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Ashubh Guru ke lakshan,

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लक्षणों के आधार पर कैसे पता लगाएं की गुरुअच्छा है या बुरा साथ ही गुरु के उपाय भी जाने।

भारतीय ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह को देवगुरु कहा जाता है। इसे नवग्रहों में से एक प्रमुख ग्रह माना जाता है। बृहस्पति ग्रह का ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसे ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, संतान, धन, यश और भाग्य का कारक माना जाता है। बृहस्पति ग्रह के शुभ प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता आती है। बृहस्पति ग्रह की कमजोर स्थिति से व्यक्ति को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
ज्योतिष अनुसार गुरु को जीव यानि आपका शरीर कहते हैं, और शनि को कर्म कहते हैं। गुरु ग्रह को स्वं यानि खुद इस सरीर के स्वस्थ का कारक कहा जाता है। इसे ज्ञान और बुद्धि, शिक्षा, संतान का कारक माना जाता है। साथ ही इसे धन यश और मान-सम्मान और भाग्य का भी कारक माना जाता है। सामान्यतः गुरु वृहस्पति को शुभ ग्रह माना गया है। गुरु वृहस्पति बुद्धि तथा उत्तम वाकशक्ति के स्वामी है।

सभी ग्रहों में गुरु अधिक वजनी और भीमकाय गृह है इसे पृथ्वी का रक्षक भी खा जाता है। गुरु को काल पुरुष का ज्ञाता, ब्राह्मण जाति, पीत वर्ण, हेमंत ऋतु का स्वामी, भूरे रंग के नेत्र वाला, गोल आकृति तथा स्थूल स्वरूप वाला माना गया है। गुरु को ग्रह मंडल में मंत्री का पद प्राप्त है। वेदों तथा पुराणों के अनुसार ऋग्वेद में रुचि रखने, मृदु स्वभाव का स्वामी, उत्तर दिशा का प्रतिनिधि माना गया है।

वृहस्पति के अन्य नाम भी है जैसे वाचस्पति, देवाचार्य, अंगिरा पुत्र और जीव आदि। अंग्रेजी में इसे जूपिटर के नाम से पुकारा जाता है।

ज्योतिष मत से गुरु ग्रह को धनु और मीन राशि का स्वामी माना गया है। सूर्य, चंद्र और मंगल ग्रह गुरु के नजदीकी मित्र हैं। वहीं इसके शत्रु बुध और शुक्र ग्रह है। शनि, राहु और केतु के साथ गुरु समभाव रखता है। इसे पंचम भाव का कारक माना गया है। गुरु ग्रह को कर्क राशि में 5 अंश तक उच्चस्त राशि तथा मकर राशि में 5 अंक तक परम नीचस्त माना गया है। गुरु विशाखा, पुनर्वसु तथा पूर्वभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी है। इसकी गणना शुभ ग्रहों में की जाती है। ज्योतिष में इस तथ्य के प्रमाण एक उदाहरण मिलते हैं कि अकेला लगना सतगुरु एक लाख दोषों को दूर करने में सक्षम है। गुरु ग्रह जातक के जीवन में 15, 22 एवं 40 वर्ष की आयु में अपना प्रभाव दिखाता है।

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गुरु ग्रह भी चंद्र एवं सूर्य की भांति सदैव मार्गी नहीं होता, अपितु समय-समय पर मार्गी, वक्री अथवा अस्त होता रहता है। गुरु ग्रह को अंक शास्त्र में सूर्य और चंद्रमा के उपरांत दूसरा स्थान दिया गया है। गुरु ग्रह जातक के जन्मांग चक्र में जिस भाव में विद्यमान रहता है वहां से द्वितीय तथा दशम भाव को एक पाद दृष्टि से, पंचम एवं नवम भाव को द्विपाद दृष्टि से, सप्तम एवं नवम भाग को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
गुरु ग्रह को स्त्रियों का सौभाग्य वर्धक तथा संतान सुख का कारक ग्रह भी माना गया है। है इसके अतिरिक्त हल्दी, धनिया, प्याज, ऊन तथा मोम आदि का प्रतिनिधि भी गुरु को माना जाता है। यह बुद्धि, विवेक, यश, सम्मान, धन, संतान तथा बड़े भाई का भी प्रतिनिधित्व करता है।

बृहस्पति ग्रह तथा इसका प्रभाव मृदुल स्वभाव वाला, आध्यात्मिक तथा पारलौकिक सुख में रुचि रखने वाला होता है। गुरु के प्रति होने पर कफ एवं चर्बी जनित रोगों की वृद्धि होती है। जातक मंदबुद्धि का, चिंता में रहने वाला, व्यस्त जीवन में तनाव से पीड़ित, पुत्र अभाव के संताप से पीड़ित और रोगी रहता है। गुरु के अशुभ प्रभाव के कारण जातक के प्रत्येक कार्य में व्यवधान तथा असफलता ही हाथ लगती है।

शुभ तथा बलवान गुरु जातक को परमार्थी, चतुर, कोमल, मति विज्ञान का विशेषज्ञ, न्याय, धर्म, नीति का जानकर, सात्विक वृद्धि से युक्त तथा संपत्ती दायक बनाता है। गुरु प्रधान व्यक्ति को पुत्रों का सुख प्राप्त होता है। श्री के साथ उस व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा एवं कीर्ती भी बढ़ती है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार, उत्तर-पूर्व दिशा जिसे ईशान कोण कहा जाता है उसके स्वामी देवगुरु बहस्पति हैं। स दिशा को ज्ञान, बुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। जो की गुरु के लक्षण भी है।

कुंडली में कमजोर गुरु के स्वस्थ सम्बन्धी लक्षण

ज्योतिष के मुताबिक, गुरु को लिवर पर प्रभाव दिया गया है। गुरु को मोटापे का कारक भी कहते हैं ज्यादातर बिमारियों के मूल में मोटापा है। गुरु ठीक है तो वसा और प्रोटीन का सही संतुलन शरीर में होगा पर यदि ख़राब है तो चर्बी बढ़ जाती है। बृहस्पति ग्रह के दुष्प्रभाव के चलते पेट में अलग-अलग समस्याएं हो सकती हैं जैसे कि गैस, एसिडिटी, कब्ज, दर्द आदि। बृहस्पति ग्रह के दुष्प्रभाव के चलते नींद की समस्याएं, श्वसन समस्याएं हो सकती हैं। व्यक्ति विलंब और आलस्य से ग्रस्त हो सकता है, जिससे अवसर छूट जाते हैं। यदि गुरु की स्थिति प्रतिकूल अथवा दोषपूर्ण है तो जातक नाक, कान, गले और नजले से संबंधित रोगों से ग्रसित रहता है। गुरु के अशुभ प्रभाव से हृदय रोग, क्षय रोग, कफ विकार तथा चर्बी जनित रोग जातक को प्रभावित करते हैं। जब गुरु खराब हो तो चोटी के स्थान से बाल उड़ जाते हैं। खराब गुरु पेट में सूजन की शिकायत देता है।

गुरु के ख़राब होने पर शरीर के टीश्यू कमज़ोर होंगे जिसके वजह से कमर के निचले हिस्से, जांघों में असहनीय दर्द तक हो सकता है। खराब वृहस्पत मोटापा बढ़ाता जाता है और इस प्रकार के मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति का चलने फिरने तक का मन नहीं करता। उसे शरीर में बहुत कमजोरी रहती है. उसे आलस्य भी बहुत रहता है जिससे वो जीवन के किसी कार्य में सफल नहीं हो पाता। शरीर चौड़ा होता जाता है और लम्बाई रुकने लगती है। बच्चों को इस प्रकार के वृहस्पत से बचाना बहुत ज़रूरी होता है। ऐसे बच्चों को pituitary ग्लैंड्स की कमजोरी से शारारिक विकास में बहुत परेशानियां होती है।

गुरु को संतान का कारक भी कहा जाता है इस प्रकार के खराब गुरु का असर संतान उत्पन्न करने की क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। कमज़ोर गुरु वाली महिला से उत्पन संतान को तो कमजोरी होती है, उस महिला का शरीर भी संतान उत्पन्न होने के बाद अजीब से मोटापे और दर्द से घिरता जाता है। उनका किसी काम में मन नहीं लगता. ऐसी स्त्रियों को दुबारा मां बनने बहुत कठनाई होती है।

कुपित गुरु बहुत ज्यादा खाने का आदी बनाता है और इसकी वजह से रोग कभी नहीं जाते। घोर बीमारी में भी ऐसे लोग परहेज़ नहीं करते जिसके कारण उनकी उम्र पर भी नाकारत्मक प्रभाव पड़ता है।

बृहस्पति ग्रह के खराब होने के मानसिक लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं

खराब बृहस्पति ग्रह के कारण व्यक्ति चिंतित और उदास हो सकता है। उसका मन किसी काम को करने का नहीं करता लगता है ये काम करू वो काम करू पर उसे बाद पर टाल देता है। विचार तो बहुत आते हैं पर करने का मन नहीं करता और जब मन बनाकर करना शरू करता है तो उसी समय कोई ऐसा काम आ जायेगा की उसे छोड़ वह जरुरी काम में लग जायेगा।
ऐसा व्यक्ति फालतू की समाज सेवा करता है जिससे उसे गली मिलती है। इसलिए निराश होकर व्यक्ति अकेलापन का अनुभव कर सकता है। अच्छा गुरु उच्च कोटी की सिद्धियां कराता है और निम्न स्थिति का गुरु तंत्र का दुरूपयोग कराता है। उसका मन तंत्र में भटकता रहेगा। गुरुओं के प्रति सम्मान काम हो जायेगा। उसे छोटी-छोटी बातों पर भी चिंता हो सकती है और उसे जीवन में कोई खुशी नहीं मिलती है। अशुभ प्रभाव से व्यक्ति की स्मृति में कमी हो सकती है। व्यक्ति के मन में अस्थिरता हो सकती है। उसे विचारों में भ्रम हो सकता है और उसे निर्णय लेने में कठिनाई हो सकती है। व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो सकती है। उसे अपने आप पर भरोसा नहीं होता है और उसे लगता है कि वह किसी भी काम में सफल नहीं हो सकता है। कमजोर या खराब गुरु आध्यात्मिक ऊंचाईयों को पाने नहीं देता।

कमजोर गुरु के सामाजिक लक्षण

पढाई में बाधा आना कमजोर बृहस्पति का एक लक्षण है। हलाकि इसके लिए बुध और पंचम भाव भी जिम्मेदार है पर गुरु के मजबूत होने पर शिक्षा जरूर प्राप्त होती है भले ही डिग्री न हो पर सम्मान पूरा मिलता है। पर कमजोर गुरु व्यक्ति के ज्ञान पर प्रभाव डालता है। ज्ञान की कमी के कारण व्यक्ति पीड़ित होता है। जातक दूसरे को समझाने में कठिनाई महसूस करता है। ऐसा व्यक्ति समाज में पीड़ा पता है उसके विरुद्ध अफवाहें उड़ाई जाती हैं। कमजोर बृहस्पति के कारण व्यक्ति को समाज में वास्तविक प्रसिद्धि नहीं मिल पाती है। ऐसे लोगों पर दूसरे लोग आसानी से हावी हो जाते हैं। उन सभी गलतियों के लिए दोषी ठहराया जाएगा जो आपने कभी नहीं की। शिक्षकों द्वारा आपको कभी भी सम्मान या प्यार नहीं दिया जाएगा। धर्म में विश्वास नहीं करेंगे जिसके कारण आपके आसपास के लोग आपको विद्रोही मानेंगे। शादी में देरी हो सकती है खास कर महिलाओं का गुरु ख़राब है तो शादी में विलम्भ जरूर होता है। शादी के कई साल बाद बच्चे होते हैं।

ख़राब बृहस्पति के आर्थिक लक्षण

15 -16 साल की उम्र में आर्थिक कठिनाई देखने लो मिलती है। 22 वे और 40 वे साल में भी कुछ कठिनाई का अनुभव करेंगे आप अपना पैसा या सोना खो देंगे। घर में पैसे की तंगी बनी रहती है। परिणामस्वरूप आपको सोना बेचना पद सकता है। यदि शनि ठीक है तो आपको काम मिलेगा पर काम जितने दाम नहीं मिलेंगे मतलब आपने 1000 का काम किया तो 100 रुपये ही मिलेंगे पर आप भूखे नहीं मरेंगे। गुरु आपके जीवन की खुशियां हैं। आर्थिक रूप से मजबूत होने पर भी आप ख़ुशी नहीं खरीद पाएंगे। एक खास लक्षण है की आप पूरा दिन बिज़ी है पर काम कुछ नहीं हुआ एंड ऑफ़ थे डे महसूस करेंगे की ऐसा कोई काम नहीं हुआ जिसे आप कह सके की ठोस काम हुआ है। पुरे दिन व्यस्त रहेंगे अंत में रिजल्ट जीरो।

शुभ गुरु के प्रभाव

गुरु ज्योतिष के नव ग्रहों में सबसे अधिक शुभ ग्रह माने जाते हैं। जीवन में हर क्षेत्र में सफलता के पीछे गुरु ग्रह की स्थिति बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है कुंडली में अगर गुरु मजबूत हो तो सफलता का कदम चूमना बिल्कुल तय है।

गुरु के प्रबल प्रभाव वाले जातकों की वित्तिय स्थिति मजबूत होती है तथा आम तौर पर इन्हें अपने जीवन काल में किसी गंभीर वित्तिय संकट का सामना नहीं करना पड़ता। ऐसे जातक सामान्यतया विनोदी स्वभाव के होते हैं तथा जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में इनका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है। ऐसे जातक अपने जीवन में आने वाले कठिन समयों में भी अधिक विचलित नहीं होते तथा अपने सकारात्मक रुख के कारण इन कठिन समयों में से भी अपेक्षाकृत आसानी से निकल जाते हैं। ऐसे जातक आशावादी होते हैं तथा निराशा का आम तौर पर इनके जीवन में लंबी अवधि के लिए प्रवेश नहीं होता जिसके कारण ऐसे जातक अपने जीवन के प्रत्येक पल का पूर्ण आनंद उठाने में सक्षम होते हैं। ऐसे जातकों के अपने आस-पास के लोगों के साथ मधुर संबंध होते हैं तथा आवश्यकता के समय वे अपने प्रियजनों की हर संभव प्रकार से सहायता करते हैं। इनके आभा मंडल से एक विशेष तेज निकलता है जो इनके आस-पास के लोगों को इनके साथ संबंध बनाने के लिए तथा इनकी संगत में रहने के लिए प्रेरित करता है। आध्यात्मिक पथ पर भी ऐसे जातक अपेक्षाकृत शीघ्रता से ही परिणाम प्राप्त कर लेने में सक्षम होते हैं।

गुरु वृहस्पति जातक को मजिस्ट्रेट, वकील, प्रिंसिपल, गुरु, पंडित, ज्योतिषी, बैंक, मैनेजर, एमएलए, मंदिर के पुजारी, यूनिवर्सिटी का अधिकारी, एमपी, प्रसिद्द राजनेता के गुण आदि बनाता है। गुरु के प्रभाव से व्यक्ति को आयकर, खंजाची, राजस्व, मंदिर, धर्मार्थ संस्थाएं, कानूनी क्षेत्र, शेयर बाजार, पूंजीपति, दार्शनिक, वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता होता है।

ज्योतिष शास्त्र में गुरु ग्रह का महत्वपूर्ण स्थान है और इसके शुभ योग भी विस्तारपूर्वक वर्णित किए गए हैं। गुरु ग्रह के शुभ योगों में से कुछ निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. गजकेशरी योग: यह योग जब गुरु ग्रह चंद्रमा के साथ केन्द्र और कोण स्थित होता है, तो बनता है। इस योग के प्राभाव से व्यक्ति को धन, स्थान, सम्मान और प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है।
  2. हंस योग: इस योग में गुरु ग्रह को केन्द्र स्थिति में और कोई शुभ ग्रह उसके साथ हो, तो यह योग बनता है। यह योग व्यक्ति को बुद्धि, धर्म, धन और स्वास्थ्य में लाभ प्रदान करता है।
  3. हर्षन योग: गुरु ग्रह के शुभ स्थिति और कोई दूसरा शुभ ग्रह उसके साथ हो, तो यह योग बनता है। इस योग से व्यक्ति को समृद्धि, सुख, संतान और शौर्य मिलता है।
    कुछ महत्वपूर्ण गुरु योग निम्नलिखित हैं:

गुरु-सूर्य योग: यह योग व्यक्ति को बुद्धिमान, साहसी, और आत्मविश्वासी बनाता है। उसे शिक्षा, संतान, धन और यश की प्राप्ति होती है।

गुरु-मंगल योग: यह योग व्यक्ति को साहसी, पराक्रमी और सफल बनाता है। उसे सेना, राजनीति या कानून के क्षेत्र में सफलता मिलती है।

गुरु-बुध योग: यह योग व्यक्ति को बुद्धिमान, विद्वान, और लेखन-कला में निपुण बनाता है। उसे शिक्षा, संतान, धन और यश की प्राप्ति होती है।

गुरु-शुक्र योग: यह योग व्यक्ति को बुद्धिमान, सुंदर, और धनी बनाता है। उसे शिक्षा, संतान, धन और यश की प्राप्ति होती है।

कुछ अशुभ गुरु योग निम्नलिखित हैं:

जब देवताओं के गुरु बृहस्पति, राहु-केतु के साथ युति करते हैं तो इससे अशुभ योग बनता है।

पहला दोष : गुरु चाडांल दोष कहा जाता है। यह राहु के गुरु के साथ होने पर दोष लगता है। इस दोष के चलते हुए मनुष्य कि कुंडली के अन्य सभी शुभ योग नष्ट हो जाते है, जिसके कारण इस दोष के जातक को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। गुरु चांडाल दोष के जातक का धन व्यर्थ के कार्यों पर खर्च होता। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के मान-सम्मान में गिरावट आती है। और इसी के साथ-साथ व्यापार और नौकरी मे भारी मात्रा मे हानी का सामना करना पड़ता है। और घर परिवार की सुख व समृद्धि का सर्वनाश हो जाता है।

गुरु के उपाय

खान में हरे प्याज और शतावरी साग का सेवन करें। इससे शरीर एकदम ठीक रहेगा। पुदीने का सेवन ज़रूर किया करें। मूली खाएं और खिलाएं भी। साग का सेवन ज़रूर करें। दूध में हल्दी मिलकर पियें। बासी भोजन करने से बृहस्पत खराब होता है इसलिए रात का भोजन सेवन न करें। भोजन में सर्दियों में पपीता और गर्मियों में अनानास का सेवन करें।

माता-पिता व बुजुर्गो और पितरों का ध्यान रखने वाले लोगों का वृहस्पत हमेशा बेहतर फल देता है। जिस दिन गुरु-पुष्य या पुनर्वसु नक्षत्र हो उस दिन नारायण भगवान, गुरु व माता पिता को उपहार दे व सेवा ज़रूर करें। गुरु और शिक्षकों की सेवा से भी वृहस्पति अच्छा होता है।

यदि गुरु शुभ है तो पुखराज या टोपाज धारण करें नहीं तो पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
केसर का तिलक नाभि में व माथे पर लगाएं।
वृहस्पतिवार व्रत करना चाहिए। रुद्राभिषेक करना चाहिए। गुढ़हल के फूल को देवताओं को अर्पित करें। गरीबों को दही चावल खिलाने से बृहस्पति का बुरा फल समाप्त होता है।
बृहस्पत बहुत अच्छा हो तो अपना जीवन धर्म, देश समाज को दान कर दें अन्यथा ये भौतिक सुख नहीं लेने देगा। पीपल के वृक्ष की रक्षा करें तथा मंदिर की सेवा करें। गंदगी ना फैलाए।
खराब वृहस्पत जीवन साथी के जेवर बिकवा देता है और जीवन साथी को कोई जेवर उपहार में देने से वृहस्पत मज़बूत होता है।

गुरु का बीज मंत्र

कुंडली में गुरु ग्रह को मजबूत करने के लिए, हर दिन खासकर गुरुवार के दिन ‘ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः’ इस मंत्र का जाप 3, 5 या 16 माला अवश्य करें. ऐसा करने से जातक पर गुरु ग्रह की कृपा दृष्टि बनी रहती है।

गुरु का वैदिक मंत्र

देवानां च ऋषिणा च गुर्रु कान्चन सन्निभम।

बुद्यिभूतं त्रिलोकेश तं गुरुं प्रण्माम्यहम।।

गुरु की दान की वस्तुएं

गुरु की शुभता प्राप्त करने के लिए निम्न वस्तुओं का दान करना चाहिए. स्वर्ण, पुखराज, रुबी, चना दान, नमक, हल्दी, पीले चावल, पीले फूल या पीले लडडू। इन वस्तुओं का दान वीरवार की शाम को करना शुभ रहता है। गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें। गुरुवार के दिन धार्मिक या पढ़ाई की पुस्तकों का दान करें।

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