ नियम शिव लिंग के पूजन से भी जुड़े हुए हैं, जिसमें शिवलिंग पर जल अर्पित करने का तरीका मुख्य माना जाता है।
भगवान शिव को सुबह के समय जल चढ़ाना सबसे उत्तम माना गया है। शाम के समय प्रदोष काल होता है उस समय उपासना तथा पूजा करनी चाहिए परंतु उसका विधान अलग है। और जल चढ़ाने का विधान अलग है।

कहते हैं भगवान शिव को जल की धारा अत्यंत प्रिय है। शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय आप अपने मन के अंदर किसी भी तरह की मनोकामना लाते हैं तो वह अवश्य पूरी होती है। परंतु इसकी एक शर्त है कि नियमित होना चाहिए यानी आपको रोज जल चढ़ाना है। भगवान शिव भोले ही इसलिए जल्दी सुन सुन लेता है।

सामान्यतः वास्तु के अनुसार कहा जाता है कि पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। परंतु कुछ प्रमुख देवता हैं जिनकी पूजा करते समय आपका दूसरी दिशा में भी हो सकता है।
जैसे
यम की पूजा करते समय आपका मुंह दक्षिण की ओर होना चाहिए।
तंत्र अथवा कर्मकांड या लक्ष्मी की विशेष पूजा करने पर के समय आपका मुंह पश्चिम की ओर होना चाहिए।
उसी तरह जब भगवान शिव की उपासना करते हैं अर्थात शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं तो आपका मुंह उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
वैसे वह भगवान हैं किसी भी दिशा में आपका मुंह होगा तो इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। आपके द्वारा चढ़ाया गया जल और आपकी श्रद्धा उस दिशा पर भारी होगी। परंतु हर चीज का एक विधान बताया गया है जिसके अनुसार ही हमें पूजा पाठ करना चाहिए यदि हमें ज्ञान नहीं है तो बात अलग है लेकिन अगर हमें पता है और हमें ज्ञान है तो फिर उसका पालन करना चाहिए। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय हमेशा उत्तर की तरफ मुंह करके जल चढ़ाना चाहिए। हमेशा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके जल चढ़ाएं क्योंकि उत्तर दिशा को शिव जी का बायां अंग माना जाता है जो माता पार्वती को समर्पित है। इस दिशा की ओर मुंह करके जल अर्पित करने से भगवान शिव और माता पार्वती दोनों की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।

कौन से पात्र से अर्पित करें जल?
शिवलिंग पर जल अर्पित करते समय सबसे ज्यादा ध्यान में रखने वाली बात ये है कि आप किस पात्र से जल अर्पित करें। मट्टी के पात्र से जल चढ़ाना उत्तम माना जाता है पर आज के समय में जल चढ़ाने के लिए सबसे अच्छे पात्र तांबे, चांदी और कांसे के माने जाते हैं।

जल चढ़ाने का तरीका

कभी भी शिवलिंग पर तेजी से जल नहीं चढ़ाना चाहिए। धर्म ग्रंथों में भी बताया गया है कि शिव जी को जल धारा अत्यंत प्रिय है। इसलिए जल चढ़ाते समय ध्यान रखें कि जल के पात्र से धार बनाते हुए धीरे से जल अर्पित करें। पतली जल धार शिवलिंग पर चढाने से भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।
जब हम ज्योतिर्लिंग या प्रसिद्ध शिव मंदिर में जल चढ़ाने जाते हैं तो वहां बहुत भीड़ होती है। सावन के महीने में शिव मंदिरों में बहुत भीड़ पाई जाती है वहां पर आप इस तरह से जल नहीं चढ़ा सकते। आपको जल्दी से जल चढ़ाकर निकलना होता है ताकि दूसरे की भी बारी आ सके। इसलिए उस समय आप इस बात का ध्यान रखें आपातकाल मर्यादा न अस्ति अर्थात आपातकाल में मर्यादाओं का ध्यान नहीं रखते। तो ऐसी स्थिति में आप जल्दी से जल चढ़ा कर भी जा सकते हैं।

शिवलिंग पर जल अर्पित करते समय एक बात का और ध्यान रखें कि आपको बैठकर जल अर्पित करना है। जगह के अभाव में आप को ठीक से बैठने का स्थान ना मिले तो घुटने पर बैठकर भी आप जल अर्पित कर सकते हैं। बजरंग आसन में बैठकर भी जल अर्पित कर सकते हैं। पुराणों के अनुसार खड़े होकर शिवलिंग पर जल चढ़ाना अच्छा नहीं माना जाता।

एक बात का ध्यान रखिए कभी भी शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए उसमें अन्य सामग्री ना मिलाएं। कई लोग पूजा करते समय पुष्प, अक्षत, रोली और पत्ते डाल देते हैं। धर्म ग्रंथों और प्राचीन लोगों का मानना है कि ऐसा करने से उसकी पवित्रता खत्म हो जाती है। यदि आपको पुष्प इत्यादि अर्पित करने हैं तो इसे जल चढाने से पहले अर्पित कर दें। भगवान शिव की कृपा दृष्टि पाने के लिए हमेशा जल को अकेले ही चढ़ाना चाहिए।

अगर आप भी शिवलिंग पर जल अर्पित करती हैं तो भगवान शिव की कृपा पाने के लिए आपको यहां बताई सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

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